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आजाद देश की पहली ​महिला सीएम सुचेता कृपलानी

सुचेता कृपलानी को अधिकांश लोग इस नाते ही जानते हैं कि उन्होंने एक लेक्चरर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने के साथ अज़ादी के संघर्षों में भी शामिल हुई थीं। उषा मेहता के साथ मिलकर भूमिगत होकर रेडियो प्रसारण भी किया, संविधान सभा में वंदे मातरम गाया और उत्तरप्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनी। उनका परिचय केवल इतना ही नहीं, विभाजन के बाद महिला शरणार्थियों के लिए किया गया उनका काम भी मील का पत्थर सिद्ध हुआ। वह मन में गुस्सा और देश के लिए कुछ भी कर जाने को तैयार रहने वाली महिला भी थी।

जालियांवाला बाग दुर्घटना ने सुचेता को अंग्रेज विरोधी बना दिया

सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून 1908 को अम्बाला के उच्च वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। इसके पिता डां एस.एन. मजुमदार ब्रह्मो समाज के समर्थक और समाजसुधार के क्षेत्र में उदारवादी और प्रगतिशील थे। सुचेता के व्यक्तिक्त पर  पिता का काफी प्रभाव था। मैट्रीकुलेशन क्वीन मैरी मैरी स्कूल दिल्ली, स्नातक विमेन कॉलेज लाहौर और एम. ए. सेंट स्टीफेन कॉलेज दिल्ली से प्रथम श्रेणी से उतीर्ण किया था।

 

जालियांवाला बाग दुर्घटना के समय सुचेता मात्र दस वर्ष की थीं। इस घटना ने उनको अंग्रेज विरोधी बना दिया था।

 

1924 में सुचेता ने दिल्ली में पहली बार महात्मा गांधी से मिली। 1930  में पिता की मृत्यु के बाद सुचेता पर जिम्मेदारियाँ बढ़ी चुकी थी वह  गंगाराम स्कूल में अध्यापन कार्य करने लगीं। इसके बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में इतिहास की प्राध्यापिका नियुक्त हुई।  महाविद्यालय की प्रिंसिपल आशा से उनकी मित्रता हुई जो गांधी जी के बुनियादी शिक्षा की समर्थक थीं।

 

 बनारस प्रवास काल में ही आचार्य जे.बी.कृपलानी से सुचेता का परिचय हुआ और दोनों ने दाम्पत्य सूत्र में  एक होने का निश्वय कर 21 अप्रैल 1936 को विवाह कर लिया और सुचेता मुजुमदार से  सुचेता कृपलानी हो गई। आचार्य कृपलानी की बहन भी इस विवाह के विरुद्ध थी क्योंकि सुचेता और आचार्य कृपलानी की आयु में 20 वर्ष का अन्तर था।

यद्यपि गांधीजी इस विवाह के विरुद्ध थे परन्तु आचार्य कृपलानी जैसे योग्य कार्यकर्ता के कारण गांधीजी ने इसका विरोध नहीं किया। स्वभाव और राजनीतक विचारों की दृष्टि से सुचेता और आचार्य कृपलानी विरोधी शिवरों में रहने के बाद भी उनके दाम्यत्य जीवन में कोई दरारें नहीं थी। [i]

 

स्वयं सुचेता और आचार्य कृपलानी भी काफी पेशोपेश में थे। आचार्य कृपलानी ने विवाह के सन्दर्भ में लिखा था कि हम दोनों के बीच आयु का अन्तराल अधिक था और हम संयमित और कठोर जीवन जी रहे थे। ये भी शादी के खिलाफ थी, गांधीजी भी नहीं चाहते थे क्योंकि वे स्वाधीनता संघर्ष में जिम्मेदारियों से विमुख हो सकते थे। गांधीजी ने मुझे बुलवाया और अन्तिम दौर में कहा भी कि तुम विवाह करके मेरा दाहिना हाथ तोड़ दोगी।[ii]

अप्रेल 1936 में बह्मो समाज पद्धति से विवाह हुआ, नेहरू की मां स्वरूपरानी नेहरू ने इसका स्वागत किया और आनन्द भवन में दावत दी गयी। विवाह के रजिस्ट्रेशन में जवाहरलाल नेहरू गवाह थे।[iii]

 

सुचेता कृपलानी  कांग्रेस में सत्याग्रहियों की सूची में प्रमुख थी

 

1934 में उत्तर भारत के भीषण भूकम्प का सबसे बुरा प्रभाव बिहार पर पड़ा था। राजेन्द्र प्रसाद ने बिहार राहत कार्य का संगठन किया। गांधी जी राहत कार्य में हाथ बंटाने के लिए पटना पहुंच गये। सुचेता कृपलानी आचार्य कृपलानी के प्रोत्साहन से बिहार भूकंप पीड़ितों की सहायता में कूद पड़ी।

इसी समय सुचेता कृपलानी का परिचय जमुना लाल बजाज से हुआ। जमुनालाल बजाज ने सुचेता कृपलानी को बनारस विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़कर महिला आश्रम में कार्यभार सम्भालने का अनुरोध किया। सुचेता कृपलानी वर्धा गयीं, परन्तु वहां के वातावरण अधिक कठोर लगा।

उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से इस्तीफा देकर इलाहाबाद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में कांग्रेस के सबसे छोटे स्तर के कार्यकर्ता की हैसियत से कार्य का आरम्भ किया।

इसकी विदेश विभाग की शाखा भी खुल चुकी थी अत: इन्होंने कांग्रेस के विदेश विभाग की जिम्मेदारी सम्भाल लीं। इन्होंने पाक्षिक बुलेटिन प्रकाशित करना शुरू किया। यह बुलेटिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में रूचि लेने वाले विदेशी लोगों और संस्थाओं के पास भेजा जाता था। कुछ महीनों बाद विदेशी विभाग का कार्यभार  यूरोप से लौटे राम मनोहर लोहिया को दे दिया गया।[iv]

 


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सुचेता कृपलानी को अब कांग्रेस के महिला विभाग का दायित्व दिया गया। सुचेता कृपलानी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन किया। इसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया।

कांग्रेस कार्यसमिति ने 14 सितंबर 1939 को एक प्रस्ताव द्वारा घोषित किया कि स्वतन्त्र और लोकतान्त्रात्मक भारत धुरी राष्ट्रों के आक्रमण करने में मित्र राष्ट्रों का साथ देगा। कांग्रेस ने सरकार से कहा कि वह युद्ध उद्देश्यों को स्पष्ट करें। सरकार से कोई आश्वासन न मिलने के बाद 8 प्रान्तों से कांग्रेस सरकार ने इस्तीफा दे दिया।

रामगढ़(बिहार) में मार्च 1940 में हुए कांग्रेस अधिवेशन में व्यतिक्तग सत्याग्रह करने का फैसला हुआ, गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह का शंखनाद किया। गांधीजी ने सत्याग्रह के लिए कुछ प्रमुख व्यक्तियों का चुनाव किया। ये सत्याग्रही सार्वजनिक सभाओं में लोगों को सरकार के युद्ध प्रयत्नों में सहायता न देने की अपील करते गांधीजी ने विनोबा जी को पहला सत्याग्रही चुना।

उत्तर प्रदेश के सत्याग्रहियों की सूची में सुचेता कृपलानी का नाम प्रमुख था। दिसम्बर 1940 को फैजाबाद जिले में सत्याग्रह किया। फैजाबाद में इन्होंने इस इलाके के लोगों को संगठित किया परन्तु स्सत्याग्रह के पहले ही इन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इन्हें 200 रुपये जुर्माने के साथ एक साल की सजा मिली। पहले फैजाबाद के जेल में और बाद में लखनऊ केन्द्रीय कारागार में स्थानानतरित कर दिया गया। जेल में इनका स्वास्थय बिगड़ गया इसलिए इन्हें एक महीने बाद रिहा कर दिया गया।[v]

 

केन्द्रीय कारागार से रिहा होने के बाद सुचेता कृपलानी ने पुन: कांग्रेस कार्यालय में महिला विभाग का कार्य संभाल लिया।

उषा मेहता के साथ मिलकर भूमिगत होकर रेडियों प्रसारण किया

 

भारत छोड़ों प्रस्ताव के समय आचार्य कृपलानी के साथ सुचेता कृपलानी भी उपस्थित थी। 9 अगस्त को सुबह गांधीजी के साथ कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में आचार्य कृपलानी भी थे।

सुचेता, अरूणा आसफ अली के साथ भूमिगत हो गयी और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदयों के साथ मिलकर भूमिगत आंदोलन चलाने लगी। सरकार के दमन चक्र से लोगों की उत्तेजना बढ़ने लगी इसी समय राममनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली और अच्चुत पटवर्धन भी बम्बई पहुंच गये। [vi]

 

सुचेता और इनके साथियों ने एक भूमिगत रेडियों स्टेशन स्थापित किया। उषा मेहता इस स्टेशन की उद्घोषिका बनीं।  इस स्टेशन से वे सभी समाचार प्रसारित किये जाते जिसपर सरकार ने पाबन्दी लगायी थी। यह स्टेशन महीनों कार्य करता रहा।

 

अचानक एक दिन उषा मेहता को समाचार पढ़ते समय गिरफ्तार कर लिया गया। मार्च 1944 तक सुचेता इसका संचालन करती रही। इस बीच इन्होंने गांधीजी से पूना जाकर मुलाकात भी किया। सुचेता को पटना में गिरफ्तार कर एक महीने जेल में रखने के बाद लखनऊ जेल भेज दिया गया जहां 1945 तक इन्हें रखा गया।[vii]

 

भूमिगत रहते हुए सुचेता कांग्रेस के महिला विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में संचालन करती रहीं। सभी प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीयों को आदेश दिया कि वे अपने महिला विभाग का संचालन करें। महिलाओं को जनसभाएं आयोजित कर अशिक्षित कमेटीयों महिलाओं को कांग्रेस के गतिविधियों से अवगत कराया जाये और बुलेटिनों से भी उन्हें सूचित किया जाये।

 

इनके प्रयास से कांग्रेस के महिला विभाग ने देश के विभिन्न प्रदेशों में महिलाओं को स्वयंसेविका के रूप में प्रशिक्षित किया एवं बर्मा तथा अन्य प्रदेशों से आने वाले शरणार्थियों की मदद करने की सलाह भी दी।  इनके प्रयास से कांग्रस के महिलाओं पर किये गये अत्याचारों के बारे में सूचना भी एकत्रित की गयी और पीड़ितों को यह समझाया गया कि वे अपने ऊपर किये गये अत्याचारों का पर्दाफाश कर अपराधियों को पकड़वाने में मदद करें।

 

इसके अतिरिक्त कांग्रेस की गतिविधियों में इनका हमेशा सक्रिय सहयोग रहा तथा कांग्रेस की महिला कार्यकर्ताओं के कार्यों में सामंजस्य स्थापित करके सदस्यों की कार्यक्षमता बढ़ाने, उन्हें खादी ग्राम-उद्योग कार्यों में लगाकर उनके उत्थान के लिए विशेष प्रयास किये गये।

विभाजन के बाद अनेक अपह्यत लड़कियों को मुक्त कराया

 

1945 में सरकार और कांग्रेस से समझौते के बाद जब सभी राजनैतिक कैदियों को छोड़ा गया तो सुचेता कृपलानी को भी जेल से मुक्त किया गया। जेल से मुक्त होने के बाद समाज सेवा और साम्प्रदायिक दंगों से पीड़ित व्यक्तियों को राहत देने के लिए ये नोआखाली में साम्प्रदायिकता की लपटों को शान्त करने की कोशिश में जुट गयीं।

अनेक अपह्यत हिन्दू लड़कियों को मुसलमानों के कब्जे से छुड़ाया। नोआखाली की यात्रा में ये गांधीजी के साथ ही थीं। आचार्य कृपलानी के दिल्ली वापस आने के बाद भी ये नोआखली में पीड़ितों की सेवा लगी रहीं। [viii]

1947 में देश के विभाजन के बाद पंजाब में भड़के दंगों में राहत कार्यो और दंगा पीड़ित महिलाओं की रक्षा के लिए सुचेता कृपलानी पंजाब गयीं और वहां भी सराहनीय कार्य से कांग्रेसी नेताओं की प्रिय बनी रहीं।[ix]

 

1947 में ही सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्या चुनी गयीं और उत्तरप्रदेश विधानसभा क्षेत्र से स्वतंत्र भारत की संविधान सभा की सदस्या चुनी गयीं। कुछ समय बाद सविधान सभा ने अस्थायी संसद का रूप धारण कर लिया।

 

इस समय पंजाब सहित अन्य प्रान्तों में विस्थापितों की गंभीर समस्या थी। सुचेता कृपलानी ने अपने अनुभव और ज्ञान से सफलता प्राप्त किया।  सुचेता कृपलानी तथा ठाकुर दास भार्गव, चोईटराम गिडवानी, लाका अचितराम आदि के प्रयत्नों से सरकार ने शरणार्थियों को मुआवजा देना स्वीकार कर लिया, अत: शरणार्थी समस्या निदान के लिए स्थापित अधिकांश समितियों में ये सदस्य बनाई गयीं।

 

जब पूर्वी पाकिस्तान के साम्प्रदायिक दंगों के कारण हिन्दू शरणार्थी आसाम, बंगाल और बिहार में भारी संख्या में आने लगे तो भारत सरकार ने उनकी समस्याओं को निपटाने के लिए सुचेता कृपलानी की अध्यक्षता में एक संसदीय समिति नियुक्त की।[x]


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देश की पहली महिला मुख्यमंत्री भी बनी

 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सुचेता ने अनेक देशों की यात्राएं की । विदुषी महिला सुचेता की व्याख्यान की अगल शैली होती थी। महिलाओं की समस्याओं में इनकी विशेष रूचि होती थी।

अपनी विदेशी यात्राओं जैसे-रूस, तुर्की, पूर्वी जर्मनी आदि के दौरान  अनेक संस्मरण लिखे। रूस, तुर्की, जर्मनी के अतिरिक्त सुचेता कृपलानी के गांधीजी पर  भी लिखित दो आलेख महत्वपूर्ण है क्योंकि गांधीजी का सुचेता पर सबसे गहरा प्रभाव था।

स्वतंत्रता उपरांत सुचेता की राजनीतिक सक्रियता को देखकर ही 1947 में कांग्रेस समिति का सदस्य बनाया गया था। 1949 में भारतीय शिष्ट-मंडल के सदस्य के रूप में इन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ भेजा गया। 1952 में शक्ति-सम्मेलन में भाग लेने के लिए सुचेता को जर्मनी भेजा गया।

1951 में जब आर्चाय कृपलानी ने कांग्रेस से नाता तोड़कर मजदूर प्रजा पार्टी बनाई तो सुचेता भी सम्मिलित हो गई। 52 में उसी टिकट पर लोकसभा सदस्य चुनी गयी।[xi]

बाद में 1959 में कांग्रेस का महासचिव बनाया गया, 1962 सुचेता उत्तरप्रदेश मंत्रिमंडल में श्रम विभाग का मंत्री बनाया गया, जब मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्त ने कामराज योजना के तहत अपने पद से त्यागपत्र दिया तो अक्टूबर 1963 में सुचेता कृपलानी ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री का पद सुशोभित किया। सुचेता स्वतंत्र भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थी।[xii]

तीन वर्ष मुख्यमंत्री रहने के बाद कांग्रेस की दलबन्दी के कारण सितंबर 1966 में सुचेता ने त्यागपत्र दे दिया। नैतिक मूल्यों के प्रति आस्थावान, ईमानदार, राजनीतिज्ञ सुचेता कृपलानी ने प्रशासन और जनता की सेवा के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किये।

गांधीजी की अनुयायी बनकर उनके पद चिन्हों पर चलने के प्रयास किया बाद में ये राजनीति से हटकर अपने पति आचार्य कृपलानी के साथ नयी दिल्ली के सर्वोदय एन्कलेव में रहने लगी। [xiii]

1974 में आचार्य कृपलानी के अस्वस्थ होने पर उनकी सेवा करते हुए दिल की मरीज हो गयीं और 29 नवम्बर 1974 को ह्रदयघात के फलस्वरूप 1 दिसंबर 1974 को इस संसार से विदा हो गयी।

 


संदर्भ

[i] एन.पी.सेन(सम्पादित): डिक्शनरी आंफ नेशनल बायोग्राफी, vol-2,डायरेक्टर इंस्टीयूट आंफ हिस्टोरिकल स्टडीज़, कलकत्ता, 1972-1974, पेज 364-365

[ii] वहीं

[iii] वहीं

[iv] एन अनफिनिश्ड आटोबायोग्राफी: सूचेता कृपलानी, द इलीस्ट्रेटेड वीकली आंफ इंडिया, 5 जनवरी 1975, पेज 27

[v] वहीं

[vi] आंल इंडिया कांग्रेस कमेटी पेपर्स, वुमेन आंन दी मार्च, अगस्त 1857 पेज 13

[vii] वहीं

[viii] ए इडियन रनुअल रजिस्टर, जनवरी-जून 1942 पेज 301

[ix] वीरेन्द्र ग्रोवर व रंजना अरोड़ा(संपादित) एन अनफिनिश्ड आटोबायोग्राफी, सुचेता कृपलानी, पेज 123-30

[x]  वहीं

[xi] आर्चाय कृपलानी का आलेख: इन मेमोरियल 321

[xii] आर्चाय कृपलानी का आलेख, सुचेता, हाऊ शी बिकेम चीफ मिनिस्टर, पेज 303

[xiii] महात्मा गांधी: लीडर एंड टीचर आंफ वुमन एंछ महात्मा गांधी एंड वुमेन पेज 35-39, 201-207

 

Pratyush Prashant

जे एन यू से मीडिया एंड जेंडर पर पीएचडी। दो बार लाडली मीडिया अवार्ड। स्वतंत्र लेखन। संपादक- द क्रेडिबल हिस्ट्री

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