मेरे लफ़्ज़ सितारों की तरह हैं, वे मिटते नहीं“- रेड इंडियन सरदार सीएटल
आज विश्व आदिवासी दिवस है। प्रस्तुत है इस अवसर पर रेड इंडियन सरदार सीएटल का ऐतिहासिक संदेश।
शायद हम और तुम कभी भाई बनेंगे
संयुक्त राज्य अमरीका के उत्तर-पश्चिम में वाशिंगटन प्रदेश कभी इंडियन आदिवासी दुबामिश कबीले का घर हुआ करता था। सन 1855 में राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन पियर्स ने उनके सामने प्रस्ताव रखा कि वे अपनी ज़मीन गोरों को बेचकर एक बंधे इलाक़े – रिज़र्वाट – में जाकर रहें। आदिवासियों को यह बात समझ में नहीं आई: कैसे कोई धरती की गरमाहट ख़रीद या बेच सकता है?
उनके सरदार सीएट्ल ने गोरों के बड़े सरदार पियर्स के नाम एक जवाबी संदेश भेजा – मेरे लफ़्ज़ सितारों की तरह हैं, वे मिटते नहीं“ – अपने संदेश में सीएट्ल सरदार ने कहा था। उनकी क़ौम आज मिट चुकी है, लेकिन ये लफ़्ज़ आज भी हमें झिंझोड़ने के क़ाबिल हैं।
वाशिंगटन का बड़ा सरदार ख़बर भेजता है, कि वह हमारी ज़मीन खरीदना चाहता है।
बड़ा सरदार दोस्ती और नेक इरादे की भी बात करता है। यह उसकी मेहरबानी है, क्योंकि हमें पता है कि उसे हमारी दोस्ती की ज़रूरत नहीं है। पर हम उसके प्रस्ताव पर सोचेंगे, क्योंकि हमें पता है – अगर हम न बेचें, तो शायद गोरा आदमी बंदूक लेकर आएगा, और हमारी ज़मीन छीन लेगा।कैसे कोई आसमान या धरती की गरमाहट ख़रीद या बेच सकता है? यह हमारी समझ से परे है।
अगर हम हवा की ताज़गी और पानी की झिलमिलाहट के मालिक नहीं हैं – कैसे तुम उन्हें हमसे खरीदोगे? हम ज़रूर अपना फ़ैसला लेंगे।
सीएट्ल सरदार जो कुछ कहता है, वाशिंगटन का बड़ा सरदार उस पर भरोसा रख सकता है, जैसा कि हमारे गोरे भाई को मौसमों के लौटते रहने पर भरोसा है।मेरे लफ़्ज़ सितारों की तरह हैं, वे मिटते नहीं। इस धरती का हर हिस्सा मेरी क़ौम के लिए पाक है, फ़र का हर चमकता पत्ता, बालू भरा हर तट, घने जंगल का हर कुहासा, हर किरन, हर कीट का गुंजन पाक है – जिसमें मेरी क़ौम के इल्म और तजुर्बे छिपे हुए हैं। पेड़ों में बहने वाले रस में लाल आदमी की यादगार छिपी हुई है।
सितारों के नीचे टहलने की ख़ातिर
गोरों के मुर्दे अपने जनम की धरती को भूल जाते हैं, जब वे बढ़ते जाते हैं – सितारों के नीचे टहलने की ख़ातिर।
हमारे मुर्दे इस लाजवाब धरती को भूलते नहीं, क्योंकि वह लाल आदमी की मां है।हम इस धरती के हिस्से हैं, और वह हमारा एक हिस्सा। महकते फूल, हिरन, घोड़े और उकाब हमारे भाई हैं। ख़ड़े चट्टान, रसभरी घास, जिस्म की गरमाहट और इंसानों की – सब, सब कुछ अपने हैं।
तो जब वाशिंगटन का बड़ा सरदार हमें ख़बर भेजता है कि वह हमारी ज़मीन ख़रीदना चाहता है, तो वह हमसे काफ़ी कुछ मांगता है।
बड़ा सरदार हमें बताता है कि वह हमें एक जगह देता है, जहां हम आराम से राज़ी-ख़ुशी जी सकते हैं।वह हमारा बाप और हम उसके बेटे हैं।पर क्या कभी ऐसा हो सकता है? भगवान को तुम्हारी क़ौम प्यारी है और वह अपने लाल बच्चों को भूल चुका है। गोरे आदमी के काम में मदद के लिए वह बड़ी-बड़ी मशीन भेजता है और उसके लिए बड़ा-बड़ा गांव बनाता है। वह रोज़-दर-रोज़ तुम्हारी क़ौम को मज़बूत बनाता है।जल्द ही तुम नदी की बाढ़ की तरह इस धरती को ढक लोगे, जो अचानक आई बरसात के बाद बांधों को तोड़ देती है।
मेरी क़ौम भाटे का पानी है – जो लौटकर नहीं आता। नहीं, हमारी और तुम्हारी ज़ात अलग-अलग है। हमारे और तुम्हारे बच्चे साथ-साथ नहीं खेलते, बुड्ढे अलग-अलग कहानी सुनाते हैं। भगवान की तुमसे बनी हुई है, और हम यतीम हैं।ज़मीन खरीदने के तुम्हारे प्रस्ताव पर हम गौर करेंगे।यह आसान नहीं होगा, क्योंकि यह धरती हमारे लिए पाक है।
इन जंगलों को देखकर हमें ख़ुशी होती है। पता नहीं, हमारा तरीक़ा तुम से अलग है।
नदियों और सोतों से बहने वाला चमकता हुआ पानी, सिर्फ़ पानी नहीं – हमारे पुरखों का ख़ून है। अगर हम तुम्हें ज़मीन बेचते हैं, तो याद रखना कि यह पाक है, और बच्चों को बताना कि यह पाक है, और कि झीलों के नीले पानी में तैरती हुई हर तस्वीर मेरी क़ौम की ज़िंदगी की दास्तान सुनाती है। पानी की कलकलाहट मेरे पुरखों की आवाज़ है। नदियां हमारी बहनें हैं – वे हमारी प्यास बुझाती हैं।नदी हमारी नावों को ढोती है और बच्चों को पोसती हैं।
अगर हम ज़मीन बेचते हैं, तो याद रखना और बच्चों को बताना – नदियां हमारी बहनें हैं और तुम्हारी – और अब से हर दूसरी बहन की तरह नदी का भी ख़याल रखना है। आगे बढ़ते गोरे आदमी के सामने लाल आदमी हमेशा पीछे हटता गया है – पहाड़ों पर चमकती सुबह की धूप के सामने कुहासे की तरह। पर हमारे पुरखों की राख पाक है, उनकी कब्रें हैं पाक धरती, और यह घाटी, ये पेड़, धरती का यह हिस्सा हमारे लिए पाक है।
हमें पता है कि गोरा आदमी हमारे तौर-तरीक़ों को नहीं समझता। धरती का हर हिस्सा उसके लिए बराबर है, क्योंकि वह एक ऐसा पराया है, जो रात को आता है और मनमाने तौर पर धरती को लूट लेता है। धरती उसकी मां नहीं दुश्मन है, और जब वह लूट चुका हो तो आगे बढ़ जाता है। अपने पुरखों की कब्रों को वह पीछे छोड़ जाता है – और परवाह नहीं करता।वह धरती को उसके लाल से छीन लेता है – और परवाह नहीं करता। भुला दी जाती है उसके पुरखों की कब्रें और उसके बच्चों के जनम की धरती। अपनी मां धरती, और अपने बाप आसमान के साथ वह खरीदने-बेचने और लूटने की चीज़ों की तरह – भेड़ों और चमकती मोतियों की तरह पेश आता है। उसकी भूख धरती को निगल जाएगी और बचा रहेगा सिर्फ़ रेगिस्तान।
शायद मैं एक जंगली हूं और कुछ नहीं समझता
पता नहीं – हमारा तौर-तरीक़ा तुम से अलग है। तुम्हारे शहरों की तस्वीर लाल आदमी की आंखों को तकलीफ़ देती है। शायद चूंकि लाल आदमी जंगली है और कुछ नहीं समझता।
गोरों के शहरों में कहीं चैन नहीं। कोई ऐसी जगह नहीं, जहां कोपलों के खिलने की आवाज़ या कीटों का गुंजन सुनाई दे।
पर शायद मैं एक जंगली हूं और कुछ नहीं समझता। शहरों का शोरगुल हमारे कानों को सिर्फ़ तकलीफ़ देता है। वह ज़िंदगी कैसी, अगर किसी अकेले पंछी की चीख या रात को मेढक का टर्राना ही न सुनाई दे? मैं एक लाल आदमी हूं और इसे नहीं समझता। लाल आदमी को झीलों को सहलाती हवा की कोमल गूंज पसंद है – और दोपहर की बरसात में धुली हुई या पत्तों के बीच से गुज़रती हुई हवा की महक। लाल आदमी के लिए हवा क़ीमती है – आख़िर सभी एक सांस को बांटते हैं। गोरा आदमी उस हवा की परवाह नहीं करता, जिसमें वह सांस लेता है। एक अरसे से मरे इंसान की तरह उसे बदबू की परवाह नहीं। पर अगर हम तुम्हें ज़मीन बेचते हैं, तो भूलो मत कि हवा हमारे लिए क़ीमती है – कि हवा हर उस जीव के साथ अपनी आत्मा बांटती है, जिन्हें वह जिलाए रखती है।हवा ने हमारे पुरखों को पहली सांस दी थी और आख़िरी सांस भी उसी ने ले ली थी।हमारे बच्चों को भी वह जीवन देगी।
अगर हम तुम्हें ज़मीन बेचते हैं, तो तुम्हें भी इसे पाक समझना पड़ेगा – एक ऐसी जगह, जहां गोरा आदमी भी महसूस करे कि घास के फूलों को सहलाती हवा सुगंध फैलाती है।
ज़मीन खरीदने की बात पर हम गौर करेंगे और अगर हम इसे मान लेने का फ़ैसला करते हैं, तो सिर्फ़ एक शर्त पर: गोरा आदमी इस धरती के जानवरों के साथ अपने भाई की तरह पेश आएगा।
मैं एक जंगली हूं और बस इतना ही समझता हूं।एक दौड़ती गाड़ी से गोली चलाकर गोरा आदमी पीछे छोड़ जाता है हज़ारों भैंसों की लाशें। मैं एक जंगली हूं और समझता नहीं कि धुआं फेंकते एक लोहे के घोड़े की अहमियत कैसे एक भैंस से ज़्यादा हो सकती है, जिसे हम सिर्फ़ ज़िंदा रहने के लिए मारते हैं? जानवरों के बिना इंसान कहां रह जाएगा? अगर सारे जानवर ग़ायब हो जाएं, तो क्या अपनी आत्मा के अकेलेपन में डूब कर इंसान मर नहीं जाएगा? जो कुछ जानवरों पर गुज़रता है – जल्द ही इंसानों पर भी आता है।सारी चीज़ें एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं।
जो कुछ धरती पर गुज़रता है, जल्द ही उसके बेटों पर भी आता है। तुम्हें अपने बच्चों को सिखाना पड़ेगा, कि उनके क़दमों के नीचे की धरती हमारे पुरखों की राख है। ताकि वे इस धरती से प्यार करें, उनको बताना कि इस धरती के नीचे हमारे पुरखों की आत्मा छिपी है। अपने बच्चों को सिखाना, जो हम अपने बच्चों को सिखाते हैं: धरती मां है। इंसान जब धरती पर थूकता है, वह खुद को गंदा करता है। हम इतना जानते हैं कि धरती इंसान की नहीं, इंसान धरती का है – इतना हम जानते हैं। सब एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं। जो कुछ धरती पर गुज़रता है, उसके बेटों पर भी आता है।ज़िंदगी का ताना-बाना इंसान ने नहीं बनाया है, वह तो महज़ उसका एक धागा है। जब तुम इस ताने-बाने को छेड़ते हो, तुम अपने-आप पर चोट करते हो।
नहीं, दिन और रात साथ-साथ नहीं रह सकते
हमारे मुर्दे धरती की मीठी नदियों में जीते रहते हैं, वसंत की हल्की आहट के साथ वे लौट-लौटकर आते हैं, झीलों को सहलाती हवा में उनकी आत्मा बसी हुई है।
ज़मीन खरीदने के गोरे आदमी के प्रस्ताव पर हम गौर करेंगे।पर मेरी क़ौम पूछती है कि आख़िर गोरा आदमी चाहता क्या है? कैसे कोई आसमान या धरती की गरमाहट ख़रीद सकता है – या हिरन की तेज़ चाल? कैसे हम बेचेंगे और कैसे तुम ख़रीदोगे? क्या तुम धरती के साथ जो मन आवे कर लोगे – क्योंकि लाल आदमी ने एक टुकड़े काग़ज़ पर दस्तख़त किया है और गोरे आदमी को दे दिया है? अगर हम हवा की ताज़गी और पानी की झिलमिलाहट के मालिक नहीं हैं – कैसे तुम उन्हें हमसे ख़रीदोगे? जब सारे भैंस मर जाएंगे, क्या तुम उन्हें फिर ख़रीद सकोगे?
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तुम्हारे प्रस्ताव पर हम गौर करेंगे।हम जानते हैं, अगर हम नहीं बेचते हैं तो शायद गोरा आदमी बंदूक लेकर आएगा और ज़मीन छीन लेगा।लेकिन हम जंगली हैं।गोरे आदमी के पास इस वक्त ताकत है और वह सोचता है कि वह खुद भगवान है – जो धरती का मालिक है। कैसे कोई अपनी मां का मालिक हो सकता है?
ज़मीन खरीदने के तुम्हारे प्रस्ताव पर हम सोचेंगे।दिन और रात साथ-साथ नहीं रह सकते। बंधे इलाक़े में जाने के तुम्हारे प्रस्ताव पर हम सोचेंगे। हम एक किनारे चुपचाप रह लेंगे।इससे कुछ नहीं आता-जाता कि हमारे बाकी दिन कहां गुज़रे।हमारे बच्चे अपने मां-बाप के किल्लत के मारे, थके-हारे चेहरों को देखते हैं।हमारे वीर मात खा चुके हैं।जंग में हारकर वे वापस लौटते हैं – दारू में अपनी जान घोलते हैं।
इससे कुछ नहीं आता-जाता कि हमारे बाकी दिन कहां गुज़रे।काफ़ी अब बाकी भी नहीं हैं।कुछ घड़ियां और – कुछ और जाड़ों की रातें, और फिर: कभी इस मुल्क में रहने वाली, और आज भी छोटे-छोटे दलों में जंगलों में घूमने वाली इस क़ौम का कोई भी इंसान अपने पुरखों की कब्रों पर रोने के लिए बाकी नहीं बचेगा – एक क़ौम, जिसकी उम्मीदें कभी उसी तरह उफनती थीं, जैसी कि आज तुम्हारी।पर मैं क्यों अपनी क़ौम की मौत पर रोउं? क़ौम तो इंसानों से बनती है, और इंसान सागर की लहरों की तरह आते-जाते रहते हैं।यहां तक कि गोरा आदमी भी किस्मत के इस खेल से छुटकारा नहीं पा सकता, भगवान आज जिसका दोस्त बना हुआ है, जिसके साथ-साथ घूमता रहता है।शायद हम और तुम कभी भाई बनेंगे।देखा जाएगा।
एक बात हम जानते हैं, जिसे गोरा आदमी भी कभी जानेगा – हमारा और तुम्हारा भगवान एक ही है।तुम शायद सोचते हो कि तुम उसके मालिक हो – जैसे कि तुम इस ज़मीन का मालिक बनने का इरादा रखते हो – लेकिन यह मुमकिन नहीं है।वह इंसानों का भगवान है – लाल और गोरे इंसानों का।यह धरती उसके लिए पाक है – और इस धरती को छेड़ने का मतलब उसे बनाने वाले को छेड़ना है।
गोरों को भी ख़त्म होना है, शायद दूसरे कबीलों से कहीं जल्दी।बढ़ते चलो – अपनी धरती को गंदा करते चलो, और फिर वह रात आएगी, जब तुम्हें अपने ही कूड़े में घुटकर मरना होगा।शायद मरते समय भी तुम चमकते रहोगे, उस भगवान की ताकत के साथ, जिसने तुम्हें इस धरती पर भेजा है – जिसका फ़ैसला है कि तुम इस धरती पर और लाल आदमी पर राज करोगे।यह फ़ैसला हमारे लिए एक पहेली है।जब सारे भैंस मर जाएंगे, सारे जंगली घोड़े सध जाएंगे, इंसानों की सांस के नीचे हरियाली अपना दम तोड़ देगी, बिजली की तारें टीलों को ढक लेंगी, कहां रहेंगी झाड़ियां – नदारद, कहां रहेंगे अबाबील – नदारद, क्या मतलब होगा तेज़ टट्टु और शिकार की मस्ती को अलविदा कहने का?
ज़िंदगी का ख़ात्मा और जीने की लड़ाई की शुरुआत। तुम को भगवान ने जानवरों, जंगलों और लाल इंसानों का राज सौंपा है, ज़रूर उसकी कोई वजह होगी। पर यह वजह हमारे लिए एक पहेली है। शायद हम तुम्हें बेहतर समझ सके होते, अगर हमें पता होता कि गोरा आदमी सपना कौन सा देखता है – जाड़ों की लंबी ठिठुरती रातों में अपने बच्चों को वह किन उम्मीदों की दास्तान सुनाता है – किन उम्मीदों की तड़प के साथ वह सुबह की राह देखता है? पर हम जंगली हैं – और गोरे आदमी के सपने का हमें पता नहीं। हमें उसका पता नहीं, इसलिए हमें अपना रास्ता पकड़ना है। क्योंकि हमारे लिए सबसे बड़ी बात यह है कि हर इंसान उसी तरह जी सके, जैसे कि वह चाहता है – भले ही वह अपने दूसरे भाइयों से कितना ही अलग क्यों न हो।
ऐसी बातें बहुत अधिक नहीं हैं, जो हमें और तुम्हें जोड़ती हैं।तुम्हारे प्रस्ताव पर हम गौर करेंगे, अगर हम इसे मान लेते हैं तो सिर्फ़ इसलिए कि बंधे इलाक़े की बात बनी रहे, जिसका कि तुमने वादा किया है।शायद वहां हमारे बाकी दिन अपने तरीके से गुज़र जाएं।
जब इस धरती से आख़िरी लाल इंसान मिट जाएगा और प्रेरी के मैदानों के ऊपर बिखरे बादल की छांव की तरह सिर्फ़ उसकी याद बनी रहेगी, तब भी इन जंगलों और बादियों में बिचरती रहेंगी हमारे पुरखों की आत्माएं।आख़िर इस धरती से उनको वैसे ही प्यार था, जैसे नए जन्मे बच्चे को अपनी मां के दिल की धड़कन से।अगर हम तुम्हें ज़मीन बेचते हैं, तो इससे प्यार रखना जैसे कि हमें प्यार है, इसका ख़याल रखना जैसा कि हमने ख़याल रखा है, इसकी याद बनाए रखना जैसी कि वह आज है।और अपनी पूरी ताकत, दिमाग और दिल के साथ इसे अपने बच्चों की ख़ातिर बनाए रखना और इससे प्यार रखना – जैसे कि भगवान को हम सबसे प्यार है।
क्योंकि एक बात का हमें पता है – हमारा और तुम्हारा भगवान एक ही भगवान है। यह धरती उसके लिए पाक है। यहां तक कि गोरा आदमी भी उसके फ़ैसले को टाल नहीं सकता। शायद हम और तुम कभी भाई बनेंगे। देखा जाएगा।
संदर्भ
रुपांतर और संपादन – उज्ज्वल भट्टाचार्य
उज्ज्वल भट्टाचार्य जर्मनी में रहते हैं जहाँ उन्होंने कई दशकों तक पत्रकारिता की। जर्मन और अंग्रेज़ी से ढेरों कविताओं के अनुवाद। हाल ही में उनकी लिखी रवीन्द्रनाथ टैगोर की एक जीवनी प्रकाशित हुई है।