वो साल था तिरासी – उभरना कपिल देव का क्रिकेट के आकाश पर
[1983 यानी वह साल जब भारत पहली बार एकदिवसीय क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीत के लाया था। वह भी तब जब किसी को इसकी कोई उम्मीद नहीं थी। विशि सिन्हा उस जीत के बहाने क्रिकेट के उस दौर को याद कर रहे हैं। पढ़िए पहली कड़ी।]
नया कप्तान : कपिलदेव
पाकिस्तान दौरे पर छः टेस्ट मैचों की सीरीज़ 0-3 से और एकदिवसीय मैचों की सीरीज 0-4 से हारने के बाद भारतीय टीम की कप्तानी सुनील गावस्कर के हाथों से जाती रही. पाकिस्तान दौरे के समापन के पखवाड़े भर बाद ही भारतीय टीम को वेस्ट इंडीज़ के लम्बे दौरे पर जाना था. और इस दौरे पर टीम का कप्तान बनाया गया गावस्कर से उम्र में दस साल छोटे एक युवा खिलाड़ी को.
जीवन के महज 24 वसन्त देखे इस युवा खिलाड़ी का भारतीय क्रिकेट क्षितिज पर उदय किसी धूमकेतु सदृश हुआ था. साढ़े चार वर्ष पूर्व पाकिस्तान के पिछले दौरे पर पदार्पण करने वाले कपिल देव न सिर्फ भारतीय टीम के नए गेंद के आक्रमण की धुरी बन चुके थे, बल्कि अपनी धुआँधार बल्लेबाजी से निचले मध्य क्रम में कई आकर्षक परियां खेल दुनिया के श्रेष्ठ ऑलराउंडर्स की सूची में शुमार हो चुके थे.
पदार्पण के महज एक वर्ष 105 दिन पश्चात, अपने 25वें टेस्ट में 100वां विकेट लेकर वे न सिर्फ सबसे कम समय में टेस्ट मैचों में 100 विकेट्स – 1000 रन का डबल बनाने वाले खिलाड़ी बने, बल्कि महज 21 वर्ष 27 दिन की आयु में यह डबल पूरा करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी भी बने.
गौरतलब है कि आज चार दशक बीतने के बाद भी ये दोनों विश्व रिकॉर्ड अक्षुण्ण हैं. भारतीय रिकार्ड्स की क्या ही बात करें, स्पिन के लिए जाने जाते रहे भारतीय टीम के लिए 100 टेस्ट विकेट ले पाने वाले वे पहले तेज गेंदबाज थे. मेलबर्न टेस्ट (1981) में उनका प्रदर्शन तो दन्तकथा ही बन चुका है.
चोटिल होने के बावजूद पेनकिलर लेकर खेल रहे कपिल ने सिर्फ 28 रनों पर आधी कंगारू टीम को पैवेलियन वापस भेज दिया था फलतः डेढ़ सौ से कम के ‘हलवा’ लग रहे लक्ष्य के सामने कंगारू महज 83 पर ढेर हो गए थे और भारतीय टीम टेस्ट जीत गई थी. हाल ही में समाप्त हुए पाकिस्तान दौरे – जिसका जिक्र आरंभिक पैरा में है – के कराची टेस्ट में कपिल ने महज 30 गेंदों में अर्धशतक पूरा कर लिया था. ये किसी भारतीय बल्लेबाज का टेस्ट मैचों में सबसे तेज अर्धशतक था – एक और ऐसा रिकॉर्ड जो आज तक अक्षुण्ण है.
आसान नहीं थी चुनौती
हर खिलाड़ी का सपना होता है टीम की कप्तानी करना. लेकिन चमत्कारिक खिलाड़ी होना और बात है और भारतीय टीम का कप्तान होना और बात. भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी कोई फूलों की सेज नहीं है यह बात कपिल को जल्द ही मालूम हो गई. वेस्ट इंडीज़ दौरे पर पहला टेस्ट और पहला एकदिवसीय मैच भारतीय टीम हार चुकी थी. पोर्ट ऑफ़ स्पेन में खेले जा रहे दूसरे टेस्ट की पहली पारी में मैल्कम मार्शल, माइकल होल्डिंग, एंडी रॉबर्ट्स और जोएल गार्नर पेस-चौकड़ी की आग उगलती गेंदों के समक्ष भारतीय टीम फिर ढेर हो गई थी.
और एक प्रशंसक जो शर्त हारकर जीत गया
कैरेबियन द्वीप समूह की जनसंख्या का एक हिस्सा भारतीय मूल के लोगों का है. ये लोग कोई एक शताब्दी पूर्व भारत से चीनी मीलों में श्रमिक के रूप में काम करने यहाँ आये थे और यहीं के होकर रह गए. ऐसे ही भारतीय मूल के एक शख्स का नाम था मोहम्मद. पोर्ट ऑफ़ स्पेन टेस्ट (1971) में सुनील ‘सनी’ गावस्कर को पहली बार 65 और 67* की पारियाँ खेलते देख मोहम्मद सनी का प्रशंसक बन गया था. इस बार पोर्ट ऑफ़ स्पेन टेस्ट के लिए उसने अपने अफ़्रीकी मूल के एक मित्र से शर्त लगाईं थी कि इस टेस्ट में वेस्ट इंडीज़ के दोनों ओपनर्स – ग्रीनिज़ और हेंस – मिलकर जितने रन बनायेंगे उससे अधिक रन सनी अकेले बनाएगा. पहले दिन का खेल ख़त्म होने पर भारतीय टीम का स्कोर था 44/3 और सनी सिर्फ एक रन बनाकर होल्डिंग की गेंद पर कीपर दूजों को कैच थमा वापस पैवेलियन लौट गए थे.
शाम को बुझे मन से मोहम्मद ने शर्त की राशि अपने मित्र को सौंप दी.
अगले दिन भारतीय टीम 175 रनों पर ढेर हो गई. विंडीज़ की पारी का खाता नहीं खुला था और दोनों नामी ओपनर – ग्रीनिज़ और हेंस – बिना कोई रन बनाए पैवेलियन वापस लौट गए थे. दोनों का शिकार किया था कपिल के साथ भारतीय आक्रमण की शुरुआत करने वाले बलविंदर सिंह संधू ने – ग्रीनिज़ को इनस्विंग पर बोल्ड कर और हेंस को आउटस्विंग पर कीपर किरमानी के हाथों कैच कराकर. मोहम्मद का बाक़ी का दिन अपने मित्र की खोज में गुजरा, वो शर्त जीत गया था और उसे अपने पैसे और शर्त की राशि, दोनों अपने दोस्त से वसूलनी थी.
थोड़ी देर बाद कपिल ने विवयन रिचर्ड्स को कीपर किरमानी के हाथों कैच कराकर विंडीज़ खेमे में खलबली मचा दी. विंडीज़ का स्कोर हो गया एक रन पर तीन विकेट. किसी ने नहीं सोचा था कि विंडीज़ टीम की हालात इस क़दर पस्त होगी. लेकिन क्लाइव लॉयड की विंडीज़ टीम ‘अजेय’ यूँ ही नहीं कहलाती थी.
इस विकट परिस्थिति से उबारा अगले विकेट पर हुई द्विशतकीय साझेदारी ने जो कप्तान क्लाइव लॉयड और लैरी गोम्स के बीच हुई. लॉयड के पन्द्रहवें और गोम्स के पाँचवें टेस्ट शतकों की मदद से वेस्ट इंडीज़ ने पहली पारी में 219 रन की बढ़त ली और भारतीय टीम के सर पर पारी की हार का ख़तरा मंडराने लगा.
अमरनाथ का शतक और कपिल का कमाल
पहली पारी में अत्यंत धैर्यपूर्ण अर्धशतक लगाकर भारतीय टीम की डूबती नैया पार लगाने वाले मोहिन्दर ‘जिमी’ अमरनाथ ने दूसरी पारी में फिर से जिम्मेदारी भरा खेल दिखाया और अपना छठां टेस्ट शतक लगाया – पिछले आठ टेस्ट मैचों में चौथा शतक. यशपाल शर्मा ने अर्धशतक लगाया, लेकिन जिमी के आउट होने के थोड़ी देर के अन्दर ही यशपाल शर्मा और छठें विकेट के रूप में रवि शास्त्री के आउट हो जाने से विंडीज़ टीम को जीत की उम्मीद दिखाई देने लगी.
भारतीय कप्तान कपिल देव ने ‘प्रति-आक्रमण ही श्रेष्ठ बचाव ‘ के सिद्धांत पर अमल कर विंडीज़ के मंसूबों पर पानी फेर दिया. उनका साथ दिया कीपर सैयद किरमानी ने. दोनों ने मिलकर सातवें विकेट के लिए 134 रनों की साझेदारी की, जिसमें सैयद किरमानी का योगदान महज 30रनों का था.
आखिरकार कपिल ने सिर्फ 95 गेंदों पर 13 चौकों और तीन छक्कों की मदद से शतक पूरा किया . यह विंडीज़ की धरती पर गेंदों के लिहाज से उस समय तक का तीव्रतम शतक था.
मैच ड्रॉ पर समाप्त हुआ लेकिन भारतीय टीम के हौसले बुलन्दी की ओर थे. संधू का ग्रीनीज़ को बोल्ड करना, मोहिंदर अमरनाथ और यशपाल शर्मा का विंडीज़ पेस बैटरी के समक्ष रन बनाना, कपिल का विस्फोटक शतक और सैयद किरमानी के साथ मैच बचाने वाली शतकीय साझेदारी, इन सब छोटी-छोटी घटनाओं में आनेवाले कल की झलक छिपी थी.
यह कपिल देव का 50वां टेस्ट मैच था और विंडीज़ की पारी में जब कपिल ने एंडी रॉबर्ट्स को बोल्ड कर अपना 200वां टेस्ट विकेट लिया तो वे टेस्ट मैचों में 2000 रन और 200 विकेट का डबल पूरा करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने; उनकी आयु थी सिर्फ 24 वर्ष 68 दिन – एक और विश्व रिकॉर्ड जो आज तक अक्षुण्ण है. 2000 रन – 200विकेट डबल के लिए सबसे कम टेस्ट मैच खेलने के मामले में भी कपिल केवल इअन बॉथम से ही पीछे रहे/हैं.
दूसरी क़िस्त : वो साल था तिरासी –गयाना के मैदान पर होली के दिन दीवाली
विश्वरंजन हैं तो क़ानून के प्रोफेशनल लेकिन मन रमता है खेलों और क्राइम फिक्शन में। कई किताबें लिखी हैं और ढेरों लेख।