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गांधीजी ने आन्दोलन के लिए नमक ही क्यों चुना ?

1931 में  महात्मा गांधी को इंग्लैंड में गोलमेज परिषद के लिए बुलाया गया और उनकी कोई बात नहीं सुनी गई । बल्कि ब्रिटिश सरकार ने चतुराई से महाराजाओं, मुसलमानों, हरिजनों और ऐसी ही अलग-अलग इकाइयों के प्रतिनिधि बुलाकर गांधी को बताया कि वे सारे हिंदुस्तान के अकेले प्रतिनिधि नहीं हैं।

ब्रिटिशों की इस तरह की “आपस में फूट डालो और राज करो की नीति से उकताकर गांधी ने 2 मार्च, 1930 को ही सत्याग्रहा , साबरमती आश्रम से हिंदुस्तान के वाइसराय लार्ड इर्विन को पत्र लिखा जिसके कुछ अंश यों हैं-

प्रिय मित्र,

अपने दूसरे बहुत से भाइयों के साथ-साथ में भी यह आशा लगा बैठा था कि प्रस्तावित गोलमेज परिषद से ये सब शिकायतें शायद रफा-दफा हो जाएं । लेकिन जब आपने साफ-साफ कह दिया कि आप कोई ऐसा आश्वासन नहीं देंगे कि आप या ब्रिटिश मन्त्रिमंडल पूर्ण औपनिवेशक स्वराज्य डोमिनियन स्टेटस की किसी योजना का समर्थन लाज़मी तौर पर करेंगे, तब मैंने महसूस किया कि  गोलमेज परिषद वह समाधान नहीं दे सकती जिसके लिए देश के पढ़े लिखे लोग समझ बूझ कर और करोड़ों गूंगी जनता, अनजाने मन से तरस रहे हैं।इस तरह से दिल्ली की मुलाकात का भी कोई नतीजा न निकलने के बाद मेरे सामने और कोई दूसरा रास्ता ही नहीं रह गया था ।

जिस मालगुजारी से सरकार को इतनी अधिक आमदनी होती है, उसी के भार से रैयत का दम निकला जा रहा है। स्वतंत्र भारत को इस नीति में बहुत कुछ हेर-फेर करना होगा। जिस स्थायी बंदोबस्त की तारीफ के पुल बाँधे जाते हैं, उससे सिर्फ मुट्ठी भर धनवान जमींदारों को ही फायदा पहुंचता है, रैयत को नहीं। रैयत तो पहले की तरह अब भी असहाय हैं।

ब्रिटिश सरकार की नीति रैयत को चूसकर बेजान बना देने की जान पड़ती है। यहां तक कि जनता के जीवन के लिए आवश्यक नमक जैसी चीज़ पर भी इस तरह कर लगाया जाता है कि उसका सबसे अधिक भार उन्हीं पर पड़ता है ।…

नमक ही एक ऐसी चीज़ है, जिसे गरीब लोग अकेले और मिलकर धनवान लोगों से ज्यादा खाते हैं। इस बात का विचार करने से तो यह कर गरीबों के लिए और भी भार रूप जान पड़ता है। शराब और दूसरी नशीली चीजों से होने वाली आमदनी का जरिया भी ये गरीब ही हैं ये चीज़े लोगों की तंदुरुस्ती और नैतिकता की जड़े खोखली करने वाली हैं।”

 

महात्मा गांधी
महात्मा गांधी

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गांधीजी ने भारत के आर्थिक शोषण का कच्चा चिट्ठा खोल दिया

महात्मा गांधी ने अपने लंबे पत्र में ब्रिटिशों ने एक-एक कदम उठाकर भारत का आर्थिक शोषण कैसे किया, इसका पूरा कच्चा चिट्ठा बयान किया। नमक और शराब पर लगाए लगान की आमदनी एक नामधारी निर्वाचित मंत्री के नाम लगा दी। और कोई अभागा मंत्री यह कहे कि ऐसी प्रवृति उचित नहीं तो उसे झट से कहा जाएगा कि हिंदुस्तान पर कर्जे का इतना बोझा है कि वह कब उतरेगा ? यदि टैक्स की आमदनी कम हो जाएगी तो शिक्षा पर हम कैसे खर्च करेंगे ?

ब्रिटिश सरकार दुनिया में सबसे खर्चीली सरकार थी । वाइसराय की मासिक तनख्वाह 21,000 रुपये थी। जबकि इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को सिर्फ 5,400 सालाना मिलता था। भारत में हर आदमी की औसत रोजाना आमदनी दो आने से कम थी और वाइसराय को रोज़ाना सात सौ रुपये दिए जाते थे । इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को रोजाना 180 रुपये ही मिलते थे। अकेला वाइसराय पांच हजार भारतीयों की औसत कमाई का हिस्सा खा जाता था, जबकि इंग्लैंड का प्रधानमंत्री सिर्फ नब्बे अंग्रेजों की कमाई लेता था ।

इंग्लैंड जिस तरह से भारत को लूट रहा था और सारा हिंदुस्तान उसका एक स्वर से विरोध कर रहा था। पर   इंग्लैंड में किसी भी राजनैतिक दल ने 1930 तक इस लूट को बंद करने की आवाज़ कभी नहीं उठाई।

मगर महात्मा गांधी ने अपनी चिट्ठी में यह भी लिख दिया कि वे ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह करेंगे, पर अहिंसक ढंग से वे “हृदय परिवर्तन” में विश्वास करते थे । न कि “खून का बदला खून” से लेने के आतंकवादी मार्ग में। इसीलिए इस आंदोलन को “सविनय अवज्ञा” का आंदोलन कहते थे ।

3 मार्च, 1930 को एक पत्र में महात्मा गांधी ने लिखा कि ब्रिटिश सरकार नमक- कर उगाहने में कितना खर्च करती है ? कोई आठ प्रतिशत कहता हैं, कोई बीस प्रतिशत सच क्या है?


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सत्याग्रह के पहले तैयारी

5 मार्च, 1930 को महात्मा गांधी ने आश्रम के निवासियों से कह दिया कि 12 मार्च को प्रातः काल आंदोलन शरू हो जाएगा। “मेरे साथ भाग लेने वालों को सात दिन में तैयार हो जाना चाहिए ।” महात्मा गांधी ने कहा- “ईश्वर पर विश्वास और प्रत्येक व्यक्ति को अपने साथ “गीता” की एक प्रति रखनी होगी। अब्बास तैयबजी और पचास आदमियों के साथ पहले मेथापुर की ओर कूच की जाने वाली थी। साथ में एक घोड़ा रखा जाने वाला था और महात्मा गांधी की तबीयत ठीक रही, तो वे उस घोड़े का उपयोग खुद करने वाले थे। उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ पुरुष ही उनके साथ होंगे। औरतें और बच्चे नहीं ।

दांडी कूच में जिन अठहत्तर स्वयंसेवकों ने भाग लिया उनमें गुजरात से 31, महाराष्ट्र से 13 उत्तर प्रदेश से 8, कच्छ से 6, केरल से 4, पंजाब और राजपूताना से तीन-तीन, बंबई से दो और सिंध, नेपाल, तमिलनाडु, आन्ध्र, उत्कल, कर्नाटक, बिहार, बंगाल से एक एक भाई थे।

6 मार्च, 1930 को, “यंग इंडिया” नामक जो अंग्रेजी साप्ताहिक महात्मा गांधी  प्रकाशित करते थे, उसमें नमक कानून के दंड वाले अंश भी महात्मा गांधी  ने छाप दिये।

रेजिनाल्ड रेनॉल्ड्स नामक एक अंग्रेज के हाथों महात्मा गांधी ने अपना पत्र वाइसराय इर्विन के पास भेजा।

“यंग इंडिया” में 6 मार्च को महात्मा गांधी  ने यह भी लिख दिया कि सत्याग्रही इतने अनुशासित होंगे और निहत्थे तो होंगे ही कि “सरकार को अगर इस अवसर पर दानवी रूप का भी कुछ परिचय देना पड़ा, जिसके बारे में मुझसे इतनी शिकायतें की गई हैं, तो वह बिल्कुल गलत नहीं होगा, यह संयुक्त प्रांत (तब का उत्तर प्रदेश) की विधान परिषद् में श्री मालकम हेली ने जो घोषणा की, उसके उत्तर में मुझे कहना है कि, सत्याग्रहियों ने खूब समझ लिया है कि, अपने इस कदम के लिए, उन्हें कहां तक कुरबानी देनी पड़ सकती है और शासक लोग यदि अपने उस प्रशंसनीय रूप का परिचय देंगे तो यह भारत के लिए नई बात नहीं होगी। मैं आशा करता हूं कि इस आंदोलन को ऐसा रूप दिया जाएगा जिससे क्रोध का वह उबाल अपने-आप उफन- उमड़ कर चुक जाए। प्रतिकार में हाथ उठा के नियम का यह अनिवार्य परिणाम है। “

नमक सत्याग्रह का निश्चय

गांधीजी ने 6 मार्च, 1930 को जवाहरलाल नेहरू को इलाहाबाद में तार से सूचना दी कि लाई इर्विन के नाम “पत्र प्रकाशनार्थ दे दिया है। बारह तारीख को सुबह साठ लोगों को साथ लेकर कूच आरंभ कर रहा हूं।

इसी बीच में 7 मार्च, 1930 को सरदार वल्लभभाई पटेल पकड़े गए। इसे गांधीजी ने लड़ाई शुरू करने का शुभ शकुन माना। गांधीजी ने आम हड़ताल की पुकार की “मिल मालिक मिल बंद कर दें। विद्यार्थी पाठशालाओं में न जाएं । सभी दुकानदार अपनी दुकानें बन्द रखें ।” साथ ही चेतावनी दी कि “गुजरात में अहिंसा पालन करने की बात कहने की ज़रूरत नहीं है। हमारी लड़ाई आदि से अंत तक अहिंसक है।”

ऐसे सत्याग्रह जैसे बड़े कार्य में कई लोग अपना फायदा उठाना चाहते हैं । पता चला कि अमेरिका में एक शैलेन्द्रनाथ घोष नामक सज्जन अपने को कांग्रेस और गांधीजी का प्रतिनिधि बताकर यह कह रहे थे कि भारत में ये कहने को अपने को अहिंसक बताते हैं, पर भीतर भीतर बड़ी मात्रा में हथियार जमा कर रहे हैं।

इस बात की सूचना जान हेनीज़ होम्स ने गांधीजी को दी। 7 मार्च को गांधीजी ने होम्स को तार भेजा “ऐसा कोई आदमी मेरा प्रतिनिधि नहीं है।ब्रजकृष्ण चांदीवाला की मां बीमार थीं। वे सत्याग्रह में शामिल होना चाहते थे। गांधीजी  ने उन्हें लिखा कि पहले अपनी मां की सेवा करो ।

8 मार्च, 1930 को अहमदाबाद की एक सार्वजनिक सभा में गांधीजी ने एक भाषण दिया, जिसके अंश इस प्रकार से हैं:

“अब तो वह समय सामने आ गया है, जब मेरी और आपकी अंतिम परीक्षा होने जा रही है। इस मामले में सरकार ने मेरे और आपके रास्ते को सहज बना दिया है |…सरदार वल्लभभाई पटेल मुझसे पहले ही जेल में जा बिराजे तो इसमें अचरज की कोई बात नहीं है। यह उनका और आपका सौभाग्य है । किन्तु उन्होंने जेल में पहले जाकर मुझे विषम परिस्थिति में डाल दिया है। मुझे किसी-न-किसी तरह गिरफ्तार होना है। सरकार ने अनुचित रूप से नमक पर कब्जा कर रखा है। मुझे उनसे यह कब्जा छीनना है। मुझे नमक कानून रद्द करवाना है। मैं पूर्ण स्वराज की दिशा में पहला कदम रखता हूं ।.. हिंदुस्तान के लोग अब बेचैन हो उठे हैं और स्वतंत्रता प्राप्त किए बिना उन्हें चैन नहीं मिल सकता …..

 

“आश्रम के लोगों की टुकड़ी के साथ बुधवार को प्रातःकाल कूच करने के अपने निश्चय पर मैं आज भी दृढ़ हूं ।… आपने जो शांतिपूर्वक आम हड़ताल की उसके लिए मैं आप को बधाई देता हूं।”

महात्मा गांधी
महात्मा गांधी

संदर्भ

डा. प्रभाकर माचवे. नमक आन्दोलन, प्रकाशन विभाग, नई दिल्ली

Editor, The Credible History

जनता का इतिहास, जनता की भाषा में

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