कश्मीर की एक ख़ास दीवाली
अकबर के ज़माने में कश्मीर पर मुग़लों का क़ब्ज़ा हो गया था।
कब्ज़े के बाद 5 जून 1589 में अकबर पहली बार भिम्बेर के रास्ते पहली बार कश्मीर आया ।
पंडित शुक ने लिखा है कि अपनी पहली यात्रा में ब्राहमणों को स्वर्णमुद्राएँ दान कीं । वह मार्तंड भी गया और मोतियों से सजी गायें ब्राह्मणों को दान कीं । अकबर अखरोट के पेड़ों से सजे कश्मीर को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ ।[i] ज़ाहिर है, जून की झुलसती दिल्ली से गए बादशाह को कश्मीर स्वर्ग ही लगा होगा ।
इस यात्रा में वह लगभग दो महीने कश्मीर में रहा । अकबर ने कश्मीर में प्रशासनिक सुधार के लिए कई क़दम उठाये । उसने सेनाओं को अपने कैम्प में रहने का हुक्म दिया जिससे वे जनता को तंग न कर सकें । साथ ही धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाते हुए उसने जज़िया को ख़त्म कर दिया और बेग़ार की प्रथा पर पाबंदी लगा दी ।[ii] इसी यात्रा में अकबर को कश्मीर में हाउसबोट शुरू करवाने का श्रेय भी दिया जाता है ।[iii]
अकबर का सबसे बड़ा योगदान था कश्मीर में भू राजस्व की व्यवस्था को पटरी पर लाना । अपनी इस यात्रा में वह टोडरमल को साथ ले गया था जिन्होंने पाटन के अपने कैम्प से कश्मीर में भू राजस्व तय किया ।[iv]
7 अक्टूबर 1592 को अकबर दूसरी बार कश्मीर गया तो उस समय दीपावली थी और अकबर ने जनता के साथ दीपावली समारोह में शिरक़त की । सारे श्रीनगर को दुल्हन की तरह सजाय गया। झेलम की लहरों पर दीपक तैराये गए। ।[v ]
कश्मीर के इतिहास में यह एक ख़ास दीवाली थी।
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स्रोत
[i] देखें, किंग्स ऑफ़ कश्मीर (अनुवादक : जोगेश चन्द्र दत्त), पेज़ 417, खंड 3, शुक, ई एल एम प्रेस, कलकत्ता, 1898
[ii] देखें,पेज़ 289, ए हिस्ट्री ऑफ़ मुस्लिम रूल इन कश्मीर, आर के परिमू , पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, 1969
[iii] देखें, पेज़ 31, क्रिस्टोफ़र स्नोडेन, अंडरस्टैंडिंग कश्मीर एंड कश्मिरीज़, हर्स्ट एंड कंपनी, लन्दन, 2015
[iv] देखें, पेज़ 194, द वैली ऑफ़ कश्मीर, वाल्टर लारेंस, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस,लन्दन, 1895
[v ] पेज़ 11, कश्मीर अंडर द मुग़ल्स (1586-1752), अब्दुल माज़िद मट्टू, शालीमार आर्ट प्रेस, श्रीनगर, 1988
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