जब हंटर कमीशन से मिली पंडिता रमाबाई
18वीं सदी में भारतीय शिक्षा के विषय पर गठित कमीशन जिसे भारतीय शिक्षा आयोग भी कहा गया। भारतीयों के शिक्षा के विषय पर महत्वपूर्ण प्रस्थान बिंदु है। सन1880 में लार्ड रिपन जब भारत के गर्वनर जनरल थे। उन्होंने विलियम हंटर के अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया जिसका नाम हंटर कमीशन पड़ा। 5 सितम्बर, 1882 टाउन हांल, पुणे, हंटर कमीशन के सामने पंडिता रमाबाई ने भारतीय लड़कियों के शिक्षा के विषय पर न केवल मह्त्वपूर्ण प्रश्न रखे कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए।
सुजाता ने अपनी किताब विकल विद्रोहिणी पंडिता रमाबाई में इस पर विस्तार से लिखा है। प्रस्तुत है उसी से एक अंश- सं
भारत में शिक्षा सुधारों पर केन्द्रित हंटर कमीशन आया। डब्ल्यू.डब्ल्यू हंटर तक रमाबाई की ख्याति पहुंच चुकी थी, जब वह बंगाल में थीं। टाउन हांल में रमाबाई की आर्य महिला समिति ने कमीशन का स्वागत किया।
अधिकांश किताबो में इस जगह को टाउन हांल लिखा गया है, लेकिन रमाबाई रणाडे की आत्मकथा में इस सभा का स्थान हीरा बाग़ बताया गया है। असल में हीरा बाग़ अपना एक इतिहास है।
हीराबाग का इतिहास
हीराबाग़, सरस बाग़, पार्वती झील जैसी कई जगहें बनवाकर पेशवा नानासाहेब ने पुणे का लैंडस्केप बदलने की कोशिश की।[i] हीरा बाग़ में एक बंगला था और बाहर बड़ा बाग़ था जिसमें एक फव्वारा था, जिसमें पानी पार्वती झील से ही आता था। यह जगह शाही आयोजनों, विवाहों के लिए इस्तेमाल होती थी। अंग्रेज अफ़सरों के आने पर उनका स्वागत यहां होता था।
1818 में पुणे के अंग्रेजों के हाथ आने पर इसका स्वरूप वैसा नहीं रहा।फिर किसी पारसी ने इसपर कब्ज़ा किया। कई हाथों से होता हुआ हीराबाग़ अन्तत: राजाराम भाउ म्हस्के ने ख़रीदा और 1877 में इसे रानाडे जैसे समाज सुधारकों के साथ मिलकर हीरा बाग़ टाउन हाल कमेटी के नाम से स्थापित किया गया।
उन्होंने इसे एक सार्वजनिक मंच की तरह विकसित किया जहां हाल में वाद-विवाद, भाषण, गोष्ठीयां होती थीं और बाग़ का इस्तेमाल खेल के मैदान की तरह होता था।[ii] हीरा बाग़ पुणे के बुद्धिजीवियों का सभा-स्थल बन गया। 1892 में स्वामी विवेकानंद ने भी यहीं सभा को संबोधित किया था।
इसी हीरा बाग़ में उच्च जाति की 300 महिलाओं की ओर से रमाबाई ने मराठी में एक सम्बोधन दिया। इस पर 50 महिलाओं के हस्ताक्षर थे। इसका अनुवाद अंग्रेजी में गोपाल हरि देशमुख ने किया था। सितम्बर अन्त में कमीशन के समक्ष रमाबाई की गवाही को हंटर ने बहुत सराहा और ख़ुद उसका अनुवाद करवाया।
कमीशन की ओर से रमाबाई से तीन सवाल पूछे गए थे
- भारत के शिक्षा के विषय पर राय बनाने के क्या आपको अवसर मिले हैं और आपको ये अनुभव किस प्रान्त में प्राप्त हुए हैं?
रमाबाई : मैं एक ऐसे व्यक्ति की सन्तान हूं जिसने स्त्री-शिक्षा का समर्थक होने के कारण बहुत कुछ झेला और व्यापक विरोध के बीच भी उन्होंने इस विषय पर चर्चा की और अपने विचारों का अनुगमन किया।
इसलिए मेरा दायित्व है कि मैं जीवनपर्यन्त इस उद्देश्य की रक्षा करूं और इस देश में स्त्रियों के उत्थान की वकालत करूं।
- लड़कियों के शिक्षक उपलब्ध कराने का बेहतर तरीका क्या हो सकता है?
रमाबाई : अब तक के अनुभव के आधार पर मैं यह मानती हूं कि जो भी स्त्रियां दूसरों की शिक्षक बनना चाहती हैं, उन्हें इसके लिए विशिष्ट प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। अपनी मातृभाषा के समुचित ज्ञान के अलावा उन्हें अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
जो महिलाएं शिक्षण प्रशिक्षण पाना चाहें, भले ही वह विवाहित हो, अविवाहित या विधवा वे अपने आचरण और नैतिक मूल्यों के श्रेष्ठ हों, सम्मानित परिवार से हों। उनके लिए समुचित छात्रवृत्तियां हों।
लड़कियों की शिक्षिकाओं की तनख़्वाहें लड़कों के शिक्षकों से अधिक हों ताकि वे श्रेष्ठ चरित्र और स्तर बनाए रख स्कें। छात्राओं को कांलेज परिसर में ही रचना चाहिए ताकि उनके आचरण और आदतें सुधारी जा सकें, एक विशाल भवन होना चाहिए जहां शिक्षकों और छात्राओं के लिए सभी सुविधारं और व्यवस्था हो।
किसी स्थानीय श्रेष्ठ महिला को इसका कार्यभार सौंपना चाहिए। सिर्फ़ पढ़ाना ही काफी नहीं होता, छात्रों के आचरण और नैतिक मूल्यों की शिक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए।
- अभी तक जिस तरह शिक्षा व्यवस्था चल रही है, उ में आपको मुख्य दोष क्या दिखाई देता है और उसे दूर करने के लिए आप क्या निदान सुझाएंगी?
रमाबाई: लड़कियों के स्कूल में महिला निरीक्षक होनी चाहिए जिनकी उम्र तीस या उससे अधिक हो, सुशिक्षित और अति उत्कृष्ट वर्ग से हो, भले भारतीय हों या न हों या यूरोपियन। पुरुष निरीक्षक निरीक्षक निम्नलिखित कारणों से इसके लिए ठीक नहीं माने जा सकते…
कमीशन को रमाबाई के सुझाव
1.इस देश की महिलाएं बेहद संकोची हैं। अगर एक पुरुष निरीक्षक लड़कियों के स्कूल में जाएगा तो सभी लड़कियां उलझन में पड़ जाएगी और उसकी बोलती बंद हो जाएगी।
ऐसी हालत देखकर पुरुष निरीक्षक स्कूल की और अध्यापकों की ख़राब रिपोर्ट बनाएगा। बहुत सम्भव है, सरकार ऐसे स्कूल के लिए एक पुरुष शिक्षक की ही नियुक्ति करेगी और स्त्री शिक्षक का लाभ उस स्कूल को नहीं मिल पाएगा। क्योंकि लड़कियों का शिक्षण लड़कों से भिन्न होगा, इसलिए यही यही है कि वह स्त्री शिक्षकों के हाथों में हो।
2. दूसरी वजह यह कि सौ में से निन्यानबे मामलों में इस देश का शिक्षित पुरुष स्त्री-शिक्षा और उनकी स्थितियों को सुधारने के खिलाफ है। ऐसे में अगर उन्हें छोटी-सी भी ग़लती दिख जाती है तो वे राई का पहाड़ बना देते हैं और उस महिला के चरित्र पर कीचड़ उछालते हैं।
ऐसे में कोई ग़रीब महिला, जिसमें बहुत हिम्मत नहीं है, वो सजग नहीं है, वह टूट जाती है। ऐसा माना जाता है कि पुरुष सत्ता के करीब रहने के अधिक योग्य हैं और औरतें चारदीवारी में रहने के लिए। लेकिन सरकार के नज़र में स्त्री-पुरुष दोनों एक होने चाहुए, जैसे अभिभावकों के नज़र में उनकी सन्तान –दोनों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार होना चाहिए।
यह प्रमाणित है कि इस देश की जनसंख्या का आधा हिस्सा, महिलाएं, बाकी आधे हिस्से यानी पुरुषों द्वारा प्रताड़ित हैं। इस गड़बड़ी को रोकना अच्छे प्रशासन के लिए जरूरी है।
3.मैं एक और सुझाव देना चाहूंगी महिला डाक्टर के सन्दर्भ में। देश में अच्छे डाक्टर तो हैं, लेकिन कोई महिला इस पेशे में नहीं है। इस देश की औरतें बाकी दुनिया की औरतों के मुलाबले अधिक संकोची हैं, ज्यादातर औरतें मर जाना चाहेंगी बज़ाय इसके कि एक पुरुष से उन्हें बात करनी पड़े।
इसलिए हजारों-लाखो औरतों की अकाल मृत्यु की वजह महिला डाक्टरों की कमी है। मैं हमारी सरकार से आग्रह करती हूं कि वह महिलाओं को मेडिसिन पढ़ने की व्यवस्था करे। भारत में स्त्री शिक्षा की सबसे बड़ी कमी महिला डाक्टरों का अभाव है।
इस कमीशन को सौंपे गए पत्र से ही रानी विक्टोरिया को पहली बार भारत में महिला डाक्टरों की जरूरत का एहसास हुआ। [iv] फलस्वरूप, डचेस डफ़रिन जब 1885 में भारत आई तो महिला डाक्टरों की भारत में सप्लाई और शिक्षा के लिए एक डफ़रिन फंड की स्थपना हुई।
रमाबाई रानाडे और फ्रैंकीना सोराबजी ने भी बोला
इस सभा में रमाबाई रणाडे को भी बोलना था और फ्रैंकीना सोराबजी को भी। रमाबाई रणाडे काफी घबराहट के बाद अपना तैयार भाषण बोल पाई। रमाबाई रणाडे लिखती है, हीरा बाग में हुई थी सभा जिसमें मुझे और रमाबाई क बोलने के लिए चुना गया था। पंडिता रमाबाई को सभाओं को संबोधित करने का अच्छा अनुभव था।
उसने अपना हिस्सा अच्छे से बोला, लेकिन मैं संशय में थी; कोई दस, बाहर वाक्य बोलने के बाद मैंने एकदम से अपना भाषण समाप्त कर दिया।[v]
स्त्री-शिक्षा पर लगातार बोलते हुए और बंगाल के समाज में रहते हुए रमा ने बहुत सी चीजें करीब से देखा था। पुणे लौटकर रमा के विचारों में संतुलन बनाने की कोशिश भी की थी, लेकिन कमीशन के सवालों के जबाव देते हुए रमा के विचार स्पष्टता से, प्रखरता से सामने आ गए।
——————————————————————————————————————–
संदर्भ-स्त्रोत
मूल स्त्रोत- सुजाता , विकल विद्रोहिणी पंडिता रमाबाई
[i] देखे, https://timessofindia.indiatimes.com/city/pune/of-liisure-and-history/artileshow/5125267.cms
[ii] देखे, https://timessofindia.indiatimes.com/city/pune/-news/sutradharas-tales-and-hirabaug-remind-us-of-vilage-of-18th-century-pune-10163532137699.html
[iii] पंडिता रमाबाई की किताब, हिंदू स्री का जीवन, की भूमिका से जिसे पेंसिल्वेनिया में महिला मेडिकल कांलेज की डीन रैचेल बांडले ने लिखा था। देखे पृ xvi-xvii, द हाई कास्ट वुमन, पंडिता रमाबाई सरस्वती, फ्रिलाडेल्फ़िया, 1888
[iv] देखें, पृ. 98, पंडिता रमाबाई सरस्वती: हर लाइफ़ ऎंड वर्क, पद्मिनी सेनगुप्ता, एशिया पब्लिकेशिंग हाउस, मुबंई
[v] देखें, पृ.81, हिमसेल्फ़, द आंटोबायोग्राफी आंफ़ अ हिंन्दी लेडी, मराठी से अनुवाद और रुपान्तरन- कैथरीन वैन अकिन गेट्स, कांन्गमैन ग्रीन एंड कम्पनी, न्यूयार्क, 1938
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में