भगत सिंह के परिवार को अपने घर पनाह देने वाले मौलाना हबीब-उर-रहमान
हिन्दुस्तान की आज़ादी के अज़ीम रहनुमा रईस उल अहरार मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने ‘इस्लाम ख़तरे में है’ के नारे के पीछे छिपे हुए स्वार्थ का ख़ुलासा किया था। वह लुधियाना के मशहूर मुजाहिद-ए-आज़ादी मौलाना शाह अब्दुल क़ादिर लुधियानवी के पोते थे, जिन्होने 1857 में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ फ़तवा दिया था।
14 साल देश के जेलों में सज़ा काटी
3 जुलाई 1892 को पंजाब के लुधियाना में पैदा हुए। पढ़ाई पूरी करने के बाद हबीब उर रहमान ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ज्वाइन कर लिया। उन्होंने खिलाफत और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
भारत की आज़ादी की ख़ातिर मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने शिमला, मैनवाली, धर्मशाला, मुल्तान, लुधियाना सहीत देश की विभिन्न जेलों में क़रीब 14 साल बिताए। परंतु, उनका क्रांतिकारी मिजाज नहीं बदला। हमेशा बेख़ौफ होकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बगावत करते रहे।
दारुल उलूम देवबंद से अपनी तालीम मुकम्मल करने के बाद मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने मौलाना अब्दुल अज़ीज़ की बेटी बीबी शफ़तुनिसा से शादी कर ली। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और खिलाफ़त आंदोलन और असहयोग आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
ख़िलाफ़त तहरीक और असहयोग आंदोलन के दौरान मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने 1 दिसंबर 1921 को अपने प्रेरक भाषण से लोगों को ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह के लिए उकसाया और पहली बार गिरफ़्तार किए गए।
उनके मित्रों और परिजनों को भी कारावास का सामना करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने भी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया था। उनकी पत्नी बीबी शफ़तुनिसा, जो स्वंय भी एक स्वतंत्रता सेनानी थीं, ने अपने परिवार पर ब्रिटिश पुलिस के द्वारा किए गए क्रूर दमन के बावजूद उन्हें समर्थन दिया।
जमियत-उलमा-ए-हिंद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मौलाना लुधियानवी, 1929 में मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद की सलाह पर मजलिस-ए-अहरार (द सोसायटी ऑफ़ फ़्रीमेन) की स्थापना की।
भगत सिंह के परिवार को अपने घर में दी पनाह
1929 में भगत सिंह ने केंद्रीय सभा में बम फेंके, उसके बाद से कोई भी उनके परिवार के सदस्यों को शरण देने के लिए आगे नहीं आया था क्योंकि लोगों को ब्रिटिश दमन का भय था। तब मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी ने भगत सिंह के परिवार के सदस्यों को एक महीने तक आश्रय प्रदान किया।
साथ ही उन्होने नेताजी सुभाष चंद्रा बोस की भी अपने घर पर मेहमान नवाज़ी की थी।
सबका पानी एक है…
ब्रिटिश अफिसरों ने फूट डालो राज करो की नीति अपनाते हुए लुधियाना की घास मंडी चौक पर हिंदुओं और मुसलमानों में फूट डालने की नापाक चाल को नाकामयाब बना दिया। उन्होंने एक पर्चा बंटवाया।
सबका पानी एक है- उन्होंने हिंदु-मुसलमानों के लिए अलग-अलग रखे गए घड़े अपने साथियों के साथ तोड़ दिया।
नतीजतन, ब्रिटिश सरकार को सबका पानी एक है का संदेश देते हुए देशभर के सभी रेलवे स्टेशनों पर एक समान घड़ा लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन इन गतिविधि के चलते उन्हें और उनके 50 साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
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जब जामा मस्जिद पर फहराया तिरंगा
1931 में जब पूरे देश में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांति तेज हो गई थी। इस बीच जामा मस्जिद के पास लगभग 300 अग्रेजी अफसरों और पुलिस बल की मौजूदगी में मौलाना ने भारतीय ध्वज तिरंगा फहराया था।
उनके इस साहस को देखने के बाद अंग्रेजों के पसीने छूट गए थे। सभी अफसर उन्हें रोकने में नाकाम रहे थे। जिसके बाद उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया। एक साल तक वो फिर जेल के सलाखों के पीछे रहे। उन्होंने अपने देश को आजाद होते हुए भी देखा। वह जिन्ना के द्दि-राष्ट्र सिद्धांत के मुखर विरोधी थे।
वो आख़िर आख़िर तक पाकिस्तान बनने का विरोध करते रहे; पर जब राष्ट्र को 1947 में विभाजित किया गया था, तो उन्होंने शत्रुतापूर्ण माहौल के कारण अपने दोस्तों की सलाह पर लुधियाना छोड़ दिया और दिल्ली में शरणार्थी शिविरों में शरण ली।
इससे लुधियानवी युगल को गंभीर मानसिक आघात हुआ हालांकि उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह दी गई थी, उन्होंने सलाह को अस्वीकार कर दिया था और अपने मूल स्थान लुधियाना में रहने को सोंचा, और वहां भी उन्हें कटु अनुभव का सामना करना पड़ा।
जब गांधीजी ने मौलाना के इस बात पर रखा मरणव्रत
इतिहासकारों के अनुसार, मौलाना हबीब उर रहमान के गांधीजी और जवाहर लाल से काफी अच्छे संबंध थे। जब विभाजन के समय देश में दंगे हो रहे थे।
मौलाना ने दिल्ली में गांधीजी से मुलाकात की। उन्होंने गांधीजी से कहा कि मुझे पासपोर्ट दिलवा दीजिए ताकि मैं ब्रिटेन जाकर महारानी एलिजाबेथ को बता सकूं कि गांधी अपनी अहिंसा के नीति में असफल हो चुके हैं। आजादी के बाद हिंदू-मुसलमान एक दूसरे को मार रहे है।
गांधीजी उसी समय ऐलान करते हुए कहा कि जब देश में मौलाना हबीब उर रहमान जैसे राष्ट्रवादी मुसलमान महफ़ूज नहीं हैं। तो मैं मरणव्रत का ऐलान करता हूं। या तो मैं अपनी जान दे दूंगा या फिर देश में खून खराबा बंद हो जाएगा। गांधीजी के ऐलान के बाद ही देश में दंगे रुक गये थे।
आज़ादी बाद मुस्लिम दुनिया से भारत के अच्छे तालुक़ात के लिए मौलाना लुधियानवी ने बहुत मेहनत की, और इसके लिए वो 1952 में साऊदी अरब गए।
2 सितम्बर 1956 को आजादी के इस सिपाही ने दुनिया को अलविदा कह दिया और जामा मस्जिद के पास के कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक(दफन) हो गए।
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