महत्वपूर्ण दस्तावेज है कृष्णा बोस कि किताब “एक सच्ची प्रेम कथा, एमिली और सुभाष
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल में बंद सुभाष चंद्र बोस की तबीयत फरवरी, 1932 में ख़राब होने लगी थी। इसके बाद ब्रिटिश सरकार इलाज के लिए उन्हें यूरोप भेजने को तैयार हो गई। वह इलाज कराने ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना पहुंचे। लेकिन, उन्होंने तय किया कि वह यूरोप में रहने वाले भारतीय छात्रों को आज़ादी की लड़ाई के लिए एकजुट करेंगे। इसी दौरान, उन्हें एक यूरोपीय प्रकाशक ने ‘द इंडियन स्ट्रगल‘ किताब लिखने का काम सौंपा। इस किताब के सिलसिले में ही जून 1934 में वह पहली बार, एमिली शेंकल से मिले थे। सभार : “एक सच्ची प्रेम कथा, एमिली और सुभाष : कृष्णा बोस पुस्तक को…
कौन थी एमिली शेंकल …
सुभाष बाबू ने कभी अपनी शादी के बारे में खुलकर बात नहीं की थी, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके भतीजे की पत्नी कृष्णा बोस की लिखी किताब, ‘एमिली और सुभाष‘ से उनके प्रेम-पत्रों की जानकारी मिलती है।
एक सच्ची प्रेम कथा, एमिली और सुभाष पुस्तक नेताजी सुभाषचंद्र बोस व उनकी पत्नी एमिली शेंकल के संबंधों का दुर्लभतम दस्तावेज है। जिसे शरतचंद्र बोस के पुत्रवधू व शिशिर कुमार बोस की पत्नी कृष्णा बोस के द्वारा लिखा गया है। कृष्णा बोस, शिक्षिका, लेखिका और राजनीतिज्ञ हैं। नेताजी के जीवन और संघर्षों के विषय में प्रतिष्ठित विशेषज्ञ हैं। उल्लेखनीय है कि जनवरी 1941 में 20 वर्षीय शिशिर (कृष्णा बोस के पति) ने ही नेताजी (अपने चाचाजी) को चुपचाप भारत से बाहर निकल जाने में मदद किये थे और पलायन के पहले चरण में उन्हें कार से कलकत्ता से बिहार में गोमो तक सुरक्षित पहुंचाये थे।
सुभाष बाबू व ऐमिली शेंकल की मुलाक़ात जून 1934 में विएना में हुई। दिसम्बर 1937 में दोनों विवाह संबंध में बंध गए, जिसे गुप्त रखा गया। 29 नवम्बर 1942 को जन्मी उनकी 2 माह बेटी अनिता (बोस) को दुर्भाग्यपूर्ण रूप फिर कभी दोबारा नेताजी देख नहीं पाए। एक बार फिर देश की खातिर 1943 में सुभाष, दक्षिण पूर्व एशिया के लिए रवाना हो गए। लेकिन… इस बार वह ऐसे गए कि कभी लौटे ही नहीं। इस बीच 1934 के बाद साथ न रह पाने के दौरान गोपनीय पत्रों के माध्यम से दोनों के बीच संवाद होता रहा। परन्तु फिर भी गोपनीयता की दृष्टि से वे दोनों अपनी भावनाओं को खुलकर पत्र में व्यक्त करने से बचते रहे।
मध्यवर्गीय ऑस्ट्रियाई परिवार में जन्मी एमिली शेंकल ने आजीवन नेताजी की स्मृतियों को संजो कर रहते हुए भारत के प्रति गहरा लगाव लगाये रखा। उन्होंने अपनी बेटी का पालन पोषण अपने दम पर किया।
एमिली शेंकल नेताजी के (शरत बोस के पुत्र) भतीजे शिशिर कुमार बोस के काफी करीबी रहीं। सन 1955 में शिशिर के बाद उनकी पत्नी कृष्णा बोस (इस पुस्तक की लेखिका) से भी एमिली जी की काफी नजदीकी संबंध रहे।
नेताजी की वीरगाथा अमर हैं, उसी तरह उनकी और एमिली की प्रेम-कहानी भी अमर है!
यह पुस्तक, निजता पसन्द करने वाली ऐमिली शेंकल के साहसी व आत्मनिर्भर जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज होने के साथ ही ऐमिली शेंकल व सुभाष बाबू की प्रेम कथा भी है।
इस पुस्तक से कुछ महत्वपूर्ण बातें इसपर है:-
लेखिका लिखतीं हैं, ..सन 1951 की सर्दियों में अपनी विएना यात्रा के दौरान ही हमने (कृष्णा बोस) आंटी (एमिली शेंकल) को इस बात के लिए राजी किया था कि अगले साल वह अनिता को हमारे पास भारत आने दें। .. ‘अनिता’ (17 वर्ष) भी काफी समय से भारत आने पर उत्सुक थी। लेकिन आंटी (एमिली शेंकल) के मन में हिचक थी। उनका कहना था कि “अनिता को इस बात की समझ नहीं है कि उसके पिता के प्रति भारतीयों के मन में कितना सम्मान था। आंटी (एमिली शेंकल) को डर था कि उसे भारत में जो दुलार और प्रशंसा मिलेगी, उससे उसका दिमाग चढ़ सकता है।” फिर भी (अनिता) 1960 में भारत आई और उसने परिस्थितियों को बहुत अच्छी तरह से संभाला।.. उसने देश मे हर जगह मिला प्यार और सम्मान को बहुत गरिमा के साथ स्वीकार किया और इस बात को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।
इस पुस्तक में लेखिका लिखतीं हैं, ..वह (एमिली शेंकल) कहीं दूर अंतरिक्ष में देख रही थीं, जब उन्होंने मुझसे कहा, “देखो, कृष्णा! तुम्हारे अंकल (नेताजी सुभाष चंद्र बोस) ने मुझसे कहा था कि मेरा पहला प्यार… और एकमात्र प्यार… मेरा देश है। सो, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा है।”
एक पत्र (5 मार्च 1936) में सुभाष (बाबू) ऐमिली (शेंकल) को लिखा था, ” मुझे नहीं पता कि भविष्य के गर्भ में मेरे लिए क्या है। हो सकता है कि मुझे अपना जीवन जेल में बिताना पड़े, हो सकता है कि मुझे गोली मार दी जाए या फाँसी पर चढ़ा दिया जाए।”…”हो सकता है कि मैं तुम्हें दोबारा कभी न देख सकूँ या फिर दोबारा वापस आने पर कभी पत्र न लिख सकूँ- लेकिन मेरा विश्वास करो कि तुम मेरे हृदय में, मेरे विचारों में और मेरे सपनों में जिंदा रहोगी।” …”किस्मत अगर हमें इस जीवन में अलग कर ही देती है तो मैं अगले जीवन में तुम्हारी कामना करूँगा।”
नेताजी की मृत्यु के बाद एमिली ने बड़ी हिम्मत से, अकेले ही अपनी बेटी अनीता को पाला। अनीता, अपने पिता के साथ-साथ, भारत का जिक्र भी हर दिन अपनी माँ से सुना करती थी। साल 1996 में जर्मनी में ही एमिली का निधन हो गया। पर जिस तरह नेताजी की वीरगाथा अमर हैं, उसी तरह उनकी और एमिली की प्रेम-कहानी भी अमर है!
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महत्वपूर्ण दस्तावेज है कृष्णा बोस कि किताब “एक सच्ची प्रेम कथा, एमिली और सुभाष
लेखिका लिखतीं हैं, उन्हें (नेताजी सुभाष चंद्र बोस) त्रिपुरी (मध्यप्रदेश) में कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता करनी थी, जब उन्हें निमोनिया और तेज बुखार हो गया था। चिकित्सकों ने उन्हें पूर्ण विश्राम के लिए कहा था लेकिन वह अधिवेशन में भाग लेने के प्रति अडिग थे। ऐसे में शरत चन्द्र बोस और उनके एक और भाई सुनील चन्द्र बोस, मशहूर चिकित्सक थे, उनके साथ गए। कांग्रेस अध्यक्ष को सभा स्थल पर स्ट्रेचर पर लाद कर ले जाना पड़ा। वहाँ वह अपना भाषण पढ़ने में असमर्थ थे, तो उसके बड़े भाई शरत चन्द्र बोस ने पढ़ कर सुनाया। इतिहास गवाह है कि कि त्रिपुरी अधिवेशन के दौरान कांग्रेस नेतृत्व में गांधी जी के नजदीकी लोगों ने अपने निर्वासित और गंभीर रूप से बीमार अध्यक्ष के प्रति कैसा जहर-बुझा व्यवहार किया। इन चमचों ने यह अफवाह तक उड़ा दी थी कि सुभाष वास्तव में बीमार नहीं हैं, बल्कि बीमार होने का दिखावा कर रहे हैं।
लेखिका लिखतीं हैं, शिशिर (नेताजी के भतीजे व कृष्णा बोस की पति) ने मुझे (कृष्णा बोस) बताया था कि उनके पिता (शरत चन्द्र बोस) को संदेह था कि उसी जहाज पर स्वामी (स्वामी जर्मनी में नेताजी के सहयोगी के रूप में काम कर चुके थे और बाद में एक पनडुब्बी से दक्षिण पूर्व एशिया पहुंचे थे। वहाँ वह आईएनए की जासूसी शाखा के प्रभारी थे और मलाया के पेनांग में रंगरूटों को प्रशिक्षण देते थे। स्वतंत्र भारत में नेहरू सरकार ने उन्हें सेवा में लिया था।) का होना मात्र संयोग नहीं था और वह सरकार के निर्देश पर शरत बोस की यूरोप यात्रा पर निगाह रखने के लिए यात्रा कर रहे थे। इस बात की याद मुझे फिर 2015 में आई जब कुछ गोपनीय फाइलों के सार्वजनिक होने पर पता चला कि स्वतंत्र भारत में सरकारों ने शिशिर समेत बोस परिवार के कई सदस्यों की 1970 के दशक के शुरुआती सालों तक जासूसी करवाई थी।
आगे लेखिका लिखतीं हैं, …हम एक बार वियना गए थे तो बातचीत में आंटी (एमिली शेंकल) ने कहा था कि उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि स्वतंत्र भारत की सरकारों ने भारत की स्वतंत्रता में नेताजी के महान योगदान की जानबूझकर उपेक्षा की है या उसे कम महत्व का साबित किया है। उन्होंने हाथ से नीचे गिरने का इशारा करते हुए कहा था, “वे तुम्हारे अंकल (नेताजी सुभाषचंद्र बोस) के साथ ऐसा करते हैं।” लेकिन, इसी के साथ उन्हें भी खूब पता था कि भारत ही नहीं, पूरे उपमहाद्वीप में लोग उन्हें अत्यंत श्रद्धा और प्रेम से याद करते हैं। उन्हें इस बात का फख्र था।
लेखिका लिखतीं हैं, 1995 में प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने अपने विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी को आंटी (एमिली शेंकल) और अनिता (बोस) से मिलने के लिए आग्सबर्ग भेजा गया। नरसिंहराव चाहते थे कि जापान के रेंकोजी मंदिर में 1945 से रखे हुए नेताजी के अवशेष भारत लाकर दिल्ली में किसी उचित स्थान पर रखे जाएँ। प्रधानमंत्री इसके लिए तीन लोगों की सहमति चाहते थे- नेताजी की पत्नी, बेटी और शिशिर (नेताजी के भतीजे) की। शिशिर और अनिता पहले से ही इस पक्ष में थे। श्री मुखर्जी जब आंटी (एमिली शेंकल) से मिलने गए तो उन्होंने भी इस बारे में अपनी सहमति प्रदान कर दी।…
नेताजी के जन्म शताब्दी वर्ष 1996 के अगस्त महीने में नेताजी के भौतिक अवशेषों को भारत लाने की प्रधानमंत्री नरसिंह राव की योजना भी पूरी नहीं हो सकी। योजना पर अमल होने के पहले ही आम चुनाव में नरसिंह राव हार गए थे।
इस पुस्तक को पढ़ कर नेताजी सुभाष बाबू के प्रति दिल में और श्रद्धा व प्रेम बढ़ जाता है। एक अहम व महत्वपूर्ण दस्तावेज के रूप पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिए।
नेताजी को शत-शत नमन।
संदर्भ
कृष्णा बोस, एक सच्ची प्रेम कथा, एमिली और सुभाष, अनुवाद श्रीकांत अस्थाना, नियोगी बुक्स, नई दिल्ली, 2019
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में