मज़हब के ऊपर था ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का राष्ट्रवाद
ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान या बादशाह ख़ान उनलोगों में से थे, जो अविभाजित राष्ट्रवाद के साथ ही अविभाजित राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध रहे। अहिंसा के ज़रिये स्वतंत्र और धर्मनिरपेक्ष भारत की आकांक्षा पूरी करने के लिए उन्होंने पठानों को संगठित किया।
पाकिस्तान बन जाने के बावजूद वह दो-राष्ट्र सिद्धान्त के सख़्त विरोधी बने रहे। इसका नतीज़ा यह हुआ कि कई साल उन्हें पाकिस्तान के जेलों में रहना पड़ा। 1969 में भारतीय संसद के संयुक्त सत्र में उनका संबोधन के कुछ तीक्ष्य और भावुक अंश-
उपद्रवों के पीछे कौन?
हिंसा की तमाम वारदातों से मुझे गहरी तकलीफ़ हुई है, इसलिए और ज्यादा कि यह सब धर्म के नाम पर हुआ है। इस दुनिया में धर्म की स्थापना हमें प्रेम, इनसानियत, सच्चाई और इंसाफ़ का सबक़ सिखाने और ईश्वर के बनाए प्राणियों की ख़िदमत के लिए हुई।
जबकि हिंसा साफ़ तौर पर ख़ालिस नफ़रत है। एक मज़हबपरस्त इन्सान, चाहे वह किसी मज़हब का माननेवाला हो, किसी से नफ़रत कर ही नहीं सकता। इसलिए हिंसा या नफ़रत का मज़हब से कोई लेना-देना नहीं। ये न सिर्फ़ बेमेल हैं, परस्पर विरोधी भी हैं।
यह कुछ लालची लोगों का काम है, जो ज़र-जायदाद और ताकत हासिल करने के फैर में मज़हब की आड़ लेकर लोगों को भरमाते हैं तालि अपना उल्लू सीधा कर सकें।
साम्प्रदायिक उपद्रव के लिए लोगों को भरमाते हैं ताकि अपना उल्लू सीधा कर सकें। साम्प्रदायिक उपद्रव के लिए लोगों को भड़काने या उनमें शरीक होने वाले ऐसे लोगों को अगर मुनासिब सज़ा नहीं दी गई तो मुल्क में अमन के लिए वे हमेशा ख़तरा बने रहेंगे।
मेरे प्यारे भाईयो, यह राष्ट्रवाद का युग है। अगर आप खुद में राष्टवाद की भावना विकसित नहीं करते हैं तो इससे आपका और मुल्क का नुक़सान होगा, पूरे राष्ट का नुकसान होगा।
राष्ट्रीयता की बुनियाद सिर्फ राष्ट्र हो सकता है, धर्म नहीं। दुर्भाग्यवश हिन्दुस्तात में धर्म की राष्ट्रीयता की पहचान बन गया है। यही देश के बंटवारे की वज़ह भी बना। अब सवाल यही है कि आप ऐसी मानसिकता का समर्थक-पोषण करेंगे जिसका नतीजा द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त था।
गांधीवाद कभी खत्म नहीं होगा
कई मुअज़्ज़ज़ विदेशियों ने मुझसे कहा कि बुद्ध पैदा तो हिन्दुस्तान में हुए मगर बौद्ध धर्म उनकी जन्मभूमि के बाहर पनपा। यह दूसरे देशों में फैल गया लेकिन हिन्दुस्तान में इसका लोप हो गया।
उनका कहना है कि गांधी के साथ भी ऐसा ही हुआ। गांधी के सिद्धान्तों में यकीन करनेवालों की तादाद दूसरे मूल्कों में बढ़ रही है, जबकि भारत में गांधी के साथ ही गांधीवाद भी खत्म हो गया।
ऐसे लोगों को मैं जवाब देता हूं कि गांधी का युग बुद्ध के समय से अलग है। हिन्दुस्तान में गांधीवाद कभी खत्म नहीं हो सकता है। जो इसे मिटा देना चाहते हैं, वे सिर्फ़ अपना और मुल्क का नुक़सान करेंगे और अन्नत: खुद ही मिट जाएंगे।
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भेदभाव से मुल्क कमजोर होगा
देशभक्ति और एकता किसी देश की मजबूती की बुनियाद है लेकिन एकता का आधार इंसाफ़ और बराबरी है। हर देशवासी को यह लगना चाहिए कि देश की भलाई में ही उसकी भलाई है और देश के नुकसान में खुद उसका नुकसान।
ऐसा तभी मुमकिन होगा, जब सबको समान अधिकार और सहूलियतें मिलेंगी और निषपक्ष न्याय भी। लेकिन अगर बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यकों पर अविश्वास करता है और उसे नीचा दिखाने के लिए उसके अधिकारों से वंचित कर देता है तो तात्कालिक रूप से भले वह ख़ुद को ज़्यादा ताक़तवर समझ ले मगर अन्तत: देश कमजोर होगा।
किसी भी तरह ऐसे निष्ठाहीन लोगों और गुटों की शिनाख़्त की जानी चाहिए और उनके गुनाह साबित होने पर उन्हें सजा मिलनी चाहिए। लेकिन अगर केवल संदेह के आधार पर आप एक पूरे समुदाय को उसके विधिसम्मत अधिकारों से वंचित कर देंगे तो यह घोर अन्याय होगा।
संदर्भ
सभार, प्रभात सिंह, अनुवाद, धर्म से श्रेष्ठ राष्ट्रवाद, संपादन- एस.इरफ़ान हबीब, भारतीय राष्ट्रवाद एक अनिवार्य पाठ, राजकमल प्रकाशन, 2023
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