जो आज किसान आंदोलन का सच नहीं दिखा पा रहे वे इतिहास को विकृत करेंगे ही- संपादकीय
होना तो यही चाहिए था कि इस दूसरे संपादकीय में मैं इतिहास की कोई बात करता, लेकिन जब वर्तमान में किसानों की कार से कुचलकर हत्या जैसा दुष्कृत्य किया जा रहा हो तो उससे आँखें मूँदने के लिए अथाह बेशर्मी चाहिए।
पहले तो बेहद स्पष्ट शब्दों में क्रेडिबल हिस्ट्री और इसकी टीम लखीमपुर में एक मंत्री के बेटे द्वारा 10 किसानों की कार से कुचलकर की गई हिंसा को जनरल डायर की जलियाँवाला बाग में की गई नृशंस कार्यवाही के समकक्ष मानती है और मांग करती है कि उसे तुरंत गिरफ़्तार कर हत्या का मुक़दमा चलाया जाए। इसके साथ ही हम विपक्ष के नेताओं को किसानों से मिलने जाने से रोकने की उत्तर प्रदेश सरकार की तानाशाही कार्यवाही की भी भर्त्सना करते हैं। लोकतंत्र में जनता के प्रतिनिधियों को जनता के बीच जाने से रोकने की कोशिश कायराना है।
साथ ही एक सवाल पाठकों के लिए। सबने आज दैनिक जागरण अखबार की हेडलाइन देखी होगी।
सत्ता की भाषा बोलता यह अखबार इसके पहले भी कठुआ में हुए नृशंस बलात्कार के समय शर्मनाक रिपोर्टिंग कर चुका है। सांप्रदायिक भाषा और सत्ता का अचूक समर्थन तो लगभग रोज़ ही देखते हैं हम।
कुछ दिनों पहले इसी अखबार का एक कथित पत्रकार जवाहरलाल नेहरू के प्रसिद्ध ‘tryst with destiny’ भाषण के हिन्दी में न होने का झूठ फैला रहा था। जब हमने इसके पहले हिन्दी और फिर अंग्रेज़ी में होने का तथ्य दिया तो भी ट्वीट हटाकर माफ़ी मांगने की जगह वह बेशर्मी से चुप रहा।
सवाल इतना ही कि जो लोग सत्ता की चापलूसी में आज का सच इतना विकृत करके दिखते हैं, उनसे आप ‘सही इतिहास’ की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? कभी कहते थे कि ‘जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो’ लेकिन आज जब ऐसे अखबार और मीडिया का बड़ा हिस्सा जनता की जगह सत्ता के पक्ष में खड़ा है तो हमें, आपको पूरी ताक़त से इनके मुकाबिल अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी।
अभी इसी सवाल के साथ छोड़े जाता हूँ।
क्रेडिबल हिस्ट्री गांधी जयंती के अवसर पर उन पर लगातार लेख और वीडियोज़ लेकर या रहा है जिन्हें आप नीचे के लिंक पर पढ़/सुन सकते हैं।
आपकी प्रतिक्रियाओं का [email protected] पर इंतज़ार रहेगा।
आपका
मुख्य संपादक, क्रेडिबल हिस्ट्री