जब चंद्रशेखर आज़ाद ने ठुकराया सावरकर का प्रस्ताव
यह वह दौर था जब चंद्रशेखर आज़ाद और उनके साथी ‘हिन्दुस्ताव प्रजातान्त्रिक समाजवादी दल’ की स्थापना कर चुके थे और भारत को एक सेकुलर-लोकतान्त्रिक तथा समाजवादी देश बनाने के अपने अभियान में अंग्रेज़ी उपनिवेशवाद से मुक्ति की के लिए सशस्त्र क्रांति की राह पर तेज़ी से चलने के लिए अपने संपर्कों का विस्तार कर रहे थे।
इसी सिलसिले में उन्होंने यशपाल और भगवती चरण वोरा को विनायक दामोदर सावरकर के बड़े भाई बाबा सावरकर से मिलने भेजा था। ये युवा क्रांतिकारी सावरकर बंधुओं के कारनामों से परिचित थे और उनके लिए श्रद्धा रखते थे। हालाँकि इस मुलाक़ात में कोई विशेष बात नहीं हो पाई।
कुछ समय बाद, दिसंबर के महीने में अकोला में यशपाल की उनसे दूसरी मुलाक़ात हुई थी। सुबह-सुबह जब बाबा सावरकर के घर पहुँचे तो उन्होंने वत्सल भाव से स्वागत किया। अपने बिस्तर के समीप बिस्तर लगवाया और गरम पानी से हाथ-मुंह धुलवाकर गरम चाय पिलाई।
लेकिन तब तक सावरकर बंधुओं की प्राथमिकता बदल चुकी थी। वे हिन्दू महासभा का कार्य कर रहे थे। अब उनके लिए अंग्रेज़ों की जगह मुसलमान शत्रु थे। इसीलिए जब यशपाल ने सहयोग की बात की तो उन्होंने प्रस्ताव रखा कि वह 50 हज़ार रुपये देने को तैयार हैं लेकिन इसके लिए HSRA को मोहम्मद अली जिन्ना की हत्या करनी पड़ेगी।
यशपाल जानते थे कि जिन्ना की हत्या का मतलब होता देश को दंगों की आग में झोंक देना और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ऐसी नफ़रत भर देना कि फिर कभी वे साथ-मिलकर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ नहीं लड़ पाते। हालाँकि 50 हज़ार रुपये उस दौर में बहुत बड़ी रकम थे और इससे संगठन की आर्थिक समस्या हमेशा के लिए हल हो जाती लेकिन उन्होंने इस ‘अंध-सांप्रदायिक’ प्रस्ताव को विनम्रता से ठुकरा दिया। HSRA हमेशा पूरी तरह से सेकुलर संगठन रहा और भगत सिंह तथा चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में इसने सेकुलर जीवन-मूल्यों को अपनाया।
यशपाल लिखते हैं- मिस्टर जिन्ना की राजनीति से हमें सहानुभूति नहीं, विरोध ही था, परंतु साम्प्रदायिक मतभेद से हत्या करना हमलोग देशहित या सर्वसाधारण जनता के हित और एकता के विरुद्ध समझते थे।
इस पर बाबा सावरकर निराश हुए। जब यशपाल ने विदा ली तो उन्होंने उन्हें 10 रुपये दिए और यशपाल ने उसे ‘आशीर्वाद’ के रूप में ग्रहण कर लिया।
लौटकर जब उन्होंने यह बात दल के नेता चंद्रशेखर आज़ाद को बताई तो वह झुंझला कर बोले – यह लोग क्या हमे पेशेवर हत्यारा समझते हैं?
स्रोत- पेज 226-232, सिंहावलोकन, यशपाल, लोकभारती पेपरबैक्स
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