वो साल था तिरासी: न घर में इज़्ज़त न बाहर स्वागत
[विशि सिन्हा सुना रहे हैं 1983 की कहानी। वर्ल्डकप की जीत तो आप सब जानते हैं, लेकिन इस जीत से पहले की रोचक कहानी अक्सर अनकही रह जाती है। आज तीसरी क़िस्त में पढ़िए टीम के चयन की कहानी।]
गर्मियों के दिन और खाली खिलाड़ी
अस्सी के दशक में भारत में गर्मियों के छः-सात महीने कोई क्रिकेट नहीं होता था, न घरेलू न अंतर्राष्ट्रीय. दूसरी तरफ इंग्लैंड में गर्मियों में ही क्रिकेट हुआ करता था. काउन्टी मैचों की रपट और स्कोरकार्ड को भारत के सभी समाचार पत्रों में खेलपृष्ठ पर प्रमुख स्थान हासिल हुआ करता था. वैसे ही जैसे आजकल हमारे देश में गर्मियों के छः-सात महीने कोई फुटबॉल नहीं होता, खिलाड़ी खाली बैठे रहते हैं और योरोपीय क्लब फुटबॉल की अच्छी-खासी कवरेज समाचार पत्रों में देखने को मिलती है. वहाँ काउन्टी मैचों में स्थानीय खिलाड़ियों के साथ-साथ दुनिया भर के चोटी के खिलाड़ी खेलते थे, वैसे ही जैसे आजकल आईपीएल में खेलते हैं.
मैलकॉम मार्शल (1979 से) और गॉर्डन ग्रीनिज़ (1970 से) हैम्पशायर, विव रिचर्ड्स (1974 से) और जोएल गार्नर (1977 से) सोमरसेट काउंटी टीमों से खेला करते थे. 15 वर्षों से लैंकशायर काउंटी टीम से खेल रहे क्लाइव लॉयड तो पिछले तीन वर्षों से लैंकशायर की भी कप्तानी कर रहे थे.
लेकिन काउंटी क्रिकेट में भारतीय खिलाड़ियों की संख्या इक्का-दुक्का ही हुआ करती थी, जाने किन वजूहात से काउंटीज़ भारतीय खिलाड़ियों को कॉन्ट्रैक्ट ऑफर करने से कतराती थीं (अपवादस्वरुप कपिलदेव नॉर्थम्प्टनशायर के लिए पिछले दो वर्षों से खेल रहे थे). फिर भी, बहुत से भारतीय खिलाड़ी व्यक्तिगत स्तर पर प्रयत्न कर या किसी एजेंट के जरिये इंग्लैंड में खेलने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल कर लेते थे – भले ही वो द्वितीयक दर्जे के क्लब टीमों से खेलने का ही कॉन्ट्रैक्ट क्यूं न हो. भारत में पूरी गर्मियों में खाली बैठने से बेहतर वहाँ उन्हें खेलने को भी मिल जाता था और साथ में ठीक-ठाक पैसे भी मिल जाते थे.
कहानी कीर्ति आज़ाद की
इन्हीं खिलाड़ियों में से एक थे दिल्ली के एक युवा क्रिकेटर जो उन दिनों लैंकशायर लीग के क्लब लोअरहाउस के लिए खेल रहे थे. इस खिलाड़ी को भारत की तरफ से टेस्ट और एकदिवसीय खेलने का मौक़ा तो 1981 के न्यूजीलैंड-ऑस्ट्रेलिया दौरे पर मात्र 21 वर्ष की उम्र में ही हासिल हो गया था, लेकिन चार टेस्ट और आठ एकदिवसीय मैचों में औसत से नीचे प्रदर्शन के बाद टीम से ड्रॉप कर दिया गया था.
पिछले दो वर्षों से भारतीय टीम में वापसी की बाँट जोह रहे इस खिलाड़ी के उपयोगी ऑफ-स्पिन और मध्यक्रम में बल्लेबाजी की वजह से दिल्ली की टीम इस वर्ष रणजी सेमी-फाइनल तक पहुंची थी, जहाँ उसे परम्परागत प्रतिद्वंदी और बाद में इस वर्ष की रणजी चैंपियन बनी टीम – बॉम्बे – से पहली पारी में पिछड़ने के आधार पर हार मिली थी. दिल्ली की टीम की तरफ से इस वर्ष रणजी में सबसे ज्यादा रन बनाने और सबसे ज्यादा विकेट हासिल करने वाले इस खिलाड़ी का नाम था – कीर्तिवर्धन भगवत झा आज़ाद – ‘कीर्ति ‘आज़ाद.
उत्तरी इंग्लैंड के बर्नली में एक बेडरूम के अपार्टमेंट में लगातार बजी जा रही टेलीफोन की घंटी से जब कीर्ति की नींद खुली तो घड़ी में सुबह के चार बज रहे थे. वो एक इंटरनेशनल ट्रंक कॉल थी जिसे भारत से उनके पिता – भगवत झा आजाद , जो भागलपुर से सांसद और एक केन्द्रीय मंत्री थे – ने यह बताने के लिए किया था कि अगले महीने इंग्लैंड में होने वाले वर्ल्ड कप के लिए भारत की टीम घोषित हो गई है और कीर्ति का भी चयन उस टीम में हुआ है. थोड़ी देर बाद कीर्ति खुद डरहम कॉल लगाकर अपने दिल्ली टीम के साथी खिलाड़ी खब्बू सीमर सुनील वाल्सन – जो डरहम के स्थानीय क्लब सीहम पार्क के लिए उन गर्मियों में खेलने गए थे – को बता रहे थे कि उनका भी चयन वर्ल्ड कप टीम में हुआ है.
जिमी, रवि और वेंगसरकर भी इंग्लैंड में ही थे
इन दोनों के अलावा भारतीय टीम में चयनित तीन और खिलाड़ी उन दिनों इंग्लैंड में प्रोफेशनल क्रिकेट खेल रहे थे – मोहिंदर ‘जिमी’ अमरनाथ, रवि शास्त्री और दिलीप वेंगसरकर. रवि शास्त्री और वेंगसरकर कुछ दिनों के लिए भारत लौटकर आने वाले थे और फिर टीम के साथ वापस पहली जून को इंग्लैंड पहुँचने वाले थे, जबकि जिमी – जो लैंकशायर में ही कीर्ति से कुछ दूरी पर रह रहे थे – ने इंग्लैंड में ही रहकर कीर्ति के साथ पहली जून को लन्दन के होटल वेस्ट मोरलैंड पहुँचने का प्लान किया जहां भारतीय टीम इंग्लैंड पहुँचने के बाद ठहरने वाली थी.
वेस्टइंडीज़ टेस्ट सीरीज में 598 रन बनाकर ‘मैन ऑफ़ द सीरीज’ रहने वाले जिमी को वर्ल्ड कप टीम का उप-कप्तान बनाया गया था.
ऐसे चुनी गई विश्वकप के लिए टीम
एक दिन पहले – 11 मई की शाम – भारतीय टीम के चयन के लिए दिल्ली के पांचसितारा होटल ताज मानसिंह में भारतीय चयनकर्ताओं की बैठक हुई जिसमें भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव के अलावा तीन चयनकर्ता – चेयरमैन गुलाम अहमद, चंदू बोर्डे और बिशन सिंह बेदी – मौजूद थे, जबकि दो अन्य चयनकर्ता – पंकज रॉय और चंदू सरवटे – अनुपस्थित थे.
ये सब अपने-अपने समय में कद्दावर खिलाड़ी रहे थे और इन्हें क्रिकेट की अच्छी समझ थी. इस मीटिंग में मौजूद पांचवें व्यक्ति थे भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के सचिव – अनन्त वागेश कनमाडिकर . मंत्रणा के बाद टीम में ऑल-राउंडर्स को तरजीह देने का निर्णय लिया गया और वेस्ट इंडीज़ के दौरे पर शामिल तीन विशेषज्ञ स्पिनर्स को टीम से ड्रॉप कर दिया गया – 38 वर्षीय ऑफ़-स्पिनर वेंकटराघवन (पिछले दो वर्ल्ड कप में भारतीय टीम के कप्तान रहे थे), 17 वर्षीय खब्बू स्पिनर मनिंदर सिंह और 17 वर्षीय लेग स्पिनर लक्ष्मण शिवरामकृष्णन.
सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री, मोहिंदर अमरनाथ, दिलीप वेंगसरकर, यशपाल शर्मा, खुद कपिलदेव, कीपर सैयद किरमानी, मदनलाल और बलविंदर सिंह संधू ये नौ खिलाड़ी ही टीम में अपनी जगह सुरक्षित रख पाए. कीर्ति आजाद और सुनील वाल्सन को शामिल करने का जिक्र आ ही चुका है. भारतीय टीम के लिए खेल चुके विस्फोटक ओपनर कृष्णमाचारी श्रीकांत और मध्यक्रम के बल्लेबाज संदीप पाटिल को उनके तेज रन बनाने की क्षमता के कारण टीम में शामिल किया गया.
उन दिनों ‘कभी अजनबी थे’ फिल्म – जिसमें पूनम ढिल्लों और देबाश्री रॉय के अपोजिट मुख्य भूमिका संदीप पाटिल निभा रहे थे – की शूटिंग में व्यस्त संदीप पाटिल को रणजी फाइनल में शतक लगाने का पुरस्कार मिला था. वहीं मुंबई से रणजी फाइनल हारने वाली टीम – कर्नाटक – के लिए सबसे ज्यादा रन बनाने वाले (जिसमें रणजी फाइनल में लगाया शतक शामिल था)और अपनी स्विंग गेंदबाजी से सीजन में 22 विकेट लेने वाले अनुभवी रोजर बिन्नी को भी टीम में शामिल किया गया था.
टीम में सुनील वाल्सन ही इकलौते खिलाड़ी थे जो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट अनुभव के मामले में कोरे थे. लेकिन यह भी सच था कि कप्तान कपिल, उप-कप्तान जिमी, सनी और कर्नल के अलावा किसी ने भी वर्ल्ड कप में कोई मैच नहीं खेला था. हैदराबाद के लिए रणजी खेल चुके पी आर मान सिंह को भारतीय टीम का मैनेजर बनाया गया.
श्रीकांत का सेकेण्ड हनीमून
उधर सनी का फोन पहुँचा श्रीकांत को – “डू यू वांट टू गो फॉर युअर सेकेण्ड हनीमून चीका?” बीते 30 मार्च को श्रीकांत और विद्या परिणय सूत्र में बंधे थे और अभी हाल ही में वे श्रीलंका में हनीमून मनाकर लौटे थे. विश्वकप के पश्चात अमेरिका क्रिकेट बोर्ड ने कुछ प्रदर्शनी मैचों के लिए भारतीय खिलाड़ियों को संपर्क किया था और सनी ने वही ऑफर श्रीकांत को फॉरवर्ड किया था.
वर्ल्ड कप इंग्लैंड और फिर वहीं से अमेरिका का ट्रिप नवविवाहिता पत्नी के साथ – ऑल पेड – ये तो ‘चुपड़ी और दो-दो’ वाला मामला था. श्रीकांत ने फ़ौरन सहमति दे दी.
सनी और श्रीकांत के अलावा सैयद किरमानी, रोजर बिन्नी, संदीप पाटिल, यशपाल शर्मा और बलविंदर सिंह संधू ने भी इस अमेरिका दौरे के लिए हामी भरी. इन खिलाड़ियों का प्लान ये था कि ग्रुप मैचेज खेलने के बाद दर्शक के रूप में सेमी-फाइनल और फाइनल देखेंगे और फिर अमेरिका के लिए निकल जायेंगे. इन खिलाड़ियों ने टीम के मैनेजर मान सिंह को भी इस अमेरिका ट्रिप के लिए साथ चलने के लिए मना लिया, इस शर्त पर कि भारतीय टीम मानसिंह के साथी खिलाड़ी रहे तेज गेंदबाज गोविन्दराज के सहायतार्थ एक प्रदर्शनी मैच में वर्ल्ड कप फाइनल मैच के अगले दिन शिरकत करेगी.
क्या आप वाकई वर्ल्डकप खेलने आए हैं?
30 मई को बॉम्बे से भारतीय टीम को फ्लाईट पकडनी थी. अमूमन किसी विदेशी दौरे से पहले बोर्ड भारतीय टीम के लिए फेयरवेल पार्टी रखती थी, लेकिन ऐसा टेस्ट मैच के दौरे के लिए हुआ करता था, ये एकदिवसीय मैचों के लिए दौरा था और टीम से कोई ख़ास उम्मीद भी नहीं रखी गई थी, शायद और भी कोई वजह रही हो, लेकिन इस बार बोर्ड ने कोई फेयरवेल पार्टी नहीं रखी थी.
संदीप पाटिल बोर्ड से अनुरोध कर पहले ही लन्दन चले गए थे ताकि वे वहाँ लन्दन एडमंडटन क्लब – जिसके लिए वे प्रोफेशनल क्रिकेट खेला करते थे – के साथ वहाँ की कंडीशन में प्रैक्टिस कर सकें और साथ-साथ मौसम के अनुरूप खुद को ढाल सकें. कपिल, जिमी, कीर्ति और सुनील वाल्सन पहले से ही इंग्लैंड में थे.
बाक़ी खिलाड़ियों के साथ मैनेजर मान सिंह फ्लाईट पर सवार होने जब बॉम्बे हवाई अड्डे पहुंचे तो पता चला कि टीम के खिलाड़ियों का सामान – किट और कपड़े – निर्धारित सीमा से कही अधिक भारी है, जिसकी वजह से फ्लाईट बोर्ड करने की इजाजत नहीं मिल रही. मैनेजर मान सिंह ने एयरलाइन स्टाफ़ को लाख समझाने की कोशिश की कि भारतीय टीम वर्ल्ड कप खेलनेजा रही है, इसलिए अपवादस्वारूप इस अतिरिक्त वजन को इग्नोर किया जाय, पर सब व्यर्थ. बोर्ड ने फेयरवेल तो नहीं ही दिया था टीम को, मैनेजर को भी इतनी कम राशि खर्चे के लिए दी थी कि उससे यहाँ अतिरिक्त लगेज़ के लिए भुगतान नहीं किया जा सकता था. आखिरकार मान सिंह ने बोर्ड के लेटरहेड पर एक अंडरटेकिंग साइन करके दिया कि अगले 24 घंटे में अतिरिक्त लगेज़ शुल्क का भुगतान बोर्ड द्वारा कर दिया जाएगा, तब जाकर खिलाड़ियों को बोर्डिंग करने को मिला .
लन्दन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर आव्रजन अधिकारी ने टीम के एक सदस्य से पूछा – “आप श्योर हैं न कि आपकी टीम को वर्ल्ड कप के लिए आमंत्रित किया गया है? पिछले वर्ल्ड कप में आपकी टीम के दोयम दर्जे के प्रदर्शन के बाद भी?” पिछले वर्ल्ड कप (1979) में भारतीय टीम क्वालीफाई करके आई आईसीसी एसोसिएट टीम श्रीलंका – जिसे टेस्ट स्टेटस मिलना अभी बाक़ी था – से भी हार गई थी.
पहली जून को हीथ्रो एयरपोर्ट पहुँचने पर भारतीय टीम को कोई उनका इन्तजार करता न मिला – न मीडिया , न रिपोर्टर, न प्रशंसक.
पहली क़िस्त : वो साल था तिरासी – उभरना कपिल देव का क्रिकेट के आकाश पर
दूसरी क़िस्त : वो साल था तिरासी –गयाना के मैदान पर होली के दिन दीवाली
विश्वरंजन हैं तो क़ानून के प्रोफेशनल लेकिन मन रमता है खेलों और क्राइम फिक्शन में। कई किताबें लिखी हैं और ढेरों लेख।