कार्ल मार्क्स की अंत्येष्टि पर फ्रेडरिक एंगेल्स का भाषण
[शनिवार, मार्च 17 के दिन मार्क्स को हाइगेट सेमेट्री की उस क़ब्र में चिर-विश्राम के लिए ले जाया गया जिसमें 15 माह पूर्व उनकी पत्नी को दफ़नाया गया था. सोशल डेमोक्रेट के सम्पादक मंडल तथा ‘लन्दन वर्कर्स एजुकेशनल सोसाइटी’ के नाम पर जी. लेम्क ने लाल रिबन टंके दो बुके क़ब्र पर अर्पित किये. तत्पश्चात फ्रेडरिक एंगेल्स ने अंग्रेज़ी में यह भाषण दिया]
14 मार्च को अपरान्ह पौने तीन बजे महानतम जीवित विचारक के विचार थम गए, उन्हें बमुश्किल दो मिनट के लिए अकेला छोड़ा गया था. लौटने पर हमने उन्हें अपनी आरामकुर्सी में पाया. वह शांतिपूर्वक निद्रालोक में खोये थे – परन्तु सदा के लिए.
इस इंसान की मृत्यु से यूरोप तथा अमेरिका के क्रांतिकारी सर्वहारा और एतिहासिक विज्ञान, दोनों को अकल्पनीय क्षति हुई है. उस महाशक्तिशाली सत्ता के प्रयाण से उत्पन्न अभाव जल्द ही अपना प्रभाव दर्शा देगा.
जिस प्रकार डार्विन ने जैविक विकास के नियमों का आविष्कार किया, उसी भांति मार्क्स ने मानव-इतिहास के चालक सिद्धांत की खोज की है, विचारधाराओं के अतिशयोक्तिपूर्ण जंजाल तले दबा यह बेहद सीधा सा तथ्य कि, राजनीति, विज्ञान, कला, धर्म आदि के उपभोग से पूर्व मानव सभ्यता भोजन, पानी, कपड़े और घर प्राप्त करे ; कि जीवन धारण के तात्कालिक भौतिक संसाधनों का उत्पादन और इस प्रक्रिया में एक युग द्वारा अर्जित आर्थिक विकास की नींव पर राजसत्ता की संस्थाओं, न्याय-बोध, कला और यहाँ तक कि धार्मिक विचार का जन्म होता है, इस सच की रौशनी में ही इनकी व्याख्या की जानी चाहिए, न कि उसके विपरीत जैसा कि अब तक किया जाता रहा है.
इतना ही नहीं, मार्क्स ने गति के उस ख़ास नियम का आविष्कार भी किया है जो मौजूदा पूंजीवादी उत्पादन-प्रणाली और उसकी उपज बुर्जुआ समाज को संचालित कर रहा है. अतिरिक्त मूल्य (सरप्लस वैल्यू) की खोज ने यकायक उस समस्या पर प्रकाश डाल दिया है जिसके समाधान में जुटे बुर्जुआ अर्थशास्त्री तथा समाजवादी आलोचक दोनों की पूर्ववर्ती जाँच-पड़तालें अँधेरे में सिर पटक रही थीं.
एक जीवन के लिए ये दो खोज़ें पर्याप्त हैं. वे ख़ुशनसीब होते हैं जिनके हाथों ऐसा कोई एक आविष्कार भी संपन्न होता है, परन्तु मार्क्स ने जिस किसी भी क्षेत्र में प्रवेश किया, और उन्होंने बहुत से क्षेत्रों में प्रवेश किया, किसी एक में भी सिर्फ़ सतह पर सीमित नहीं रहे, हर क्षेत्र, यहाँ तक कि गणितीय विधा में भी उन्होंने मौलिक आविष्कार किए.
ऐसा ही था वह विज्ञान मानव. परन्तु यह उसके व्यक्तित्व का आधा परिचय भी नहीं है. मार्क्स के लिए विज्ञान एक ऐतिहासिक रूप से गतिशील क्रांतिकारी शक्ति रहा. कितना महान आनंद रहा होगा, वह आनंद जिसमें उन्होंने सैद्धांतिक विज्ञान के क्षेत्रों में नई खोज़ों का स्वागत किया जिनकी व्यवहारिक क्रिया की समझ शायद अभी तक असम्भव रही थी. उद्योग और कहें तो सामान्य ऐतिहासिक विकास में आविष्कार ने जब इसे लक्ष्य कर उन्हें एक दूसरे प्रकार का असीम आनंद होता था. उदाहरणस्वरूप उन्होंने वैद्युतिकी के क्षेत्र की हालिया खोज़ों और मार्शेल दर्पेज़ के सिद्धांत पर तुरंत दृष्टिपात किया.
इसलिए कि मार्क्स सबसे पहले क्रांतिकारी थे. उनके जीवन का वास्तविक मिशन किसी न किसी रूप पूंजीवादी समाज तथा इसके द्वारा निर्मित राजसत्ता की संस्था के विनाश और इस प्रकार आधुनिक सर्वहारा की मुक्ति में योगदान था. वे पहले मनुष्य थे जिसे उसकी सामाजिक स्थिति और ज़रूरियात का ज्ञान था और जो उनकी मुक्ति की परिस्थितियों के बारे में सजग था. संघर्ष उनकी आत्मिक सत्ता थी. वह उस बेइंतिहा जूनून, ताक़त तथा क़ामयाबी के साथ लड़े जिससे बहुत कम लोग मुकाबिला कर सकते हैं. उनके कामों में राईन समाचार पत्र (1842), पेरिस वोर्वार्त्स (1844), ड्योच ब्रुजेर समाचार पत्र (1847), नया राईन समाचार पत्र (1848-49), न्यू यार्क ट्रिब्यून (1852-61) जैसी कृतियों साथ विद्रोही इश्तहारों की एक पूरी शृंखला, पेरिस के संगठनों में निरंतर योगदान और अंततः इन सबमें चार चाँद लगाते हुए मज़दूरों की ‘अंतर्राष्ट्रीय एसोसियेशन’ बेशक एक ऐसी उपलब्धि है जिसके संस्थापक ने यदि जीवन में और कुछ न किया होता तो भी उसके गर्व की सीमा न होती.
इसलिए मार्क्स अपने समय में सर्वाधिक घृणित और सर्वाधिक परित्यक्त इंसान रहे. निरंकुश और रिपब्लिकन दोनों सत्ताओं ने उन्हें अपने क्षेत्र से निर्वासित किया. उन पर निरंतर हमलों के दौरान कंजर्वेटिव और अति जनवादी बुर्जुआ सहयोद्धा बने. उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की. वे इसे निरर्थक समझते, नज़रअंदाज करते और केवल तभी जवाब देते जब वाकई आवश्यक होता. और वह प्यार किये गए. उनकी मौत साइबेरिया से कैलीफोर्निया तक की खदानों, योरप और अमेरिका के सभी हिस्सों के लाखों सहयोगी क्रांतिकारी मेहनतकशों के लिए मातम की सबब बनी.
और मैं यह दुस्साहसपूर्वक कहता हूँ कि, उनके विरोधियों की संख्या बड़ी थी लेकिन उनका व्यक्तिगत शत्रु एक भी नहीं था. उनका नाम युगों तक भुलाया नहीं जा सकेगा और इसी तरह उनका काम भी.
राजपाल प्रकाशन से प्रकाशित अशोक कुमार पाण्डेय की किताब ‘मार्क्सवाद के मूलभूत सिद्धांत’ से
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