Fact Check : क्या नेहरू जेल नहीं रेस्ट हाउसों में रहते थे?
आरोप :
नेहरू विरोधियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे नेहरू के बारे में कोई भी अध्ययन करने से कतराते हैं । उन्हें या तो नेहरू के लेखन और विचारों से भय लगता है कि कहीं उनका हृदय परिवर्तन न हो जाय या तो वे नेहरू के प्रति इतने अधिक घृणा भाव से आवेशित रहते हैं कि वे, उनकी लिखी किताबों के पन्ने पलटना भी नहीं चाहते । वे यह छोटी सी बात समझ नहीं पाते हैं कि किसी के भी विचार का विरोध करने के पहले उसके विचारों का अध्ययन करना ज़रूरी है । नेहरू अपने जीवन में कुल 20 बार अलग-अलग जेलों में रहे। कुल अवधि साढ़े नौ साल के लगभग है । यह सूचना नेहरू स्मारक संग्रहालय तीन मूर्ति भवन जो उनका, उनकी मृत्यु तक सरकारी आवास रहा, से ली गयी है और गूगल पर भी उपलब्ध है ।
नेहरू, को सावरकर जैसा कष्ट नहीं भोगना पड़ा , यह भी एक सच है। सावरकर के खिलाफ हत्या का मुक़दमा था। वे अंडमान के जेल में थे, जहाँ से पाँच से अधिक बार माफ़ियाँ मांगकर रिहा हुए और उसके बाद कभी कोई ऐसा काम नहीं किया कि अंग्रेज़ी राज में उन पर कोई कार्यवाही हो।
1924 में गांधी के ऊपर देश द्रोह का मुकदमा चला था । यह मुकदमा उनके दो लेखों के आधार पर, जो उन्होंने अपने अखबार यंग इंडिया में लिखे थे, के आधार पर चलाया गया था। गांधी ने जुर्म स्वीकार करते हुये देशद्रोह की सज़ा जो, उन्हें 6 साल की, मिली थी, वह भुगत भी ली थी। इस पर राजद्रोह क़ानून के खिलाफ़ जो वक्तव्य उन्होंने अदालत में दिया था उसके बाद कभी आंग्रेज़ों ने उन्हें अदालत में बोलने का मौक़ा नहीं दिया। उसके बाद देशद्रोह का मुक़दमा क्रांतिकारी आंदोलनकारियों पर चला ।नेहरू एक राजनैतिक बंदी थे। जेल मैनुअल के अनुसार राजनीतिक और ग्रेजुएट बंदियों को लिखने पढ़ने और अन्य सुविधाएं देने का प्राविधान है । जो वे लिखते थे उसे जेल और सीआईडी विभाग के लोगों की नज़र में भी था। नेहरू ने अपनी सारी पुस्तकें जेलों में ही लिखी। आज भी जेल में कोई कैदी लिखना पढ़ना चाहे तो उसे सुविधाएं और पुस्तके उपलब्ध करायीं जाती है ।
गांधी सामान्य जेल में रखे गए थे। यरवदा जेल में उन्हें बंदी बना कर रखा गया था। फिर अंग्रेजों ने उन्हें आगा खान पैलेस में भी बंदी बना कर रखा था। किस बंदी को किस जेल में रखना है यह सरकार का प्रशासनिक निर्णय होता था, और यह व्यवस्था आज भी लागू है। गांधी किसी ऐसे अपराध में दोषसिद्ध नही हुए थे कि, उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा दी गयी हो।साथ ही, गांधी जी की वैश्विक क्षवि, जनता पर व्यापक प्रभाव भी इतना था कि अंगेज़ उनके खिलाफ ऐसी कोई कार्यवाही करने से बचते थे, जिससे दुनियाभर में उनके खिलाफ कोई विपरीत प्रतिक्रिया न हो। जनसमर्थन और वैश्विक दबाव ही वे कारण हैं कि आज भी चाहें जम्मू-कश्मीर में फ़ारूक़ अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला या मेहबूबा मुफ़्ती जैसे नेता हों या यूपी में प्रियंका गांधी, इन्हें जेलों में नहीं रेस्ट हाउस इत्यादि में ही निरुद्ध किया जाता है।
जवाहरलाल नेहरू की जेल यात्राओं का विवरण प्रस्तुत है ।
गिरफ्तारियों और रिहाइयों के कारण और स्रोत आप ऊपर दिए वीडियो में देख सकते हैं। तिथियाँ ये रहीं –
1. 6 दिसंबर 1921 से 3 मार्च 1922, लखनऊ जिला जेल, 88 दिन ।2. 11 मई 1922 से 20 मई 1922 , इलाहाबाद जिला जेल, 10 दिन ।3. 21 मई 1922 से 31 जनवरी 1923, लखनऊ जिला जेल, 256 दिन ।4. 22 सितंबर 1923 से 4 अक्टूबर 1923, नाभा जेल, 12 दिन ।5. 14 अप्रैल 1930 से 11 अक्तूबर 1930, नैनी सेंट्रल जेल, इलाहाबाद, 181 दिन ।6. 19 अक्टूबर, 1930 से 26 जनवरी, 1931, नैनी सेंट्रल जेल इलाहाबाद, 100 दिन ।7. 26 दिसंबर 1931 से 5 फरवरी, 1932, नैनी सेंट्रल जेल, इलाहाबाद, 42 दिन ।8. 6 फरवरी, 1932 से 6 जून, 1932, बरेली जिला जेल, 122 दिन ।9. 6 जून 1932 से 23 अगस्त 1933, देहरादून जेल, 443 दिन ।10. 24 अगस्त, 1933 से 30 अगस्त, 1933, नैनी सेंट्रल जेल, इलाहाबाद, 7 दिन ।11. 12 फरवरी 1934 से 7 मई 1934, अलीपुर सेंट्रल जेल कलकत्ता, 85 दिन ।12, 8 मई 1934 से 11 अगस्त 1934, देहरादून जेल, 96 दिन ।13. 23 अगस्त, 1934 से 27 अगस्त, 1934, नैनी सेंट्रल जेल, इलाहाबाद, 66 दिन ।14. 28 अक्टूबर, 1934 से 3 सितंबर, 1935, अल्मोड़ा जेल, 311 दिन ।15. 31 अक्टूबर 1940 से 16 नवम्बर 1940, गोरखपुर जेल, 17 दिन ।16. 17 नवम्बर, 1940 से 28 फरवरी, 1941, देहरादून जेल, 104 दिन ।17. 1 मार्च 1941 से 3 दिसंबर 1941, लखनऊ जिला जेल, 49 दिन ।18. 19 अप्रैल 1941 से 3 दिसंबर, 1941, देहरादून जेल, 229 दिन ।19. 9 अगस्त, 1942 से 28 मार्च, 1945, अहमदनगर किला जेल, 963 दिन ।20, 30 मार्च, 1945 से 9 जून, 1945, बरेली सेंट्रल जेल, 72 दिन ।
एक भी याचिका या प्रार्थना पत्र उन्होंने खुद को छोड़ने के लिये नहीँ दिया । नाभा के बारे में फैलाए गए क़िस्से भी झूठे हैं। यहाँ तक कि उनकी पत्नी कमला नेहरू जब बीमार थीं तब भी वे जेल में ही थे। सरकार उन्हें, अपने राजनीतिक उद्देश्य और आवश्यकता के अनुसार, वार्ता के लिये ही छोड़ती रहती थी। लखनऊ जेल में जिस कोठरी में बंद थे उसे एक स्मारक के रूप में बदल दिया गया था। पर जब उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार आयी तो जेल को आलमबाग से शहर के बाहर स्थानांतरित किया गया तो वह जेल पूरी की पूरी तोड़ दी गयी। लेकिन, उनका वह कमरा जो नैनी जेल में था, आज भी सुरक्षित रखा गया है ।
अंत में यह प्रसंग पढ़ें, एक बार चर्चिल ने उनसे पूछा था
“आप हमारी हुकूमत के दौरान कितने साल जेल में रहे।”नेहरू ने कहा,“दस वर्ष के लगभग।”चर्चिल बोले,“फिर तो आपको हम लोगों से नफ़रत करनी चाहिए।”उन्होंने कहा,“हम लोग गाँधी के शिष्य हैं । उन्होंने दो बातें सिखाईं डरो मत। दुसरी घृणा बुराई से करो व्यक्ति या समाज से नहीं। हम डरे नहीं ,जेल गए। अब घृणा किसे करें।”
निष्कर्ष
यह झूठा प्रचार है। नेहरू ने अहिंसा के जरिए जनप्रतिरोध का जो रास्ता चुना उसके चलते लगातार उन्हें जेल जाना पड़ा। वह किसी आरामदेह रेस्टहाउस में नहीं बल्कि नैनी और अलीपुर जैसी खतरनाक जेलों में रखे गए। जननेता होने के कारण उन्हें अक्सर पहले ही रिहा करके बातचीत का रास्ता अपनाना पड़ा अँग्रेजों को।
हमारा सवाल
- नेहरू के खिलाफ़ दुष्प्रचार करने वाले बताएं कि हिन्दू महासभा में शामिल होने के बाद सावरकर कितनी बार गिरफ़्तार हुए?
- हिन्दू महासभा या आर एस एस का कौन सा नेता अँग्रेज़ों के खिलाफ़ किसी क़ानून में जेल गया?
पूर्व आई पी एस अधिकारी। इतिहास में गहरी रुचि