जब नागपुर झंडा सत्याग्रह का नेतृत्व किया था सरदार पटेल ने
1919 में रॉलेट एक्ट के विरोध में, पूरे देश में व्याप्त असंतोष का परिणाम यह हुआ कि भारत की जनता में राष्ट्रीय एकता की भावना का संचार हुआ। जो अंततः गांधी जी पर आकर केंद्रित हो गया। इसके साथ ही प्रत्येक प्रान्त के लोगों ने अपने-अपने प्रान्त के आधार पर जो गांधी जी के अत्यधिक सन्निकट थे, उन्हें वह उनकी लोकप्रियता, और क्षमताओं के आधार पर अपने प्रान्त के प्रधान पुरुष के रूप में चुन लिया और उन्हें गाँधी के सहयोगी के रूप में सर्वाधिक आदर प्रदान करने लगे।
इसी क्रम में गुजरातियों ने अपने प्रधान के रूप में बैरिस्टर वल्लभभाई पटेल जी को गुजरात के प्रतिनिधित्व हेतु चुना। उनकी नज़र में जो सारी जनता को संगठित रखने, कुशलतापूर्वक मार्गदर्शन करने और उनकी पीड़ा को समझकर उसके निवारण करने की क्षमताओं को अपने अंदर समेटे हुए हो सकता था, वह व्यक्ति उनकी नज़र में एकमात्र रूप में आया, वह बैरिस्टर वल्लभभाई पटेल जी थे।
ऐसा प्रायः देखा गया था, कि गाँधी जी किसी कार्य का स्वयं कभी आरम्भ नहीं करते थे। ऐसा ही वल्लभ भाई जी के साथ भी था। वह भी किसी कार्य को ख़ुद होकर शुरू नहीं करते थे। जब कोई कार्य, कर्तव्य के रूप में उनके हाथ आता था, तो वह उसे हाथ में ले लेते थे। फिर उस कार्य को बिना उसके अंतिम मुक़ाम तक पहुँचाये दम नहीं लेते थे। अतः कहा जा सकता है कि, “वह सदा ‘निरारंभी’ रहे।”
जब वल्लभ भाई पटेल ने अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार किया
गाँधी जी ने अपने असहयोग कार्यक्रम के तहत, अंग्रेजी शिक्षा वाले विद्यालयों और कॉलेजों के बहिष्कार करने की बात जनता के सम्मुख रखी। इसमें वल्लभ भाई जी ने भी बढ़कर कर प्रतिभाग किया। इतना ही नहीं अपितु अपने दोनों बच्चों को बम्बई अंग्रेजी स्कूल से हटाकर स्वयं के द्वारा स्थापित “गुजरात विद्यापीठ” में प्रवेश करवाया।
जरा सोचिए जब वल्लभभाई पटेल जी, जो कि स्वयं एक बैरिस्टर, और अंग्रेजी भाषा के शौकीन, सुशिक्षित और दिखने में दो सौ प्रतिशत अंग्रेज, सिंह की तरह अदालत में गरजने वाले बैरिस्टर, स्वयं हिंदी को अपनाकर और अपने बच्चों को पहले अंग्रेजी स्कूल से हटाकर, फ़िर जनता से अपील की होगी तो उनके कहने का क्या असर हुआ होगा?
अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार करने की वल्लभ भाई जी की इस हिमाक़त से नव युवकों के बीच खलबली मच गई। गुजरात कॉलेज के विद्यार्थियों की एक सभा में उनसे पूँछा गया सवाल कि, “यदि हम लोग कॉलेज की शिक्षा को छोड़कर, यदि गुजरात विद्यापीठ में आयें तो हमें वहाँ कैसी शिक्षा मिलेगी? “का जवाब देते हुए वल्लभभाई जी ने कहा था कि, “गुजरात विद्यापीठ, यदि आपसे यह भी कहे कि आप लोग जो भी कॉलेज में पढ़े हो, वह भूल जाओ, तो भी वह काफ़ी होगा । “इस प्रकार से वल्लभ भाई जी ने अपनी मातृभाषा के सम्बन्ध में शिक्षा प्राप्त करने की बात सिखलाई। जो आज भी शिक्षा के क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन कर रही है। जिसकी मूल प्रेरणा के स्रोत गाँधी जी ही रहे थे। वल्लभ भाई पटेल जी जब अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार कर रहे थे।
जब सत्याग्रह की जिम्मेदारी वल्लभ भाई पटेल को मिली
उसी समय सन् 1923 में एक धर्म-कर्तव्य अचानक उनके सिर पर आ गया । नागपुर के कुछ नागरिकों को राष्ट्र ध्वज के साथ वहाँ के सिविल लाइंस के विभाग में जाने से स्थानीय पुलिस ने रोक दिया। मध्य प्रान्त की सरकार पुलिस के इस कदम को सही ठहराया। ऐसे में जनता को उसके ध्वज के साथ अपनी जन्मभूमि में घूमने-फिरने से रोकना समग्र भारतीय जनता का अपमान था। श्री जमनालाल बजाज इसे सहन नहीं कर पाए। गांधी जी उस समय जेल में थे।
अतः उन्होंने अपने कर्तव्य पर विचार करते हुए वे राष्ट्र ध्वज के साथ सिविल लाइंस में गए। इस प्रकार उन्होंने सरकार की आज्ञा का उल्लंघन किया। सरकार ने अन्य लोगों के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अब इसकी लड़ाई को लड़ने के लिए सत्याग्रह की आवश्यकता थी। अतः कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति ने निर्णय लिया और सत्याग्रह की जिम्मेदारी वल्लभ भाई पटेल जी को प्रदान कर दी।
वल्लभ भाई पटेल जी ने नागपुर में अपना पड़ाव डाल दिया। वहाँ की परिस्थितियों को पूरी तरह समझ कर, कुशलतापूर्वक कार्ययोजना तैयार की। पहले उन्होंने विभिन्न प्रान्तों की कांग्रेस समितियों को परिपत्र भेज कर उनसे स्वयंसेवक भेजने की अपील की। जब प्रान्तों से सत्याग्रही दल नागपुर आने लगे, तब पटेल ने 15 मई 1923 को सत्याग्रह की शुरुआत कर दी।
जेल जाने को तैयार हो जाओ- महात्मा गांधी
नागपुर के इस आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में अन्य प्रांतों से आने वाले सत्याग्रही थे। रोजाना कम से कम पचास सत्याग्रही गिरफ्तार होने के लिए हाज़िर हो जाते थे। जो हर श्रेणी व वर्ग से होते थे।
अगली नीति के आधार पर वल्लभ भाई जी ने पढ़े लिखे, अनपढ़, उच्च न्यायालय के वकील, उच्च क्लीन जन, व्यापारी, विद्यार्थी और यहाँ तक की महिलाओं को भी इस आंदोलन में उतारने की तैयारी कर रखी थी तभी उन्होंने कस्तूरबा गाँधी जी की पत्नी) को भी पत्र द्वारा सूचित किया था कि, “जेल जाने को तैयार हो जाओ।””
आंदोलन बिना रुके अनवरत चल रहा था। हर रोज के स्वयंसेवकों के समर्पण का नतीजा यह हुआ कि, नागपुर की जेल अपनी सीमा से अधिक सत्याग्रहियों को भर लेने से उफान पर थी। यहाँ तक की रेलगाड़ियों से नागपुर आने के टिकट जारी होने बंद हो गए थे। फ़िर भी स्वयं सेवकों को नागपुर आने से नहीं रोका जा पा रहा था।
इस प्रकार से बने दबाव के कारण राज्यपाल के गृह सदस्य मोरोपंत जोशी, प्रांतीय विधानसभा में यह ऐलान करने को विवश हो गए कि “प्रशासन से नियमानुसार पूर्व अनुमति लेने के बाद झंडे को जुलूसों के दौरान बाहर ले जाने पर कोई आपत्ति नहीं होगी।” उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि यदि ब्रिटिश बोलशेवीय दल, लाल झंडे को ब्रिटेन की सड़कों पर, यहाँ तक की ब्रिटिश संसद के बाहर भी फहराते हुए नारे लगा सकता है, तो सरकार को भारतीय झंडे के बाहर ले जाने पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इसलिए गृह सदस्य ने इस बात की शुरुआत गांधी जी और पटेल जी के साथ एक वार्ता सम्मेलन के आयोजन से की थी।
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और नागपुर सत्याग्रह सफल हुआ
निषेधाज्ञा आदेश सत्रह (17) अगस्त को समाप्त हो रहा था। वल्लभ भाई पटेल जी ने गांधीजी भावना में यह बयान दिया कि, “मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि, नागपुर सत्याग्रह की शुरुआत हमारे प्रारम्भिक अधिकारों की सुरक्षा करना और कानून के दुरुपयोग द्वारा उसमें किये जाने वाले नाजायज़ हस्तक्षेप के विरोध में भी है.. इस जुलूस के आयोजकों का लोक जीवन के किसी क्षेत्र को तंग करना नहीं है।” आगे वल्लभ भाई जी ने आश्वासन देते हुए कहा कि इन जुलूसों का आयोजन, ब्रिटिश झंडे का अपमान करने के लिए नहीं है। “राज्यपाल की आज्ञा से गृह सदस्य ने इस समझौते की लिखित रूप से पुष्टि कर दी। विजयी पटेल ने (18) अगस्त को सत्याग्रह समाप्ति की घोषणा कर दी।
यह बात लन्दन तक भी पहुँची क्षेत्रीय सरकार ने भारतीय सरकार पर समझौते के बिंदुओं की पूर्ति के लिए दबाव भी डाला। अन्तः लंदन सरकार ने एक तार के जरिए कैदियों को आजाद करने की रजामंदी भी दे दी। स्वयंसेवकों को 3 सितम्बर को रिहा कर दिया गया। फ़िर सैकड़ो लोगों के गुट ने अपनी इस विजय को मनाने के लिए सिविल लाइंस की सड़कों में भारतीय झण्डा फहराने के साथ, मार्च भी निकाला।
इस सफलता पर वल्लभ भाई पटेल जी ने एक घोषणा की, ‘राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान अब सुरक्षित है, हमें सड़कों पर अहिंसक रूप से शोभायात्राएं निकालने का हक़ प्राप्त हो गया है, मैं इसे सत्य-अहिंसा और तकलीफों की सफलता मानता हूँ, भगवान की कृपा से अब इस घड़ी और इन परिस्थितियों में नागपुर सत्याग्रह को सफलतापूर्वक समाप्त घोषित करता हूँ।”
इस प्रकार महात्मा गांधी की अनुपस्थिति उनके कमांडर वल्लभ भाई पटेल जी द्वारा चलाया गया एक और आंदोलन (नागपुर झंडा सत्याग्रह) आशातीत सफलता के साथ में समाप्त हुआ था।
संदर्भ
NARAYAN DESAI,Mere Gandhi,Publications Division Ministry of Information & Broadcasting
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में