कूका विद्रोह के नायक बिशन सिंह कूका
कूका आंदोलन का जन्म 19वीं शताब्दी में पंजाब में हुआ था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ‘कूका विद्रोह’ का महत्वपूर्ण स्थान है। इस विद्रोह के जनक, नामधारी संप्रदाय के संस्थापक सद्गुरु रामसिंह कूका थे।
रामसिंह कूका ईश्वर की भक्ति में लीन संन्यासी थे, किन्तु 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचारों और दमन के कारण, उन्होंने अपने शिष्यों के साथ अंग्रेज शासकों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। कूका विद्रोहियों में सभी आयु वर्ग के लोग शामिल थे, जिनमें नवयुवकों की संख्या सबसे अधिक थी। ये युवक सद्गुरु रामसिंह के शिष्य थे और भजन-कीर्तन करने के साथ-साथ व्यायाम तथा युद्धाभ्यास भी करते थे।
कौन थे बिशन सिंह कूका
इन वीर युवकों में बिशन सिंह कूका नाम का एक तेरह वर्षीय बालक भी शामिल था। यद्यपि वह बहुत छोटी आयु का था, लेकिन अपने देश और देशवासियों पर अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों से वह अत्यंत दुखी और क्रोधित हो उठता था। कूका विद्रोहियों ने गुप्त रूप से अंग्रेजों का सामना करने के लिए अस्त्र-शस्त्र एकत्र करना आरंभ कर दिया था। पूरे पंजाब को बाईस भागों में बाँटकर प्रत्येक भाग को एक व्यक्ति के अधीन किया गया था, जिसका कार्य जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध जागरूकता फैलाना और सरकारी सेवाओं, कानूनों तथा उत्पादों का बहिष्कार कराना था।
कूका विद्रोही वेश बदलकर अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जोरदार ‘कूक‘ पुकारते थे, इसी कारण उन्हें ‘कूका’ कहा जाता था। यद्यपि सद्गुरु रामसिंह बिना पर्याप्त शक्ति के अंग्रेजों से टक्कर नहीं लेना चाहते थे, किन्तु उनके शिष्य हर समय अंग्रेजों का सामना करने के लिए तैयार रहते थे। बालक बिशन सिंह कूका अक्सर ऐसे अवसर की तलाश में रहता था कि वह अंग्रेजों को सबक सिखा सके।
बिशन सिंह कूका अपने साथियों से अक्सर कहता, “देखना, एक दिन मैं इन दुष्ट गोरों को ऐसा सबक सिखाऊँगा कि वे भी याद करेंगे।” इस छोटे बालक की वीरतापूर्ण बातें सुनकर बड़े आयु के कूका वीर भी उत्साह से भर जाते थे।
बिशन सिंह कूका , सद्गुरु रामसिंह की शिष्य मंडली का हिस्सा था, किन्तु यह कोई नहीं जानता था कि उसके माता-पिता कौन थे और वह कहाँ का निवासी था। कहा जाता था कि स्वयं सद्गुरु रामसिंह ने उसे अकेला असहाय घुमते हुए पाया था और अपने साथ ले आए थे। सद्गुरु रामसिंह स्वयं धार्मिक विचारों के पुरुष थे, अतः बालक बिशन सिंह कूका ने भी वैसी ही शिक्षा प्राप्त की थी।
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जब सद्गुरु रामसिंह ने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध संघर्ष का ऐलान कर दिया
ऐसे समय में, जब स्वयं सद्गुरु रामसिंह ने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध संघर्ष का ऐलान कर दिया था, उनके सभी शिष्य अति उत्साह से भरकर कुछ न कुछ करने के लिए तत्पर रहते थे। एक दिन बालक बिशन सिंह कूका भी एक शिष्य मंडली के साथ भ्रमण कर रहा था, जब उन्होंने कुछ कसाईयों को गायों को काटते हुए देखा। उन्होंने उन कसाईयों को पकड़ा और बुरी तरह पीट डाला।
इस घटना से अंग्रेजों को बहाना मिल गया और उन्होंने कई कूका विद्रोही युवकों को पकड़ लिया, परन्तु बालक बिशन सिंह कूका उनके हाथ नहीं आया। इस घटना के बाद सभी कूका विद्रोहियों के मन में उबाल आ गया। बिशन सिंह कूका अपने साथियों के पकड़े जाने के बाद अंग्रेजों से बदला लेने पर अडिग हो गया।
अब वह अन्य कूका विद्रोही युवकों के साथ घूम-घूमकर अंग्रेजों को सबक सिखाने की योजना बनाने लगा। शिष्य मंडली ने एक योजना बनाई और आसपास के कई कूका विद्रोहियों को तैयार किया। अपनी योजना के अनुसार, सभी विद्रोहियों ने गुप्त रूप से हथियारों से लैस होकर मलेर कोटला किले पर हमला कर दिया, बिना अपने गुरु को बताए।
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तेरह वर्षीय बिशन सिंह कूका तलवार लेकर किले के रक्षकों पर टूट पड़ा
मलेर कोटला एक रियासत थी, जहाँ का स्वामी अंग्रेजों का बड़ा भक्त था और क्रांतिकारियों का शत्रु। इसी कारण ये युवक देश के इस शत्रु का अंत करना चाहते थे। जिस दिन यह हमला हुआ, वह 13 जनवरी 1872 था। तेरह वर्षीय बिशन सिंह कूका भी अपनी तलवार लेकर किले के रक्षकों पर टूट पड़ा। उसकी वीरता देखते ही बनती थी। यद्यपि हमला जोरदार था, किन्तु पूरी रणनीति और तैयारी के अभाव में वह असफल हो गया। किले पर विद्रोहियों द्वारा हमले का समाचार मिलते ही अंग्रेज सेना वहाँ पहुँच गई।
अंग्रेजों ने सैकड़ों विद्रोही युवकों को पकड़ लिया, जिनमें बालक बिशन सिंह कूका भी था। यद्यपि यह हमला रियासत पर हुआ था, किन्तु अंग्रेजों ने इसे अपने ऊपर हमला माना और क्रूर दमन चक्र शुरू कर दिया। विद्रोहियों को तोप के मुँह पर बाँधकर उड़ाना शुरू कर दिया गया। इस निर्ममता को अंग्रेज अधिकारी स्वयं अंजाम दे रहे थे।
बालक बिशन सिंह कूका भी बंदी बना एक ओर खड़ा था। अपने साथियों की मौत और अंग्रेजों की क्रूरता देखकर उसका चेहरा पीड़ा और क्रोध से तमतमा उठा था। जब बिशन सिंह कूका की बारी आई, तो वहाँ खड़ी एक अंग्रेज महिला को इस 13 वर्षीय बालक पर दया आ गई।
जब बिशन सिंह कूका को तोप के मुँह पर बाँधने के लिए ले जाया जाने लगा, तो वह महिला बीच में आ गई और अंग्रेज अधिकारी से उसे छोड़ने का अनुरोध किया। इस पर अधिकारी बोला, “ठीक है, हम इसे छोड़ देंगे, यदि यह बालक हमसे माफी माँग ले।” यह सुनते ही बिशन सिंह कूका भड़क गया। अत्यन्त तेजी से अपना हाथ छुड़ाकर वह उस अंग्रेज अधिकारी पर टूट पड़ा। उसने अधिकारी की दाढ़ी पकड़कर जोर से खींचना शुरू कर दिया। पीड़ा से वह अधिकारी चिल्ला उठा। वहाँ खड़े किसी भी व्यक्ति को इस छोटे बालक से इतने दुस्साहस की उम्मीद नहीं थी।
यह दृश्य देखकर सभी लोग बिशन सिंह कूका पर झपट पड़े, किन्तु उसने दाढ़ी नहीं छोड़ी। वह मजबूती से दाढ़ी खींचते हुए चिल्लाने लगा, “नहीं छोड़ूंगा। इस दुष्ट को मजा चखाकर रहूँगा, ताकि यह आगे किसी को तोप से बाँधकर न उड़ा सके।” लेकिन वह छोटा बालक आखिर कब तक विशाल अंग्रेजी फौज का मुकाबला करता। जब यह देखा गया कि वह दाढ़ी नहीं छोड़ेगा, तो क्रूर अंग्रेजों ने उसके हाथ काटकर दाढ़ी छुड़ाई। यह बड़ा ही निर्मम दृश्य था।
बालक बिशन सिंह कूका ने अपने हाथ कटने पर भी अंग्रेजों के विरुद्ध नारे लगाना नहीं छोड़ा। वह रक्त से लथपथ हो चुका था, किन्तु झुकने के लिए तैयार नहीं था। अंततः क्रूर अंग्रेजों ने तलवार से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। , भारत माता का यह वीर बालक बड़ी निडरता से शत्रु अंग्रेजों का सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ।
इस घटना में लगभग 86 कूका विद्रोही युवक वीरगति को प्राप्त हुए थे, जिन्हें अंग्रेजों ने तोप से बाँधकर उड़ा दिया था। इस घटना के बाद कूका आंदोलन असफल होकर समाप्त हो गया। आंदोलन के जनक सद्गुरु रामसिंह को गिरफ्तार कर बर्मा जेल भेज दिया गया, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई।
किन्तु बालक बिशन सिंह कूका का नाम मलेर कोटला कांड के वीर बलिदानी बालक के रूप में युगों-युगों तक अमर हो गया। आज भी भारत के क्रांतिकारी इतिहास में कूका विद्रोही बालक बिशन सिंह कूका का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है।
संदर्भ
मुकेश नादान, भारत के वीर बालक, एम.एन.पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, ग्रेटर कैलाश, नई दिल्ली
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