इंजीनियर की नौकरी छोड़ क्रांतिकारी बने,मोहम्मद अली खान
इंजीनियर मोहम्मद अली खान की स्मृति अतीत के गर्भ में खो गई है, परन्तु उनका बलिदान नि: संदेह अभूतपूर्व था।कभी ईस्ट इंडिया कंपनी के मुलाज़िम रहे मोहम्मद अली खान भेदभाव का शिकार बने थे। अंग्रेज़ों के बर्ताव से दुखी होकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी और क्रांतिकारियों के साथ आ गए।
मिठाई क्यों बेच रहे थे इंजीनियर मोहम्मद अली खान
फरवरी 1958 का अंत था। अंग्रेजों की सेना ने लखनऊ से कानपुर तक अपना पड़ाव डाल रखा था। सर लुगाड़ तथा ब्रिगेडियर होप का शिविर उन्नाव के पास था। अंग्रेज सेना को उस क्षेत्र में अपना पड़ाव डाले हुए दस दिन हो चुके थे। उनकी सेना किसी भी क्षण लखनऊ की ओर कूच कर सकती थी और क्रांतिकारियों की विजय को पराजय में बदल सकती थी।
दस दिन से सैनिक शिविर में पड़े-पड़े अंग्रेज अधिकारी बहुत ऊब का अनुभव कर रहे थे। चारों ओर नितांत सूनापन था। इस वातावरण को भेदती हुई कभी-कभी गोलियों की आवाज़ सुनाई देती थी।
ऐसी विकट परिस्थितियों में सार्जेन्ट फाब्स माईकेल को एक आवाज सुनाई दी। कोई व्यक्ति मिठाई बेच रहा था-मिठाई वाला, मिठाई वाला। आलू-बुखारे की केक वाला। पहले चखिए, फिर खरीदिए।
अंग्रेज अधिकारी प्रतिदिन राशन का मांस और बिस्कुट खाते-खाते थक चुके थे। उन्हें मिठाई वाले का आगमन सुखद परिवर्तन लगा।
मिठाई वाला युवक था और देखने में बहुत आकर्षक था। उसका रंग गोरा था। उसके बिल्कुल सफेद कपड़े पहन रखे थे। उसने अपनी मूछों तथा काले-घुँघराले बालों को मुसलमानों की भांति सफाई से काट रखा था। उसका माथा चौड़ा था और आंखो से बुद्धिमता टकपती थी।
यह व्यक्ति देखने में बिल्कुल अधिकारियों जैसे लग रहा था तथा उसका नाम मिक्की था। फाब्स माईकेल को लगा कि यह दोनों व्यक्ति बिल्कुल अपरिचित है।
इसलिए उन्होंने मिठाई वाले से पूछा-क्या आपके पास सैनिक शिविर में आने के लिए अनुमति पत्र है।
मिठाई वाले ने तत्परता से उत्तर दिया- सार्जेट साहब, मेरे पास स्वयं ब्रिगेडियर मेजर होप का दिया हुआ पास है। मेरा नाम जानी ग्रीन है। मैं सेनिक शिविर में खानसामा का काम करता था।
फाब्स माईकेल जानी ग्रीन की अंग्रेज़ी से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने पूछा-आपको इतनी अच्छी अंग्रेज़ी बोलनी कैसे आ गयी ?
जानी ग्रीन ने उत्तर दिया-मेरे पिता यूरोपीयन पलटन में खानसामा थे। मुझे आरम्भ से अंग्रेज़ी बोलने का अभ्यास है।
फाब्स माईकेल की मेज पर अखबार पड़े हुए थे। जानी ग्रीन ने उन्हें उठाकर पढ़ा और पूछा-मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि अंग्रेज क्रांति के विषय में क्या सोचते हैं, वह बहुत देर तक बातचीत करते रहे।
मिठाई वाला यह जानने को उत्सुक था कि अंग्रेजों की सैन्य शक्ति कितनी है, ये लोग लखनऊ की ओर कब कूच करना चाहते है और गर्मी का अंग्रेजों की नई सैनिक टुकड़ियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
जानी ग्रीन के बात करने का ढंग इतना आकर्षक था कि सार्जेट फाब्स माईकेल को कोई संदेह नहीं हो सका।
क्रांतिकारियों के गुप्तचर थे मोहम्मद अली खान
अगले दिन पता चला कि जानी ग्रीन और कोई नहीं, इंजीनियर मोहम्मद अली खान थे।
वह लखनऊ से मिठाई वाले का भेष बनाकर, अंग्रेजों के शिविर में गुप्तचरी करने गये थे। मोहम्मद अली खान पकड़े गये और उन्हें फाँसी की सज़ा दी गयी। उस समय अधिक रात हो गई थी, इसलिए उन्हें फाब्स माईकेल के पास भेज दिया गया। प्रात: काल का समय फाँसी के लिए निश्चित किया गया।
फाब्स माईकेल जानी ग्रीन (मोहम्मद अली खान) से वास्तविक रूप में प्रभावित हुए थे। वह उनके प्रारब्ध के विषय में जानकर द्रवित हो उठे।
कुछ अंग्रेज सैनिक बाज़ार से सूअर का मांस खरीद कर लाये थे। वह सूअर का मांस मोहम्मद अली खान को खिलाकर धर्म-भ्रष्ट करना चाहते थे। फाब्स माईकेल ने अंग्रेज सैनिकों को डांटकर निर्देश दिया कि अली खान को मांस खाने के लिए बाध्य न किया जाय, क्योंकि यह अंग्रेजों की गौरवशाली परपरा के विरुद्ध है।
मोहम्मद अली खान का मन अंग्रेज सेनापति के प्रति कृतज्ञता से भर उठा उन्होंने फाब्स माईकेल से कहा-तुमने मझपर दया की है। अल्लाह तुम्हारी रक्षा करेगा। फाब्स माईकेल ने मोहम्मद अली खान की हथकड़ियाँ खुलवा दी और उन्होंने शाम की नमाज़ पढ़ी। अंग्रेज सेनापति ने मोहम्मद अली खान को हुक्का पीने को दिया।
दोनों के बीच रात भर बाते हुई। मोहम्मद अली खान ने उसे अपनी कहानी सुनाई-
मैं गुप्तचर नहीं हूँ। मैं बेगम हजरत महल की सेना में अधिकारी के पद पर काम करता हूँ। मैं वहाँ की सेना में मुख्य अभियंता हूँ। मैं आप लोगों की सैन्य शक्ति के विषय में निश्चित जानकारी लेने के लिए यहाँ आया था। मैं कल सुबह तक वापस पहुँच जाता। मुझे सूचना मिल चुकी थी। परंतु मैं एक बार फिर उन्नाव आ गया।
मैं देखना चाहता कि अंग्रेज सेना ने आगे की ओर कूच करना आरंभ कर दिया है अथवा नहीं। किसी व्यक्ति ने मेरी शिकायत कर दी, जो स्वयं अंग्रेज अधिकारियों के रोष से अपने को बचाना चाहता था।
क्यों छोड़ी ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी
मोहम्मद अली खान का जन्म रुहेलखंड के सभ्रान्त परिवार में हुआ था। प्रारभिक शिक्षा बरेली कॉलेज में हुई थी।
वहाँ पर इग्लिश में सर्वाधिक अंक प्राप्त किये। रुडकी के इजीनियरिंग कांलेज में प्रवेश ले लिया। वहाँ भी मोहम्मद अली खान को प्रशंसनीय सफलता मिली। इंजीनियरिंग की परीक्षा में सभी यूरोपीयन विद्यार्थियों से कही अधिक अंक मोहम्मद अली खान ने प्राप्त किए और इस सफलता से देश का मस्तक गर्व से उन्नत हो गया।
मोहम्मद अली खान ने अंग्रेज कंपनी की नौकरी की । उन्होने सेना में जमादार पद देकर पहाड़ी क्षेत्र में भेज दिया । कहने को तो मोहम्मद अली खान कंपनी का अधिकारी थे परंतु वास्तविकता इससे भिन्न थी। उन्हें एक अंग्रेज सार्जेन्ट के अधीन कर दिया गया था जो उनकी योग्यता के सामने नहीं ठहरता था। वह हर बात पर मोहम्मद अली खान को अपमानित करता था।
भेदभाव से तंग आकर मोहम्मद अली खान ने कंपनी की नौकरी छोड़ दी और अपने घर चले गए। फिर वह अवध के नवाब के पास काम करने लगे। उसी समय नेपाल के राणा जंगबहादुर इंग्लैड जाना चाहते थे और उन्हें एक सेक्रटरी की आवश्यकता थी। मोहम्मद अली खान अंग्रेज़ी में पूर्ण दक्षता के कारण उनके यहाँ नौकरी पा गए।
जब राणा जंगबहादुर के साथ प्रथम बार इंग्लैड गए। वहाँ अंग्रेजों की सेना की 43वीं पलटन ने उनका स्वागत किया। उस समय मोहम्मद अली खान को क्या पता था कि एक दिन वह अंग्रेजों द्वारा बंदी होगे ?परंतु प्रारब्ध को कौन जानता है और उससे कौन लड़ सकता है ?
जंग ए आज़ादी से जुड़े मोहम्मद अली खान
विदेश से लौटने के उपरांत मोहम्मद अली खान पूर्ण उत्साह के साथ स्वतंत्रता-संग्राम में कूद पड़े। अपनी पत्नी और बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़ने के लिए रुहेलखंड में अपने गाँव चले गये।
वहीं पर उन्होंने सुना कि क्रांति का शुभारंभ हो गया है। मोहम्मद अली खान तुरंत बरेली पहुँचे और क्रांतिकारी सेना में सम्मिलित हो गये। बरेली की कुछ सेना, सेनापति बख्त खां के अन्तर्गत दिल्ली के क्रांतिकारियों की सहायता के लिए दिल्ली पहुँची। इसी सेना के साथ मोहम्मद अली खान भी दिल्ली पहुँच गए।
दिल्ली में वह मुख्य अभियंता नियुक्त हुए। कंपनी के कुछ और इजीनियरों ने भी विद्रोह कर दिया था तथा मेरठ से दिल्ली पहुँच गये थे। मोहम्मद अली खान ने इन सबकी सहायता से दिल्ली की सुरक्षा का प्रबंध किया। मोहम्मद अली खान सितंबर तक दिल्ली में रहे और वहाँ की क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेते रहे।
तभी दिल्ली का पतन हो गया और मोहम्मद अली खान बची-खुची क्रांतिकारी सेना के कुछ उत्साही सेनानियों को अपने साथ लेकर लखनऊ पहुँचे। शहजादा फिरोज शाह और बख्त खां भी 30000 सेनानियों के साथ लखनऊ की ओर बढ़े।
यह सेना मथुरा की ओर से लखनऊ की ओर बढ़ी। मोहम्मद अली खान ने मथुरा के पास सेना को नदी पार करने के लिए नावों का पुल बनाया। लखनऊ पहुँचकर वह फिर मुख्य अभियता के पद पर नियुक्त हो गये। नवबंर के महीने में क्रांतिकारियों ने रेजीडेसी के चारों ओर घेरा डाल रखा था।
मोहम्मद अली खान ने सिकंदराबाद में तीन हज़ार सैनिकों को तैनात कर रखा था। सिकदराबाद लखनऊ की क्रांति का प्रमुख स्थान था। मोहम्मद अली खान ने वहाँ पर बड़े उत्साह के साथ क्रांति का हरा झंडा फहरा दिया था और युद्ध के लिए आदेश दिया।
जब अंग्रेजी सेना सिकंदराबाद पहुँची तो उन्होंने क्रांति का हरा झंडा उतार दिया और सब सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। मोहम्मद अली खाने ने स्वयं यह रक्तपात देखा।
जब रात बीत चुकी , मोहम्मद अली खान की कहानी भी खत्म हो गई। उन्होंने फांसी के फंदे पर झूलने से पहले अंग्रेज सेनापति से कहा-
शुक्र खुदा का। हमने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। कंपनी राज का अंत हो गया है। हमारा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। हम अंग्रेजों को देश से पूरी तरह बाहर निकाल नहीं पाये। परंतु, अंग्रेजों की पार्लियामेंट का सीधा प्रशासन देश के लिए अधिक हितकर होगा। मेरे देश के शोषितवासियों के सम्मुख आलोकमय भविष्य है, यद्यपि उसे देखने के लिए मैं जीवित नहीं रहूंगा।
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और अन्त मोहम्मद अली खान का
प्रात काल की बेला में सूर्य की किरणों की ललछोई से आकाश आलोकमय हो उठा। मोहम्मद अली खान की इस दुनिया से विदा की अन्तिम बेला आ पहुँची थी।
एक क्षण को वह अपनी पत्नी और बच्चों को याद कर विचलित हो उठे, जो उनके दुर्भाग्य से अपरिचित थे। शीघ्र ही वह संयत हो गये। उन्होंने कहा कि मैंने इतिहास पढ़ा है और मुझे कठिनाई के क्षणों में अविचलित रहना चाहिए।
फाब्स माईकेल ने मोहम्मद अली खान के धर्म की रक्षा की थी। कृतज्ञता के रूप में उन्होंने एक अंगूठी निकालकर अंग्रेज सेनापति को भेंट की।
उन्होंने कहा–मेरे पास इस अंगूठी के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यह अंगूठी एक धर्म-गुरू की दी हुई है। यह अंगूठी रण में तुम्हारी रक्षा करेगी।
अगले दिन प्रात काल की बेला में इंजीनियर मोहम्मद अली खान को फांसी पर लटका दिया गया। इस प्रकार उन्नाव के सैनिक-शिविर में एक बेहद सुन्दर व्यक्तित्व के जीवन की कहानी का आरंभ होती ही अंत हो गया।
संदर्भ
उषा चन्द्रा, सन सत्तावन के भूले-बिसरे शहीद,प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार,1986, पेज 83-88
नोट: मोहम्मद अली खान की कोई तस्वीर उपलब्ध नहीं है, लेख में सांकेतिक तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है
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