Fact CheckFeatured

फ़ैक्ट चेक : क्या भारत को अधूरी आज़ादी मिली थी?

पिछले कुछ दिनों में भारत की स्वतंत्रता के बारे में बेसिरपैर की ,  हास्यास्पद पर व्यापक पैमाने पर अपनी पहुंच रखने वाली बातें सामने आई और सोशल प्लेटफार्म्स सहित मीडिया में चर्चा का विषय बनी. हाल ही में पद्मश्री से सम्मानित और 4 बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त कंगना रनौत ने एक निजी चैनल से चर्चा में दावा किया कि 1947 में आज़ादी भीख में मिली थी और वास्तविक आज़ादी तो 2014 में मिली.

इसी तरह की हास्यास्पद बात एक ट्विटर हैंडल @anujdhar से भी सामने आई और समर्थन में उन्होंने पं. जवाहरलाल नेहरू का एक पत्र लगाया जो ब्रिटेन की महारानी को संबोधित था. महत्त्वपूर्ण बात ये है कि न तो कंगना रनौत और न ही अनुज धर इतिहास के विशेषज्ञ हैं.उनके बयानों से सिद्ध हो जाता है कि उन्हें इतिहास का सामान्य ज्ञान भी नहीं है. जनसामान्य भ्रमित न हो इसलिए इसका खंडन ज़रूरी हो जाता है.

 

आइये इस ऐतिहासिक तथ्य पर नज़र डालते हैं कि भारत को स्वतंत्रता कैसे मिली ?

तथ्य यह है कि भारत को क्रमश: लंबे स्वतंत्रता संघर्ष के बाद स्वतंत्रता मिली.  यह स्वतंत्रता संघर्ष 1857 से होता हुआ उदारवादियों, उग्रवादियों, क्रांतिकारियों से होता हुआ कृषकों,आदिवासियों ,दलितों, महिलाओं  के संघर्ष से होता हुआ गुज़रा .कुछ एक विचारधारा और उसके समर्थकों को छोड़ लगभग सभी भारतीयों ने इस संघर्ष में अपनी भूमिका निभाई.  नि:संदेह 15 अगस्त 1947 से 25 जनवरी 1950 तक का समय ‘ डोमिनियन युग ‘था. पर भारतीय स्वतंत्रता के संदर्भ में क्यों न किसी अधिकृत वक्तव्य को आधार बनाया जाय.

भारतीय स्वतन्त्रता के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे क्लीमेंट एटली ने ‘भारतीय स्वतंत्रता विधेयक ‘ के विषय में कहा कि” यह ( ‘भारतीय स्वतंत्रता विधेयक ‘) उस घटना चक्र की लंबी श्रंखला का चरम बिंदु है.  मिंटो मॉरले तथा मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुझाव, साइमन कमीशन की रिपोर्ट, गोलमेज़ कान्फ्रेंस, मेरे माननीय मित्रों का गत वर्ष भारत जाना ( मंत्रिमंडल का शिष्टमंडल ) यह सभी उस मार्ग के चरण हैं जिसका अंत भारत को स्वतंत्रता देने का सुझाव है.”

एटली के  वक्तव्य में वर्णित हर बिंदु के पूर्व का अध्ययन अनर्गल बातें फैलाने वालों द्वारा किया जाय तो स्वतंत्रता के लिए हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान से परिचित हो जाएंगे. इसी तरह ‘ ट्रांसफर ऑफ पॉवर’ या ‘डोमिनियन स्टेटस’ को लेकर सुनियोजित रूप से भोले भाले मतदाताओं को क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ  की पूर्ति के लिए जिस प्रकार से बरगलाया जा रहा है वो तो देशद्रोह है ही पर उससे बड़ा देशद्रोह और राष्ट्र के प्रति अपराध ये है कि जिन स्वतन्त्रता सेनानियों ने अपना सबकुछ देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयासों में न्योछावर कर दिया उनके प्रयासों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना और ये वैसा ही है कि समुद्री तूफानों में समुद्र के भीतर जो संघर्ष कर रहे हैं उन पर किनारे से तमाशा देख रहे तमाशाई टिप्पणी करें.

दुर्भाग्य से इस समय तमाशाइयों का भाग्य प्रबल है. पर ऐतिहासिक तथ्य या सच्चाई वही है जो स्वतंत्रता के समय  ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे एटली ने ‘भारतीय स्वतंत्रता विधेयक’ पर अपने वक्तव्य में व्यक्त की.

Manoj Kumar Savaiya

उच्च शिक्षा में अध्यापन, twitter पर जुड़ें - https://twitter.com/SavaiyaM

Related Articles

Back to top button