क्रांतिमूर्ति दुर्गा भाभी का क्रांतीकारी जीवन
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में क्रांतिमूर्ति दुर्गावती वोहरा का नाम प्रथम पंक्ति की महिला क्रांतिकारियों में लिया जाता है। आजादी की लड़ाई में उनके द्वारा उल्लेखनीय योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता है। आज उनकी जन्मतिथी है…
शुरुआती जीवन, शादी के बाद पढ़ाई की शुरुआत
7 अक्टूबर 1907 को पंडित बांके बिहारी भट्ट को जिला जज थे के घर दुर्गा देवी का जन्म हुआ। पिता उनको जय दुर्गा के नाम से बुलाते थे। मां के देहांत के बाद पिता ने दूसरी शादी की और दुर्गा का लालन पालन उनकी विमाता और बुआ ने किया।
अल्पआयु में उनका विवाह 15 वर्षीय विद्यार्थी भगवती चंद्र वोहरा के साथ हुआ। शादी के बाद वह लाहौर चली आई। पति के सहयोग से अपनी पढ़ाई-लिखाई शुरू की।
चारदीवारियों में कैद नहीं था दुर्भा भाभी का दामत्य जीवन
आजादी मिलने से पहले जब भारतीय महिलाओं की स्वतंत्रता चारदीवारियों तक सीमित हुआ करती थी, उस समय दुर्गावती वोहरा अपने क्रांतिकारी पति भगवती चरण वोहरा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नौजवान भारत सभा की गतिविधियों का कुशल संचालन और नेतृत्व किया। क्रांति दल के सभी सदस्यों के लिए वह दुर्गा भाभी थी।
पिस्तौल चलाना, बम बनाने की सामग्री क्रांति दल के सदस्यों तक पहुंचाने के लिए वेश बदल कर चोरी-छुपे दूर-दराज से लाकर उपलब्ध कराना, उनके बाएं हाथ का खेल होता था।
लाला लाजपत राय की मौत और सांडर्स हत्या कांड
इतिहास में सभी इस घटना जिक्र अधिकांश जगहों पर है कि 1928 में आजादी की लड़ाई में नया उबाल आया। जब साइमन कमीशन की सिफारिशों से भारतीयों पर गुलामी और जुल्म का शिकंजा कसनेवाला था। इस कमीशन के बहिष्कार के लिए जगह-जगह विरोध प्रदर्शन चल रहा था।
ऐसे ही एक बहिष्कार जुलूस का लाहौर में पंजाव केसरी लाला लाजपत राय भी कर रहे थे। जिस पर सुपरिडेंडेंट आंफ पुलिस जेम्स स्कांट ने बड़ी बर्बरता से लाठीचार्ज करवाया, जिससे लालाजी गंभीर रूप से घायल हो गए और 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई।
इस घटना से क्रांतिकारियों का खून खौल उठा। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु सहित अन्य क्रांतिकारियों ने अंग्रेज सरकार से लालाजी की मौत का बदला लेने योजना बनाई। पर योजना अनुसार सब कुछ सही नहीं रहा और जेम्स स्कॉट के जगह पर पुलिस सांडर्स की हत्या हो गई।
अंग्रेज सरकार इससे बौखला गई और क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए चौक्कना हो गई। सख्त पहरे और कड़ी चौकसी के बीच सुखदेव, राजगुरू, भगत सिंह वेश बदलकर दुर्गा भाभी के घर पहुंचे।
जहां भगत सिंह एक धनायढ़ युवा,राजगुरू नौकर और दुर्गा भाभी उनकी पत्नी बनकर लहौर से कलकत्ते पहुंचने में कामयाब हो गए।
दुर्गाभाभी ने क्रांतिकारियों के गतिविधियों को चलाने के लिए कई बार अपने गहने बेचकर धन उपलब्ध करवाया असेंबली बम कांड के बाद जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के गिरफ्तारी के बाद जब उनपर मुकदमा चलाया गया। तब दुर्गा भाभी ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर भगत सिंह को छुड़वाने की योजना बनाई, परंतु दुर्भाग्यवश वह योजना फलीभूत नहीं हो पाई।
लार्ड हैली हत्याकांड में निर्दोष हुई बरी
दुर्गा भाभी के लिए जीवन का सबसे दुखद समय था। 28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर जंगलों में बम परीक्षण के दौरान उनके पति भगवती चरण वोहरा बम विस्फोट में शहीद हो जाना।
बम परीक्षण को पुलिस से छिपाने के लिए भगवती बाबू के सहयोगियों ने उनकी देह को आनन-फानन में रावी के किनारे अग्नि को सौंपकर दुर्गा भाभी को इस दुखद घटना की सूचना दी। भगवती चरण वोहरा की असमय मृत्य से दुर्गा भाभी पर दुख का पहाड़ टूट गया, परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुना देने के बाद, दुर्गा भाभी इस फैसले से नाखुश थी। उन्होंने अंग्रेज सरकार को मजा चखाने की ठानी और मुंबई के तरफ कूच कर दिया।
दुर्गा भाभी ने पंजाब प्रांत के गवर्नर रहे लार्ड हैली पर पिस्तौल से हमला कर दिया। अंग्रेज पुलिस को पता चला कि हमला करने वाली महिला काली साड़ी पहने हुई थी। दुर्गा भाभी को गिरफ्तार किया गया परंतु सबूतों के अभाव में उनको छोड़ दिया गया।
दुर्गा भाभी और सुशीला दीदी चंद्रशेखर आजाद के कहने पर महात्मा गांधी से भी मिलने गई। उधर चंद्रशेखर आजाद के पुलिस मुठभेड़ में शहीद हो जाने के बाद दुर्गा भाभी के जीवन में एक और पीड़ा का अध्याय जुड़ गया। उन्होंने एक-एक करके अपने सभी क्रांतिकारी साथियों की शहादत देखी।
उधर अंग्रेज सरकार आए दिन उनको तंग करती थी। उनकी पुश्तैनी संपत्ति जब्त कर ली गई। जब उनको जिला बदर कर दिया गया तब उनपर समस्याओं का पहाड़ टूट गया। परंतु दुर्गा भाभी हताश और निराश नहीं हुई।
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लहौर से जिला बदर होने के बाद का जीवन
छोड़कर वह गाजियाबाद आ गई। गाजियाबाद में वह कुछ दिनों एक कन्या विद्यालय में अध्यापन का काम किया। 1938 के अंत में दुर्गा भाभी दिल्ली कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा चुनी गई। जिसको उन्होंने लखनऊ स्थानांततिर करा लिया। इसके बाद दुर्गा भाभी त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के लिए आजमगढ़ से प्रतिनिधि चुनी गई।
रचनात्मक कार्यों की ओर रुझान होने कारण उन्होंने 1939 में मद्रास चली गई जहां अपनी अध्ययन शैली को निखारने के लिए उन्होंने मारिया मोंटेसरी से शिक्षण पद्धति की विधिवत शिक्षा ली। फिर वह लखनऊ आ गई जहां उन्होंने पहले मांटेसरी स्कूल की स्थापना की, जिसका नाम लखनऊ मांटेसरी स्कूल रखा।
शुरुआत में यह स्कूल एक किराये के घर में चलता था, बाद में स्कूल में लिए लखनऊ के पुराना किला इलाके में जमीन उपलब्ध करवाई गई जिसपर दुर्गाभाभी ने अपनी पुश्तैनी संपत्ति और अपने पास बचे हुए जेवरों को बेचकर प्राप्त धन से एक सुंदर विद्यालय भवन बनवाया, इसका उद्घाटन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था।
आज भी उनके स्कूल में हजारों की संख्या में छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। लखनऊ में जहां दुर्गा भाभी का आवास था आज वहां शहीद स्मारक तथा स्वतंत्रता संग्राम शोध केंद्र बना हुआ है। इस शोध केंद्र को देश को समर्पित करके दुर्गा भाभी अपने बेटे शचीन्द्र वोहरा के पास गाजियाबाद आ गई। 1993 में मेरठ विश्वविद्यालय ने उनको डी.लिट की उपाधि प्रदान की।
जब उनकी तबीयत खराब हुई तो सरकार ने उनको आर्थिक सहायता देने का प्रयास किया। परंतु उन्होंने सरकारी मदद लेने से इंकार कर दिया। 15 अक्टूबर 1999 को आजाद भारत के कई वसंत को देखने के बाद उनको दुनिया को अलविदा कह दिया।
संदर्भ
Edited by A.K Sinha, Reading in Indian History, page 315-32
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में