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होपेन मांझी, जिनके आग्रह पर गोमिया आए थे गांधी

देश में हजारों ऐसे सपूत हुए जिन्होंने अपना जीवन स्वतंत्रता आंदोलन को समर्पित कर दिया, यातनाएं झेलीं, जेल गये और सब कुछ दावं पर लगा दिया, किंतु इतिहास की किताबों में उन्हें उचित जगह नहीं मिली. ऐसे ही सपूत थे  होपन मांझी

उनके कार्यों से महात्मा गांधी तक इतने प्रभावित थे कि जब इन्होंने  बापू को अपने यहां आने का निमंत्रण दिया, तो वे नकार नहीं सके और सहर्ष आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। उनके पुत्र लक्ष्मण मांझी भी स्वतंत्रता सेनानी थे। पिता-पुत्र ने मिल कर लड़ाई लड़ी थी।

होपन मांझी के बुलावे पर गोमिया आए थे महात्मा गांधी




गांधीजी का गोमिया आगमन 28 अप्रैल, 1934 को हुआ था और वे झरिया में सभा करने के बाद यहां पहुंचे थे। बापू  होपन मांझी के कार्यों से इतने प्रभावित थे कि जब इन्होंने उन्हें अपने यहां आने का निमंत्रण दिया, तो वे नकार नहीं सके और सहर्ष आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। बापू वहां होपन मांझी के टूटे-फूटे खपरैल के घर में रुके थे। होपन मांझी के घर रात रुकने के बाद गांधीजी सुबह रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन के लिए निकल गए थे।


भील आंदोलन के नायक मोतीलाल तेजावत


इस दौरान  गांधीजी ने कोनार नदी के किनारे गोमीबेड़ा नामक जगह पर जनसभा भी संबोधित किया था। प्रचंड गरमी के बावजूद लगभग 10 हजार लोग जुटे थे। लोग दूर-दूर से बैलगाड़ी, साइकिल या पैदल चल-चलकर बापू को सुनने पहुंचे थे। गोमीटांड़ के सामने इमली पेड़ के निकट तोरण द्वार बना था।

गरमी का मौसम था, इस कारण कोनार नदी सूख चुकी थी. सब चिंतित थे कि इतनी बड़ी भीड़ के लिए इस प्रचंड गरमी में पानी की व्यवस्था कैसे होगी? बापू ने भी होपन मांझी से यह सवाल किया। तब होपन मांझी ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा था कि बापू, चिंता न करें, पानी की व्यवस्था हो जायेगी।

दरअसल, उनके आत्मविश्वास का कारण मांडू के स्वतंत्रता सेनानी बंगम मांझी के साथ पानी बरसने की कामना को लेकर दह में की गयी पूजा-अर्चना थी। उन्हें अपने प्राकृतिक देवता पर भरोसा था और ऐसा ही हुआ. सभा से पूर्व जोरदार बारिश हुई और नदी में पानी भर गया।

बापू की इस सभा का काफी असर हुआ। बापू के भाषण से प्रेरित होकर कई बुजुर्गों ने मांस-मदिरा का त्याग कर दिया था। स्वदेशी अपनाने का अभियान शुरू हो चुका था। लोग खुद चरखा चलाकर कपड़े बनाने लगे थे। अनेक लोग उनके भाषण से प्रभावित होकर आंदोलन में कूद पड़े। बोकारो जिला में सबसे अधिक स्वतंत्रता सेनानी निकले तो कहीं न कहीं उसमें होपन मांझी का कुशल नेतृत्व और गांधीजी की सभा केके बड़ी वजह थी। होपन के घर पर क्षेत्र के सभी स्वतंत्रता सेनानियों की बैठक होती थी और रणनीति बनायी जाती थी।


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अपने पुत्र के साथ स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रहे होपन मांझी

होपेन मांझी
होपेन मांझी

होपन मांझी वर्ष 1925 के आसपास करीब 30 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। गांवों में घूम-घूम कर लोगों को आंदोलन के लिए प्रेरित व गोलबंद करना ही उनकी दिनचर्या बनी हुई थी। ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के कारण वर्ष 1930 में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

उन पर 2 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थ होने पर इन्हें एक साल की सजा सुनाई गयी। 23 जुलाई, 1930 को इन्हें जेल में डाल दिया गया। 30 मार्च, 1931 को जेल से रिहा होकर निकले। इनके पुत्र लक्ष्मण मांझी जब युवा हुए। तो वे भी अपने पिता से प्रभावित होकर आंदोलन में कूद पड़े।

फिर पिता-पुत्र ने मिल कर आंदोलन को तेज किया। घोड़ा पर चढ़ कर क्षेत्र का भ्रमण करते थे। 1942 के आंदोलन में पिता-पुत्र दोनों को जेल हो गयी।

दोनों का केबी सहाय से भी काफी लगाव था। देश आजाद होने के बाद होपन मांझी एमएलसी बनाये गये।

होपन मांझी ने अपने घर में एक कुआं बनाया था।एक दिन पानी भरने के दौरान वे फिसलकर गिर पड़े और उन्हें गंभीर अंदरूनी चोट लगी. उन्हें हजारीबाग में भरती कराया गया. स्वस्थ होकर लौटे।

लेकिन घोड़े की सवारी बंद नहीं की। इस कारण उनका जख्म फिर हरा हो गया और इस बार उन्हें बचाया नहीं जा सका। हजारीबाग सदर अस्पताल में ही उनका निधन हो गया।





 संदर्भ

Nita Mathur, Santhal Worldview,Indira Gandhi National Center for arts, New Delhi

Amrita Priyanka Ekka Ranendra, Monika Rani Tuti, Rakesh Ranjan Oraon (Editor), Swatantrata Sangram Mein Jharkhand Ke Acharchit Nayak, Rajkamal Prakashan

अनुज कुमार सिन्हा, महात्मा गांधी की झारखंड यात्रा, प्रभात प्रकाशन

Editor, The Credible History

जनता का इतिहास, जनता की भाषा में

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