विधवा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाली लेडी अबाला बोस
अबाला बोस , रेडियो साइंस के पितामह जगदीशचंद्र बोस की जीवन संगिनी थीं। उन्होंने देश की महिलाओं को सामाजिक कुरीतियों से मुक्त कर, एक सम्मानित जीवन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ईश्वरचंद विधासागर और राजा राममोहन राय जैसे समाज सुधारक सामाजिक चेतना जागृत करने का काम कर रहे थे, जिससे महिलाओं के प्रति नज़रिये में व्यापक बदलाव समाज में देखने को मिल रहा था उस नये प्रबोधन काल के वातावरण में जो युवक-युवतियां सामाजिक कुरतियों के विरुद्ध मुखर थे, उसमें लेडी आबला बोस का नाम प्रमुख है।
बेशक प्रख्यात समाज सुधारकों द्वारा सामाजिक सुधारों की दिशा में कुछ गंभीर प्रयास किये गए थे जिनके फलस्वरूप कानूनी मोर्चे पर कुछ परिवर्तन हुए थे।
भारतीय राजनीति में जिस दौर में महिलाओं के सामाजिक स्थिति या पिछड़ेपन के कारण के रूप में उनका अशिक्षित होना एक प्रधान कारण माना जा रहा था, जिसके अभाव में अधिकांश महिलाएं निराश्रित तथा आर्थिक दृष्टि से विपन्न, विधवा अथवा अनाथ महिलाओं के दयनीय दुर्दशा से जुझने के लिए संगठित मंचो का अभाव था।
कौन थी लेडीअबाला बोस
सर जगद्रीशचंद्र बोस की धर्मपत्नी लेडी अबाला बोस 8 अगस्त 1865 को हुआ और जीवन के अंतिम वर्ष 1951 तक उनका जीवन विशिष्ट रहा। भारतीय आधुनिक वैज्ञानिक चिंतन पर भारतीय गर्व के प्रतीक सर जंगद्रीशचंद्र बोस को अपने जीवन-कर्म की पूर्ति के लिए जिस तरह की पत्नी की आवश्यकता थी, अबाला बोस वैसी ही महिला थी, समाज के निर्बल वर्गों के प्रति मानवतावादी प्रतिबद्धता के बावजूद उन्होंने अपने वयस्त वैज्ञानिक पति की हर प्रकार से सार-संभाल रखी।
अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, अबाला ने बेथ्यून कॉलेज में दाखिला ले लिया। इसके बाद वह मेडिसीन की पढ़ाई के लिए मद्रास विश्वविद्यालय चली गईं।
यहाँ वह अपनी अंतिम परीक्षा में शामिल हुईं, लेकिन सेहत बिगड़ने के कारण नतीजे घोषित होने के पहले उन्हें घर लौटना पड़ा। इस कारण परीक्षा पास करने के बाद भी उन्हें इसकी जानकारी नहीं हुई।
इसके बाद, 23 साल की उम्र में, उनकी शादी जगदीशचंद्र बोस से हुई, जिन्हें रेडियो साइंस के पितामह के रूप में जाना जाता है। साल 1916 में उन्हें नाइटहुड की उपाधि मिली और इसके बाद उन्हें लेडी अबाला बोस के नाम से जाना जाने लगा। उन्हें अपने पति के सफलता का प्रेरणास्त्रोत माना गया। लेकिन, भारतीय समाज में उनकी भूमिका इससे कहीं अधिक है।
नारी-मुक्ति के लिए समर्पित किया पूरा जीवन
लेडी अबाला बोस सच्चे अर्थ में एक सामाजिक कार्यकर्ता थी। वह समझ चुकी थी कि नारी-मुक्ति के बिना भारत जैसा विशाल देश एक स्वस्थ राष्ट्र निर्माण के लिए स्वस्थ बालकों के पापन-पोषण और उनको आने वाले कल का जिम्मेदार नागरिक नहीं बना सकती है।
अबाला बोस इस बात से परिचित थी कि एक सभ्य समाज या स्वस्थ राष्ट्र के निमार्ण के लिए जिस स्वस्थ भविष्य युवा पीढ़ी की आवश्यकता है उसके लिए महिलाओं को सामाजिक कुरतियों से दूर होना ही होगा। एक शिक्षित और जागरूक मां ही देश के भावी युवा पीढ़ी के मानस का निमार्ण कर सकती है इसलिए महिला की सामाजिक कुरतियों से मुक्ति और शिक्षित होना सबसे अधिक जरूरी हैं।
महिलाओं के लिए शिक्षा, आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वतंत्रता उनके प्रमुख स्तंभ थे, जिसके लिए वह उम्र भर संकल्पबद्ध रही। बंगाल एजुकेशन कांफ्रेन्स में वह कहती है-
“विश्व की प्रगति की वर्तमान अवस्था में प्रारंभिक शिक्षा को किसी भी राष्ट्र के समक्ष अस्तित्व के लिए अनिवार्य माना जाने लगा है। भारत में विविध समाजॊं की परंपराओं और प्रथाओं द्दारा महिलाओं के लिए निर्धारित विशिष्ट कार्यक्षेत्र के भीतर प्रारंभिक शिक्षा का व्यवस्थित पाठ्यक्र्म अपने परिणामों के आधार पर अपार लाभदायक सिद्ध हुआ है।
बाल-विवाह की प्रथा ने प्रारंभिक शिक्षा के उपयोग में आने वाले वर्षों की अवधि पर सीमा लगा दी है। लड़कियों की शिक्षा की अवधि उनकी 12 वर्ष की आयु से पहले समाप्त हो जाती है और उसके एक या दो वर्ष के भीतर उनका विवाहित जीवन शुरू हो जाता है। महिलाओं के लिए आत्मनिर्भर और आर्थिक स्वतंत्रता का लक्ष्य पाने के लिए यह जरूरी है वह बाल विवाह के बेडियों से मुक्त हो और शिक्षित हो।”
नारी शिक्षा समीति की स्थापना की
बंगाल में निर्धन और निराश्रित महिलाओं को शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्रदान करने और उनको आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से अबाला बोस ने 1919 में जगद्रीश चंद बोस और देशबंधु चितरंजन दास के सहयोग से नारी शिक्षा समीति की स्थापना की, इस कार्य में उन्हें गुरूदेव टैगौर, भगिनी निवेदिता और विधासागर से पर्याप्त सहयोग मिला।
चितरंजन दास उस समय कलकत्त के महापौर थे। उन्होंने अबाला बोस के इस कार्य के लिए नगर निगम की ओर से उन्हें एक भूखंड प्रदान किया। अबला ने अपने पूरे जीवन में कुल 88 प्राथमिक विद्यालय और 14 वयस्क शिक्षा केंद्र स्थापित किए। इसमें मुरलीधर गर्ल्स कॉलेज और बेल्टोला गर्ल्स स्कूल भी शामिल हैं।
जनजातिय लड़कियों को मुख्यधारा में लाने के लिए उन्होंने झारग्राम के राजा वीरेंद्र मल्लदेव बहादुर की सहायता से एक केंद्र की स्थापना की। लेडी आबाला बोस ने नारी मुक्ति के अपने संकल्प को कार्यरूप में परिणत किया था यह कार्य उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से और निर्विरोध रहकर चुपचाप किया।
1920-21 के दशक में जब भारत में शिक्षित महिलाओं का एक वर्ग उभरकर सामने आया तो उनमें से अधिकांश भारतीय महिलाओं के सामाजिक दशाओं में सुधार के लिए रचनात्मक कार्यों में आगे आई। परंतु वो मुख्यत: बड़े शहरों में केंद्रित रही।
अबाला बोस ग्रामीण महिलाओं के सहयोग के लिए आगे आई नारी शिक्षा समिति केंद्रों को गांवो में खोलना शुरू किया। लड़कियों के लिए पहले तीन विद्यालय 1919 में पहले कलकत्ते में खोला पंरतु 1921 में उनकी गतिविधि नारी शिक्षा समिति के माध्यम से गांव की ओर फैलती गई।
अबाला बोस ने यह आकलन किया किया था जो संयुक्त परिवार प्रणाली के भंग हो जाने के कारण उग्र होती जा रही थी। अत: उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि प्रारंभिक विद्यालयों के लिए शिक्षिकाओं की नियुक्ति बाल विधवाओं में से ही की जाए।
इस कार्य के उन्हें विद्यासागर वाणी भवन में प्रशिक्षण दिया गया। बाद के दिनों में नारी शिक्षा समिति के कामों को बाल-विवाह के रोकथाम, विस्थापित तथा आर्थिक दृष्टि से पीड़ीत बालिकाओं और महिलाओं को शिक्षण और पुनर्वास की ओर मोड़ दिया।
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महिलाओं को मताधिकार दिलाने में भूमिका
उन्होंने देश की महिलाओं को मताधिकार दिलाने में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। वह सरोजिनी नायडू, मार्गरेट कजिन्स, डोरोथी जिनराजदासा, रमाबाई रानडे के साथ उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं, जो 1917 में एडविन मोंटेग्यू से मिला था।
उस वक्त मोंटेग्यू, मोंटेंग्यु-चेम्सफोर्ड सुधारों पर बातचीत के सिलसिले में दौरे पर आए थे।इसके फलस्वरूप, महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक और नागरिक अधिकार प्राप्त हुए। बता दें कि 1921 में, बॉम्बे और मद्रास प्रांत महिलाओं को मताधिकार देने वाले पहले प्रांत बन गए और बंगाल ने 1925 में इसका पालन किया।
देश को आजादी मिलने के बाद, अबला द्वारा महिलाओं को शिक्षित, आत्मनिर्भर और आर्थिक स्वतंत्रता के प्रयासों को सरकार ने भी जरूरी माना और उनके विचार, सरकारी नीतियों का अभिन्न अंग बन गए।
आजादी के बाद आबाला बोस के महिलाओं को शिक्षित, आत्मनिर्भर और आर्थिक स्वतंत्रता के काम को सरकारों ने भी महिलाओं के विकास के लिए जरूरी माना और उनके कार्यक्रमों सरकारी नीतियों का हिस्सा बन गए।
अबाला बोस को अभावग्रस्त महिलाओं विशेषत: कम आयु की आर्थिक दृष्टि से विपन्न विधवाओं के कल्याण की योजनाओं के निर्माण एंव उनका पथ प्रशस्त करने के मामलों में अग्रणी माना जाता रहेगा और हमेशा उनको याद किया जाता रहेगा।
संदर्भ
“Women in Calcutta: the Years of Change“. In Chaudhuri, Sukanta (ed.). Calcutta: The Living City. Volume II: The Present and Future. Oxford University Press.(1990). .
जे एन यू से मीडिया एंड जेंडर पर पीएचडी। दो बार लाडली मीडिया अवार्ड। स्वतंत्र लेखन।
संपादक- द क्रेडिबल हिस्ट्री