Cultural HistoryFeaturedFreedom MovementVideo

क्या आनंद मठ मुसलमानों के खिलाफ़ लिखा गया है?

 

वंदे मातरम को लेकर अक्सर विवाद होता रहता है। इसके स्रोत कहाँ हैं? आनंद मठ में क्या था? क्या वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ था या फिर मुस्लिम शासन के? सुनिए इस उपन्यास और वंदे मातरम के पीछे की बेहद रोचक कहानी।

बंकिम चंद्र चटर्जी (1838-1894) पहले हिंदुस्तानी थे जिन्हें इंग्लैंड की रानी ने भारतीय उपनिवेश को अपने अधीन में लेने के बाद 1858 में डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्त किया था। वे 1891 में रिटायर हुए और अंग्रे़ज शासकों ने उन्हें ‘राय बहादुर’ और सीआईइ जैसी उपाधियों से सम्मानित किया। यह गीत उन्होंने 1875 में लिखा जो बांग्ला और संस्कृत में था।  यह गीत बाद में बंकिम ने अपने प्रसिद्ध लेकिन विवादस्पद कृति ‘आनंदमठ’ (1885) में जोड़ दिया। इस गीत से जुड़ा एक रोचक सच यह है कि इसमें जिन प्रतीकों और जिन दृश्यों का ज़िक्र है वे सब बंगाल की धरती से ही संबंधित हैं। इस गीत में बंकिम ने सात करोड़ जनता का भी उल्लेख किया है जो उस समय बंगाल प्रांत (जिस में ओडिशा-बिहार शामिल थे) की कुल आबादी थी. इसी तरह जब अरबिंदो घोष ने इसका अनुवाद किया तो इसे ‘बंगाल का राष्ट्रगीत’ का टाइटल दिया।

प्रसिद्ध बांग्ला लेखक नरेश चंद्र सेनगुप्ता जिन्होंने 20 वीं शताब्दी के आरम्भ में ‘आनंदमठ’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया उन्होंने साफ़ लिखा कि इस गीत को पढ़ने के बाद यह जानकर दुःख होता है कि बंकिम बांग्ला राष्ट्रवाद से इतने ग्रस्त थे कि उन्हें भारतीय राष्ट्रवाद की परवाह नहीं थी। बंकिम के जीवनकाल में इस गीत को ज्यादा मक़बूलियत नहीं हासिल हुई, इस के बावजूद कि रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इस के लिए एक ख़ूबसूरत धुन बनाई। बंगाल के बंटवारे ने इस गीत को सचमुच में बंगाल का राष्ट्रगीत बना दिया। 1905 में अंग्रेज़ सरकार की ओर से बंगाल के विभाजन के विरुद्ध उठे जनआक्रोश ने इस गीत विशेषकर इसके मुखड़े को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ एक हथियार में बदल दिया।

 

Editor, The Credible History

जनता का इतिहास, जनता की भाषा में

Related Articles

Back to top button