ग़ुलाम औरतों की आज़ादी का पहला गीत
यूनान के सिसरो के काल के प्राचीनतम कवियों में से एक हैं।
यह गीत उन्होंने अनाज पीसने की पनचक्की के आविष्कार पर लिखा था
क्योंकि इस यंत्र के बन जाने के बाद औरतों को हाथ चक्की के श्रम से छुटकारा मिला था।
यह कविता श्रम-विभाजन से सम्बंधित प्राचीन काल के लोगों और आधुनिक काल के लोगों के विचारों के परस्पर विरोधी स्वरूप को भी स्पष्ट करती है. कार्ल मार्क्स ने अपनी प्रसिद्ध कृति पूँजी के पहले खंड पर इस कविता का उल्लेख किया है।
आटा पीसने वाली लड़कियों,
अब उस हाथ को विश्राम करने दो,
जिससे तुम चक्की पीसती हो,
और धीरे से सो जाओ !
मुर्गा बाँग देकर सूरज निकलने का ऐलान करे
तो भी मत उठो !
देवी ने अप्सराओं को लड़कियों का काम करने का आदेश दिया है,
और अब वे पहियों पर हलके-हलके उछल रही हैं
जिससे उनके धुरे आरों समेत घुम रहे हैं
और चक्की के भारी पत्थरों को घुमा रहे हैं।
आओ अब हम भी पूर्वजों का-सा जीवन बिताएँ
काम बंद करके आराम करें
और देवी की शक्ति से लाभ उठाएँ।
[स्त्री: मुक्ति का सपना पुस्तक से साभार. कविता का प्रस्तुतीकरण और टिप्पणी: रश्मि चौधरी]