क्यों मनाही थी, गोलमेज यात्रा में गांधीजी के स्वागत में राष्ट्रीय झंडे रखने की
गांधी-इर्विन समझौते के बाद, महात्मा गांधी राष्ट्रीय महासभा (कांग्रेस) द्वारा एकमात्र प्रतिनिधि निर्वाचित होकर गोलमेज-परिषद में सम्मिलित होने इंग्लैड गये थे। महात्मा गांधी परिषद से कोई विशेष आशा लेकर नहीं गये थे, परिषद से बचा हुआ उनका सारा समय लन्दन और उसके बाहर के आस-पास के प्रमुख व्यक्तियों से भेंट करने एवं संस्थाओं में सम्मिलित होकर भारत के सम्बन्ध में फैली ग़लतफ़हमी को दूर कर राष्ट्रीय महासभा के दावे को सिद्ध करने में ही व्यतीत किया। महादेव देसाई इसका विवरण प्रति सप्ताह यंग इंडिया में प्रकाशित होने के लिए भेजते थे।
मार्ग में कई स्थल पर गांधीजी का जो अपूर्व स्वागत हुआ, उसमें एक घटना बम्बई से ठीक पश्चिम के तरफ विश्राम का पहला बन्दरगाह अदन भी था। यहाँ के हिन्दुस्तानी गांधीजी तथा गोलमेज-परिषद के दूसरों प्रतिनिधियों के स्वागत करना चाहते थे और इसके लिए राष्ट्रीय झण्डा साथ रखना चाहते थे।
किंतु रेसिडेन्ट ने राष्ट्रीय झंडा रखने की इजाजत न दी। अदन के इस घटना को महादेव देसाई ने यंग इंडिया में प्रकाशित होने के लिए तो भेजा ही, सस्ता साहित्य प्रकाशन मंडल से यह “इंग्लैड में गांधीजी” के नाम से पुस्तिका रूप में प्रकाशित हुई थी। उस किताब में प्रकाशित अदन की घटना का अंश..
जब तक स्वयं गांधीजी ने इस स्वागत समिति के अध्यक्ष श्री फ्रामरोज कावसजी को यह न सुझाया कि रेसिडेन्ट से टेलीफ़ोन द्वारा कहा जाय कि वह (गांधीजी) इन शर्तों के रहते अभिनन्दन-पत्र के स्वीकार करने की कल्पना तक नहीं कर सकते और जब कि सरकार और कांग्रेस में सन्धि है, तब कम-से-कम सन्धि के अनुसार सरकार को राष्ट्रीय झंडे का विरोध नहीं करना चाहिए,
तब तक किसी को भी रेसिडेन्ट के इस कार्य का विरोध करने का साहस नहीं हुआ। यह दलील काम कर गई और गांधी को अभिनन्दन-पत्र दिये जाने की जगह राष्ट्रीय झंडा फहराने की स्वीकृति देकर रेसिडेन्ट ने इस अप्रिय स्थिति को बचा लिया।
अदन में गांधीजी ने क्या कहा
इस स्थिति में गांधीजी को कांग्रेस का सन्देश सुनाने मौका मिल गया और चूंकि स्वागत की तैयारी में अरबों ने भी योग दिया था-स्वागत का अभिनन्दन-पत्र गुजराती और अरबी दोनों भाषाओं में पढ़ा गया-ताकि अरबों को भी वह अपना संदेश सुना सके।
अभिनन्दन-पत्र का उत्तर और 327 गिन्नियों की थैली के लिए धन्यवाद देते हुए गांधीजी ने कहा-
आपने मेरा जो सम्मान किया है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं जानता हूँ कि यह सम्मान व्यक्तिश: मेरा या मेरे साथियों का नहीं है, वरन कांग्रेस का है, जिसका कि ऐसी आशा है, मैं गोलमेज परिषद में योग्य प्रतिनिधित्व करूंगा। मुझे मालूम हुआ है कि अभिनन्दन-पत्र के इस कार्यक्रम में आपके सामने राष्ट्रीय झण्डे के कारण कुछ रुकावट थी।
अब मेरे लिए तो हिन्दुस्तानियों की ऐसी सभा की, खासकर जब कि राष्ट्रीय नेता निमन्त्रित किये गये हों, कल्पना करना ही असम्भव है, जहाँ पर राष्ट्रीय झण्डा न फहराता हो। आप जानते हैं कि राष्ट्रीय झण्डे के सम्मान की रक्षा में बहुतों ने लाठियों के प्रहार सहे हैं और कइयों ने अपने प्राण तक दे दिये हैं; इसलिए आप राष्ट्रीय झण्डे का सम्मान किये बिना किसी हिन्दुस्तानी नेता का सम्मान नहीं कर सकते।
फिर सरकार और कांग्रेस के बीच समझौता हो चुका है और कांग्रेस इस समय उसका विरोधी दल नही, वरन मित्रवत है। इसलिए सिर्फ़ राष्ट्रीय झण्डे का केवल फहराना सहन कर लेना या उसकी इजाज़त दे देना ही काफ़ी नहीं है; वरन जहाँ कांग्रेस के प्रतिनिधि निमन्त्रित किये जये, वहाँ उसे सम्मान का स्थान देना चाहिए।
कांग्रेस की ओर से मैं आपको यह विश्वास दिलाता हूँ कि उसका उद्देश्य ऐसी स्वाधीनता प्राप्त कर लेना नहीं है, जिससे भारतवर्ष संसार के अन्य राष्ट्रों से अलग पड़ जाय: क्योंकि ऐसी स्वाधीनता तो आसानी से संसार के लिए खतरा हो भी नहीं सकती। मेरा यह विश्वास है कि मानवजाति का पाँचवा भाग-भारत-सत्य और अहिंसा द्वारा स्वतन्त्र होने पर, समस्त मनुष्य-जाति की सेवा की एक जबदस्त शक्ति हो सकता है।
इसके विरुद्ध आज का पराधीन भारत संसार के लिए एक खतरा है। वर्तमान भारत असहाय है और इसे सदैव लूटते रहनेवाले दूसरे देशों की ईर्ष्य़ा और लालच को इससे उत्तेजना मिलती रहती है। लेकिन जब भारत इस तरह लुटने से इन्कार कर अपना काम स्वयं अपने हाथ में लेने में काफ़ी समर्थ होगा और अहिंसा और सत्य के द्वारा अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करेगा, तब वह शान्ति की एक शक्ति होगा और अपने इस पीड़ित भूमण्डल पर शान्तिपूर्ण वातावरण पैदा करने में समर्थ होगा।
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हिन्दु-मुस्लिम, कायरता और भय में एक-दूसरे का गला काटने है
इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि इस समारोह के संगठन में अरब और अन्य लोगों ने हिन्दुस्तानियों का साथ दिया। शान्ति के सब उपासकों को शान्ति को चिरस्थायी बनाने के काम में सहयोग देना चाहिए।
मुहम्मद और इस्लाम की जन्मभूमि, यह महाद्वीप, हिन्दु-मुस्लिम-समस्या के हल करने में मदद कर सकती है। मेरे लिए यह अस्वीकार करना लज्जा की बात है कि अपने घर में हम एक-दूसरे से अलग हैं। कायरता और भय से हम एक-दूसरे का गला काटने दौड़ते है।
इतिहास में शुरू से अंत तक इस्लाम अपूर्व बहादुरी और शान्ति के लिए खड़ा है। इसलिए मुसलमानों के लिए यह गौरव की बात नहीं कि वे हिंदुओं से भयभीत हों। इस तरह हिंदुओं के लिए भी यह बात गौरवपूर्ण नहीं कि वे मुसलमानों से, चाहे उन्हें संसार भर में मुसलमानों की सहायता क्यों न मिली हो, भयभीत हों।
आपको यह सुनकर हैरानी होगी कि पठान लोग हमारे साथ शान्तिपूर्ण रह रहे हैं। पिछले आन्दोलन में वे हमारे साथ कंधे-से-कंधा भिड़ाकर खड़े रहे और स्वतन्त्रता की वेदी पर अपने नौजवानों का उन्होंने खुशी-खुशी बलिदान किया।
मैं, आपसे, जो कि पैगम्बर की जन्मभूमि के निवासी हैं, चाहता हूँ कि भारत में हिन्दू-मुसलमानों में शान्ति कायम रखने में आप अपने हिस्से का सहयोग दें।
बाक़ी के लिए मैं आपको अपने घरों में चर्खा और करघा चलाने का सन्देश भी देना चाहता हूँ। कई खलीफ़ाओं ने अपना जीवन अनुकरणीय सादगी से बिताया है और इसलिए यदि आप भी अपना कपड़ा स्वयं बना सकें तो इसमें इस्लाम विरुद्ध कोई बात न होगी।
इसके अलावा शराबखोरी का भी सवाल है, जो कि आपके लिए दोहरा पाप होना चाहिए। यहाँ पर शराब की एक भी बूंद नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन क्योंकि यहाँ दूसरी जातियाँ भी है, मैं समझता हूँ, अरब लोग उन्हें इस बात के लिए तैयार करेंगे कि अदन में शराब की सर्वथा बन्दी हो जाय।
मैं आशा करता हूँ कि हमारा पारस्परिक सम्बन्ध दिन-ब-दिन बढ़ता रहेगा।
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में