FeaturedForgotten HeroFreedom Movement

मौलाना मज़हरुल-हक़: हिन्दू-मुस्लिम एकता के पैरोकार

 

औपनिवेशिक दौर में देश का पढ़ा लिखा व्यक्ति हो या अनपढ़, गरीब हो या धनवान, शहर का रहने वाला हो या ग्रामवासी सभी ग़ुलामी की घुटन से बाहर निकल कर आज़ाद रहना चाहते थे। उस दौर में विदेशी हूकमत का कब्जा केवल देश के संसाधनों पर ही नहीं था। वह देशवासियों के धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दायरे को भी बांधकर रखना चाहती थी। जिसके कारण देशवासियों की घुटन बढ़ती चली जा रही थी। सभी ग़ुलामी के इस बंधन से आज़ाद होना चाहते थे।

मौलाना मज़हरुल-हक़ जैसे रईस भी…जिन्होंने अपने देश के मुक्ति के लिए सब कुछ त्याग कर फ़कीरों की तरह रहना पसंद किया।

बैरिस्टर बने, अंग्रेजी अदालत में मुंसिफ़ का ओहदा पाया, पर नौकरी छोड़ दी

मौलाना मज़हरुल-हक़ भारत के ऐसे ही सपूत है जो हिन्दू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने हुए देश को ग़ुलामी से आज़ाद करना चाहते थे। वह 24 दिसंबर 1866 ज़िला पटना, थाना मुनीर ग्राम बाहपुरा में शैख़ अहमदुल्लाह के घर पैदा हुए । पिता अपने इलाके के बड़े ज़मींदारों में गिने जाते थे। वैसे उनके कई कारखाने भी थे। उस तरह उनके परिवार के आर्थिक हालात बहुत अच्छे थे।

आरंभिक तालीम घर पर ही पूरी करने के बाद उन्होंने बाहपुरा स्कूल से मैट्रिक पास किया और आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ गए। वहाँ कैनिग कालेज (अब लखनऊ विश्वविद्यालय) में दाखिला लिया। वतन परस्ती और देश प्रेम का जज़्बा उनके पढ़ाई करने के इरादे को बैचेन कर देता था।

वालिद के दवाब में यहाँ से पढ़ाई पूरी कर बैरिस्टरी के तालीम के लिए इंग्लिस्तान भेज दिया गया, जहाँ वह गांधीजी के संपर्क में आए और 1891 में बैरिस्टरी की डिग्री लेकर लौट आए। वापस आकर पटना में वकालत की प्रेक्टिस शुरू की।

बाद मे अंग्रेजी अदालत में मुंसिफ़ के पद पर भी आसीन हुए, लेकिन नौकरी उन्हें पसंद नहीं आई। हुआ यों कि ज्यूडीशिल कमिश्नर ने उनसे दो अच्छे शिकारी कुत्तों की फ़रमाइश कर डाली। कमिश्रर की यह मांग उनको बेवक़ुफ़ी की लगी। कमिश्रर को फटकार लगाते हुए उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

 

चम्पारण सत्याग्रह में जेल जाने वालों की पहली टोली का नेतृत्व किया

यह वह दौर था जब देश में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच फूट डालो और राज करो वाली नीति जोरों पर चल रही थी। मार्ले-मिंटो रिफार्म का अधिनियम पास हुआ था। मज़हरुल-हक़ ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के  पक्ष में  देश के वरिष्ठ नेताओं के प्रतिनिधि मंडल की मांगों को लेकर इंग्लैड जाना तय किया। इस प्रतिनिधि मंडल में सच्चिदानंद सिन्हा, भूपेन्द्रनाथ बसु, मि. जिन्ना, लाला लाजपत राय उनके साथ थे।

 

ब्रिटिश शासन तो हिंदुस्तानियों की मांग को आसानी से पूरा नहीं करना था तो प्रतिनिधि मंडल नाकाम हाथ वतन वापस लौट आया। मज़हरुल-हक़ का अब तक लिबरल सियासत से तबियत ऊबने लगी और कुछ ज़्यादा कारगर योजना पर काम करने का इरादा बनाने लगे।

 


यह वेबसाईट आपके ही सहयोग से चलती है। इतिहास बदलने के खिलाफ़ संघर्ष में

वेबसाइट को SUBSCRIBE करके

भागीदार बनें।


 

महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटकर चम्पारण सत्याग्रह में लगे हुए थे। मज़हरुल-हक़ गांधीजी के सहयोग में लग गए और जब गांधीजी ने कहा- कौन-कौन जेल जाने को तैयार है तब मज़हरुल-हक़ ने सबसे पहले हाथ उठाया।  गांधीजी ने जेल जाने वालों की पहली टोली में सदर मौलाना को ही चुना था।

 

इसके कुछ दिनों बाद बिहार के शाहबाद जिले में और उसके बाद पलामू जिले में गाय के कुरबानी के मसले पर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए।  मज़हरुल-हक़ ने अपनी भूमिका निभाई और इस दंगे को आगे बढ़ने से रोका, डॉ राजेन्द्र प्रसाद अपनी आत्मकथा में मज़हरुल-हक़ के भूमिका के बारे में लिखा है, मज़हरुल-हक़ के हस्तक्षेप के बाद हिन्दू-मुस्लिम दंगा ने केवल बंद हुआ, हिन्दू-मुस्लिम एकता का नया दौर भी शुरू हुआ।

अंग्रेजी साप्ताहिक ‘द मदरलैंड’ के प्रकाशन के लिए जेल गए

मज़हरुल-हक़ ने देश प्रेम और जागरूकता का संदेश लोगों तक पहुँचाने के लिए ‘माडर्न बिहार’ के नाम से मैग्ज़ीन भी निकाली। 1921 में एक अंग्रेजी साप्ताहिक ‘द मदरलैंड’ का प्रकाशन भी किया जो एक समय उच्च स्तर का अख़बार माना गया। अंग्रेजों को कॊई भी लेख इस अख़बार में पसंद नहीं आता था तो ब्रिटिश सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी और बग़ावती लेखों के प्रकाशन के इल्ज़ाम में गिरफ्तार कर लिया।

 

मज़हरुल-हक़ पक्के कांग्रेसी नेता थे। पार्टी के बड़े नेता मज़हरुल-हक़ का बड़ा सम्मान करते थे। देश के हर आन्दोलन में वह काफी सक्रिय भी रहे। 1920-21 में जब गांधीजी ने सत्याग्रह का आन्दोलन शुरु किया और देशवासियों से सरकारी नौकरी छोड़ने की अपील की,मज़हरुल-हक़ ने उसमें पूरा साथ दिया। मज़हरुल-हक़ ने इसी दौर में अपनी वकालत छोड़ दी।

 

इसी दौर में इंजीनियरिंग स्कूल के कई बच्चों ने अपनी स्कूल छोड़ दी और मज़हरुल-हक़ से मिलने पहुंचे। मज़हरुल-हक़ ने इन बच्चों के लिए कुछ मकान बनवाए और उस जगह का नाम सदाकत आश्रम रखा, जो बाद में कांग्रेस कमेटी का दफ्तर बना। इस आश्रम में मज़हरुल-हक़ बच्चों को चरखा बनाने का कारखाना खोला और सभी बच्चों को इस काम में लगा दिया। बच्चों को पढ़ाते, उनके साथ ही सादा खाना खाने और बच्चों के हर तरह का ख्याल रखते।

हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ा

गुवाहाटी के कांग्रेस जलसे में मज़हरुल-हक़ का नाम कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सामने आया। मज़हरुल-हक़ ने इस ओहदे को लेने से मना कर दिया। उनका कहना था कि अगर उन्होंने कांग्रेस की सदारत मंजूर कर ली, तो अपने सूबे में वह हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए जो काम कर रहे है, वह नहीं कर सकेंगे। जाहिर है उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को कांग्रेस के अध्यक्षता से अधिक तरजीह दी।

 


https://thecrediblehistory.com/featured/the-country-has-forgotten-babu-gainu-sayyed-who-gave-martyrdom-for-swadeshi/


आख़री समय में वह पटना छोड़कर सारण के ग्राम फ़रीदपुर में आकर अपने बनाए घर आशियाना में रहने लगे थे। 1929 जब कांग्रेस का सलाना जलसा हो रहा था उस समय मज़हरुल-हक़ फ़ालिज की बीमारी से जूझ रहे थे, इलाज काम नहीं आया और आखिरकार 2 जनवरी 1930 को मज़हरुल-हक़ दुनिया को अलविदा कह दिया। बिहार में उनके मौत का मातम छाया रहा।

 

राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है सचमुच मौलाना की मौत से हिन्दू मुस्लिम एकता का एक सच्चा हामी इस दुनिया से चल गया।

काश ! मौलाना आज होते, तो इसमें तो कोई शक़ नहीं कि ज़माने की हालत को देखते हुए उनको बहुत सदमा पहुँचता, लेकिन आज इने-गिने आदमी देश में एकता कायम करने का काम कर रहे हैं, उनके लिए वह एक बड़े सहारे की चीज़ बन जाते, और सच्ची बात तो यह है कि आज उनका नाम भी हमें एक नई रोशनी और नया उत्साह देने की ताक़त रखता है।

 

राहुल सांकृत्यायन ने अपने संस्मरण में उन्हें बेहद सम्मान से याद किया है। पटना में उनकी स्मृति में कई शिक्षण संस्थान बने हैं।


संदर्भ

मेवाराम गुप्त सितोरिया, हिंदुस्तान की जंगे आज़ादी के मुसलमान मुजाहिदीन, किताब घर, मुम्बई, 1988, पेज- 29-30

सय्यिद इब्राहीम फ़िकरी, हिंदुस्तानी मुसलमानों का जंगे-आजादी में हिस्सा, पेज, 44-45

असीर अदवीं, तहरीके आज़ादी और मुसलमान, पेज, 231-232,

फ़ारूक़ अर्गली, फ़खरे वतन, पेज 414-427

Editor, The Credible History

जनता का इतिहास, जनता की भाषा में

Related Articles

Back to top button