जब गोरखपुर के किसानों ने विद्रोह का बिगुल बजाया
कर्नल हैनेवे(Col Hannay) ईस्ट इंडिया कंपनी का एक अफसर था। कंपनी की आज्ञा से उसने 1778 में अवध के नवाब की नौकरी पकड़ी। इसके जिम्मे गोरखपुर, बहराइच और बस्ती के जिलों को ठेके पर देकर लगान वसूल करना था।
अपनी सेना की मदद से उसने सारी स्थानीय शासन व्यवस्था हथिया ली। वह राजाओं और जमीन्दारों तक के साथ बड़ी उद्दणडता का व्यवहार करता था। एक-एक पाई वसूल करने के लिए वह हर तरह की सख्ती करता था।
मालगुजारी वसूल करने का ठेका ठेकादारों को दे दिया जाता था। ये ठेकेदार किसानों को खुलकर लूटते थे। कर्नल हैनेवे(Col Hannay) के साथ इन ठेकेदारों की सांठ-गांठ थी। वह वहुत ही साधारण स्थिति का आदमी था, लेकिन तीस साल की नौकरी ही में वह लाखों रुपए का मालिक बन गया था।[i]
जो जिले पहले खुशहाल थे, कर्नल हैनेवे(Col Hannay) ने कुछ ही साल में उन्हें उजाड़ दिया। टैक्सों की कोई सीमा न थी। मालगुजारी की वसूली के लिए लोगों को जेल में डाला जाता, शारीरिक यंत्रणा दी जाती।
इतने पर भी अगर कोई न दे पाए तो उसे गुलाम बनाकर बाजार में बेच दिया जाता। उसके जुल्म से तबाह होकर किसान घर-द्वार छोड़कर भाग गये। कितने ही तालुकेदारों ने भी भागकर अपने को गुलामी के बाजार में बिकने से बचाया।
जब कर्नल हैनेवे के ज़ुल्मों के खिलाफ खड़े हो गए देसी सिपाही
इन सब जुल्मों का नतीजा हुआ कि 1781 में घाघरा के पूरब के सारे अंचल में विद्रोह फैल गया। लगता था जैसे सारा अंचल हथियार लेकर कर्नल हैनेवे(Col Hannay) और अंगरेजों के खिलाफ खड़ा हो गया हो।
कर्नल हैनेवे(Col Hannay) के देशी सिपाही उसका साथ छोड़ कर चले गये। उसके अधीन सेना के दस्ते एक-दूसरे से विछिन्न हो गये। कोई हरकारा उसे न मिलता था जो एक दस्ते से समाचार दूसरे दस्ते के पास ले जा सके। ये सब बातें खुद कर्नल हैनेवे(Col Hannay) ने मिडिलटन को दी गयी रिपोर्ट में स्वीकार की है।[ii]
गोरखपुर के इन अत्याचारों के विषय में हिस्टरी आंफ ब्रिटिश इंडिया पुस्तक में इतिहासकार जेम्स मिल ने लिखा है कि सन 1778 में वारेन हेस्टिंग ने अपने एक अफसर कर्नल हैनेवे(Col Hannay) को कंपनी की नौकरी से निकालकर अवध के नवाब के यहां भेज दिया। जेम्स मिल आगे लिखते है कि –यह पूरा क्षेत्र नवाब के शासन में काफी खुशहाल था, किंतु कर्नल हैंनेवे के अत्याचारों के कारण तीन साल के अंदर यह पूरा क्षेत्र वीरान हो गया। [iii]
इस पूरी घटना का विस्तार से वरण किया है सैयद नजमूल रझा रिजवी ने, Gorakhapur Civil Rebrllion in Persian Historiography, पुस्तक में। इस कर्नल हैनेवे(Col Hannay) के विरोध में गोरखपुर में बड़ा जनआंदोलन खड़ा हुआ, जिसे अंग्रेजों ने विद्रोह का नाम दिया और बाद में इसे बड़ी नृशंसता से कुचला गया।
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कर्नल हैनेवे ने वसूले दोगुना लगान किसानों से
गोरखपुर जिले का राजस्व पूरा वसूलने पर उन दिनों आठ लाख रुपए वार्षिक होता था, किंतु कर्नल हैनेवे(Col Hannay) ने सन 1780 में, बड़ी निर्दयता से इस जिले से 14,56,088 रुपए वसूले, अर्थात प्रतिवर्ष के राजस्व से लगभग दोगुना!
किस बर्बरता के साथ गरीब किसानों को यातनाएं देकर उसने इतने रुपये वसूले होंगे, यह समझ सकते हैं। जमीदारों को राजस्व का 20 प्रतिशत मिलता था अपने क्षेत्र में व्यवस्थाएं बनाए रखने के लिए। यह लगभग डेढ़ लाख रुपए होता था किंतु कर्नल हैनेवे(Col Hannay) ने साढ़े चौदह लाख वसूल कर जमीदारों के हाथों टिकाए मात्र पचास हजार रुपए! [iv]
यह पूरा राज्स्व ईस्ट इंडिया कंपनी के खाते में नहीं गया। इन अधिकारियों ने आपस में मिल-बांटकर खा लिया। गोरखपुर की यह घटना अपवाद नहीं है, पूरे देश में यही स्थिति थी। पहले बंगाल और सन 1818 के बाद सारे देश में अंग्रेजों का प्रशासन कमोबेश ऐसा ही रहा।
इस अन्याय पर कोई सुनवाई नहीं थी और यदि बार-बार न्याय के लिए अर्जी लगाई तो सुनवाई नहीं थी और यदि बार-बार न्याय के लिए अर्जी लगाई तो सुनवाई का नाटक होता था और सारे अंग्रेज अफसरों को निर्दोष करार दिया जाता था।
काले राज को ‘मेजर साहब की अलमदारी’ कह याद करते थे लोग
अवश्य ही इस कर्नल हैनेवे(Col Hannay) ने अपनी गलती न स्वीकार न कर इस विद्रोह के लिए अवध की बेगमों और बनारस के राजा चेत सिंह को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की। उस समय अवध के नवाब आसफुद्दौला और अवध की बेगमों के बीच झगड़ा चल रहा था। आसफुद्दौला के मददगार अंगरेज थे। कर्नल हैनेवे(Col Hannay) ने इसी विवाद की आड़ में अपने काले कारनामों पर परदा डालने की कोशिश की।
अंत में, कर्नल हैनेवे(Col Hannay) को अपने पद से हटा दिया गया, तब कहीं किसानों और तालुकेदारों का विद्रोह शान्त हुआ। ऐसी आमदनी की नौकरी का हाथ से निकल जाना कर्नल हैनेवे(Col Hannay) को कैसे पसन्द आता?
उसने दुबारा उसे पाने की कोशिश की। इसकी खबर पाते ही आसफुद्दौला ने बड़े लाट के पास लिख भेज अकि अगर कर्नल हैनेवे(Col Hannay) फिर से नियुक्त किया गया, तो राज्य उसके हाथ से निकल जाएगा। कर्नल कर्नल हैनेवे(Col Hannay) किसानों के इस विरोध के कारण अपने पद पर लौट नहीं पाया
कर्नल हैनेवे के इस काले राज को किसान ‘मेजर साहब की अलमदारी’ के नाम से काफी दिनों तक याद करते और उसके नाम पर थूकते रहे।
संदर्भ
[i] मिल, खंड 4, पेज नं 315: शशिभूषण चौधरी, सिविक डिस्टवेंसेज ड्यूरिंग ब्रिटिश रूल इन इंडिया(1765-1857), प्रथम संस्करण, पेज नं 56-57
[ii] फारेस्ट, सेलेक्शन्स, खंड 3, पेज नं,1004,
[iii] शशिभूषण चौधरी, वही पृ 59
[iv] An Era of Darkness(inglorious Empaire)– Shashi Tharoor
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में