भारतीय स्चाधीनता संग्राम के किशोर क्रांतिकारी,हरिपद भट्टाचार्य
असनुल्ला खान, एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी थे, जो भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को क्रूरता से सताने के लिए जाने जाते थे। अंग्रेजों ने उन्हें खान बहादुरअसनुल्ला खान उपाधि से सम्मानित किया और कुमिला से चटगाँव भेज दिया।
एक दिन जब असनुल्ला खान हरिपद भट्टाचार्य के पड़ोस से गुजर रहे थे, तो उन्होंने एक छोटी लड़की पारुल को काज़ी नज़रुल इस्लाम का गीत दुर्गम गिरी कंतर मारू गाते सुना। उन्होंने तुरंत उनके घर में घुसकर पुलिस को पारुल के घर में मौजूद सभी पुरुषों और महिलाओं की पिटाई करने को कहा और पारुल को पीट-पीटकर मार डाला। यह सब सिर्फ़ एक गीत गाने की वजह से हुआ।
चटगाँव विद्रोह के नेताओं में से एक अंबिका चक्रवर्ती को अभी-अभी पकड़ा गया था। उस समय वह तपेदिक से पीड़ित था और उसे खून की उल्टी हो रही थी। लेकिन फिर भी असनुल्ला खान ने अंबिका के चेहरे, सिर और छाती पर जूतों से हमला करने से खुद को नहीं रोका।
हमले के बाद बीमार अंबिका ने पानी मांगा। असनुल्ला खान ने तुरंत अपनी जिप खोली और अंबिका के मुंह में पेशाब कर दिया। यह उसकी हैवानियत की हद थी।
असनुल्ला खान ने चटगाँव के हिंदुओं पर आतंक का राज चलाया, जो क्रांतिकारियों का आधार था। उनकी हत्या का विवरण किसी और ने नहीं बल्कि 14 वर्षीय बहादुर लड़के हरिपद भट्टाचार्य ने दिया है।
कौन थे हरिपद भट्टाचार्य?
एक दिन असनुल्ला खान ने कुछ अन्य हिंदू युवकों के साथ मिलकर उसे हरिपद भट्टाचार्य को उठा लिया और सूर्यसेन के बारे में जानकारी निकालने के लिए उसे पूरे दिन पीटा और भूखा रखा। यह कहने पर कि हरिपद भट्टाचार्य का सूर्यसेन से कोई संबंध नहीं है, उसे कोई राहत नहीं मिली।
चटगाँव शस्त्रागार कांड की ओट लेकर पुलिस द्वारा जनता पर किए जानेवाले नित्य नए अत्याचार उसे सहन नहीं हुए। एक दिन हरिपद भट्टाचार्य ने मास्टर दा (सूर्यसेन ) के सामने प्रस्ताव रखा–
मास्टर दा! यह जो पुलिस इंस्पेक्टर खान बहादुर असनुल्ला खान हम क्रांतिकारियों का दमन करने में आनंद ले रहा है, वह अब अधिक सहन करने के योग्य नहीं है। यदि आप आज्ञा दें तो मैं उसको ठिकाने लगा दूँ?”
मास्टर दा ने जब हरिपद की बात सुनी तो उन्हें आंतरिक प्रसन्नता हुई। वह बोले—
“हरिपद! मैं तुम्हारे हौसले की दाद देता हूँ। सच पूछा जाए तो तुम जैसे अबोध बालक ही अब कुछ करके दिखा सकते हैं; क्योंकि वरिष्ठ क्रांतिकारियों पर तो पुलिस की कड़ी निगरानी रहती है और उन्हें पास नहीं फटकने नहीं दिया जाता।
लेकिन प्रश्न यह है कि तुम उसके पास तक पहुँच कैसे पाओगे?”
हरिपद के पास योजना तैयार थी वह बोला-
“मास्टर दा! यह तो हम सभी जानते हैं कि खान बहादुर असनुल्ला खान को फुटबॉल के खेल से बहुत प्रेम हैं। मुझे सूचना मिली है कि उसकी टीम रेलवे कप प्रतियोगिता के लिए कोहिनूर टीम से 30 अगस्त को फुटबॉल मैच खेलेगी। उस दिन उस अत्याचारी पुलिस इंस्पेक्टर से निबटने का अच्छा अवसर मिलेगा। आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे एक अच्छा रिवॉल्वर दे दें और निशानेबाजी का भी थोड़ा अभ्यास करा दें। मुझे विश्वास है कि शेष काम मैं करके दिखा दूंगा। “
सूर्यसेन ने हरिपद भट्टाचार्य का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उन्होंने हरिपद को एक अच्छा रिवॉल्वर देकर उसे निशानेबाजी का अच्छा अभ्यास करा दिया।
सफल नहीं हो पा रही थी असनुल्ला खान को मारने की योजना
जनता मांग कर रही थी कि खान बहादुरअसनुल्ला खान को सज़ा दी जाए। यह 1931 की बात है। मास्टर दा, निर्मल सेन और चटगाँव के कई अन्य शीर्ष नेता फरार थे। उन्होंने अपने पनाहगाहों से खान बहादुर असनुल्ला खान की हत्या की योजना बनाई।
हरिपद को टोही मिशन पर चटगाँव शहर भेजा गया था। उन्होंने खान बहादुर असनुल्ला खान की दिनचर्या के बारे में सारी जानकारी हासिल की। खान बहादुर असनुल्ला खान को उसके घर पर कड़ी सुरक्षा दी गई थी।
खान बहादुर असनुल्ला खान जब भी चटगाँव शहर में होता था, तो हर दोपहर फुटबॉल मैच देखने जाता था। जब भी वह शहर में होता था, तो वह एक बाज़ार में एक वेश्या के साथ अपनी रातें बिताता था। क्रांतिकारियों ने उसे फुटबॉल के मैदान में निशाना बनाने का फैसला किया।
लेकिन पुलिस ग्राउंड में असनुल्ला खान के इर्द-गिर्द सेना और पुलिस के जवानों की कड़ी घेराबंदी होगी। मास्टर दा ने योजना बनाई थी कि जब वह कार्रवाई के लिए इंतजार कर रहे क्रांतिकारियों के एक समूह को संकेत देगा तो हरिपद उसका पीछा करेगा और बमबारी करके घेराबंदी तोड़ देगा और दूसरा समूह उसे गोली मार देगा।
क्रांतिकारी दो बार तैयार होकर गए, लेकिन सफल नहीं हो पाए क्योंकि एक दिन बारिश के कारण मैच रद्द कर दिया गया और दूसरे दिन घेरा तोड़ना उचित नहीं था। उस समय चटगाँव में उच्चतम स्तर की सतर्कता के कारण गोला-बारूद के साथ जाना खतरनाक होता जा रहा था।
फिर हरिपद भट्टाचार्य ने यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।
हरिपद ने मास्टर दा से कहा कि वह अकेले ही उन्हें यह जिम्मेदारी सौंप दें। मास्टर दा ने सहमति तो दे दी, लेकिन हरिपद की सहायता के लिए अपने बचपन के दोस्त को नियुक्त कर दिया। हालांकि यह काम कहना जितना आसान था, करना उतना ही मुश्किल था।
जब हरिपद भट्टाचार्य ने चार गोलियाँ असनुल्ला पर चलाई
30 अगस्त, 1931 को पुलिस इंस्पेक्टर खान बहादुर असनुल्ला खान की टीम टाउन क्लब और कोहिनूर टीम में फुटबॉल प्रतियोगिता का मुकाबला हुआ। टाउन क्लब ने इस खेल में कोहिनूर टीम को हरा दिया। खेल खत्म होने पर असनुल्ला खान खुशी के मारे उछल रहा था। उसे बधाई देनेवाले लोगों की भीड़ उसके आसपास जमा हो गई थी। हरिपद एक देहाती की तरह कपड़े पहने हुए गया। यह उसका भाग्यशाली दिन था। यह फुटबॉल मैच के फाइनल का दिन था। असनुल्ला खान की टीम जीत गई। जैसे ही कप्तान ने उसे ट्रॉफी दी, खुशी से असनुल्ला खान ट्रॉफी के साथ नाचते हुए सैन्य घेरे से बाहर चला गया।
जब असनुल्ला खान घेरे से बाहर था, तब हरिपद के पास कार्रवाई करने के लिए बहुत कम समय था। इसी समय अवसर पाकर हरिपद भी उसके बिलकुल निकट पहुँचा और अपना रिवॉल्वर निकालकर चार गोलियाँ उसके ऊपर छोड़ दीं। एक गोली असनुल्ला खान के दिल पर लगी और वह भूमि पर गिर पड़ा।
गोलियाँ चलने की आवाज सुनकर भीड़ बिखर गई और जिसको जिधर भागने का अवसर मिला, वह उधर भाग खड़ा हुआ। चटगाँव के लोग उस बुराई के अंत से खुश थे जिसने कई लोगों का जीवन बर्बाद कर दिया था।
इस समय तक हरिपद भट्टाचार्य घटनास्थल पर ही यह देखने के लिए खड़ा रहा कि असनुल्ला खान मरा या नहीं। वह उसे जीवित छोड़कर नहीं जाना चाहता था। उसे निश्चल खड़ा देखकर कुछ पुलिसवालों ने झपटकर उसे पकड़ लिया और उसका रिवॉल्वर छीन लिया।
पुलिसवालों ने हरिपद भट्टाचार्य को लात, घूँसों, बूटों की ठोकरों और डंडों से इतनी बुरी तरह मारा कि पिटते पिटते वह बेहोश हो गया। बेहोशी की हालत में ही उसे उठाकर ले जाया गया। उसे चटगाँव कोतवाली में बंद कर दिया गया। होश आने पर फिर बेरहमी के साथ उसकी पिटाई की गई।
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जब हरिपद भट्टार्चाय को कालापानी की सजा सुनाई गई
चटगाँव की पुलिस को इतने पर भी संतोष नहीं हुआ। वह हरिपद भट्टाचार्य के घर पहुँची और उसके पिता को भी पीटा गया।
हरिपद के अवोध भाई को पुलिसवालों ने जूतों से कुचल-कुचलकर मार डाला। पुलिस के पाले हुए गुंडे शहर में छोड़ दिए गए उन लोगों ने चटगाँव में तीन दिन तक लूटमार मचाई और दुकानों एवं घरों में आग लगा दी लोगों को सड़कों पर से घसीटते हुए थाने तक लाया गया और उन्हें तंग कोटरियों में एक-दूसरे के ऊपर थैलों की भाँति पटक दिया गया। उनका खून बह-बहकर बाहर निकल चला।
16 सितंबर, 1931 को अवैध हथियार रखने तथा हत्या का अभियोग हरिपद भट्टाचार्य पर चलाया गया। कम उम्र होने के कारण हरिपद भट्टाचार्य फाँसी के दंड से तो बच गया, लेकिन 22 दिसंबर, 1932 को उसे आजीवन कालापानी की सजा सुना दी गई।
संदर्भ
आशारानी व्होरा, क्रांतिकारी किशोर,सस्साहित्य प्रकाशन, दिल्ली
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में