जब गांधीजी ने अभिव्यक्ति की आजादी के लिए किया सत्याग्रह
व्यक्तिगत सत्याग्रह 1941 से लेकर 1942 तक चला। 17 अक्टूबर 1940 को महात्मा गांधी ने जिसकी शुरुआत की थी। यह सत्याग्रह मूल रूप से अभिव्यक्ति के आज़ादी के लिए था।
क्यों गांधीजी एक बड़ा आंदोलन चलाने के पक्ष में नहीं थे
दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था और कांग्रेसी मंत्रिमंडलों से बिना राय लिये ही वायसराय ने यह घोषणा कर दी थी भारत युद्ध में शामिल है तब देश के सभी कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दे दिया।
इस दौरान एक पॉलिटिकल वैक्यूमसा बन गया। कांग्रेस के भीतर लोगों का सय्यम जवाब दे रहा था। कांग्रेस के सदस्य चाहते थे कि कांग्रेस एक बड़ा आंदोलन चलाएं तथा यह बात गांधीजी के कानों तक पहुंची।
गांधीजी का कहना था कि वे अभी किसी भी तरह का बड़ा आंदोलन चलाना नहीं चाहते। बड़े आंदोलन में हिंसा बहुत ज्यादा होती है क्योंकि लोग अपना आपा खो बैठते हैं। गांधीजी अहिंसा के तत्वों का पालन करते थे, इसलिए वे एक बड़ा आंदोलन चलाने के पक्ष में नहीं थे।
गांधीजी एक बड़ा आंदोलन चलाकर ब्रिटिश सरकार को शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे इसका जिक्र उन्होंने अपने पत्र में किया था जो उन्होंने लार्ड लिनलिथगो को भेजा था। गांधीजी ने कांग्रेस नेताओं को सुझाया कि एक बड़ा आंदोलन शुरू करने के बजाय वे एक व्यक्तिगत सत्याग्रह के बारे में भी सोच रहे हैं।
लेकिन अन्य नेताओं का कहना था कि गांधीजी हमने बड़ा आंदोलन करना चाहिए इस छोटे से आंदोलन से कुछ ना हो पाएगा। यह छोटा सा सत्याग्रह करके क्या हासिल होगा? किंतु गांधीजी का मानना था बड़ा आंदोलन या छोटे आंदोलन से फर्क नहीं पड़ता। इस तरह गांधीजी ने सब को राजी किया। अंत में, सबको गांधीजी की बात मानना ही पड़ी।
गांधीजी ने अभिव्यक्ति की आजादी को सत्याग्रह में महत्व क्यों दिया?
व्यक्तिगत सत्याग्रह का उद्देश्य पिछले बड़े आंदोलन की तरह पूर्ण स्वराज या आजादी का नहीं था। इस सत्याग्रह का उद्देश्य था कि भारतीयों के पास बोलने का अधिकार होना चाहिए यानी फ्रीडम ऑफ स्पीच (अभिव्यक्ति की आजादी)।
व्यक्तिगत सत्याग्रह के माध्यम से गांधीजी अभिव्यक्ति की आजादी को पाना चाहते थे और उसे मजबूत करना चाहते थे। अब प्रश्न उठता है कि गांधी जी ने अभिव्यक्ति की आजादी को व्यक्तिगत सत्याग्रह में इतना महत्व क्यों दिया? क्या भारतीयों के पास फ्रीडम ऑफ स्पीच यानि बोलने का अधिकार नहीं था?
लॉर्ड लिनलिथगो ने 1939 में घोषित कर दिया था कि भारत द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के साथ है। यह घोषणा करने से पहले उसने यह भी जहमत नहीं उठाई कि पहले भारतीय नेताओं को पूछ लिया जाए कि द्वितीय विश्वयुद्ध में वे ब्रिटेन का समर्थन करना चाहते भी है या नहीं?
गांधीजी का मानना था भारतीयों का बोलने के अधिकार का हनन हुआ था। बात केवल इतनी तक सीमित नहीं थी बल्कि ऐसे बहुत सी घटनाएं हुई थी जिस वजह से गांधीजी ने अभिव्यक्ति की आजादी को इतना ज्यादा महत्व व्यक्तिगत सत्याग्रह में दिया। गांधीजी का यह मानना था कि सरकार हमेशा भारतीयों के बोलने के अधिकार को दबाया करती थी।
द्वितीय विश्वयुद्ध के चलते ब्रिटिश सरकार ने भारत में क्रांतिकारी आंदोलन एवं गतिविधियों को दबाने के लिए डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट 1940 लागू किया था। इसके अलावा ब्रिटिश सरकार बहुत सारे ऑर्डिनेंस लेकर आई थी जिसके माध्यम से फ्रीडम ऑफ स्पीच मतलब अभिव्यक्ति की आजादी, पर पाबंदी लगाई थी।
अभिव्यक्ति की आजादी को बचाने का उद्देश्य
गांधीजी, व्यक्तिगत सत्याग्रह के माध्यम से पूरी दुनिया में यह संदेश भेजना चाहते थे कि अंग्रेजों ने किस तरह से उनके फ्रीडम ऑफ स्पीच का उल्लंघन किया है या दबाया है। वह बताना चाहते थे कि अंग्रेजों ने भारतीयों को बिना पूछे ही यह घोषणा कर दी है कि भारतीय युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन कर रहे हैं। यानी भारतीयों से बोलने का अधिकार तक छीन लिया गया है।
इसके अलावा गांधीजी दुनिया को यह संदेश भेजना चाहते थे कि सरकार का दावा सरासर गलत है। भारतीय ब्रिटेन के साथ दूसरे विश्वयुद्ध में उनके समर्थन में हैं , लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इन सब कारणों के वजह से गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह का मुख्य उद्देश्य फ्रीडम ऑफ स्पीच यानि अभिव्यक्ति की आजादी को हासिल करना रखा और उससे और भी ज्यादा मजबूत करना है यह लक्ष्य था।
व्यक्तिगत सत्याग्रह यह दो चरण में हुआ। पहला चरण चला 11 अक्टूबर 1940 से लेकर 14 दिसंबर 1940 तक. दूसरा चरण शुरू हुआ जनवरी 1941 से लेकर दिसंबर 1942 तक. पहले चरण में महात्मा गांधी ने। कुछ सत्याग्रही हो को चुना था।
इन चुने हुए सत्याग्रहियों को पहले से चुनी हुई जगह से भाषण देना होते थे तथा युद्ध के खिलाफ बोलना होता था। इन भाषणों में सत्याग्रही सार्वजनिक रूप से घोषित करते थे कि ब्रिटिश सरकार को युद्ध में किसी भी तरह की कोई मदद नहीं करनी चाहिए।
ऐसा करते हुए सत्याग्रही अपने राइट टू स्पीच का इस्तेमाल करते थे ।अपने राइट टू स्पीच को पुख्ता करते थे एवं जगह-जगह जाकर युद्ध के खिलाफ भाषण देते थे। जब तक कि पुलिस आकर उन्हें हिरासत में नहीं ले लेती।
यहां पर एक बात महत्वपूर्ण है कि जो भी सत्याग्रही थी वह डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को पहले से भाषण देने का स्थान एवं समय पत्र द्वारा बता दिया करते थे।
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कौन थे गांधीजी के व्यक्तिगत सत्याग्रही
व्यक्तिगत सत्याग्रह के पहले सत्याग्रही थे। आचार्य विनोबा भावे वे एक गांधीवादी नेता थे और गांधी के अनुयाई थे उन्होंने महाराष्ट्र के पवनार से 11 अक्टूबर 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरुआत की। उन्होंने लगभग 10 गांव में घूमकर द्वितीय विश्वयुद्ध के खिलाफ भाषण दिए और उनको 21 अक्टूबर 1940 को पुलिस ने उनको हिरासत में ले लिया।
दूसरे सत्याग्रही थे जवाहरलाल नेहरू तथा इन्हें भी हिरासत में ले लिया गया। इसके बाद तीसरे सत्याग्रही बने ब्रम्हदत्त. पहले चरण में बहुत से लोग आंदोलन से नहीं जुड़ पाए। 14 दिसम्बर 1940 में गांधीजी ने कुछ समय के लिए इस आंदोलन को रोक लिया।
जनवरी 1941 में यह आंदोलन पुनः शुरू किया गया इसलिए इसे व्यक्तिगत सत्याग्रह का चरण दूसरा भी कहा जाता हैं। इस बार बहुत ज्यादा लोग इस आंदोलन से जुड़े थे।
सत्याग्रही केवल गाँवो- गाँवो घूमकर भाषण नहीं देगा बल्कि व्यक्तिगत सत्याग्रही अपने भाषण के साथ लोगो को जोड़ेगा एवं उन्हें लेकर दिल्ली की तरफ बढ़ेगा। वह तब तक आगे बढ़ेगा जब तक पुलिस की गाड़ी आकर उसे गिरप्तार नहीं कर लेती। नारा दिया गया था “चलो दिल्ली”! इसलिए इस आंदोलन को दिल्ली चलो आंदोलन भी कहा जाता हैं।
हज़ारो लोग सत्याग्रहियों के साथ दिल्ली चल पडे 15 मई 1941 तक लगभग 20000 लोगो को डिफेन्स ऑफ़ इंडिया एक्ट के तहत जेल में डाल दिया गया। धीरे-धीरे आंदोलन ठंडा पड़ता गया एवं दिसम्बर 1941 में कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने एक प्रस्ताव पारित किया।
कांग्रेस सरकार को युद्ध में समर्थन देने के लिए तैयार हैं किन्तु शर्त यह हैं कि ब्रटिश सरकार युद्ध समाप्त होने के बाद भारत को पूर्ण आजादी देंगी। इसी प्रस्ताव के साथ व्यक्तिगत सत्याग्रह का दूसरा चरण समाप्त हो गया।
संदर्भ
Mahatma Gandhi One Spot Information Website (mkgandhi.org)
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में