कामगारों और किसानों के नेता गांधी
1916 का पूरा साल गांधी जी ने एक भारतीय किसान-मजदूर की वेश-भूषा में, उनकी ही तरह रेलगाड़ी के तीसरे दर्जे में बैठकर सारा देश को समझने का प्रयास किया। वह भारत के खेतों-खलिहानों में जाते, उन उत्सवों-त्योहारों-मेलों-तीर्थों में भटकते, जहाँ देश का मजदूर-किसान अपने स्वाभाविक विश्वासों-आस्थाओं के साथ जीता था। यह उनके साधना का वह काल था, जिसका परिणाम 1917 में हमें बिहार के चंपारण में दिखाई देता है।
गांधीजी से यह सवाल किसी ने पूछा कि महात्मा गांधी पहले किसान हैं या मजदूर? उन्होंने कहा- यह ऐसा सवाल हुआ कि जैसे आप पूछ रहे हैं कि मैं पहले सांस लेता हूँ कि छोड़ता हूँ!
चंपारण में किसानों के बीच गांधीजी
चंपारण में गांधीजी एक किसान बन कर, देश के पहले राजनीतिक किसान आंदोलन का संचालन करते मिलते हैं। नील की खेती की शोषणकारी प्रथा से मुक्ति के लिए तो यह आंदोलन है ही लेकिन यह इस अर्थ में एक नया चरित्र पा जाता है कि गांधी इसे आज़ादी की लड़ाई से भी जोड़ देते हैं।
किसान देश की आज़ादी का सिपाही बनेगा, यह इससे पहले तो किसी ने सोचा नहीं था; किसानों ने कभी चाहा नहीं था। चंपारण के बाद कांग्रेस के मंच पर किसानों की जैसी उपस्थिति होती है, वह कांग्रेस की भाषा व भूषा दोनों ही बदल देती है। क्या आपको इतना भी मालूम नहीं है कि जो किसान होता है, वह मजदूर न हो, यह संभव ही नहीं है! किसानी-खेती ऐसा उद्यम है जो किसान की मजदूरी के बिना संभव ही नहीं है।
बिहार छोड़ने से पहले, गांधी जी चंपारण में किए गए रचनात्मक कार्यों की एक मजबूत और ठोस नींव रखने के इच्छुक थे। जब हम चंपारण में जांच का काम बंद कर रहे थे, गांधी जी को गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों और अहमदाबाद के मिल मजदूरों की ओर से उनकी शिकायतों के निवारण के लिए उनके संघर्ष में तत्काल नेतृत्व करने का आग्रह किया गया।
अहमदाबाद में गांधी जी मजदूर-मालिकों और ट्रेड यूनियन के साथ काम किया
चंपारण से गांधी जी निकलते हैं तो सीधा पहुँचते हैं अहमदाबाद, जहाँ मिल मालिकों और मजदूरों में सीधी टक्कर की स्थिति बनी हुई थी। सालों तक गांधी जी ने अहमदाबाद मिल मजदूर यूनियन बनाने का काम किया। इससे अहमदाबाद के कपड़ा श्रमिकों और मिल मालिकों के बीच अच्छे संबंध बने।
भारत आते ही हम गांधी जी को किसानों का नेतृत्व करते पाते हैं, और फिर मजदूर-मालिकों के बीच ट्रेड यूनियन नेता की भूमिका अदा करते हुए पाते हैं। मिलें भी कपड़ों की हैं जो भारत के मैनचेस्टर अहमदाबाद में हैं और जिन पर औद्योगिक क्रांति का महल खड़ा किया गया था; और मालिक भी कैसे, जो गांधी को जानते भी हैं, उनकी कई बार मदद भी कर चुके हैं। गांधीजी जो रास्ता निकाला वह ट्रेड यूनियन को एक नई हैसियत भी देता है और एक नया रास्ता भी बताता है।
वे कहते हैं कि मालिक-मजदूर की हमारी समझ ही उल्टी है. यहाँ तो दोनों ही मालिक हैं: एक पूंजी का मालिक है, दूसरा श्रम का मालिक है, और दोनों की हैसियत बराबर है। इसलिए एक-दूसरे को डराने-धमकाने, एक-दूसरे को ठगने, एक-दूसरे से चोरी करने जैसे उपाय काम नहीं देंगे मजदूरों को संभव आय और मालिकों को संभव कमाई का विचार करना होगा।
गांधी जी अहमदाबाद गए और पाया कि मिलों की मांगें जायज थीं। मिलों के मालिक वह लोग थे, जो गांधी जी का सम्मान करते थे और उनके काम की सराहना करते थे। उन्होंने दोनों पक्षों को सुझाव दिया कि वे अपने विवाद को मध्यस्थता के लिए प्रस्तुत कर सकते हैं।
जब मिल मालिकों ने उनके सुझाव को मानने से इनकार कर दिया तो उनके पास मजदूरों को शांतिपूर्ण हड़ताल पर जाने की सलाह देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लोगों में साहस पैदा करने और उन्हें अहिंसक कार्रवाई के लिए प्रशिक्षित करने की उनको क्षमता फिर से यहां काम कर रही थी। मिल मजदूरों ने संतोषजनक समाधान होने तक हड़ताल जारी रखने का संकल्प लिया था। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत गए, हड़ताल कमजोर होने लगी और फिर गांधी जी ने उपवास शुरू कर दिया।
पाटीदारों ने गांधी जी के आह्वान पर ‘नो रेट’ अभियान का संकल्प लिया
हालांकि इस घटनाक्रम ने मिलों को मजबूत किया, पर मिल मालिक इसे दबाव को तरह देख रहे थे। अंततः समझौता हुआ और श्रमिकों की मांगों को मध्यस्थता के लिए भेजा गया। इसी अवसर पर गांधीजी ने स्वामी संबंधों के बारे में अपने विचार तैयार किए। वह जनता की भलाई के लिए काम करते हुए उन्हें भागीदार मानते थे। वह मिल मालिकों को ट्रस्टी मानते थे। उन्होंने कहा कि उनके बीच किसी भी झगड़े को आपसी सहमति से मध्यस्थता के माध्यम से समझाया जाना चाहिए।
उन्होंने ट्रेड यूनियनों के कार्यों को “मी निर्धारित किया। ट्रेड यूनियनों के कार्य के बारे में उनकी धारणा यह थी कि वे केवल अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करने और हड़ताल करने के लिए नहीं हैं, उन्हें अपनी और अपने परिजनों की सामाजिक उन्नति के लिए भी काम करना पड़ता है। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने रचनात्मक कार्यों की योजनाओं को उनके सामने रखा, जैसे कि शिशु गृह का संगठन, उनके बच्चों की शिक्षा के लिए दिन के स्कूल और वयस्कों के लिए रात की कक्षाएं, नशाबंदी आदि।
सालों तक उन्होंने अहमदाबाद मिल मजदूर यूनियन बनाने का काम किया, जो देश का सबसे मजबूत संघ बन गया। इससे अहमदाबाद के कपड़ा श्रमिकों और मिल मालिकों के बीच अच्छे संबंध बने । खेड़ा सत्याग्रह एक और मील का पत्थर था वहां फसलें खराब हो गई थीं, जिसके परिणामस्वरूप अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी। लेकिन सरकार ने भू-राजस्व वसूलने पर जोर दिया। इसकी वसुली निलंबित करने संबंधी किसान प्रतिनिधियों की मांग अनसुनी कर दी गई।
गांधी जी ने किसानों की मांग को न्यायसंगत माना। उन्होंने किसानों से राजस्व के भुगतान से इनकार करने और परिणाम भुगतने के लिए कहा। पाटीदारों ने गांधी जी के आह्वान पर ‘नो रेट’ अभियान को निर्धारित और संगठित करने का संकल्प लिया। इस आंदोलन का संचालन वल्लभ भाई, शंकरलाल, अनुसूया बेन और याज्ञनिक ने किया था। किसानों की एकता और उनके बलिदान की भावना की जल्द ही जीत हुई। सरकार झुकने के लिए बाध्य थे।
संदर्भ
जे.बी.कृपलानी, अनुवाद अरविंद मोहन, आंखो देखी आजादी की लड़ाई, प्रभात प्रकाशन
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में