जन्मदिन विशेष : कमला देवी चट्टोपाध्याय
भारतीय कला में नवजागरण मुहिम छेड़ने वाली : कमला देवी चट्टोपाध्याय
कल 3 अप्रैल को कमला देवी चट्टोपाध्याय का जन्मदिन था।भारतीय कला को विश्व मंच उपलब्ध करवाने में, उन्होंने कला के क्षेत्र में नवजागरण के तरह का महीम छेड़ दिया था। वह एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी और समाजसुधारक भी थी। चाहे असहयोग आंदोलन हो या नमक सत्याग्रह अग्रीम पंक्ति में खड़ी रहती।
भारतीय समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय हस्तकला के क्षेत्र में नवजागरण लाने वाली गांधीवादी महिला के रूप में कमला देवी चट्टोपाध्याय का नाम दर्ज है। वह कमलादेवी चट्टोपाध्याय ही थी जिन्होंने नेशनल स्कूल आंफ ड्रामा, संगीत नाटक एकेडमी, सेट्रल कांटेज इंशस्ट्रीज इम्पोरियम और क्राफ्ट काउंसिल आंफ इंडिया का सपना देखा और नींव रखने के लिए आज़ादी के बाद पंडित नेहरू के साथ लगी रही। अंग्रजों ने बाम्बे प्रेसीडेंसी में नमक-कानून तोड़ने के अपराध में पांच वर्ष तक जेल में कैद रखा।[i]
बाल-विधवा, पुनर्विवाह फिर तलाक में उलझा जीवन
मंगलौर के रूढ़िवादी सारस्वत ब्राह्मण परिवार में 3 अप्रैल 1903 को जन्मी, कमला देवी। सात साल के उम्र में पिता का साया उठ गया। कमला देवी अपने पिता के दूसरे विवाह से चौथी संतान थी। पिता के मौत के बाद संपत्ति कानून के अंतर्गत, उनकी समूची संपत्ति पहली पत्नी से जन्में बेटे को मिल गया। कमला देवी की मां ने ही चारों संतानों को बड़ा किया और स्वाभिमान से जीवन जीने का पाठ पढ़ाया।
मात्र 12 वर्ष के उम्र में ही बाल-विधवा हो गई। अल्पायु में ही उन्होंने सामाजिक विषमताओं का दमन चक्र देख लिया था। रूढ़िवादी समजिक प्रथाओं ने उनके मन में अलगाव उत्पन्न कर दिया था।
वैधव्य के गम में भी कमला देवी ने दैवी-अभिशाप मानने से इंकार कर दिया और मन में निश्चय कर आगे अध्ययन करने के लिए मद्रास चली गई।
पढ़ाई के दौरान ही उनकी दोस्ती सरोजनी नायडू के छोटी बहन सुहासनी चट्टोपाध्याय से हुई। सुहासनी के जरिये हरींद्रनाथ चट्टोपाध्याय से मिली। जल्द ही हरींद्रनाथ के साथ दोस्ती प्रेम में बदला और विवाह करना तय किया। किसी बाल-विधवा द्वारा स्वयं विवाह और वह भी एक अन्य जाति के पुरुष के साथ। यह उस समय समाज के लिए एक गहरा धका था। कमला जी के क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत यहीं से शुरु हुई।[i]
विवाह करने के उपरांत पति-पत्नी दोनों साथ-साथ विदेश चले गए। हरींद्रनाथ चट्टोपाध्याय स्वयं एक अच्छे कवि, लेखक, कलाकार और राजनीतिज्ञ थे। पति-पत्नी दोनों का मन विद्रोह की अग्नि से भड़क रहा था और दोनों देश-सेवा के लिए अवसर के तलाश में थे। कमला देवी ने लंदन में ड्रामा और एक्टिंग का कोर्स किया। उनका दूसरा विवाह 12 वर्ष के बाद तलाक के अंत तक पहुंचा।
असहयोग आंदोलन ने जीवन का रुख बदल दिया
कमला देवी का पारिवारिक जीवन जब उथल-पुथल से गुजर रहा था। भारत में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी थी। कमला देवी ने अपना ध्यान राष्ट्र सेवा और अपने कैरियर पर एक साथ लगाया, साथ ही साथ बच्चे के पालन-पोषण भी करती रही।
स्वाधीनता आंदोलन के दौरान स्वयंसेवकों को भिड़-नियंत्रण, आत्म-रक्षा, प्राथमिक उपचार और शिविर-जीवन की कला का प्रशिक्षण देने वाले सेवा दल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1938 में कमला देवी गांधीजी के साथ सक्रिय रूप से नमक आंदोलन में हिस्सा लिया।
नमक आंदोलन के दौरान बम्बई स्टांक एक्सचेंज में प्रतिबंधित नमक के साथ इस इरादे के साथ घुस गई कि वहां यहां नकम बेचेंगी। देश के स्वतंत्रता के नाम पर पुड़ियां बेची गई और एक घंटे में लगभग चालीस हजार रुपए इकत्रित कर लिए गए। अंग्रेजों की पुलिस ने इस दल की नेत्री कमला देवी को बंदी बना लिया और मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया। कमला देवी ने अदालत में मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में भी नमक की पुड़िया बेचना प्रारंभ कर दिया।
फिर जब उसने प्रश्न किया तो उत्तर के बदले कड़कड़ाता हुआ प्रति प्रश्न गूंजा, ”आप मजिस्ट्रेट साहब ! क्यों इस पाप कर्म में डूबे हैं? क्यों नहीं इस नौकरी से त्यागपत्र देकर जन-आंदोलन में साथ देते?“ कमला देवी को जेल की सजा सुनाई गई।[ii]
महिला स्वयं सेवक दल की कमांडर
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महिला स्वयं सेवक दल की कमांडर थी। 1926 में कमला देवी आल इंडिया वुमेस कांफ्रेस(AIWC) की संस्थापिका मार्गेट ई कौंसिन्स से हुई जिन्होंने इन्हें मद्रास प्राविंशियल लेजिस्लेटिव असेंबली में स्थान दिया। इस तरह वह भारत की पहली महिला बनीं जिन्हें सदन में लेजिस्लेटिव सीट (संवैधानिक सीट) मिली। 1926 में जब मद्रास प्रांतीय विधान परिषद के लिए चुनावों से ठीक पहले महिलाओं को चुनाव लड़ने की इजाजत मिली। कमला देवी भारत की पहली महिला बनी, जिन्होंने राजनीतिक व्यवस्था में चुनाव लड़ा।[iii]
बर्लिन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में कमला देवी भारतीय महिला प्रतिनिधि दल की नेत्री की हैसियत से सम्मिलित हुई थीं।उस सम्मेलन में हर देश का अपना राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहा था। भारत पराधीन था, अंग्रेजों की गुलामी में था, इसलिए ब्रिटिश वालों का यूनियन जैक चुना गया था। कमला देवी को यह सहन नहीं हुआ। उन्होंने कहा- जब तक भारत का अपना तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज लगाने की अनुमति नहीं मिलती,भारतीय प्रतिनिधि मंडल इस सम्मेलन का बहिष्कार करेगा। अगले दिन सम्मेलन की अध्यक्षा ने भारतीय प्रतिनिधि मंडल को अपने झंडा स्वयं लाने के शर्त पर तिरंगा लगाने की अनुमति दे दी।[iv]
कमला देवी पहली कन्नड़ मूक फिल्म मृच्छकटिका(1931) में अभिनय कर चुकी कमला देवी ने मोहम भवनानी के निर्देशन में नायिका की भूमिका निभाई। 1943 में वह हिंदी फिल्म तानसेन में कुन्दन लाल सहगल तथा खुर्शीद के साथ आई। उसके बाद 1943 में ही शंकर पार्वती तथा 1946 में धन्ना भगत में उनका अभिनय सामने आया।[v] इसलिए उनको गांधीजी के नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान, जब बंबई प्रेसीडेंसी में गिरफ्तार किया गया था तब वह ”सर्वोच्च रोमांटिक नायिका“ कहा गया।[vi]
आजाद भारत में कला-संस्कृति को पहचान दिलाने नायिका
आजादी के बाद शरणार्थियों को बसाने की मुहिम हो या औरत की हक की बात हो हर फ्रंट पर कमला देवी एक पुरजोर और बुलंद आवाज़ थी।
स्वतंत्र भारत में कमला देवी ने शिल्पकारों के आर्थिक-संघर्ष को मजबूत आधार देने में हमेशा दिलचस्पी लेती रही। राजनीतिक महत्वकांक्षा और पद के आकर्षण से स्वयं को दूर रखा। 17 वर्षों तक अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड तथा कुछ वर्षों तक विश्व शिल्प परिषद की उपाध्यक्षा रही, जिसका कार्यालय न्यूयॉर्क में था।
एक उपेक्षित पक्ष की हिमायत करने की दूरदृष्टि और इच्छाशक्ति उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। अपने हाथों से काम करने वाले शिल्पकारों के पूरे के पूरे समुदायों को उनकी दूरदृष्टि तथा प्रेरणा के बल पर मान्याता और आजीविका प्राप्त हुई। आज वे निर्यात के माध्यम से विदेशी मुद्रा के रूप में देश के लिए करोड़ों डालर कमाते हैं।
सम्मान और पुरस्कार
सही अर्थ में भारतीय डिजाइन आंदोलन की नींव डालने का कार्य , भारत की कमला देवी की एक अनूठी देने है। उन्हें पद्म-भूषण(1955), पद्मविभूषण(1987), प्रतिष्ठित मैग्सेसे पुरस्कार(1966), साहित्य-नाटक पुरस्कार(1974), 1970 में इंदिरा गांधी द्वारा प्रदत्त विश्व भारती ने देशिकोत्तमा का सम्मान दिया। यह अफसोस जनक बात है कि आज की जनरेशन को उनके बारे में या फिर ऐसी रोल मंडल के बारे में कोई जानकारी नहीं है। जिनसे कितना कुछ सीखा जा सकता है।
पूर्व राष्ट्रपति आर.वी.वेंकटरमन ने कमला देवी को श्रद्धांजली देते हुए कहा था- वे हमारे हथकरघा का संगीत तथा कुम्हार के चक्र का गुंजन थी। वे हमारी संस्कृति की महक ।
संदर्भ-स्त्रोत
[i] डा. लालबहादुर सिंह चौहान, भारत की गरिमामयी नारियां ,आत्माराम एंड संस, दिल्ली, पेज न० -83
[ii] डा. लालबहादुर सिंह चौहान, भारत की गरिमामयी नारियां ,आत्माराम एंड संस, दिल्ली, पेज न० -84
[iii] संतोष महेंद्रजीत सिंह, कमला देवी चट्टोपाध्याय, भारतीय पुनर्जागरण में अग्रणी महिलाएं, सं, सुशीला नैयर, कमला मनकेकर, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, पेज न०-328-29
[iv] अशोक गुप्ता, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता भारतीय,नया साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली, 2009, पेज न०- 36
[v] अशोक गुप्ता, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता भारतीय,नया साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली, 2009, पेज न०- 33
[vi] संतोष महेंद्रजीत सिंह, कमला देवी चट्टोपाध्याय, भारतीय पुनर्जागरण में अग्रणी महिलाएं, सं, सुशीला नैयर, कमला मनकेकर, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, पेज न०-328-29
जे एन यू से मीडिया एंड जेंडर पर पीएचडी। दो बार लाडली मीडिया अवार्ड। स्वतंत्र लेखन।
संपादक- द क्रेडिबल हिस्ट्री