जहाँ चर्च में माता वेलंकन्नि की आराधना होती है
बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित तमिलनाडु के एक गाँव वेलंकन्नि को ‘लॉर्ड्स ओफ ईस्ट’ (पूरब का तीर्थ) के नाम से पुकारा जाता है जहाँ जाकर पापों से मुक्ति मिलती है और बीमारियों से छुटकारा। यहाँ मदर मेरी की माता वेलंकन्नि के रूप में पूजा होती है।यह भारत में ईसाई कैथोलिक समुदाय का एक बड़ा तीर्थ स्थल है जिसकी ख़ूब मान्यता है।
सबसे मज़ेदार यह है कि ईसाई धर्म जब भारत में आया तो उसने स्थानीय विशेषताओं, भाषाओं, परम्पराओं और मान्यताओं को अपने भीतर समाहित कर लिया। इसलिए यहाँ मदर मेरी की मूर्ति जिनकी गोद में जीज़स हैं, साड़ी में दिखती हैं। उनके सामने नारियल और पाम के पत्ते भेंट किए जाते हैं और देश से कई अलग अलग धार्मिक आस्थाओं वाले लोग यहाँ आते हैं अपनी अपनी मुरादें लेकर्।
वेलंकन्नि माता को स्वास्थ्य की देवी कहा जाता है और उनके चमत्कारों की कहानियाँ भक्तों में विख्यात हैं।
कहा जाता है कि इस गाँव में सोलहवीं या सत्रहवीं सदी में वेलंकन्नि माता (मदर मेरी, गोद में जीज़स को लिए) प्रकट हुई थीं और एक के बाद एक तीन चमत्कार किए थे। अपने गोद के बच्चे के लिए जिस ग्वाले से दूध लिया उसका दूध का मटका वापस उतना ही भर गया, एक पुर्तगाली नाविक को तूफान से बचाया, एक विधवा के दिव्यांग पुत्र को ठीक कर दिया।
यहाँ गोथिक रीति से बना वेलंकन्नि चर्च है जहाँ हर साल 29 अगस्त से शुरु होकर दस दिन का उत्सव होता है जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं।
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता अनोखी है। यहाँ आम मनुष्य जीवन की छोटी-बड़ी समस्याओं और दुखों के निदान के लिए ईश्वरीय आस्था को धर्मों के पार जाकर भी मानता है ठीक वैसे ही जैसे अजमेर शरीफ़ जाकर दुआ माँगने, माथा टेकने वाले हर धर्म के लोग मिल जाएंगे।
सुजाता दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं। कवि, उपन्यासकार और आलोचक। ‘आलोचना का स्त्री पक्ष’ के लिए देवीशंकर अवस्थी सम्मान। हाल ही में लिखी पंडिता रमाबाई की जीवनी, ‘विकल विद्रोहिणी पंडिता रमाबाई’ खूब चर्चा में है।