1857 के गदर के अमर शहीद वृन्दावन तिवारी
हिन्दी में एक कहावत है “लड़े सिपाही नाम हवलदार का” अथार्त मेहनत कोई एक व्यक्ति करता है और उसका श्रेय कोई ओर व्यक्ति ले जाता है। 1857 के गदर में ऐसे सौभाग्यशाली लोग भी हुए हैं जिन्हें कार्यों के हिसाब से जीवन में प्रसिद्धि एवं यश प्राप्त हुआ है। परंतु,भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में असंख्य लोगों ने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया था परंतु उन्हें लोग याद नहीं करते है।
वृन्दावन तिवारी के नाम से लगभग समस्त राष्ट्र अपरिचित है। जिन्होंने धर्म और राष्ट्र के लिए अपने को बलिदान कर दिया।
कौन थे, वृन्दावन तिवारी, जिनको लोग याद नहीं करते ?
1857 के शहीदों में वृन्दावन तिवारी भी एक थे। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चितबड़ागाँव में उनका जन्म हुआ था। वर्तमान में चितबड़ागाँव उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक कस्बा और नगर पंचायत भी है। लेकिन इस गाँव के अमर सपूत के बारे में लोग बहुत कम जानते हैं।
बिहार के बांसुरिया बाबा की भांति वृंदावन तिवारी भी अट्ठारह सौ सत्तावन के भूले बिसरे एक शहीद है। वृन्दावन लाल तिवारी एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी।
वृन्दावन तिवारी पुलिस में थाना सिपाही थे। वह ब्राह्मण थे और नगर प्रशासन से सम्बद्ध थे। मिदनापुर के कारागृह में बंदियों में असंतोष था।
उस समय मिदनापुर की जेल में लगभग 800 कैदी थे। 100 कैदियों पर डाके आदि के भीषण अपराधों के लिए मुकदमा चल रहा था। इन कैदियों को हथकड़ी-बेड़ी नहीं लगायी गयी थी, परंतु इन्हें आजीवन कारावास की सजा मिलना अनिवार्य-सा था।
क्यों कूदे 1857 की क्रांति में वृन्दावन तिवारी ?
उस समय मिदनापुर के मजिस्ट्रेट एस. लशिंग्टन थे। एक दिन वह खाने के समय बंदीगृह के दौरे \ पर आये। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि भयंकर अपराधी और साधारण अपराधी बिना रोक-टोक आपस में मिल जुलकर रह रहे थे।
लुशिंग्टन ने आज्ञा दी कि प्रत्येक क़ैदी को अपने वार्ड में खाना मिलेगा। अगले दिन 51 कैदियों ने खाना खाने से इंकार कर दिया।
लुशिंग्टन तथा एक अन्य सेनाधिकारी जेल में आये और तीन चार क़ैदियों को बेंत लगाने की आज्ञा दी। कारागृह के कुछ बंदियों ने खाना लेना स्वीकार कर लिया। फिर शुरू हुआ दमन चक्र।
लुशिंग्टन सभी क़ैदियों को एक साथ मिलने नहीं देता था। कई बार वह बिना किसी अपराध के क़ैदियों को बेंतसे पीटता था।
वृन्दावन तिवारी जी रोज ऐसे भारतीय क्रांतिकारियों हालत देखते और मन ही मन दुःखी होते। धीरे-धीरे इन्होने अंग्रेजो से बदला लेने की ठानी और 1857 की क्रांति में विद्रोहियों का साथ देने लगे।
1857 की क्रांति में वृन्दावन तिवारी की भूमिका
अगले दिन थाना सिपाही वृन्दावन तिवारी मिदनापुर के सैनिक शिविर में आये। उन्होंने सैनिकों को सत्य से अवगत कराया।
उन्होंने ओजपूर्ण वाणी में कहा-सैनिक भाइयों, कल लुशिंग्टन एवं एक सेनाधिकारी कारागृह में आये थे। उन्होंने बंदियों को गाय का मांस और सुअर का मांस खाने के लिए बाध्य किया। क्या आप इस अपमान को सहेंगे? वृन्दावन तिवारी के हाथ में तलवार थी।
सैनिको को जागृत करने के लिए उपंरात वृन्दावन तिवारी सैनिक अधिकारियों के पास गये। उनके अंदर में भी उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी भावना भरने का प्रयास किया। वृन्दावन तिवारी के शब्दों में क्रांति का चिर सत्य निहित था।
उन्होंने कहा–शक्ति आपके हाथ में है। उठो, जागो, अंग्रेजो के विरुद्ध अपने लक्ष्य को कार्यान्वित करो। वृन्दावन तिवारी ने खजाने के रक्षकों के सम्मुख भी उत्साहपूर्ण भाषण दिया। उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान दोनों को अंग्रेजों के विरुद्ध उठ खड़ा होना चाहिए।
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और अंत में शहादत
4 जून 1857 को कर्नल फास्टर ने, जो शेखावत बटालियन के कमांडर थे। भारत सरकार के सेक्रेटरी को लिखा- वृन्दावन तिवारी ने सिपाहियों में विद्रोह की भावना जगाने का प्रयास किया। जबकि समस्त देश की स्थिति वैसे ही सामान्य नहीं है। उसके इस कुकृत्य के लिए शीघ्र ही प्राण दंड देने की अमुमति दी जानी चाहिए। मैं ऐसे व्यक्ति को फांसी देने में एक क्षण को भी नहीं हिचकूंगा।
बटालियन के दो सिपाहियों ने वृन्दावन तिवारी को पकड़ किया। उसकी तलवार और हथियार रखवा ली और अंग्रेज अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया।
वृन्दावन तिवारी के ऊपर सैनिक न्यायालय में मुकदमा चला। उनके ऊपर आरोप लगाया गया कि उन्होंने शेखावट बटालियन के सिपाहियों में धार्मिक भावनाओं का आधार लेकर विद्रोह की भावना जागृत की तथा सिपाहियों को क्रांति का पाठ पढ़ाया।
इस अपराध के लिए वृन्दावन तिवारी को 8 जून 1857 को फाँसी पर लटका दिया गया।
अंगेजों ने क्रांतिकारी वृन्दावन तिवारी को फाँसी पर लटका दिया, पंरतु क्रांति की भावना चिरंजीव रहती है। उसे कोई दबा नहीं सकता, उसे कोई मार नहीं सकता। वृन्दावन तिवारी के फांसी से आक्रोश भड़का और शेखावट बटालियन के देशी सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
संदर्भ
उषा चन्द्रा, सन सत्तावन के भूले-बिसरे शहीद,प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार,1986, पेज 94-94
नोट: शहीद वृन्दावन तिवारी की कोई तस्वीर उपलब्ध नहीं है, लेख में सांकेतिक तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है
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