भारत अकेला है, जो वर्षों से लोकतंत्र के पक्ष में खड़ा रहा है – विजयलक्ष्मी पंडित
विजयलक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। परंतु, उनकी अपनी एक अलग विशिष्ट पहचान थी। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में और स्वतंत्रता मिलने के बाद भी विजयलक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया।
स्वतंत्रता-संघर्ष में भाग लेने के पश्चात 1937 में जब प्रथम बार राज्यों में कांग्रेसी मंत्रिमंडल बने तो श्रीमति विजय लक्ष्मी पंडित स्थानीय प्रशासन और जन स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उत्तरप्रदेश के मंत्रिमंडल में शरीक हुई थीं।
1946 में तथा उसके बाद अनेक वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र में किसी राष्ट्र के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाली प्रथम महिला, 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम निर्वाचित महिला अध्यक्ष तथा 1947 में प्रथम महिला राजदूत बनीं किया।
संविधान सभा की सदस्या रही। 1952 और 1964 में दो बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई। 1952 में उन्होंने चीन गये प्रथम सदभावना मिशन का नेतृत्व किया तथा 1962-64 तक महाराष्ट्र की राज्यपाल रही। जवाहरलाल नेहरू के देहांत के बाद फूलपुर सीट के लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए राज्यपाल का पद छोड़ दिया। 1975-77 में आपातकाल के दौरान राजनीतिक सन्यास ले लिया।
संयुक्त राष्ट्र में विजया लक्ष्मी पंडित का भाषण
अध्यक्ष महोदय,
1937 में अपने प्रांत में प्रांतीय स्वशासन के उद्घाटन के बाद पहला प्रस्ताव पेश करना मेरा सौभाग्य था, जिसमें स्वतंत्र भारत का संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा की मांग की गई थी। आज दल साल बाद संविधान सभा की बैठक यहाँ हो रही है।
आजादी की दिशा में हमारी प्रगति में यह एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। महोदय, हर देश में प्रतिक्रियावादी तत्व संरक्षण की आड़ में साम्राज्यवादी सत्ता से चिपके हुए हैं। जब संयुक्त राष्ट्र संघ का जन्म हो रहा था, तब फ्रांस्सिको में जो कुछ हुआ, उसका दुखद दृश्य हमने देखा हैं। जो एशियाई देश वहाँ मौंजूद थे, वे अपने साम्राज्यवादी मालिकों की ही भाषा बोल रहे थे।
उसका नतीजा यह हुआ है कि चार्टर में व्यक्त महान उद्देश्यों के बावजूद, जो तब अस्तित्व में आया था, उसे लागू नहीं किया जा सका, क्योंकि उसके समर्थन में ठोस आवाजें नहीं थी। आज भी संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व के मामले में यूरोप के तुलना में भारत पीछे है और शायद इतिहास में यह पहली बार था, जब संयुक्त राष्ट्र की सभा में एक देश, जो खुद स्वतंत्र नहीं था, दुनिया भर के शोषितों के पक्ष में आवाज उठाने में समर्थ हुआ।
भारत ने आज दुनिया का नेतृत्व करने की शक्ति दिखाई है
संयुक्त राष्ट्र सभा ने इसे मान्यता दी है, क्योंकि भारत ने आज दुनिया का नेतृत्व करने की शक्ति दिखाई है। निस्संदेह स्वतंत्र भारत न केवल एशिया का, बल्कि विश्व का नेतृत्व करेगा।
ऐसे में, जब हम यहाँ इस सभा में अपने देश का भावी संविधान तैयार करने के लिए इकटठा हुए हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह न केवल अपने प्रति कर्तव्य है, बल्कि इस मामले में दुनिय भी हमारी ओर देख रही है। हमारे सामने जो प्रस्ताव है, वह व्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता पर जोर देता है और प्रत्येक वैध समूह को गारंटी देता है।
इसलिए इसमें अल्पसंख्यकों के डर का कोई औचित्य नहीं है। हमने हाल के वर्षों में अधिकारों की बहुत अधिक और दायित्वों के बारे में बहुत कम बात की है। किसी भी समस्या के प्रति यह दृष्टिकोण दुर्भाग्यपूर्ण है।
हमारे सामने जो प्रस्ताव है, वह उन समस्याओं से सम्बंधित है, जो हम सभी के लिए मूलभूत हैं और जिस हद तक उसका समाधान किया जा सकता है, उसी हद तक हम किसी विशेष अल्पसंख्यक के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।
प्रस्ताव स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि स्वतंत्र भारत में व्यक्तियों और समूहों के लिए पूर्ण सामाजिक, आर्थिक और सांस्कॄतिक न्याय को स्वीकार किया जाएगा।
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भारत अकेला है, जो वर्षों से लोकतंत्र के पक्ष में खड़ा रहा है
सभी एशियाई देशों में भारत अकेला है, जो वर्षों से लोकतंत्र के पक्ष में खड़ा रहा है। अपने तमाम उतार-चढ़ाव भरे इतिहास में हमने लोगों की जीत की इच्छा के लिए संघर्ष किया है।
हाल के वर्षों में बड़े संकट और व्यक्तिगत बलिदान पर भी इस देश के लोगों ने लोकतंत्र के आदर्श का पालन किया है और आज हम दुनिया को दिखाना की स्थिति में हैं कि हम अपने आदर्शों को लागू कर सकते हैं।
युद्ध कि समाप्ति ने कई समस्याएँ पैदा की हैं, जो अपने-आप में कठिन हैं, लेकिन भारत वर्तमान समस्याओं के समाधान और विश्व में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देने की स्थिति में हैं।
स्वतंत्र भारत प्रगति की ताकतों के लिए एक शक्ति बनकर उभर रहा है। हमें एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए काम करना होगा, जिसमें भारत एक योग्य सहयोगी बन सके।
-स्वतंत्रता सेनानी विजयलक्ष्मी पंडित के 20 जनवरी 1947 को संयुक्त राष्ट्र सभा में दिए गए भाषण का अंश
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