जन्मदिन विशेष: मणिबेन पटेल
आज मणिबेन पटेल का जन्मदिन है। इतिहास उन्हें अक्सर सरदार पटेल की पुत्री के रूप में ही यदाकदा याद करता है, लेकिन उनका जीवन आजादी के दौर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ आजीवन संघर्ष करने वाली एक महिला का है।
मणिबेन पटेल : धरने दिए, जेल गयीं, देश के लिए प्रताड़ना सहकर भी डटी रहीं
भारतीय के आज़ादी का इतिहास महिला स्वातंत्रता सेनानियों के संघर्ष और समर्पण के बिना अधूरा है। मणिबेन पटेल, भले ही लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की बेटी थी, पर इतिहास में वह केवल इस परिचय की मुहताज नहीं है।
आजादी के बाद, आज के मायानगरी मुबंई में कई लोगों के हेल्थ के लिए लाइफ लाइन के रूप में नानावटी अस्पताल का नाम अक्सर सुनने में आता है। नानावटी अस्पताल, मणिबेन पटेल ने बनवाया था, उसके बारे में आज अधिकांश लोगों को पता नहीं होगा। महिलाओं को आर्थिक रूप में आत्मनिर्भर करने के लिए खादी मंदिर की शुरुआत भी। एक आम इंसार के लिए अस्पताल और महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के जरूरत के बारे में मणिबेन अपने जीवन संघर्ष से जानती थी। इसलिए उन्होंने इस दोनों सामाजिक कार्य पर सबसे अधिक जोर दिया।
आरंभिक जीवन, व्यस्त पिता और ताऊ के संरक्षण में शिक्षा
साल 1903 में 3 अप्रैल को गुजरात के करसमद में मणिबेन का जन्म हुआ था। अपनी माताश्री झवेरबा के देहांत के समय वह केवल 6 वर्ष की थी। उनके लालन-पालन का दायित्व उनके ताऊ विट्ठलभाई पटेल ने उठाया। पिता वल्लभभाई पटेल अपनी कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैड गए तो अपने बेटे और बेटी को क्वीन मेरी हाई स्कूल में दाखिला करा दिया था।
मणिबेन अंग्रेजी में बात करती थी और फ्रेच भाषा की अच्छी जानकार थी। यह लगभग तय था कि स्कूल की पढ़ाई के बाद वह इंग्लैड पढ़ने जाएगी। पिता वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद, अपनी जीवनशैली और रहन-सहन बिल्कुल बदल लिया था।
गाँधीजी की शिक्षाओं से प्रेरित होकर उन्होंने 1918 में मात्र 15 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन की गतिविधियों में भाग लेना प्रारम्भ किया और महात्मा गांधी द्वारा प्रारम्भ किए गए रचनात्मक कार्यों में भी भागीदारी की। वह नियमित रूप से अहमदाबाद के साबरमती आश्रम जाती थीं। वहाँ लोगों की दिनचर्या में हाथ भी बंटाती थीं।
पिता के तरह, बेटी मणिबेन ने भी स्वदेशी के रंग में ढल गई और इंग्लैड जाने की बजाय उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए गुजरात विद्यापीठ में 1920 में दाखिला करा लिया। 1925 में वह स्नातिका हुई। राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित मणिबेन अविवाहिता रहकर आजीवन भारत के हित के लिए चिंतन करती रही।
पढ़ाई पूरी करने के बाद, मणिबेन अपने पिता के लिए परछाई की तरह थी। वह उनके हर दिन का हिसाब रखती थी कि कब किससे मिलना है? सरदार पटेल और उनकी दिनचर्या से जुड़ीं बाते लिखती। पिता जिस भी सभा में जाते, वह साथ हुआ करती थी। शायद इसलिए हर कोई कहता कि वह एक महान बेटी भी थी और देशभक्त भी।
उन्होंने 1923-24 में बोरसद आंदोलन, 1928 में बारदोली सत्याग्रह तथा 1938 में राजकोट आंदोलन में हिस्सा लिया था। उन्होंने असहयोग आंदोलन और नमक-सत्याग्रह में भी भाग लिया था। सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें 1942 से 1945 तक यरवदा केन्द्रीय कारागार में बंदी बनाकर रखा गया था।
जीवन का महत्वपूर्ण बदलाव
1931 में महात्मा गांधी जब गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन जाने वाले थे। उस समय वह, मणिबेन के विर्ले-पार्ले वाले घर पर ठहरे थे। महात्मा गांधी ने मणिबेन को महिलाओं के आत्मनिर्भरता के लिए खादी मंदिर शुरू करने की सलाह दी। इस खादी मंदिर में मणिबेन को खादी सत्याग्रही बना दिया। यही से मणिनबेन के जिंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव आना शुरू हुआ।
खादी मंदिर में महिलाओं को ग्रामीण विकास, आधारभूत शिक्षा और खादी निमार्ण के प्रशिक्षण देना शुरू किया। वे इस प्रशिक्षण संस्था की आजीवन बिना वेतन के सचिव भी रही। उनकी इस कोशिश ने शुरुआत में गुजरात के आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर करने में सहयोग किया।
आजादी के बाद विभाजन के कारण देश में आए शरणार्थी महिलाओं को आर्थिक सहायता देने में भी यह केंद्र प्रमुख रूप से सामने आया। उनके इस प्रयोग को देखकर सभी चकित रह गए। इसी खादी मंदिर ने प्रशिक्षण संस्था के साथ-साथ बालिका-विद्यालय की स्थापना की। जो आज मुंबई में नानावटी कांलेज के रूप में स्थापित है। मणिबेन के सामाजिक कार्यो ने लोगों के जेहन में इस स्थापित हुए कि वे लोगों की मणिबा बन गई।
आजादी के बाद का राजनीतिक सफर
आजादी के बाद मणिबेन एक राजनेता के तौर पर उभरी। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से प्रथम लोकसभा 1952-64 और दूसरी लोकसभा 1957-62 के लिए सांसद चुनी गई। वे गुजरात कांग्रेस की 1957-64 के दौरान वाइस प्रेसिडेंट भी रहीं। 1964 से वे राज्यसभा के लिए भी चुनी गई। लगभग तीन दशकों तक वे सांसद रही। इमरजेंसी के दौरान वे गिरफ्तार हुई, इमरजेंसी के विरोध में उन्होंने आंदोलन में भाग लिया। [i]
मणीबेन 1977 के चुनाव में मोराजजीभाई की पार्टी कांग्रेस(ओ.) से महेसाणा से लोकसभा का चुनाव जीती थी।[ii]
1976 में एक बार फिर से दांडी मार्च का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य लोगों को जागरूक करना था। इन सब राजनीतिक कामों के अतिरिक्त वे कई ऐसी संस्थाओं से जुड़ी रही, जिनका काम लोगों को सामाजिक तौर पर मजबूत करना था। गुरजात विद्यापीठ, वल्लभ विद्यानगर, बारदौली स्वराज आश्रम के साथ-साथ सरदार पटेल मेमोरियल ट्रस्ट से आजीवन जुड़ी रही।[iii]
26 मार्च 1990 को 86 वर्ष की आयु में उनका देहांत अहमदाबाद में हुआ। अपने पीछे मणिबेन महबूत इच्छाशक्ति, लोक-सेवा की भावना, सत्य निष्ठा और ईमानदार कोशिश की विरासत देशवासियों के लिए छोड़ गई।
स्रोत संदर्भ
[i] उषा मेहता, मणिबाई पटेल, भारतीय पुनर्जागरण में अग्रणी महिलाएं, सं. सुशीला नैयर, कमला मनकेकर, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, 2005, पेन न०-282-284
[ii] श्ताम कुणाल, दमन तक्षकों का.ई बुक, पेज न०- 39, 2022
[iii] वही