दीनबंधु सर छोटू राम
[24 नवंबर, 1881 में झज्जर, हरियाणा के एक छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण जाट परिवार में जन्मे किसानों के मसीहा सर छोटू राम की आज जयंती है।]
मुश्किल हालात में उच्च शिक्षा हासिल की
उस दौर में जब शिक्षा प्राप्त करना बेहद मुश्किल था, सर छोटू राम इस छोटे से गाँव से सेंट स्टीफेंस जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज तक पहुँचे और उच्च-शिक्षा हासिल की। 1905 में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं सन् 1907 तक अंग्रेजी के ‘हिन्दुस्तान’ समाचारपत्र का सम्पादन किया। यहां से वह आगरा में वकालत की डिग्री हासिल करने चले गए। आगरा में रहते हुए वह जाट छात्रावास के प्रभारी बने और 1911 में वकालत की डिग्री प्राप्त की। 1912 में उन्होंने जाट सभा की स्थापना की और वकालत की प्रैक्टिस भी शुरू की।
समाजसेवी चौधरी छोटूराम
प्रथम विश्वयुद्ध में उन्होंने अंग्रेज़ी सेना में जाट युवकों की भर्ती के लिए अभियान चलाया जिसके कारण अंग्रेजों ने उनकी काफ़ी तारीफ़ भी की।
उसी दौर में वह समाजसेवा में भी सक्रिय हुए और हरियाणा में कई विद्यालयों की स्थापना की। 1915 में उन्होंने एक अखबार ‘जाट गज़ट’ की स्थापना की जो हरियाणा का पहला अखबार था। वकालत के जरिए और इसके अलावा भी उन्होंने किसानों की समस्याओं के लिए लगातार आवाज़ उठाई।
राजनीति के क्षेत्र में
कालांतर में वह कांग्रेस में शामिल हुए और 1916 में कांग्रेस की जब रोहतक में स्थापना हुई तो इसके प्रमुख बने। लेकिन जब कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो वह पार्टी से अलग हो गए क्योंकि वह संविधान विरोधी आंदोलन नहीं करना चाहते थे। फिर वह आर्यसमाज से जुड़ गए और हरियाणा में किसानों के मुद्दों पर लगातार आवाज़ उठाते रहे।
राजनीति के क्षेत्र में सर सिकंदर हयात खान के साथ मिलकर उन्होंने यूनियनिस्ट ज़मींदारा पार्टी किसान की स्थापना की। ज्ञातव्य है कि हरियाणा और पंजाब में किसानों के लिए जमींदार शब्द उपयोग होता है। बाद में उन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया। यह पार्टी एक सेक्युलर पार्टी थी जो मुस्लिम लीग और कांग्रेस, दोनों का विरोध करती थी। सर छोटूराम एक धर्मनिरपेक्ष नेता थे, जो हिन्दू महासभा तथा आर एस एस जैसे संगठनों के हमेशा खिलाफ़ रहे। हालांकि यूनियनिस्ट पार्टी अंग्रेजों के खिलाफ़ नहीं थी और उसने तब चुनावों में हिस्सा लिया जब कांग्रेस उनका बहिष्कार कर रही थी।
किसानों के मसीहा
1937 में जब यूनियनिस्ट पार्टी पंजाब की सत्ता पर काबिज हुई तो सर छोटूराम को विकास व राजस्व मंत्री बनाया गया। इस सरकार में कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल भी शामिल थे। लीग के साथ सिकंदर खान ने एक समझौता किया था जिसके तहत उनकी पार्टी के मुस्लिम सदस्य लीग के भी सदस्य हो सकते थे।
इस पद पर रहते हुए उन्होंने किसानों के भले के लिए अनेक क़ानून बनवाए। साहूकार पंजीकरण एक्ट, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम,कर्जा माफी अधिनियम, व्यवसाय श्रमिक अधिनियम जैसे क़ानूनों ने किसानों को उनकी फ़सलों का सही मूल्य दिलाने और साहूकारों के फंदे से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मोरों के शिकार पर भी पाबंदी लगा दी थी।
यूनियनिस्ट पार्टी का पतन
किन 1942 में सिकंदर खान की मृत्यु के बाद यूनियनिस्ट पार्टी का असर कम होने लगा। इस समय तक जिन्ना का असर काफ़ी बढ़ गया था जबकि यूनियनिस्ट पार्टी विभाजन के खिलाफ थी। लीग ने नए मुख्यमंत्री खिजर हयात टिवाना से पार्टी में ‘मुस्लिम’ शब्द जोड़ने को कहा, जिससे उन्होंने मना कर दिया। ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के समय पंजाब में भी जिन्ना को खूब समर्थन मिला। 1945 में ही फिरोज अहमद नून सहित कई यूनियनिस्ट नेता लीग में शामिल हो चुके थे। 1946 के चुनाव में पार्टी की सीटों की संख्या काफ़ी घट गई।
खिजर हयात कांग्रेस और अकाली दल के साथ मिलकर सरकार बनाने में तो सफल हुए लेकिन जिन्ना ने जब इसे ‘हिंदुओं की सरकार’ कहा तो पंजाब के मुसलमान लीग के साथ ही खड़े हुए। 2 मार्च 1947 को उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन दो राष्ट्रों के सिद्धांत को कभी नहीं माना। बाद में जब बांग्लादेश बना तो उन्होंने कहा कि मैं सही साबित हुआ।
भारत की आज़ादी और विभाजन देखने से पहले ही 9 जनवरी 1945 को चौधरी सर छोटू राम का निधन हो गया। 1995 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाकटिकट जारी किया।