नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आदर्श खुदीराम बोस का आख़िरी दिन
खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी ने 30 अप्रैल, 1908 को मुजफ्फरपुर में किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंका था। बम फेंकने
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खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी ने 30 अप्रैल, 1908 को मुजफ्फरपुर में किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंका था। बम फेंकने
भारत देश का हैसियदार व्यक्ति हो या साधारण, देश की आज़ादी का जज़्बा सभी के मन में पल रहा था।
क्रांतिकारी विचारक, संगठनकर्ता, वक्ता, प्रचारक आदि के रूप में भगवती चरन अक्सर याद किए जाते है।इसके साथ-साथ आदर्श के प्रति
आज़ादी के आन्दोलन में कई युवा क्रांतिकारी हुए जिनका जीवन काफी छोटा था लेकिन इस छोटे से जीवन में उन्होंने
हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के नाम मशहूर हैं, जिनके नेतृत्व में हज़ारों देशवासियों ने जंगे आज़ादी
वतन की आज़ादी के सिपाहियों की न तो आयु की कोई सीमा थी और न धर्म का कोई बंधन। आज़ादी
खुद पर आत्मविश्वास और हौसले के दम पर, असंभव लगने वाले काम को अंजाम दिया जा सकता है और सफलता
हिन्दुस्तान की जंग-ए-आज़ादी में शामिल किसी साधारण से व्यक्ति का क़िरदार भी छोटा नहीं था। वली ख़ान आज़ादी के एक
बनारसीदास चतुर्वेदी ने अपने संपादन में भगवानदास माहौर, सदाशिवराव मलकापुरकर और शिव वर्मा के सहयोग से यश की धरोहर शहीद-ग्रन्थ-माला
सामाजिक मुद्दों के लिए जीवन समर्पित करने वाली मृदुला साराभाई मृदला साराभाई वह महिला जो आजादी के आंदोलनों में सफेद
औपनिवेशिक भारत में जब आज का बांग्लादेश भारत का हिस्सा हुआ करता था, तब एक यूरोपियन क्लब के बोर्ड पर
शांतीमोय रे ने अपनी किताब ‘Freedom Movement and Indian Muslims‘ में इस पर विस्तार से लिखा है। प्रस्तुत है
अंग्रेजी के सबसे प्रसिद्ध उपन्यासकारों में से एक चार्ल्स डिकिन्स ने “पिकविक पेपर्स” नाम से एक उपन्यास लिखा था। यह
1857 के विद्रोह के पहले, भारत में संन्यासियों और फ़क़ीरों ने ब्रिटिश शासन के स्थापना के विरोध में लंबा संघर्ष
आज़ादी की लड़ाई में कांग्रेस और मुसलमानों के रिश्ते को लेकर बहुत कुछ कहा जाता है। शांतीमोय रे ने अपनी
अप्रैल का महीना बिहार के चंपारण जिले के इतिहास में खास है क्योंकि अप्रैल महीने के दूसरे पखवाड़े में सन
1945 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की असामयिक मृत्यु के बाद अंग्रेज सरकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर बंदी बना
1947 में देश आजाद तो हुआ लेकिन बंटवारे ने बीच में एक खून की लकीर खींच दी। हम सभी
किसी भी तरह के अन्याय व शोषण का प्रतिरोध चंबल के जनमानस की पहचान मानी जाती है। प्राचीन काल से
अज़ीमुल्लाह खान, नाना साहब के बचपन के साथी, उनके सचिव और बाद में दीवान बने बाद में जब नाना साहब
[नए साल में हम शुरू कर रहे हैं एक नई सीरीज़ जिसमें याद करेंगे उपनिवेशवाद के खिलाफ़ लड़ाई के उन
[द्वितीय विश्वयुद्ध में कांग्रेस ने नारा दिया था – अंग्रेजों भारत छोड़ो। पढिए उनकी जीवन की प्रेरक कथा।] द्वितीय विश्वयुद्ध
22 अगस्त 1948 को हैदराबाद में एक खौफनाक मंज़र पेश आया। शहर के इलाके लिंगमपल्ली के पास उर्दू अखबार इमरोज़
आजकल एक धारणा आम हो गई है, या सुनियोजित तरीके से कर दी गई है कि मुस्लिम समाज में समाज
इतिहास को लघु रूप में पढ़ कर अपने अतीत के सेनानियों के बारे में धारणा बनाने वालों के लिए एक