देंकानाल प्रजामंडल आंदोलन के गुमनाम नायक क्रांतिकारी बाजी राउत
एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा गाँव उड़ीसा का भुवन गाँव है, जो ब्राह्मणी नदी के तट पर स्थित है। इस गाँव के पास नीलकंठपुर गाँव है, जिसके निवासी गरीब मजदूर और किसान थे। हालांकि, उनकी मातृभूमि के प्रति प्रेम और देशभक्ति अद्वितीय थी, जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
इसी नीलकंठपुर गाँव में एक गरीब किसान, हरिहर राउत, अपनी पत्नी रानी और दो पुत्रों के साथ रहता था। बड़ा पुत्र 15 वर्ष का था, जबकि छोटा, बाजी, 12 वर्ष का था। बाजी साहसी, वीर और अन्याय को सहन न करने वाला बालक था। हरिहर का कम उम्र में निधन हो गया, जिसके बाद विधवा रानी पर दोनों बच्चों को पालने की जिम्मेदारी आ गई।
उस समय ढेंकानाल राज्य में अत्याचार और अंधा शासन था। वहाँ का राजा, शंकर प्रताप सिंह देव, अंग्रेजों के अधीन होकर प्रजा पर और भी अत्याचार करने लगा। उसने फरमान जारी किया कि प्रत्येक घर से एक आदमी बँधुआ मजदूरी के लिए राजा और अंग्रेजों द्वारा बनाए जा रहे नए नगर में जाएगा। जो परिवार इस आदेश का पालन नहीं करता, उसे अंग्रेजों और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता था।
1938 में, नीलकंठपुर गाँव में कुछ अंग्रेज और राजा के सिपाही हरिहर राउत के घर आए। उन्होंने इस बात को लेकर रानी को अपमानित किया और मारा-पीटा कि उनके घर से कोई बँधुआ मजदूर क्यों नहीं गया। यह सब छोटा बेटा बाजी राउत देख रहा था। अपनी माँ का अपमान देखकर, वह सिपाहियों से भिड़ गया। एक छोटे बच्चे का इतना साहस देखकर सिपाही क्रोधित हो गए और उसे बुरी तरह पीट दिया। सिपाहियों के जाने के बाद, माँ ने बाजी राउत को समझाने की कोशिश की, लेकिन बाजी के तर्कों के आगे माँ को चुप होना पड़ा।
उसी दिन, बाजी राउत ने अपने गाँव की महिलाओं की इज्जत की रक्षा के लिए उस राजा के खिलाफ लड़ने की शपथ ली।
कौन थे क्रांतिकारी बाजी राउत
ऐसे वीर साहसी बालक बाजी राउत का जन्म 5 अक्तूबर 1926 को नीलकंठपुर गाँव में हुआ था। उसी वर्ष राजा शंकर प्रताप उस राज्य की गद्दी पर बैठे थे। अपनी माँ के अपमान का बदला लेने की शपथ लेकर, बाजी गाँव-गाँव घूमता रहा। इस दौरान उसने जाना कि अन्य महिलाओं के साथ भी अपमानजनक व्यवहार किया गया था। यह सब देखकर उसके मन में बदला लेने की इच्छा और भी प्रबल हो उठी।
उस समय गाँव में राजा और अंग्रेज़ों के अत्याचार के विरोध में जगह-जगह सभाएँ हो रही थीं, लोग भय के कारण अपने घरों में छुपे हुए थे। परंतु बाजी के कानों में एक ही नारा गूँज रहा था, ‘इंकलाब ज़िन्दाबाद’।
बाजी राउत राजा और अंग्रेज़ों के विरुद्ध आंदोलन में शामिल होने लगा। जब गाँव का कोई भी व्यक्ति प्रजामण्डल का सदस्य बनकर अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने का साहस नहीं जुटा पा रहा था, तब 12 वर्ष का बालक बाजी राउत आगे आकर सदस्य बनने को तैयार हो गया।
उसके साहस को देख लोग अचम्भित थे और उस छोटे बालक को आंदोलन में शामिल होने से मना कर रहे थे। परंतु, सभा के मुखिया महेश चन्द्र सुबाहु सिंह ने कहा कि बाजी राउत प्रजामण्डल की वानर सेना में शामिल हो सकता है। बाजी ने वानर सेना के सदस्य का कार्य बहुत अच्छे से निभाया। वह राजा और अंग्रेज़ों की ख़बर लाकर प्रजामण्डल को देता था।
हर सभा में विप्लव संगीत गाते थे बाजी राउत
1938 के अगस्त माह में जोरांडा में प्रजामंडल की एक सभा बुलाई गई, जिसमें वीर वैष्णव द्वारा चेतना संगीत गाया जा रहा था। बाजी राउत भी उनके साथ गाने लगा। बाजी राउत की मधुर आवाज़ में गाया गया यह चेतना संगीत लोगों को बहुत प्रभावित कर रहा था, और लोग उसकी तारीफ़ कर रहे थे।
1938 के सितंबर माह की एक तारीख़ को कांग्रेस समाजवादी पार्टी की तरफ से जेनापुर में एक किसान सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में लगभग 50,000 लोग शामिल हुए थे। सभा में बाजी राउत ने मंच पर खड़े होकर विप्लव संगीत गाया और साथ ही भाषण भी दिया। उसके गाने और भाषण को सुनकर लोग मुग्ध हो गए। जितनी भी सभाएँ होतीं, बाजी राउत सभी में शामिल होता था।
कटक के बालकृष्ण अपने प्रेस से “कृषक” नामक पत्रिका प्रकाशित करते थे, जिसमें राजा और अंग्रेज़ों के विरोध में लेख छपते थे। यह पत्रिका प्रजामंडल की वानर सेना गाँव-गाँव के प्रत्येक घर में पहुँचाती थी। इस कार्य का नेतृत्व बाजी राउत करता था।
11 सितंबर 1938 के दिन प्रजामंडल के मुखिया को राजा ने गिरफ़्तार करवा लिया। इसके बाद देंकानाल प्रजामंडल आंदोलन और उग्र हो गया। अपने मुखिया की मुक्ति के लिए 12 सितंबर को ढेंकानाल में दूर-दूर से लोग आकर इकट्ठा हुए। तेज़ बारिश के बावजूद लगभग 50,000 से भी ज़्यादा लोग इकट्ठा हो गए और राजा व अंग्रेज़ों के नए भवन को तोड़फोड़ दिया। उस आंदोलन में शामिल होने वाले लोग अपने परिवार वालों से कहकर आए थे कि वे वापस आएँगे या नहीं, इसका पता नहीं, इसलिए उनके वापस आने का इंतज़ार न करें।
आंदोलन में बाजी राउत लोगों को प्रोत्साहित कर रहा था, नारे लगाकर और विप्लव संगीत गाकर उनका हौसला बढ़ा रहा था। धीरे-धीरे वहाँ लोगों की संख्या बढ़ने लगी, और वे राजा से अपने मुखिया की मुक्ति के लिए नारे लगाने लगे। उन्होंने राजा को चेतावनी दी कि अगर उनके मुखिया को मुक्त नहीं किया गया, तो वे राजा के साम्राज्य को नष्ट कर देंगे।
राजा के सिपाहियों ने आंदोलनकारियों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने। शाम होते ही राजा ने उन लोगों पर हाथी, घोड़े, लाठी, और बंदूक से हमला करवा दिया। अचानक हुए इस हमले से डरकर लोग इधर-उधर भागने लगे, लेकिन कुछ लोगों ने अंग्रेज़ सिपाहियों पर पलटकर हमला किया, जिससे हाथी पर बैठा उनका सेनापति लॉर्ड क्रेफ्री हाथी से नीचे गिर गया और घायल हो गया। इस संघर्ष के दौरान बाजी राउत भी घायल हो गया, लेकिन वह फिर भी डटा रहा और नारे लगाता रहा। आख़िरकार प्रजामंडल की जीत हुई।
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हार से बौखलाए राजा ने अंग्रेज़ों से मदद माँगी
राजा इस हार को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने अंग्रेज़ों से मदद माँगी। मेजर बेजल गेट, राजा के अनुरोध पर वहाँ आया। मेजर का उद्देश्य आंदोलन को ख़त्म करना और लोगों का दमन करना था। उसने अंग्रेज़ी फ़ौज की और टोलियाँ उस राज्य में बुलाईं और मुक्त किए गए प्रजामंडल के सदस्यों को फिर से गिरफ़्तार कर लिया और लोगों पर और अधिक अत्याचार करने लगा।
वहाँ की पुलिस अंग्रेज़ों के साथ मिलकर लोगों पर अत्याचार करने लगी—लोगों को लूटना, मारना-पीटना, घर में घुसकर महिलाओं को उठा ले जाना आदि। उनके अत्याचार की सीमा पार हो गई थी, और वहाँ के लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे। लोगों ने फिर से इकट्ठा होकर आंदोलन किया। उनका नारा था, ‘मारेंगे, नहीं तो मरेंगे।’ पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई और बहुत से लोग मारे गए। पुलिस दूसरे गाँव से होते हुए भुवन गाँव की तरफ पहुँच चुकी थी। अंग्रेज़ों ने देखा कि अब वे कमज़ोर पड़ रहे हैं, तो उन्होंने रात को नदी पार कर भागने की योजना बनाई।
प्रजामंडल को यह बात पता चली तो उन्होंने बैठक बुलाई और यह तय किया कि नीलकंठपुर नदी घाट पर पहरेदारी करनी होगी और अंग्रेज़ों को नदी पार करने से रोकना होगा। लेकिन सवाल था कि यह ज़िम्मेदारी कौन लेगा? बाजी राउत ने आगे बढ़कर पहरेदारी करने की ज़िम्मेदारी ली। उसने कहा कि वह बच्चा है, इसलिए अंग्रेज़ कुछ नहीं करेंगे।
सभी लोग बहुत खुश हो गए और सभा में यह फ़ैसला लिया गया कि बाजी के साथ 2-4 लोग और जाएंगे। बाजी अपने घर जाकर खुशी से अपनी माँ को यह बताता है कि आज रात को पहरा देने की ज़िम्मेदारी उसे दी गई है। माँ चिंतित हो जाती है और उसे मना करती है, गाँव वालों को भी डाँटती है, लेकिन बाजी माँ को मना लेता है। माँ आँखों में आँसू लिए बाजी को विदा करती है।
बाजी के साथ नाव में हुरूसी प्रधान, नट मलिक, लक्ष्मण मलिक और गुरेई मलिक भी थे। इन लोगों की ज़िम्मेदारी थी कि अंग्रेज़ों की गतिविधियों पर नज़र रखें, उन्हें नदी पार न करने दें, और गाँव के लोगों को सुरक्षित नदी पार करवाएँ। वे लोग नाव लेकर किनारे से थोड़ा अंदर छुपे हुए थे। उस दिन ब्राह्मणी नदी उफान पर थी, बाढ़ का पानी बहुत ज़्यादा था।
भोर होने के कुछ समय पहले ही अंग्रेज़ी फ़ौज गाँव के दलाल के साथ नदी के किनारे पहुँची। हज़ारों गाँव वालों को मार कर वे अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे। गाँव के लोग उनका पीछा कर रहे थे। अंग्रेज़ों के आने पर बाजी राउत नाव को नदी में और अंदर ले गया।
बाजी राउत का बलिदान
सिपाही उसे चिल्लाकर बुलाने लगे कि नाव तट पर लाओ। बाजी ने अकेले खड़ा होकर उन्हें उत्तर दिया कि प्रजामंडल का आदेश है कि तुम लोगों को नदी पार न करने दी जाए। सिपाहियों ने उसे गोली मारने की धमकी दी, तो बाजी ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। उसकी हँसी से नदी का किनारा गूँजने लगा। बाजी बोला, “तुम लोग अत्याचारी हो, इसी गाँव के होकर इसी गाँव के लोगों पर अत्याचार कर रहे हो, महिलाओं की इज़्ज़त लूट रहे हो। तुम लोग राक्षस हो, पशु हो।” यह सब सुनकर राजा की फ़ौज के मजिस्ट्रेट विनय घोष ने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दिया।
सिपाही रवि स्वाई ने गोली चलाई, जो बाजी राउत के सिर में लगी। गोली लगने से पहले उसने “प्रजामंडल की जय, भारत माता की जय” कहा। गोली लगते ही उसका सिर फट गया और वह कटे पेड़ की तरह नाव में गिर गया। बाजी राउत शहीद हो गया। उग्र सिपाही ने एक गोली मारने के बाद नाव पर लगातार कई गोलियाँ चलाईं, जिससे नाव पर सवार अन्य लोग भी मारे गए। तब तक प्रजामंडल और गाँव वाले वहाँ पहुँच गए। फ़ौज और उनके बीच देर तक लड़ाई हुई, जिसमें प्रजामंडल के कई नेता और गाँव वाले मारे गए।
12 वर्ष का नन्हा बाजी राउत, जिसने ब्राह्मणी नदी के किनारे खेलकर अपना बचपन बिताया था, उसी की गोद में समा गया। भारत के सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, गुमनाम नायक बाजी राउत के देश और मातृभूमि के लिए किए गए इस बलिदान को आज भी भुवन गाँव और पूरे उड़ीसा के लोग गर्व से याद करते हैं।
संदर्भ
Dr. Shyam Singh Tanwar, Smt. Mradulatar,Bhoole- Bisare Krantikari: Forgotten Revolutionaries,Prabhat Prakashan
कृष्णचंद्र आइच, अजित प्रसाद महापात्र, देंकानाल प्रजामंडल आंदोलन के वीर बाजी राउत, एनबीटी,
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में