मज़हब के आधार पर देश के बंटवारे के विरोधी – मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी
वतन की आज़ादी के सिपाहियों की न तो आयु की कोई सीमा थी और न धर्म का कोई बंधन। आज़ादी
Credible History is an endeavour to preserve authentic history as gleaned through the lens of established, respected historians who have spent their lives researching it via reliable sources. It aims to counter the propaganda being spread through a large section of mainstream media and social media platforms, and provide easy access to established historical resources
Editorial Address : 123 Kirpal Apartment, 44 IP Extension, Patparganj, Delhi -110092
N/A
वतन की आज़ादी के सिपाहियों की न तो आयु की कोई सीमा थी और न धर्म का कोई बंधन। आज़ादी
मार्टिन लूथर किंग, जूनियर(1929-1968) अमेरिका में नागरिक आन्दोलन (1955-1968 में अपनी हत्या तक) के सबसे बड़े प्रवक्ता थे। वह अहिंसा
हिन्दुस्तान की जंग-ए-आज़ादी में शामिल किसी साधारण से व्यक्ति का क़िरदार भी छोटा नहीं था। वली ख़ान आज़ादी के एक
नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद(1888-1958)आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों
सरदार पटेल ने आजादी के एक साल बाद 16 अगस्त 1948 के भाषण में विभाजन के बाद देश में शांति
16वीं से 19वीं सदी के बीच पसरी कृषि के कहानियों में वैश्विक बाजार में प्लांटेशनो (बगानों) के उत्पादों की बहुलता
साहित्य धारा में कई लेखक ऐसे है जिनकी एक ही कृति ने उनको पाठकों के ज़ेहन में अंकित कर दिया।
आजाद हिन्दुस्तान में पाकिस्तान विभाजन के बाद, जूनागढ़ रिसायत को भारत में शामिल करने के बाद, 3 जनवरी 1948 को
18वीं सदी में भारतीय शिक्षा के विषय पर गठित कमीशन जिसे भारतीय शिक्षा आयोग भी कहा गया। भारतीयों के शिक्षा
बनारसीदास चतुर्वेदी ने अपने संपादन में भगवानदास माहौर, सदाशिवराव मलकापुरकर और शिव वर्मा के सहयोग से यश की धरोहर शहीद-ग्रन्थ-माला
भारत के पूर्व रॉ प्रमुख ए एस दुलत की तीसरी क़िताब “अ लाइफ़ इन द शैडोज” कई मायनों में एक
मोतीलाल नेहरू को अक्सर जवाहरलाल नेहरू के पिता के रूप में ही जाना जाता है। लेकिन बचपन से संघर्ष
बीती रात दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों और दिल्ली पुलिस के बीच झपड़ हो गई। पहलवानो का
शांतीमोय रे ने अपनी किताब ‘Freedom Movement and Indian Muslims‘ में इस पर विस्तार से लिखा है। प्रस्तुत है
1947 के उन पागलपन भरे दिनों में जब बँटवारे का खंजर हर हिन्दू-मुसलमान के सीने को चाक कर रहा था,
बलराज साहनी हिन्दी सिनेमा में अपनी तरह के अदाकार रहे हैं। फिल्म दो बीघा जमीन में वह मजदूर किसान जिसको
सत्यम सत्येन्द्र पाण्डेय आठ घंटे काम,आठ घंटे मनोरंजन और आठ घंटे आराम औद्योगिक पूंजीवादी क्रांति ने सामंतवादी उत्पादन संबंधों को
बात 1947 की है। विभाजन के बाद सीमा के दोनों ओर इंसान, इंसान के ख़ून का प्यासा हो गया था।
20.10.1927 को यंग इंडिया के अपने एक लेख में महात्मा गांधी ने अपने हिन्दू होने के कारण पर एक लेख
1914 में पहला विश्वयुद्ध शुरू होने पर सावरकर ने एक बार फिर ब्रिटिश सरकार से रिहाई के लिए याचिका प्रस्तुत
मुंशी प्रेमचंद ने जनवरी 1936 में हंस पत्रिका के अपना सम्पादकीय, पं. नेहरू के हिंन्दी साहित्य से निराशा पर
भारत अपनी गंगा-जमुनी संस्कृति एंव साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए जाना जाता है। परंतु, शुरुआत से ही कुछ असमाजिक शक्तियां
1 जुलाई, 1946 को बिकनी द्वीप समूह पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अणुबम का परीक्षण करने पर नेहरू का बयान
1857 के विद्रोह के पहले, भारत में संन्यासियों और फ़क़ीरों ने ब्रिटिश शासन के स्थापना के विरोध में लंबा संघर्ष
; अंबेडकर साहब संविधान सभा में बंगाल से क्यों गए? अभी हाल में ही एक टीवी डिबेट में यह
कुछ आलोचक पं.जवाहरलाल नेहरू पर समाचार-पत्र तथा विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता पर बहुत से प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाते
कल 16 अप्रैल को चार्लॊ चैपलिन की जन्मतिथि थी। गांधीजी से मुलाक़ात का असर उनपर दीर्घकालिक रहा, जो उनके सिनेमा
अकबर और राजपूतों के बीच युद्ध और संबंधो को लेकर बहुत कुछ कहा जाता है। एस.इनायत अली ज़ैदी ने अकबर
आज़ादी की लड़ाई में कांग्रेस और मुसलमानों के रिश्ते को लेकर बहुत कुछ कहा जाता है। शांतीमोय रे ने अपनी
जब सावरकर ने किया अंबेडकर का अपमान एक रोचक विषय के साथ आपके बीच में हूँ – अंबेडकर और सावरकर
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर भारतीय चिंतन परंपरा में वह व्यक्ति है जिन्होंने महिलाओं के सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक-धार्मिक और जातिय बेड़ियों की
गोडसे और उसके अनुयायी लगातार यह तर्क देते रहे हैं कि गांधीजी हत्या का फ़ैसला पाकिस्तान को 55
Editor, The Credible Historyजनता का इतिहास, जनता की भाषा में thecrediblehistory.com
आज से ठीक 120 साल पहले पच्चीस साल के बिरसा मुंडा रांची जेल में शहीद हो गए थे. आदिवासियों के
अकबर के ज़माने में कश्मीर पर मुग़लों का क़ब्ज़ा हो गया था। कब्ज़े के बाद 5 जून 1589 में अकबर