हार कर भी कभी नहीं हारे वाले कुवर सिंह के भाई अमर सिंह
1857 के विद्रोह में वीर कुंवर सिंह ने बिहार का नेतृत्व किया, इस इतिहास से अधिकांश लोग परचित है। उनके
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1857 के विद्रोह में वीर कुंवर सिंह ने बिहार का नेतृत्व किया, इस इतिहास से अधिकांश लोग परचित है। उनके
मंगूराम, जिन्होंने पंजाब में ऐड-धर्म आंदोलन की नींव रखी थी और गदर पार्टी से भी जुड़े हुए थे। उनको लोग
अय्यंकालि उन जाति-विरोधी योद्धाओं में से थे, जिन्होंने ब्राह्मणवादियों और उनकी सत्ता से समानता का हक़ हासिल करने के लिए
राय अहमद खाँ खरल का योगदान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में नकारा नहीं जा सकता है। कई मौखिक इतिहास और
विजयलक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। परंतु, उनकी अपनी एक अलग विशिष्ट पहचान
“गोदुताई” ठाणे-पालघर क्षेत्र में पुराने वर्ली लोगों के बीच एक प्रसिद्ध नाम है। यह एक उपनाम था, जो प्यार से
अबाला बोस , रेडियो साइंस के पितामह जगदीशचंद्र बोस की जीवन संगिनी थीं। उन्होंने देश की महिलाओं को सामाजिक कुरीतियों
भारत की अज़ादी की लड़ाई के दौरान कुछ लोग ऐसे भी रहे, जिन्होंने आज़ादी के साथ-साथ सामाजिक आंदोलनों को ज़रूरी
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में हर वर्ग और समुदाय ने अपना योगदान दिया। देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में सबने अपनी-अपनी
हिन्दुस्तान की आज़ादी के अज़ीम रहनुमा रईस उल अहरार मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने ‘इस्लाम ख़तरे में है’ के नारे के
अरुणा आसफ़ अली को अपनी स्मृति में कैद करने के कई तरीके हो सकते हैं, मसलन उन्हें उस भद्र महिला
आधी आबादी की दुनिया में कुछ महिलाओं ने अंधेरी दुनिया से बाहर निकलने के लिए पहले अपने अंदर की संभावनाओं
1857 में मेरठ में प्रज्वलित होने वाली स्वतंत्रता संघर्ष की चिन्गारी सम्पूर्ण उत्तर भारत में ज्वाला के समान धधक रही
सुचेता कृपलानी को अधिकांश लोग इस नाते ही जानते हैं कि उन्होंने एक लेक्चरर के तौर पर अपने करियर की
सुरेन्द्र साए भारत के अग्रणी स्वाधीनता संग्राम सेनानी थे। 1857 के विद्रोह के 30 वर्ष पूर्व ही उन्होने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध ‘उलगुलान’ (आन्दोलन)
अतिरेकी तारीफ़ की यह परंपरा दुर्भाग्य से सावरकर के जीवनीकारों ने भी जारी रखी है। उदाहरण के लिए संपथ 1906
हंसा मेहता को भारत के संविधान सभा सदस्य रही, जिन्होंने 14 अगस्त 1947 की अर्द्धरात्री को सत्ता के हस्तांतरण के
इंजीनियर मोहम्मद अली खान की स्मृति अतीत के गर्भ में खो गई है, परन्तु उनका बलिदान नि: संदेह अभूतपूर्व था।कभी
हिन्दी में एक कहावत है “लड़े सिपाही नाम हवलदार का” अथार्त मेहनत कोई एक व्यक्ति करता है और उसका श्रेय
भगतसिंह और आज़ाद के साथी, एक ऐसे क्रान्तिकारी जिनके बारे में देश के आम लोग अब भी बहुत कम जानते
मौलाना फ़जले हक़ ख़ैराबादी अपने ज़माने के एक बड़े रईस थे और बड़े आलिम थे। अरबी के शायर थे और
भारत में अधिकांशत: ऐसे ही आज़ादी के मतवाले सफल रहे हैं, जिन्होंने हिन्दू और मुसलमानों के नेतृत्व में भेद-भाव की
1857 में क्रांति की ज्वाला ने समूचे भारतवर्ष को झकझोर दिया था। उस समय ख़ान बहादुर ख़ां रुहेलखंड क्षेत्र के
औपनिवेशिक हिन्दस्तान में शायद ही कोई ऐसा दिल रहा होगा जिसको ग़ुलामी का अँधेरा रास आता होगा। वैसे तो प्रत्येक
मालागढ़ के नवाब वलीदादख़ान क्रांति के उग्रतम नेताओं में से एक थे। वह दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफ़र के सम्बन्धी
वर्तमान हरिणाया के समस्त क्षेत्र को 1857 की क्रांति की लहर ने झकझोर दिया था। 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी
रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने क्रांतिकारी दल के समक्ष आर्थिक संकट के समस्या के निपटने के लिए अपने साथियों के साथ
बिरसा विद्रोह दरअसल मुण्डा विद्रोह था। इस विद्रोह का आर्थिक उद्देश्य उन ज़मींदारों को, जिन्होंने मुण्डों की जमीन हथिया ली
त्रिपुरा के शमशेर ग़ाज़ी का विद्रोह किसानों का संगठित विद्रोह था जिसका चरित्र सन्यासी विद्रोह से बिल्कुल अलग था। किसानों
डंका शाह । नक्कार शाह । मौलवी अहमदउल्ला । कितने तो नाम थे,जिसे जैसे दिखे,उसने उन्हें वैसे पुकारा, एक सूफ़ी
भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन एक ऐसा जन आन्दोलन था जो जैसे-जैसे बढ़ता गया वैसे-वैसे उसकी शक्ति बढ़ती गई थी। यह
हिन्दुस्तान के पहले स्वतंत्रता संग्राम में न जाने कितने ही आज़ादी के मतवाले सूरमा हुए जिनकी बलिदानों से आज़ादी की
औपनिवेशिक दौर में देश का पढ़ा लिखा व्यक्ति हो या अनपढ़, गरीब हो या धनवान, शहर का रहने वाला
विद्यागौरी नीलकंठ न तो पितृसत्ता के ख़िलाफ़ विद्रोही थी न ही एक उत्साही नारीवादी, जैसा आज हम इस शब्द से
अंग्रेज़ी शासन का इतिहास भारत की लूट का इतिहास भी है। इंग्लैड में चलने वाली फैक्ट्रियों का उत्पादन बढ़ाने के