करतार सिंह सराभा जिनसे भगत सिंह ने इंक़लाब की प्रेरणा ली
आज़ादी के आन्दोलन में कई युवा क्रांतिकारी हुए जिनका जीवन काफी छोटा था लेकिन इस छोटे से जीवन में उन्होंने बहुत बड़े काम किए। करतार सिंह सराभा ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते हुए जो उदाहरण पेश किए वह उनके जीवन काल को बड़ा और उनके व्यक्तित्व को महान बन देते है। साराभा ग़दर आंदोलन के जीवंत कड़ी थे और युवा क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा के प्रकाश-पुंज……….
करतार सिंह साराभा का जन्म 24 मई 1986 को पंजाब के लुधियाना जिले के साराभा गाँव में हुआ था। शुरुआती तालीम लुधियाना से करने के बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने कटक (उड़ीसा) से पूरी की। 1912 में मात्र 15 साल के उम्र में आगे की पढ़ाई के लिए बर्कले में दाखिला लेने के इरादे से सैन फ्रांसिस्को की यात्रा की।
प्रो. चमन लाल बताते है कि 19 साल के जीवन और केवल 4 साल के राजनीतिक जीवन में करतार सिंह साराभा ने भारत के स्वतंत्रता के संघर्ष का जो उदाहरण पेश किया, वह दुलर्भ है। 1 जनवरी 1912 और पाँच-छह महीने के भीतर के अवधि में उन्होंने जो बेमिसाल राजनीतिक चेतना प्राप्त की।
1913 में ग़दर पार्टी की स्थापना के बाद विशेष रूप से नवंबर 1913 को ग़दर के प्रकाशन के बाद उनके जीवन का हर पल, उनके लहू का एक-एक क़तरा देश के सेवा के लिए समर्पित था। ग़दर के पहले अंक में करतार सिंह साराभा की कविता प्रकाशित हुई।
जो पूछे कि कौन हो तुम,
तो कह दो बाग़ी है नाम अपना
ज़ुल्म मिटाना हमारा पेशा,
ग़दर करना है काम अपना।
नमाज संध्या यही हमारी,
श्री पाठ भी यही है प्यारों,
यही खुदा है और है राम अपना।
1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया तब इस समय को ग़दर पार्टी ने अनुकूल अवसर समझते हुए भारत में सशस्त्र विद्रोह आंदोलन के शुरुआत करने का अवसर दिखा। 15 सितंबर 1914 को करतार सिंह साराभा, सत्येन सेन और विष्णु गणेश पिंगले ने ग़दर के बाक़ी साथियों के साथ एक महीने पहले अमेरिका छोड़ दिया।
अपनी यात्रा के दौरान करतार सिंह साराभा को युंगातर के जतिन मुखर्जी और महान क्रांतिकारी रास बिहारी बोस से मिलने का मौका मिला। जैसे ही ग़दर पार्टी के भारत पहुँचने की खबर अंग्रेजों को मिली, पुलिस उनका पीछा करने लगी।
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क्या था प्रथम लाहौर षड़यंत्र
करतार सिंह पिंगले के साथ मेरठ, आगरा, बनारस, इलाहाबाद, अंबाला और रावलपिंडी की छावनियों में गए तथा ब्रिटिश सेना में भर्ती भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया।
करतार सिंह सराभा को सरगोथा में चक नंबर 5 पर 22 कैवलरी के सैनिको को विद्रोह के लिए प्रोत्साहित करने के प्रयास में गिरफ़्तार कर लिया गया, असल में यह योजना एक ग़द्दार किरपाल सिंह ने लीक कर दी थी। उन्हें आन्दोलन के अन्य नेताओं के साथ लाहौर लाया गया। इस मामले को प्रसिद्ध लाहौर षडयंत्र केस के नाम से जाना जाता है। सितंबर 1915 को उन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई गई।
मामले में न्यायाधीश ने कहा-
उन्हें अपने द्वारा किए गए अपराधों पर बहुत गर्व है। वह दया के पात्र नहीं हैं और उन्हें मौत की सजा दी जानी चाहिए और उन्हें सभी विद्रोहियों में सबसे ख़तरनाक क़रार दिया गया। 19 साल के करतार सिंह सराभा ने चेहरे पर मुस्कान और अपनी मातृभूमि के लिए प्यार से भरे दिल के साथ फांसी के फंदे को चूम लिया।
इतनी कम उम्र में करतार सिंह के बलिदान ने युवा क्रांतिकारियों के लिए एक विरासत को स्थापित किया, जिसका प्रभाव भगत सिंह पर सबसे अधिक पड़ा।
भगत सिंह पर करतार सिंह साराभा का प्रभाव
भगत सिंह की पारिवारिक पृष्ठभूमि देश प्रेम और राष्ट्रीयता के भावना से ओत-प्रोत थी। पारिवारिक माहौल के अलावा, ऐसे कई अन्य कारण थे जिन्होंने भगत सिंह के भविष्य के जीवन को बहुत प्रभावित किया। अपने चाचा सरदार अजित सिंह से वह अधिक प्रभावित थे; लेकिन सबसे अधिक प्रभाव करतार सिंह सराभा के व्यक्तित्व का पड़ा।
दस्तावेज़ बताते हैं कि उनके पिता सरदार किशन सिंह ने ग़दर आंदोलन और सराभा की मदद की थी। उनकी माताजी ने अपने संस्मरणों में बताया है कि किशोर भगत सिंह अपनी जेब में करतार सिंह सराभा की तस्वीर रखा करते थे।
ग़दर आन्दोलन ने उनके मन में गहरी छाप छोड़ी। जब भगत सिंह केवल नौ वर्ष के थे, तब ग़दर पार्टी के युवा नायक, सरदार करतार सिंह सराभा को प्रथम लाहौर षडयंत्र में दोष सिद्ध के बाद 16 नवंबर 1916 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई थी।
सराभा तब मुश्लिक से 20 वर्ष के थे। इसके बाद युवा शहीद सराभा भगत सिंह के अग्रदूत बने। इस पहलू पर प्रकाश डालते हुए भगत सिंह के एक जाने-माने जीवनी लेखक लिखते हैं –
1916 में प्रथम लाहौर षडयंत्र मामले में फैसले के परिणामस्वरूप करतार सिह सराभा का फांसी पर चढ़ना…लगभग 20 वर्ष के एक बालक द्वारा भारत की स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च बलिदान…ने भगत सिंह के जीवन पर एक गहरी छाप छोड़ी। वह केवल नौ वर्ष के थे और उस प्रभाव ने उसके सोचने के तरीके और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बदल दिया।
शहीद करतार सिंह सराभा की वीरता और बलिदान का भगत सिंह के प्रभाव इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब भगत सिंह को गिरफ्तार किया गया था(1927), तो उनके पास से शहीद करतार सिंह की एक तस्वीर बरामद हुई थी।
वह हमेशा सराभा की तस्वीर अपनी जेब में रखते थे और उसने बड़ी प्रेरणा लेते थे। अपनी मां को सराभा की तस्वीर दिखाकर कहते थे यही मेरे अभिभावक, गुरु और शिक्षक है।
लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह के साथ सोहन सिंह भकना का सस्मरण
अपने अग्रदूत के नक्शेकदम पर चलते हुए, भगत सिंह को भी उसी लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को दूसरे लाहौर षडयंत्र मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद फांसी दे दी गई थी। अपने नायके तरह भगत सिंह ने भी 23 वर्ष की आयु अल्पायु में वीरतापूर्वक फांसी के फंदे को चूम लिया।
भगत सिंह सराभा से किस हद तक प्रभावित थे इसका उदाहरण एक महान ग़दरवादी और देश के एक अनुभवी स्वतंत्रता सेनानी बाबा सोहन सिंह भकना ने दिया है। लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह के साथ क़ैद में रहे बाबा याद करते हैं:
किस तरह मैं और भगत सिंह अक्सर मिलते और चर्चा करते थे। एक बार मैंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में भगत सिंह से पूछा, आप इतने छोटे, पढ़े-लिखे और रईस खानदान के हैं और आपकी उम्र मौज़-मस्ती की है, फिर आप इन सब में कैसे उलझे ?
जिस पर भगत सिंह ने शरारती मुस्कान के साथ जवाब दिया, वास्तव में इसका दोष आप और आपके साथियों पर है।
कैसे, मैने पूछा?
उन्होंने जवाब दिया, क्या करतार सिंह और उसके साथियों जैसे लोगों को फांसी का सामना नहीं करना पड़ा? एक मुस्कान के साथ और आप जैसे औरों को नर्क यानी सेल्युलर जेल में क़ैद न किया गया होता, शायद मैं यहाँ न होता।
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में