महाराणा प्रताप और उनके मुस्लिम सिपहसालार
- परवेज़ अंसारी
जब भी हल्दीघाटी के युद्ध की बात होती है तो हम सब महाराणा प्रताप और उनके घोड़े चेतक के बारे में बात करते हुए नज़र आते हैं। इसके साथ-साथ हम इतिहास में लड़ी गई इस लड़ाई को हिन्दू-मुस्लिम के नज़रिए से देखने लगे है और हाल के दिनों में यह प्रचालन और तेज़ी से बढ़ रहा है क्योंकि मौजूदा दौर में सब के अपने-अपने नज़रिए का इतिहास हो गया हैं और सब इतिहास के व्याख्याता ।
जब महाराणा प्रताप को राष्ट्र गौरव और अकबर को विदेशी आक्रान्ता घोषित करते की भरपूर कोशिश की जा रही हैं तो बीबीसी से बात करते हुए जानेमाने इतिहासकार प्रो. हरबंस मुखिया कहते हैं
‘दिक़्क़त यहाँ है कि महाराणा प्रताप को जो पोशाक पहनाई जा रही है कि उन्होंने भारत की सुरक्षा में विदेशियों से टक्कर ली और वो एक राष्ट्रीय हीरो थे, जिसने राष्ट्र की गरिमा के लिए लड़ाइयाँ लड़ीं, ये सच नहीं है। देश की कल्पना न केवल भारत में बल्कि संसार भर में 18वीं और 19वीं शताब्दी में आई है। ’
भारतीय मध्कालीन इतिहास इस तथ्य से भरा पड़ा है कि सत्ता के लिए राजाओं ने एक- दुसरे को क़त्ल किया और आपस में लड़ाइयाँ लड़ी। हल्दी घाटी की लड़ाई भी सत्ता संघर्ष का ही नतीजा थी। हाँ ,यह एक शानदार तथ्य है कि महाराणा प्रताप एकलौते राजपूत राजा थे जिन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर के सामने घुटने नहीं टेके और आख़िरी दम तक लड़ते रहे।
इस लड़ाई को हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष की तरह देखने वाले भी भूल जाते हैं कि जहाँ अकबर की सेना में मान सिंह और सवाईं राजा जयसिंह सहित अनेक हिन्दू सिपहसालार शामिल थे, वहीं महाराणा प्रताप के एक प्रमुख सिपहसालार हाकिम खान सूरी थे।
हाकिम खान सूरी: महाराणा प्रताप के मुस्लिम सेनापति
हाकिम खान सूरी का जन्म 1538 ई. में हुआ। ये अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के वंशज थे।
उस समय यह साम्प्रदायिक सौहार्द्र व आत्म स्वाभिमान के लिए महाराणा प्रताप की सेना में शामिल हुए। महाराणा प्रताप का साथ देने के लिए ये बिहार से मेवाड़ आए व अपने 800 से 1000 अफ़गान सैनिकों के साथ महाराणा के सामने प्रस्तुत हुए। हाकिम खान सूरी को महाराणा ने मेवाड़ का सेनापति घोषित किया एवं हाकिम खान हरावल (सेना की सबसे आगे वाली पंक्ति) का नेतृत्व करते थे और मेवाड़ के शस्त्रागार (मायरा) के प्रमुख थे। मेवाड़ के सैनिकों के पगड़ी के स्थान पर शिरस्त्राण पहन कर युद्ध लड़ने का श्रेय इन्हें ही जाता है।
हाकिम खान सूरी हल्दीघाटी के युद्ध मे लड़ते-लड़ते शहीद होकर अमर हो गए। अकबर के खिलाफ युद्ध लड़ने वाले हाकिम खान सूरी जिनके बिना हल्दीघाटी, के युद्ध की कहानी अधूरी है। हाकिम खान इस युद्ध में हर वक्त महाराणा प्रताप के साथ खड़े रहे। इतना ही नहीं, प्रताप की सेना को कई दांव-पेच भी सिखाए। कहते हैं महाराणा और अकबर की सेना के बीच युद्ध के दौरान मेवाड़ के सेनापति हाकिम खान सूरी का सिर धड़ से अलग हो गया, इसके बावजूद कुछ देर तक वे घोड़े पर योद्धा की तरह सवार रहे।
कहते हैं कि मृत्यु के बाद हल्दी घाटी में जहाँउनका धड़ गिरा। वहीं, समाधि बनाई गई। हाकिम खान सूरी अफ़गानी मुस्लिम पठान थे। वे महाराणा प्रताप के तोपखाने के प्रमुख हुआ करते थे। हल्दी घाटी के युद्ध में अकबर की सेना के खिलाफ महाराणा प्रताप की सेना के सेनापति के रूप में भी रहे। दूसरी ओर अकबर की तरफ से आमेर के राजा मान सिंह सेनापति रहे। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय सत्ता संघर्ष के इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम के नज़रिए के अलग हट कर देखना होगा क्योंकि यहाँ महाराणा प्रताप का वफादार हाकिम खान सूरी हैं तो मुग़ल बादशाह अकबर का वफ़ादार एक राजपूत राजा मान सिंह ।
अंत में जब भी हम किसी को अपना नायक बनाए और उसकी गाथा गाएं तो हमें यह ध्यान रखना होगा कि इतिहास अपनी कहानियों में धर्म को लेकर भेदभाव नहीं करता हैं, इसलिए जब-जब भी महाराणा प्रताप के शौर्य कि बात करेंगे तब-तब उनके वफ़ादार सिपहसालार हाकिम खान सूरी कि बहादुरी की भी चर्चा होगी।