शहीद सुखदेव जिन्होंने पंजाब में क्रांतिकारी संगठन खड़ा किया
बनारसीदास चतुर्वेदी ने अपने संपादन में भगवानदास माहौर, सदाशिवराव मलकापुरकर और शिव वर्मा के सहयोग से यश की धरोहर शहीद-ग्रन्थ-माला
Credible History is an endeavour to preserve authentic history as gleaned through the lens of established, respected historians who have spent their lives researching it via reliable sources. It aims to counter the propaganda being spread through a large section of mainstream media and social media platforms, and provide easy access to established historical resources
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बनारसीदास चतुर्वेदी ने अपने संपादन में भगवानदास माहौर, सदाशिवराव मलकापुरकर और शिव वर्मा के सहयोग से यश की धरोहर शहीद-ग्रन्थ-माला
मोतीलाल नेहरू को अक्सर जवाहरलाल नेहरू के पिता के रूप में ही जाना जाता है। लेकिन बचपन से संघर्ष
सामाजिक मुद्दों के लिए जीवन समर्पित करने वाली मृदुला साराभाई मृदला साराभाई वह महिला जो आजादी के आंदोलनों में सफेद
औपनिवेशिक भारत में जब आज का बांग्लादेश भारत का हिस्सा हुआ करता था, तब एक यूरोपियन क्लब के बोर्ड पर
शांतीमोय रे ने अपनी किताब ‘Freedom Movement and Indian Muslims‘ में इस पर विस्तार से लिखा है। प्रस्तुत है
अंग्रेजी के सबसे प्रसिद्ध उपन्यासकारों में से एक चार्ल्स डिकिन्स ने “पिकविक पेपर्स” नाम से एक उपन्यास लिखा था। यह
[सरदार वल्लभभाई पटेल (1875-1950) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे महत्त्वपूर्ण नेताओं में थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में और बाद
1947 के उन पागलपन भरे दिनों में जब बँटवारे का खंजर हर हिन्दू-मुसलमान के सीने को चाक कर रहा था,
1914 में पहला विश्वयुद्ध शुरू होने पर सावरकर ने एक बार फिर ब्रिटिश सरकार से रिहाई के लिए याचिका प्रस्तुत
1857 के विद्रोह के पहले, भारत में संन्यासियों और फ़क़ीरों ने ब्रिटिश शासन के स्थापना के विरोध में लंबा संघर्ष
आज़ादी की लड़ाई में कांग्रेस और मुसलमानों के रिश्ते को लेकर बहुत कुछ कहा जाता है। शांतीमोय रे ने अपनी
अप्रैल का महीना बिहार के चंपारण जिले के इतिहास में खास है क्योंकि अप्रैल महीने के दूसरे पखवाड़े में सन
1945 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की असामयिक मृत्यु के बाद अंग्रेज सरकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर बंदी बना
1947 में देश आजाद तो हुआ लेकिन बंटवारे ने बीच में एक खून की लकीर खींच दी। हम सभी
किसी भी तरह के अन्याय व शोषण का प्रतिरोध चंबल के जनमानस की पहचान मानी जाती है। प्राचीन काल से
अज़ीमुल्लाह खान, नाना साहब के बचपन के साथी, उनके सचिव और बाद में दीवान बने बाद में जब नाना साहब
[नए साल में हम शुरू कर रहे हैं एक नई सीरीज़ जिसमें याद करेंगे उपनिवेशवाद के खिलाफ़ लड़ाई के उन
कौल-ए-फ़ैसल (इंसाफ़ की बात) मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का वह बयान है जो राजद्रोह के मुक़दमे के दौरान उन्होंने प्रेसीडेंसी
[द्वितीय विश्वयुद्ध में कांग्रेस ने नारा दिया था – अंग्रेजों भारत छोड़ो। पढिए उनकी जीवन की प्रेरक कथा।] द्वितीय विश्वयुद्ध
नेहरू सोच रहे हैं। आज गुरुवार को अख़बार (TOI) में एक जबर्दस्त तस्वीर छपी। हो सकता है अनजाने में छप
22 अगस्त 1948 को हैदराबाद में एक खौफनाक मंज़र पेश आया। शहर के इलाके लिंगमपल्ली के पास उर्दू अखबार इमरोज़
आजकल एक धारणा आम हो गई है, या सुनियोजित तरीके से कर दी गई है कि मुस्लिम समाज में समाज
कौन है अधिनायक? : राष्ट्रगान विवाद उज्ज्वल भट्टाचार्य राष्ट्रगान जन गण मन जितना पुराना है, उस पर विवाद भी लगभग
6 अप्रैल, 1919 को Rowlatt Act के खिलाफ़ पूरे भारत में विरोध की कॉल दी गई थी। दिल्ली और
[आज अमर क्रांतिकारी चद्रशेखर आज़ाद की पुण्यतिथि है। आज से ठीक 91 साल पहले 27 फरवरी 1931 के दिन इलाहाबाद
बीसवीं सदी की शुरुआत ने बेहद सुंदर नज़ारा देखा जब राजनीतिक परिदृश्य में स्त्रियों का बड़ी संख्या में प्रवेश
इतिहास को लघु रूप में पढ़ कर अपने अतीत के सेनानियों के बारे में धारणा बनाने वालों के लिए एक
रासबिहारी बोस ब्रिटिश शिकंजे से बचने के लिए 1915 में जापान चले गए और फिर वहीं रह गए। विदेशी धरती
चालीस करोड़ों की आवाज़ सहगल-ढिल्लन-शाहनवाज़ दिल्ली के लाल क़िले में जब आज़ाद हिन्द फ़ौज़ के जाँबाज सिपाहियों पर अंग्रेज़ी
[1857 के बाद जब विद्रोहियों से हिन्दुस्तानी जेलें भर गईं तो पहली बार क्रांतिकारियों को अंडमान भेजा गया। तब सेल्यूलर
आज गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती है. गणेश शंकर विद्यार्थी यानी सच के पक्ष में खड़ा निर्भीक पत्रकार. 1920
[There are numerous forgotten Heroes who made our History. Kanupriya is remembering one such Hero : Peer Ali Khan.] #जिन्होंनेमाफ़ीनहींमांगी
[अयोध्या सिंह की किताब ‘भारत का मुक्ति संग्राम‘ ब्रिटिश सत्ता के ख़िलाफ़ भारतीय जनता के संघर्ष का एक शानदार
[ Omkar is a young student, inclined towards Gandhian thought. This is his very first article. We welcome all such
[यह सन्देश 16 दिसम्बर, 1927 को फ़ैज़ाबाद जेल से यह सन्देश 16 दिसम्बर, 1927 को फ़ैज़ाबाद जेल से देशवासियों के