जब गांधी जी ने साम्यवाद शब्द के अर्थ स्पष्ट करने की कोशिश की
[ यह भाषण गांधी ने 16 मार्च, 1931 को मुम्बई में मजदूरों की सभा में हिन्दी में दिया था। इस भाषण के सार को गांधी के निजी सचिव महादेव देसाई ने अपने डायरी में ‘कम्युनिस्टों से दो शब्द‘ नामक शीर्षक से जगह दिया है। इस सभा में नौजवान साम्यवादियों ने कुछ गड़बड़ी भी मचाई थी। यहाँ गांधी ने साम्यवाद शब्द के उत्तम अर्थ को स्पष्ट करने की कोशिश की है।]
जब मेरठ जेल में गांधी जी साम्यवादियों से मिले
मैं जानता था कि भारत में साम्यवादी हैं। परन्तु मुझे मेरठ जेल के सिवा बाहर उनसे मिलने का मौका नहीं मिला था और न उनके भाषण ही मैंने सुने थे। दो वर्ष पूर्व संयुक्त प्रान्त के अपने दौरे में मैंने मेरठ के बन्दियों से मिल सकने का खास प्रयत्न किया था और तब उनका कुछ परिचय प्राप्त किया था।
आज मैंने उनमें से एक का भाषण सुना। मैं उनसे कह सकता हूँ कि वह मजदूरों के लिए स्वराज्य प्राप्त करने का भले ही बड़ा दावा करते हों, परन्तु मुझे उनकी शक्ति में शंका है। जब इन नौजवान साम्यवादियों में से किसी का जन्म भी नहीं हुआ था, उससे भी बहुत पहले मैंने मजदूरों के काम को अपना लिया था। मैंने दक्षिण अफ्रीका में अपने समय का सर्वोत्तम हिस्सा उनके लिए काम करने में लगाया था। मैं उनके साथ रहता था और उनके सुख-दुःख में भाग लेता था। इसलिए आपको समझ लेना चाहिए कि मैं श्रमिकों की ओर से बोलने का दावा क्यों करता हूँ। मैं और कुछ नहीं तो कम-से-कम थोड़ा शिष्टतापूर्ण व्यवहार पाने की तो आपसे उम्मीद करता ही हूँ। मैं आपको निमंत्रण देता हूँ कि आप मेरे पास आइए और मुझसे जितने साफ दिल से चर्चा कर सकें, कीजिए।
आप साम्यवादी होने का दावा करते। परन्तु, साम्यवादी जीवन व्यतीत करते दिखाई नहीं देते। आपको बता दूँ कि मैं साम्यवाद शब्द के उत्तम अर्थ में उसके आदर्श के अनुसार जीने का भरसक प्रयत्न कर रहा हूँ। और मैं सोचता हूँ कि साम्यवाद शिष्टतापूर्ण व्यवहार को तिलांजलि नहीं देता । मैं आज आप लोगों के बीच खड़ा हूँ और कुछ क्षणों के उपरान्त आपसे बिछुड़ जाऊँगा। यदि आप देश को अपने साथ ले चलना चाहते हैं तो आपमें देश को समझाकर उस पर असर डालने की योग्यता होनी चाहिए।
आप दबाव से ऐसा नहीं कर सकते। आप देश को अपने विचारों का अनुगामी बनाने के लिए हिंसा का पथ ग्रहण कर सकते हैं। परन्तु, आप कितने लोगों को मारेंगे? करोड़ों का विनाश तो नहीं कर सकते। अगर आपके साथ लाखों लोग हों तो आप कुछ हजार लोगों को मार सकते हैं। परन्तु,आज तो आप मुट्ठी-भर से अधिक नहीं हैं। मैं आपसे कहता हूँ कि आप कांग्रेस का मत बदल सकते हों तो बदलकर उसे अपने में ले लीजिए। लेकिन आप शिष्टता के प्राथमिक नियमों को तिलांजलि देकर तो ऐसा नहीं कर सकते और जब अपने विचारों का पूरी तरह प्रकट करने का आपको अधिकार है और भारतवर्ष में इतनी सहिष्णुता है कि कोई भी अपनी बात तर्कपूर्ण ढंग से कहे तो वह धीरज से सुन लेगा तो फिर कोई कारण नहीं कि आप साधारण शिष्टता छोड़ दें।
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अस्थायी सन्धि से मजदूरों का कोई नुकसान नहीं हुआ है
अस्थायी सन्धि से मजदूरों का कोई नुकसान नहीं हुआ है। मेरा दावा है कि मेरे किसी भी प्रवृत्ति से मजदूरों को कभी हानि नहीं हुई, कभी हो ही नहीं सकती। यदि कांग्रेस परिषद में अपने प्रतिनिधि भेजेगी तो वह किसानों और मजदूरों के स्वराज्य के सिवा और किसी स्वराज्य के लिए अपना जोर नहीं लगाएँगे। साम्यवादी दल के अस्तित्व में आने से बहुत पहले ही कांग्रेस निश्चय कर चुकी थी कि जो स्वराज्य श्रमिकों और कृषकों के लिए न हो, उसका कोई अर्थ नहीं होगा।
शायद यहाँ के मजदूरों में से किसी को भी 20 रुपये मासिक से कम मजदूरी नहीं मिलती। परन्तु मैं न सिर्फ आपके लिए बल्कि उन घोर परिश्रम करनेवाले और बेकार लाखों लोगों के लिए भी स्वराज्य प्राप्ति की कोशिश कर रहा हूँ, जिनको एक जून भी पूरा खाने को नहीं मिलता और जिन्हें बासी रोटी के टुकड़े और चुटकी भर नमक से काम चला लेना पड़ता है परन्तु मैं आपको धोखा नहीं देना चाहता। मुझे आपको अवश्य यह चेतावनी दे देनी चाहिए कि मैं पूँजीपतियों का बुरा नहीं चाहता। मैं उन्हें हानि पहुँचाने का विचार नहीं कर सकता।
परन्तु मैं कष्ट सहन करके उनकी कर्तव्य- भावना को जगाना चाहता हूँ। मैं उनके दिल पिघलाकर अपने कम भाग्यशाली भाइयों के प्रति उनसे न्याय कराना चाहता हूँ। वह मनुष्य हैं और उनसे की गई मेरी अपील व्यर्थ नहीं जाएगी। जापान के इतिहास में त्यागी पूँजीपतियों के बहुत से उदाहरण मिलते हैं। पिछले सत्याग्रह के दिनों में पूँजीपतियों ने खासी संख्या में बड़ा त्याग किया। वह जेलों में गए और उन्होंने बड़े कष्ट उठाए। क्या आप उन्हें अपने से अलग करना चाहते हैं? क्या आप नहीं चाहते कि समान उद्देश्य के लिए वे आपके साथ काम करें?
आपने मुझसे मेरठ के कैदियों के बारे में पूछा है। मैं आपको यह बता देना चाहता हूँ कि यदि मुझमें ताकत होती तो मैं हर अपराधी को देश की जेलों से रिह कर देता। लेकिन न्यायानुसार उनकी रिहाई को मैं समझौते से पहले की एक शर्त्त नहीं बना सकता था। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मैं उन्हें रिहा करवाने की हाथ बटाएँ तो शायद हम उन सबको और गढ़वालियों को भी रिहा करवा सकें। भरसक कोशिश कर रहा हूँ और यदि आप सिर्फ वातावरण शान्त बनाकर मेरा आप चाहते हैं।
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कांग्रेस ने अपनी न्यूनतम माँग के रूप में किसान-मजदूर के बारे में बात की
हाँ, आप स्वराज्य की बात करते हैं। क्या मैं भी उसे उतना ही नहीं पाना चाहता जितना स्वराज्य चाहता है, उसकी छाया नहीं। फिलहाल मैं चाहता हूँ कि आप थोड़ा धैर्य रखें और देखें कि वक्त आने पर कांग्रेस अपनी न्यूनतम माँग के रूप में क्या चीज दुहराएँगे और यदि हमें गोलमेज परिषद में जाने का मौका मिला तो हम या तो जो सामने रखती है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि हम कराची में लाहौर प्रस्ताव चाहते हैं वही लेकर लौटेंग, या फिर कुछ भी लेकर नहीं लौटेंगे।
आपने मुझसे पूछा है कि ग्यारह मुद्दों के बारे में क्या परिस्थिति है? मेरी समझ से उन मुद्दों में राज्य का तत्त्व आ जाता है। उनके अन्तर्गत किसान और मजदूर ठीक तरह से सुरक्षित हैं। लेकिन मैं समझौते के समय उन्हें दुहरा नहीं सका, सिर्फ इसलिए कि वे सविनय अवज्ञा शुरू करने के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किए गए थे। हम अब सविनय अवज्ञा कर चुके हैं और यदि हमें निमंत्रित किया जाता है तो गोलमेज परिषद में हमें अपनी राष्ट्रीय माँग पर जोर देने के लिए जाना है। यदि हमें वहाँ सफलता मिलती है तो सभी ग्यारह मुद्दे मिल जाते हैं। आपको यह निश्चित समझना चाहिए कि जो स्वराज्य उन ग्यारह मुद्दों को पूरा नहीं कर सकता वह मुझे स्वीकार्य नहीं हो सकता।
ईश्वर ने आपको बुद्धि और प्रतिभा प्रदान की है; उसका सदुपयोग कीजिए। मेरी आपसे विनती है कि अपनी बुद्धि पर ताला न लगाइए। भगवान आपकी सहायता करे।
लाहौर प्रस्ताव : सन् 1929 के दिसम्बर में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत की उपनिवेश का पद ‘डोमिनियन स्टेटस‘ नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा। 26 जनवरी, 1930 तक जब अंग्रेज सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आन्दोलन आरम्भ किया। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
संदर्भ
अच्युतानन्द मिश्र, महात्मा गांधी, विचार का आईना, लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज, 2023
साम्यवाद : सामाजिक-राजनीतिक दर्शन के अन्तर्गत एक ऐसी विचारधारा के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना की अपेक्षा होती है। इसमें निजी सम्पत्ति का पूर्णतया निषेध होता है।
ग्यारह मुद्दे : 30 जनवरी 1930 को गांधी ने लॉर्ड इरविन के समक्ष 11 मुद्दे-सुधारों को लागू करने के लिए रखा था। इसमें मद्य निषेध, नमक कर, मालगुजारी, असलहा रखने, उद्योग संरक्षण, खुफिया पुलिस हटाने आदि जैसे मुद्दे सम्मिलित थे।
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में