पहली भारतीय ग़ुलाम: एक थी मीरा प्रवासी
[प्रवीण झा लिख रहे हैं प्रवासियों का वह इतिहास जो विस्मृतियों की गर्द में खो गया ]
ग़ुलाम शब्द सुनते ही हमारे मन में अफ्रीकी मूल के हट्टे-कट्टे अर्धनग्न पुरुषों की छवि बनती है, जो ज़ंजीरों में जकड़ कर यूरोपीय बाज़ारों में बेचे जा रहे हैं। ऐसी छवि रोमन ग्लैडीएटर फ़िल्मों से लेकर सालोमन नोर्थ्रप की जीवनी तक हमारे मन में बनती चली गयी। क्या हमने सोचा है कि भारत से भी कभी ग़ुलामों को इसी तरह बांध कर ले जाया गया?
मैं यहाँ अपनी मर्ज़ी से या किसी अनुबंध से ले जाए गए गिरमिटियों की बात नहीं कर रहा। मैं बात कर रहा हूँ ख़रीद-फ़रोख़्त या अपहरण कर ले जाए गए ग़ुलामों की। ऐम्स्टर्डैम के रिक्स संग्रहालय की तस्वीरों में आपको वे ग़ुलाम मिल जाएँगे। जब मेरी उनसे पहली बार मुलाक़ात हुई, तो मुझे लगा कि डच ईस्ट इंडिया कम्पनी इन्हें भारत से ले गयी होगी। यह सत्रहवीं सदी की बात होगी। लेकिन, डच तो बाद में आए। उनसे डेढ़ सदी पहले पुर्तगाली आ चुके थे।
हिंद महासागर में ग़ुलामों के व्यापार की शुरुआत पुर्तगालियों ने ही की।[1] जब पुर्तगाली भारत में अपने पैर जमाने लगे, तो उन्होंने सबसे पहले मोज़ाम्बिक से पकड़ कर ग़ुलाम लाए। इन लोगों ने भारत में पहले से मौजूद सिदी समुदाय में इज़ाफ़ा किया।[2] वे उनके ‘एस्टदो दा इंडिया’ (Estado da India) बस्तियों के हिस्सा बने। उसके बाद उन्होंने भारत से ग़ुलामों को पकड़ कर भारत से बाहर फ़िलिपींस, मेक्सिको और पुर्तगाल भेजना शुरू किया।[3]
इस विषय में शोध कम हुए कि पुर्तगालियों ने भारत से किस तरह ग़ुलामों का व्यापार किया। लेकिन, एक महिला का नाम उभरता है, जो शुरुआती ग़ुलामों में सम्भवतः रही हो।
मीरा नाम की एक युवती को भारत में कुछ समुद्री लुटेरों द्वारा 1619 ईसवी में पकड़ कर बेचा गया। वह आगरा के किसी मुसलमान कुलीन परिवार से थी। कोचीन में उनका धर्म-परिवर्तन किया गया और पुर्तगाली नाम मिला- कटरीना डि सान युआन (Catarina De San Juan)। उसके बाद उनको ‘न्यू स्पेन’ इलाक़े में ले जाया गया, जो दक्षिण अमेरिका से लेकर फ़िलिपींस और न्यू मेक्सिको तक का क्षेत्र था। बाद में वह ग़ुलामी से मुक्त होकर एक ईसाई धार्मिक प्रचारक बनीं । मेक्सिको के संस्कृति में उनका इतना महत्वपूर्ण स्थान है।
सत्रहवीं सदी में ही उनकी जीवनी लिखी गयी और बाद में कई शोध हुए। क़यास तो यह भी लगते हैं कि मेक्सिको की राष्ट्रीय पारम्परिक पोशाक ‘चाइना पोबलाना’ (China Poblana) उन्हीं से जुड़ा है।[4]
लेकिन, ऐसी कई मीरा होंगी जो कहीं इतिहास के पन्नों में खो गयी।
प्रश्न: दक्षिण अफ़्रीका के किस राष्ट्रपति ने अपनी जीवनी में लिखा है कि उनकी पूर्वज डायना भारत से लायी गयी एक ग़ुलाम थी? (उत्तर अगली कड़ी में)
स्रोत
[1] Richard B. Allen, European Slave Trading in the Indian Ocean, 1500–1850. Indian Ocean Studies Series. Athens: Ohio University Press, 2014.
[2] सिदी एक अफ़्रीकी समुदाय है जो भारत में सदियों पहले अरब के रास्ते लाए गए थे, और आज भी भारत में लगभग तीस हज़ार से अधिक सिदी वंशज मौजूद हैं। देखें – Bhatt, Purnima M. The African Diaspora in India: Assimilation, Change and Cultural Survivals. , 2018. 1-3
[3] Tatiana Sejias, “The Portugese Slave Trade To Spanish Manila: 1580-1640”, Intinerario 22, no. 1 (2008): 19-38,
[4] Bailey, Gauvin Alexander. “A Mughal Princess in Baroque New Spain: Catarina de San Juan (1606-1688), The China Poblana.” Anales del Instituto de Investigaciones Estéticas 71 (1997) 37–73. इस लेख के अनुसार चाइना पोबलाना जो वर्तमान रूप में है, वह उन्नीसवीं सदी के बाद विकसित हुआ, लेकिन मूल चाइना पोबलाना पोशाक कैटरीना डी युआन पहनती थी।
पेशे से डॉक्टर। नार्वे में निवास। मन इतिहास और संगीत में रमता है। चर्चित किताब ‘कुली लाइंस’ के अलावा प्रिन्ट और किन्डल में कई किताबें