संविधान सभा में 750 संशोधन प्रस्ताव रखने वाली, दुर्गाबाई देशमुख
आधी आबादी की दुनिया में कुछ महिलाओं ने अंधेरी दुनिया से बाहर निकलने के लिए पहले अपने अंदर की संभावनाओं को तराशा और पुरातन की केंचुल को उतारकर कई नई उम्मीदों को नया अवसर दिया। देश के लिए उन्होंने अपना सबकुछ न्यौछावर करते हुए, अपना सामाजिक जीवन इस तरह से जीया कि कई पीढ़ीयों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनकर आज भी मौजूद है।
दुर्गाबाई देशमुख एक ऐसा ही नाम हैं, जिन्होंने अपने अंदर मौजूद संभावनाओं की पहचान की। दुर्गाबाई देशमुख के ना चाहते हुए भी पंडित नेहरु ने उनके अंदर मौजूद संभावनाओं को देखते हुए कई प्रकार के दायित्वों में व्यस्त रखा।
राष्ट्रीय महिला-शिक्षा समिति की अध्यक्ष दुर्गाबाई देशमुख
समान्यत: दुर्गाबाई देशमुख को लोग इसलिए याद रखते हैं, क्योंकि आज़ाद भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए बनाई गई पहली योजना राष्ट्रीय महिला-शिक्षा समिति की अध्यक्ष दुर्गाबाई देशमुख थीं, इसलिए इस समिति को दुर्गाबाई देशमुख समिति कहा जाता है। परंतु, यह उनके विशाल व्यक्तित्व का छोटा सा परिचय है।
दुर्गाबाई देशमुख वह नारी-मुक्तिवादी महिला हैं, जिन्होंने बतौर अस्थायी सांसद संविधान सभा में कम-से-कम 750 संशोधन प्रस्ताव रखे, एक ऐसी प्रशासक जिसने करोड़ों रुपये की स्थायी निधि वाली कम-से-कम आधा दर्जन संस्थाओं का गठन किया, ऐसी देशभक्त जो चौदह वर्ष की उम्र में ही जेल चली गईं।
जिन्होंने प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं के संगठित प्रयास के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाने की कोशिश की, जिन्होंने जनसंख्या नीति तैयार करने के लिए विस्तृत प्रतिवेदन तैयार किया, राष्ट्र के प्रगति में महिलाओं की भागीदारी निश्चित करने के लिए मज़बूत आधारशिला की नींव रखी।
संविधान सभा की सदस्या के रूप में उनके बार-बार हस्तक्षेप करने पर अंबेडकर ने उनकी चुटकी लेते हुए कहा,
यह एक ऐसी महिला है, जिसके जुड़े में शहद की मक्खी है।
एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी दुर्गाबाई ने आठ साल की उम्र में सपन्न विवाह को इसलिए त्याग दिया, क्योंकि चार साल बाद रजस्वला होने पर उनको समझ में आया कि विवाह का वास्तविक अर्थ क्या है? उन्होंने विवाह के बंधनों को तोड़ते हुए सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करने का निश्चय किया।
महिलाओं के उद्धार से शुरू हुई इनकी सामाजिक गतिविधि
दुर्गाबाई की गतिविधियों की शुरुआत पतित पतियों के सामाजिक बहिष्कार और देवदासी प्रथा के विरोध से शुरू हुई। उन्होंने महिलाओं के लिए हिंदी पाठशाला चलाई। महात्मा गॉंधी के संपर्क में दुर्गाबाई देशमुख तेलगु-हिंदी भाषण अनुवादक के रूप में आईं।
उनके भाषण देने की कला को देखकर उनको “जान ऑफ आर्क” कहा जाता था। गॉंधीजी से प्रभावित होकर वह कॉंग्रेस सेविका बन गईं। कई बार जेल भी गईं।
मदुरै जेल में काल कोठरी की सज़ा के दौरान उनकी मस्तिष्क की नाड़ियों पर आघात लगा, जेल से निकलने के बाद उन्होंने राजनीतिक आंदोलन से अलग रहने का निश्चय किया।
जेल के दौरान उन्हें महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों और अत्याचारों के बारे में पता चला। इसीलिए अपनी सजा काटने के बाद, उन्होंने अपना ध्यान राजनीति से हटाकर अपनी पढ़ाई पर लगाया, ताकि वे महिला अधिकारों के लिए लड़ सकें।
उन्होंने कानून की पढ़ाई की और साल 1942 में, जब ‘भारत छोड़ों आंदोलन’ पूरे जोर पर था, उन्हें मद्रास वकील संघ में नियुक्ति मिल गयी।
शिक्षा जीवन और सामाजिक कार्यों में उसका योगदान
मदनमोहन मालवीय के सहयोग से उन्होंने बनारस से त्वरित पाठ्यक्रम पूरा करके विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। मद्रास विश्वविद्यालय से बी.ए. पास हुईं और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की।
युद्ध के हालात को देखते हुए उन्होंने मद्रास में ही वकालत की पढ़ाई शुरू की और 1942 में वकालत की डिग्री हासिल की। यह एक ऐसा क्षेत्र था, जो महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था। उन्होंने पहला मुकदमा उत्तराधिकार से वंचित महिला के लिए लड़ा, जो महिला को उसकी संपत्ति वापस दिलाने के लिए था।
वह महिला दक्षिण भारत की एक राजकुमारी थीं, जिसके दिग्वंत पति के परिवार ने संपत्ति से वंचित कर दिया था। फौजदारी मामलों के वकील के रूप में वह काफी प्रसिद्ध हुईं।
दुर्गाबाई ने संसद के प्रथम चुनाव में भाग लिया और वह हार गईं। वह मद्रास लौटकर वकालत शुरू करना चाहती थीं। पंडित नेहरु ने उनको रोक लिया और कई तरह की ज़िम्मेदारियों में व्यस्त रखा।
इसी समय उन्होंने पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना पर काम किया, योजना आयोग की सदस्य बनकर समाज कल्याण के क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा, श्रम, सार्वजनिक सहकारिता, सामाजिक नीति और प्रशासन के लिए अलग-अलग बजट बनाने की सिफारिश की।
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दुर्गाबाई का प्रेम जीवन
दुर्गाबाई का जीवन का एक पहलू सीडी देशमुख के संग प्रेम और विवाह का भी है, जो अपने कार्य के प्रति समर्पित एक मौन प्रशासक थे, वह रिज़र्व बैक के गर्वनर रहें, योजना आयोग के सदस्य रहें और भारत के वित्तमंत्री भी रहें।
उन्होंने दुर्गाबाई के आंध्र महिला सभा के कामों का अवलोकन किया और दुर्गाबाई के कामों की सराहना की। दुर्गाबाई उनको सीडी कहकर बुलाती थीं।
वह दुर्गाबाई के घर गए, उनके परिवार वालों से मुलाकात की और बागीचे में घूमते हुए उनसे कहा,
तुम मेरे जीवन के खालीपन को भर सकती हो।
अपने संस्मरण में दुर्गाबाई लिखती हैं,
मैं विस्मित हो गई और सोचने के लिए वक्त मांगा।
दुर्गाबाई की जीवन शैली ग्रामीण महिला की तरह थी, जबकि सीडी देशमुख की जीवनशैली पाश्चात्य तरीके की थी। दुर्गाबाई ने सीडी देशमुख से कहा कि इतने भिन्न परिवेश के बाद भी वह उनके संग विवाह करना पसंद करेंगे। सीडी ने दुर्गाबाई को संस्कृत में एक श्लोक सुनाया जो वास्तव में विवाह का प्रस्ताव था।
दुर्गाबाई लिखती हैं “मैंने स्वीकार कर लिया और उन्होंने मुझे चूम लिया।” फिर अगले दिन दोनों पंडित नेहरु के पास गएं और यह खबर सुनाई।
दुर्गाबाई ने योजना आयोग की सदस्यता से त्यागपत्र देने की इच्छा प्रकट की परंतु नेहरु कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। उन्होंने कहा,
योजना आयोग की सदस्य के रूप में तुम्हारी नियुक्ति सीडी ने नहीं की, हमें वहां तुम्हारी आवश्यकता है।
कुछ महीने बाद भाई गोपालराव मित्र सुचेता कृपलानी और नेहरु के साक्ष में दोनों ने विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात अपने शिक्षा ग्रहण करने के अनुभवों के आधार पर उन्होंने भारत में “लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा” विषय पर अपना प्रतिवेदन सरकार को सौंप दिया।
बाद के दिनों में मधुमेह के कारण उनकी आंखों की रोशनी खत्म हो गई। सी.डी. ने सार्वजनिक जीवन से विश्राम लेकर दुगाबाई की काफी देखभाल की। दुर्गाबाई की 71 साल की उम्र में 1981 में मृत्यु हो गई।
महिलाओं की शिक्षा प्रसार के लिए उनको “नेहरु साक्षरता पुरस्कार”, “पांलजी हाफमैन पुरस्कार”, “युनेस्को पुरस्कार”, “पद्म विभूषण”, “जीवन पुरस्कार”, “जगदीश पुरस्कार” से नवाज़ा गया।
उन्होंने दुर्गाबाई देशमुख अस्पताल, श्री वेंकटेश्र्व्रर कॉलेज, नेत्रहीनों के लिए स्कूल, छात्रावास तथा तकनीकी प्रशिक्षण क्रेंद्र भी खोले। दिल्ली मेट्रो का साउथ कैंम्पस मेट्रो स्टेशन का नाम दुर्गाबाई देशमुख रखा गया है, क्योंकि श्री वेंकटेश्र्व्रर कॉलेज की स्थापना में उनका बहुत सहयोग था।
जे एन यू से मीडिया एंड जेंडर पर पीएचडी। दो बार लाडली मीडिया अवार्ड। स्वतंत्र लेखन।
संपादक- द क्रेडिबल हिस्ट्री