विजय सिंह पथिक: बिजौलिया सत्याग्रह के नायक
1914 में रासबिहारी बोस द्वारा अंग्रेजों की पराधीनता से भारत को मुक्त कराने के लिए सशस्त्र क्रांति का जो अभियान चलाया गया, उसमें अजमेर के एक सामंत, राव गोपाल सिंह का भी सक्रिय योगदान था। विजय सिंह पथिक भी उनकी गतिविधियों में पूरा सहयोग दे रहे थे। जब राव गोपाल सिंह को नजरबंद कर दिया गया, तब पथिकजी ने किसी तरह वहाँ से बच निकलने में सफलता पाई और मेवाड़ में शरण ली।
पथिकजी हिंदी के ऐसे विरल पत्रकार थे जिन्होंने देश और समाज की रक्षा के लिए लेखनी और बंदूक, दोनों को अपनाया।उन्हें राष्ट्रीय पथिक के नाम से भी जाना जाता है।वैसे विजय सिंह पथिक जी का मूल नाम ‘भूपसिंह’ था, किंतु ‘लाहौर षड़यंत्र’ के बाद उन्होंने अपना नाम बदल कर विजय सिंह पथिक रख लिया और फिर अपने जीवन के अंत समय तक वे इसी नाम से जाने जाते रहे।
कौन थे विजय सिंह पथिक?
विजय सिंह पथिक का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद के गुठावली अख्तियारपुर नामक ग्राम में 27 फरवरी, 1882 को हुआ था। उनका जन्म नाम भूप सिंह था, परंतु क्रांतिकारी गतिविधियों में निरंतर भाग लेने के कारण उन्हें भूमिगत होना पड़ता था, और इस तरह भूप सिंह से विजय सिंह बन गए।
उत्तर प्रदेश में जन्म लेने के बावजूद उनका अधिकांश जीवन राजस्थान में बीता। उन्होंने अपने जीवन को राजस्थान के परिवेश में इस प्रकार ढाल लिया कि उन्हें कोई गैर-राजस्थानी नहीं कह सकता था। किसी विद्यालय में विधिवत शिक्षा न पाकर भी अपनी प्रखर बुद्धि और निरंतर अध्ययन से उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती आदि कई भाषाओं में अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था, और राजस्थानी में तो धाराप्रवाह बोलते थे।
राजस्थान में जन-जागृति के अनूठे सूत्रधार बनकर उन्होंने अपनी वाणी और लेखनी से अंग्रेजी शासन और सामंतवाद के खिलाफ जनमत तैयार किया, जिससे शासक और सामंत, दोनों ही उनसे भयभीत हो गए।
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राजपूताने की रियासतों के सामंती अत्याचारों का विरोध
राजपूताने की रियासतों के सामंती अत्याचारों से जूझते हुए, पथिकजी यहाँ-वहाँ छिपते रहे। इस अनिश्चितता के बावजूद उन्होंने प्रदेश में युवाओं की एक फौज तैयार कर ली थी, जो उनके इशारे पर प्राणों की बाजी लगाने को तैयार रहती थी।
महात्मा गांधी, जो क्रांतिकारियों की संघर्ष शैली से असहमत थे, वे भी पथिकजी के कार्यों से प्रभावित थे। गांधीजी ने उनके बारे में कहा था, “पथिक काम करने वाला आदमी है। उसने राजस्थान के किसानों के हित में बहुत काम किया है, जबकि दूसरे लोग केवल बात करते हैं। पथिक सैनिक है, बहादुर है, जोशीला है, पर वह जिद्दी भी है—अपनी धुन का पक्का। मैं उसे ‘राष्ट्र पथिक’ कहना चाहूँगा।”
राजस्थान में ‘बिजौलिया सत्याग्रह‘ का असर पूरे देश पर हुआ था। किसानों के शोषण के खिलाफ भारत की इस प्रथम किसान क्रांति का नेतृत्व करने वाले विजय सिंह पथिक को महात्मा गांधी और गणेशशंकर विद्यार्थी जैसे नेताओं का समर्थन प्राप्त हुआ।
इस आंदोलन के कारण जब पथिकजी को पांच साल के लिए जयपुर जेल में बंद कर दिया गया, तो उन्होंने जेल में रहते हुए अपनी साहित्यिक प्रतिभा को निखारा। पहले कई भाषाएँ सीखीं, फिर ‘प्रह्लाद विजय’ शीर्षक से एक काव्य रचा। इसके बाद राजनीति विज्ञान, इतिहास और दर्शनशास्त्र पर कई ग्रंथों की रचना की।
हालांकि, 1928 में जेल से रिहा होने पर, उनके अधिकांश साहित्य को सरकार ने रोक लिया, जो भारत की आजादी के बाद ही धीरे-धीरे प्रकाशित हुआ, वह भी पूरा नहीं।
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क्या था बिजोलिया सत्याग्रह
बिजोलिया किसान आंदोलन की शुरुआत राजस्थान के मेवाड़ राज्य के किसानों ने 1897 में की थी, लेकिन यह दूसरे राज्यों में भी फैल गया। इसे देश का सबसे लंबा किसान आंदोलन माना जाता है जो 44 साल तक चला। इसमें ज़्यादातर किसान धाकड़ जाति के थे। असहाय किसानों पर 84 तरह के कर लगाए गए। इसके अलावा 1916 के अकाल और प्रथम विश्व युद्ध के कारण लगाए गए उपकर ने किसानों की हालत और खराब कर दी और उन्हें असहनीय बना दिया।
आंदोलन के पहले चरण (1897-1916) का नेतृत्व साधु सीताराम दास ने किया था। दूसरे चरण (1916-1923) का कुशल नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया था। मेवाड़ के शासक के खिलाफ किसान आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया था। पथिक को किसान पंचायत, महिला मंडल और युवक मंडल ने नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया था।
यह केवल उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि मेवाड़ की महिलाओं को पुरुषों से सम्मान मिलना शुरू हुआ। उन्होंने मेवाड़ के लोगों के सामाजिक, नैतिक और आर्थिक उत्थान के लिए उचित परिस्थितियाँ बनाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि पुरुष और महिला समान हैं। महिलाओं को राष्ट्र की सेवा करने के लिए समान अवसर दिए जाने चाहिए। उन्होंने महिलाओं से कहा कि उनका पहला कर्तव्य अपनी अशिक्षित बहनों को शिक्षित करना है।
आंदोलन के तीसरे चरण (1927-1941) का नेतृत्व माणिक्यलाल वर्मा, उनकी बेटी स्नेहलता वर्मा और अंजना देवी, विजया, विमला देवी, दुर्गा, भागीरथी और तुलसी जैसे कई अन्य नेताओं ने किया।
‘राजस्थान केसरी’,राजस्थान संदेश’,’नव संदेश और ‘तरुण राजस्थान’ पत्रिकाओं में काम
स्वाधीनता आंदोलन में विजय सिंह पथिक ने अपनी मंडली के साथ बढ़-चढ़कर भाग लिया। वे उच्च कोटि के राजनेता, प्रखर पत्रकार और ओजस्वी कवि थे। 1920 में वर्धा से सेठ जमनालाल बजाज के सहयोग से उन्होंने ‘राजस्थान केसरी’ नामक साप्ताहिक पत्र निकाला। अजमेर से ‘नवीन राजस्थान’ पत्र का प्रकाशन भी उन्होंने शुरू किया, जो बाद में ‘तरुण राजस्थान’ बन गया। इसके अलावा, ‘राजस्थान संदेश’ और आगरा से ‘नव संदेश’ नामक क्रांतिकारी साप्ताहिक भी प्रकाशित किया। उनके इन योगदानों के कारण उन्हें राजस्थान की जन-जागृति के अग्रदूत के रूप में याद किया जाता है।
अपने सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में पथिकजी को निरंतर संघर्ष करना पड़ा। 1930 में एक अध्यापिका से विवाह के बाद उनकी पत्नी, जानकी देवी, भी उनके कार्यों में सहयोगी बन गईं। जब वे विवाह के एक महीने बाद ही गिरफ्तार कर लिए गए, तो उनकी पत्नी ने उनके पत्र और प्रेस की जिम्मेदारी संभाली। आर्थिक संकट के कारण उन्हें प्रेस बंद करना पड़ा और ट्यूशन द्वारा जीवन-निर्वाह करना पड़ा।
पथिकजी की प्रमुख रचनाओं में ‘प्रह्लाद विजय’ (काव्य), ‘पथिक प्रमोद’ (कहानी संग्रह) और ‘पथिक विनोद’ (व्यंग्य संग्रह) ही प्रकाशित हो सकीं। उनके कई उपन्यास, जैसे ‘अजयमेरु’ और ‘बिकरा भाई’, अप्रकाशित रह गए। जीवन के अंतिम समय में उन्होंने महात्मा गांधी के आदेशानुसार ‘राजस्थान सेवा आश्रम’ की स्थापना की, लेकिन वे अपने इस स्वप्न को पूरा नहीं कर पाए और 28 मई 1954 को उनका निधन हो गया।
उनकी स्मृति में, भारत सरकार ने 1992 में एक डाक टिकट जारी किया। यह उनके प्रति राष्ट्र का आभार प्रकट करने का प्रतीक था।
संदर्भ
आशारानी व्होरा, स्वाधीनता संग्राम के लेखक- पत्रकार, प्रतिभा प्रतिष्ठान, नई दिल्ली
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में