
किताब, जिसने बदल दिया गांधीजी का जीवन
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किताबें, हर युग में लोगों के जीवन और उनके विचारों को प्रभावित करती रही है। महात्मा गांधी ने सत्य के प्रयोग किताब में स्वयं कलमबद्ध किया है कि अनटू दिस लास्ट पुस्तक ने उनको प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीऔर वह जांन रस्किन के लेखन के मुरीद हो गए। पांच भागों में बंटी सत्य के प्रयोग किताब के चौथे भाग में 18वें अध्याय में खुद गांधीजी ने जांन रस्किन की अंटु दिस लास्ट’ का जिक्र किया किया, जिसने उन्हें गहरे तक प्रभावित किया।
कैसे मिली, जांन रस्किन कि अंटु दिस लास्ट महात्मा गांधी को
वेस्ट का ऐसा पत्र आने से मै नेटाल के लिए रवाना हुआ। पोलाक तो मेरी सब बाते जानने लगे ही थे।
वे मुझे छोड़ने स्टेशन तक आये और यह कहकर कि ‘यह रास्ते में पढ़ने योग्य हैं , आप इसे पढ़ जाइये , आपको पसन्द आयेगी।’ उन्होने रस्किन की ‘अंटु दिस लास्ट’ पुस्तक मेरे हाथ मे रख दी।
इस पुस्तक को हाथ मे लेने के बाद मैं छोड ही न सका। इसने मुझे पकड़ लिया।
जोहानिस्बर्ग से नेटाल का रास्ता लगभग चौबीस घंटो का था। ट्रेन शाम को डरबन पहुँचती थी। पहुँचने के बाद मुझे सारी रात नींद न आयी। मैने पुस्तक मे सूचित विचारो को अमल ने लाने का इरादा किया।
इससे पहले मैने रस्किन की एक भी पुस्तक नहीं पढी थी। विद्याध्ययन के समय मे पाठ्यपुस्तको के बाहर की मेरी पढ़ाई लगभग नही के बराबर मानी जायगी।
कर्मभूमि मे प्रवेश करने के बाद समय बहुत कम बचता था। आज भी यही कहा जा सकता हैं। मेरा पुस्तकीय ज्ञान बहुत ही कम है। मै मानता हू कि इस अनायास अथवा बरबस पाले गये संयम से मुझे कोई हानि नहीं हुई। बल्कि जो थोडी पुस्तके मैं पढ पाया हूँ , कहा जा सकता हैं कि उन्हें मैं ठीक से हजम कर सका हूँ।
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जांन रस्किन ने गांधीजी के जीवन में रचनात्मक परिवर्तन कराये
इन पुस्तकों मे से जिसने मेरे जीवन मे तत्काल महत्त्व के रचनात्मक परिवर्तन कराये , वह ‘अंटु दिस लास्ट’ ही कही जा सकती हैं। बाद मे मैने उसका गुजराती अनुवाद किया औऱ वह ‘सर्वोदय’ नाम से छपा।
मेरा यह विश्वास है कि जो चीज मेरे अन्दर गहराई मे छिपी पड़ी थी , रस्किन के ग्रंथरत्न मे मैने उनका प्रतिबिम्ब देखा। औऱ इस कारण उसने मुझ पर अपना साम्राज्य जमाया और मुझसे उसमे अमल करवाया।
जो मनुष्य हममे सोयी हुई उत्तम भावनाओ को जाग्रत करने की शक्ति रखता है, वह कवि है। सब कवियों का सब लोगो पर समान प्रभाव नही पडता , क्योकि सबके अन्दर सारी सद्भावनाओ समान मात्रा मे नही होती।
मै ‘सर्वोदय’ के सिद्धान्तो को इस प्रकार समझा हूँ :
- सब की भलाई मे हमारी भलाई निहित हैं .
- वकील और नाई दोनो के काम की कीमत एक सी होनी चाहिये, क्योकि आजीविका का अधिकार सबको एक समान है।
- सादा मेहनत मजदूरी का किसान का जीवन ही सच्चा जीवन हैं।
पहली चीज मै जानता था। दूसरी को धुँधले रुप मे देखता था। तीसरी की मैने कभी विचार ही नही किया था। ‘सर्वोदय’ ने मुझे दीये की तरह दिखा दिया कि पहली चीज मे दूसरी चीजें समायी हुई है। सवेरा हुआ और मैं इन सिद्धान्तों पर अमल करने के प्रयत्न मे लगा।
– महात्मा गांधी
संदर्भ

जनता का इतिहास, जनता की भाषा में