जब सरदार पटेल के लिए अंग्रेज़ों से भिड़ गए गांधी जी
दिनकर जोशी, महामानव सरदार, प्रभात प्रकाशन, 2014, पेज -52-54
मामला तब का है जब दांडी मार्च की तैयारी के दौरान एक जनसभा को संबोधित करने से सरदार पटेल को रोका गया और गिरफ्तार कर लिया गया, औपनिवेशिक सरकार की पुलिस जेल में सरदार पटेल के साथ दुर्व्यवहार कर रही थी।
जब अंग्रेजों ने सरदार पटेल को भाषण देने से रोका
सरदार पटेल के भाषणों का जादुई असर सुननेवालों पर पड़ता था। उसके प्रभाव से सारे गुजरात में क्रांति की एक लहर दौड़ने लगती थी। कोई रास्ता न देख ब्रिटिश हुकूमत ने सरदार पटेल को भाषण देने पर पाबंदी लगा दी।
गांधीजी की डांडी यात्रा से पांच दिन पहले सरदार वल्लवभाई पटेल 7 मार्च 1939 को बोरसद के रास गाँव में विशाल जनसभा को संबोधित करने के लिए आए हुए थे। तभी मजिस्ट्रेट ने उन्हें रोका और भाषण न देने के सरकारी आदेश की एक प्रति उन्हें दे दी। उन्होंने सरकार का प्रतिबंध आदेश मानने से इंकार कर दिया तो उनको तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया।
आगे की कानूनी कारवाई के लिए उन्हें पुलिस हिरासत में बोरसद ले गई। सरकारी आदेश की अवहेलना करने भाषण देने की ज़िद करने के लिए उन्हें तीन महीने तीन सप्ताह की क़ैद की सज़ा सुनाई गई; जबकि सभा में पटेल ने एक वाक्य भी नहीं बोल पाए थे। सरदार ने कोई प्रतिरोध या बचाव नहीं किया और चुपचाप यह सज़ास्वीकार कर ली। उन्हें कार से अहमदाबाद लाया गया और साबरमती जेल में बंद कर दिया गया।
जैसा कि स्वाभाविक ही था, सरदार की गिरफ़्तारी पर देशभर में और विशेष रूप से गुजरात में बड़ी प्रतिक्रिया हुई। ब्रिटिश हुकूमत के इस व्यवहार से जन-आक्रोश फूट पड़ा। अकेले अहमदाबाद में ही 75 हजार लोगों की विशाल जनसभा हुई जिसमें सरदार पटेल के दिखाए मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा की गई।
जनसमूह ने यह सामूहिक शपथ ली कि जब तक देश स्वतंत्र नहीं हो जाता, वे सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए विदेशी दासता के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखेंगे। रास गांव के 500 लोगों ने भी, जहां सरदार भाषण नहीं दे पाए थे, सत्याग्रह में सक्रिय भाग लेने की शपथ ली।
कई स्थानीय लोगों नेअपनी सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र देकर असहयोग जताया। स्वतंत्र सरदार पटेल के भाषणों का जो प्रभाव था, जेल में बंद सरदार पटेल का प्रभाव उससे भी अधिक दिखाई दे रहा था। यह सरदार पटेल की लोकप्रियता और जनता के उनके प्रति आदर व प्रेम का प्रत्यक्ष प्रमाण था।
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जेल में पटेल के साथ दुर्व्यवहार पर, गांधीजी ने कठोर प्रतिक्रिया की
जेल में सरदार पटेल को अन्य कैदियों की तरह ज्वार की दो रोटी और नापकर थोड़ी सी दाल या सब्जी मिलती थी। सोने के लिए सिर्फ एक कंबल। किसी तरह की सुविधा का तो सवाल ही न था। पर पटेल ने खुशी-खुशी वह सब सहा। लेकिन गांधीजी इसे सुनकर बेहद नाराज़ हुए
12 मार्च, 1930 के ही दिन गांधीजी ने जेल में किसी भी क़ैदी के साथ दुर्व्यवहार पर यह तीखी टिप्पणी की थी-
‘…सरदार कहाँ और किस हालत में हैं? वे एक काल-कोठरी में हैं— वैसी ही काल कोठरी जैसी कि आमतौर पर होती है। वहाँ कोई रोशनी नहीं है। उन्हें बाहर सोने की सुविधा नहीं है।
उन्हें जो खाना दिया जा रहा है, उससे उन्हें पेचिश होने की संभावना है, क्योंकि भोजन में तनिक सी गड़बड़ी होने से ही उन्हें यह बीमारी हो जाती है। उन्हें धार्मिक पुस्तकों के अलावा और कोई पुस्तक देने की मनाही है। एक सत्याग्रही की हैसियत से वे विशेष व्यवहार की अपेक्षा नहीं रखते।
लेकिन किसी साधारण से साधारण अपराधी को भी, यदि उससे सुरक्षा को कोई खतरा न हो, तो ऐसी गर्मी के मौसम में खुले आकाश के नीचे सोने की इजाजत क्यों नहीं दी जानी चाहिए? यदि किसी व्यक्ति को भी पढ़ने-लिखने के लिए रोशनी की जरूरत हो, तो उसके लिए उसका प्रबंध क्यों नहीं किया जाना चाहिए? क्या किसी हत्यारे को भी कुछ पढ़कर अपने अन्दर सुबुद्धि जगाने से रोकना उचित है?…लेकिन यह तो जेल-व्यवस्था में सुधार का सवाल है।
सरदार वल्लभभाई ऐसे व्यक्ति नहीं हैं कि अगर उन्हें मनुष्य के लिए आवश्यक सुख-सुविधाओं से वंचित रखा जाएगा, तो उनका हौसला टूट जाएगा।
गांधीजी के इस वक्तव्य के तुरंत बाद सरदार के साथ जेल में अच्छा व्यवहार शुरू कर दिया गया। जरूरी साहित्य और साफ-सुथरा भोजन मिलना शुरू हो गया।
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गांधीजी ने जो कहा, उससे सरदार का आत्मबल मज़बूत हुआ
बाद में जेल कमिश्नर ने सरदार से भेंट की तो उन्होंने साफ़-साफ़ कहा- अगर आप सोचते है कि आंदोलन के नेताओं को जेल में बंद करने के बाद आप समान्य जन को दबा लेंगे तो आप ग़लत साबित हो चुके है।
किसान व सभी सामान्य जन अब भी संघर्ष की राह पर ही चल रहे है। अगर आप कोई समझौता वार्ता करना चाहते हैं तो वह नेताओं को जेल से रिहा कराने के बाद ही संभव होगा। कमिश्नर को इसका कोई जवाब नहीं सुझा तो वह बिना कुछ कहे चला गया।
12 मार्च को सुबह-सुबह गांधीजी आश्रम से डांडी यात्रा पर निकलने वाले थे। सरदार ने जेल में अपने नित्य-नियम के अनुसार गीता पाठ किया और उसके बाद बापू के नमक-सत्याग्रह की सफलता के लिए प्रार्थना की।
जेल की सजा पूरी हो जाने के बाद 26 जून को सरदार को रिहा कर दिया गया। इस बीच गांधीजी ने 12 मार्च से डांडी यात्रा पर चलकर 5 अप्रैल वहाँ पहुंचे थे। वहां उन्होंने अपने हाथों नमक बनाकर क़ानून तोड़ा और गिरफ्तार हुए।
जेल जाने से पहले बापू मोतीलाल नेहरू को अपना उतराधिकारी बना गए। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की कभी भी गिरफ्तारी की आशंका रहती थी, इसलिए मोतीलालजी ने तय किया कि अगर वह गिरफ़्तार होते हैं तो उसके बाद सरदार पटेल कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार संभालेगे। 30 जून को मोतीलालजी को गिरफ़्तार कर लिया गया तो सरदार पटेल पार्टी की बागडोर संभाली।
बहरहाल, सरदार के गिरफ़्तारी पर गांधीजी ने जो प्रतिक्रिया दी और आम जनता ने व्यक्तिगत सत्याग्रह करने का प्रण लिया। सरदार को जेल के अंदर एक मजबूत आत्मबल मिला।
स्रोत :
दिनकर जोशी, महामानव सरदार, प्रभात प्रकाशन, 2014, पेज -52-54
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