एम्स का गठन करने वाली बापू की ‘मुर्खा’ राजकुमारी अमृत कौर
राजकुमारी अमृत कौर कपूरथला की महारानी थीं, पर उन्होंने स्वयं को एक महारानी के तरह ज़ाहिर नहीं किया, लेकिन उनके व्यक्तित्च में एक तेज था!
राजकुमारी अमृत कौर को अधिकांश लोग स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाली अग्रणी महिला और संविधान सभा में शामिल महिला प्रतिनिधि के सदस्य के रूप में जानते हैं। बहुत कम लोगों को यह पता है कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनके शामिल होने की पहली प्रेरणा गोपालकृष्ण गोखले थे। अमृतकौर ने दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी का पहला भाषण, जो कांग्रस के मुबंई अधिवेशन में 1915 में दिया था, सुना, जिसे सुनकर वे गांधीजी के विचारों के प्रति आकृष्ट हुईं।
महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात 1934 में हुई, उसके बाद वह स्वयं को रोक न सकी और अपने एक नौकर के साथ सेवाग्राम आश्रम पहुंच गई। गांधीजी ने उनको कहा उनका पहला कर्तव्य माता-पिता की सेवा करना है। माता-पिता के देहांत के बाद अमृत कौर ने गांधीजी के रचनात्मक कार्यो में भाग लेना आरम्भ कर दिया। महात्मा गांधी के बेटियों में उनका भी नाम दर्ज हो गया। बापू उन्हें पत्रों में कई संबोंधन से देते ‘प्रिय बहन’, ‘प्रिय विद्रोही’, ‘प्रिय मुर्खा’। जब ‘प्रिय मुर्खा’ से संबोंधन ‘प्रिय अमृता’ में बदला तो अमृता बापू से काफी नाराज़ रहीं, जिस पर बापू को सफाई तक देनी पड़ी। जब वह गांधी के सफाई से सहमत हुई तब उन्होंने उनके सचिव होने की ज़िम्मेदारी स्वीकार की जो 16 साल तक उन्होंने निभाया भी।
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म और पढ़ाई
राजा सर हरनाम सिंह जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था, के घर 2 फरवरी 1889 को अमृत कौर का जन्म नवाबों के शहर लखनऊ में हुआ। उनकी इसाई मां ने उनका लालन-पालन बहुत ही सख्ती से किया। ईसाई धर्मावलंबी होने के बाद भी अमृत कौर के पूरे सार्वजनिक जीवन पर कभी भी ईसाई धर्म के विचार हावी नहीं हुए।
मात्र 12 साल के ही उम्र में उन्हें आक्सफोर्ड अपनी पढ़ाई के लिए भेज दिया गया। जहां उन्होंने अपनी एम.ए की पढ़ाई ही पूरी नहीं की, हॉकी, क्रिकेट और टेनिस जैसे खेलों में कप्तान की भूमिका में स्वयं को निखारा भी। अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाली महिला के रूप में 20 साल के उम्र में वह भारत आईं और अविवाहित रहते हुए पूरा जीवन मानवता के सेवा को अर्पित करने का फैसला किया।
1919 में जालियांवाला हत्याकांड के बाद उन्होंने राजनीति में उतरने का मन बना लिया। माता-पिता के देहांत के बाद अमृत कौर ने गांधीजी के रचनात्मक कार्यो में भाग लेना आरम्भ कर दिया। वर्ष 1934 से वह गांधीजी के आश्रम में ही रहने लगीं। उन्हें ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के दौरान भी जेल हुई।
गांधीजी के निर्देशानुसार उन्होंने बुनकर संघों के कार्यों को व्यवस्थित करने के लिए पंजाब की यात्रा की। इस भूमिका में उन्होंने कई वर्षों तक हरिजन पत्र के संपादन में भी गांधीजी का सहयोग किया। गांधीजी के नेतृत्व में उन्होंने दांडी मार्च में भी भाग लिया और जेल गई। 1937 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के रूप में वर्तमान खैबर-पख्तूनख्वा में बन्नू के लिए सद्भावना मिशन पर गई, उनको फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर राजद्रोह का आरोप लगा।
तीस के दशक में जब भारत में महिला आंदोलन अपने संगठनात्मक रूप में विस्तार पाना शुरू किया तब मार्गरेट कजिन्स के साथ अमृत कौर ने उसमें अपनी भूमिका का निर्वाह किया। कुछ समय तक वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष भी रहीं। महिलाओं के सामाजिक स्थिति में सुधार और देश की आजादी में उनकी गहरी रूची थी।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी गिरफ्तारी दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हुई। पर 1942 में जब गांधीजी गिरफ्तार कर लिए गए, उनको उनके ही घर में नज़रबंद कर दिया गया। 1945 में विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद जब कांग्रेस के नेताओं की रिहाई शुरू हुई, तब उन्हें भी राहत दी गयी।
एम्स के गठन की प्रथम अध्यक्षा महारानी अमृत कौर
अंतरिम सरकार का जब गठन किया गया, तब हिमाचल के मंडी से उन्होंने अपना पहला चुनाव लड़ा। पंडित नेहरू ने उनको प्रथम केद्रिय स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी दी। वह खेल मंत्री, इंडियन रेड क्रॉस और एम्बुलेंस कोर की भी अध्यक्ष रहीं। भारतीय राज्यक्ष्मा संघ की स्थापना में उनकी मुख्य भूमिका रही।
एम्स के गठन की प्रथम अध्यक्षा भी रही। इंडियन काउंसिल आंफ चाइल्ड वेलफेयर, ट्यूबरक्लोसिस एसोसियेशन ऑफ़ इंडिया, राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग और सेन्ट्रल लेप्रोसी एंड रीसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना का श्रेय अमृत कौर को जाता है जो बाद में सुशीला नायर के अध्यक्षता में पूरा हो सका।
1957 के आस-पास उनसे स्वास्थ्य मंत्रालय का दर्जा ले लिया गया और विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यक्रमों में प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया गया। वह वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की प्रेसिडेंट भी रहीं, इससे पहले कोई भी महिला इस पद तक नहीं पहुंची थी, वह इस पद पर पहुंचने वाली एशिया की प्रथम महिला थी।बाद में वह हिमाचल प्रदेश विधानसभा में राज्यपाल की निर्वाचित सदस्य रही।
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राजकुमारी अमृत कौर ने अपनी सारी संपत्ति राष्ट्र को समर्पित की
उनका निधन पंडित नेहरू के निधन के कुछ महीने पूर्व, उनके विलिंगडन क्रेसेंट बंगले पर हार्ट अटैक से हुआ। मरने के पहले उन्होंने अपनी सारी संपत्ति राष्ट्र को समर्पित कर दी और अपने सहायिका और सेविकाओं को महिला चिकित्सक सहयोगी बनवा दिया। उनकी इच्छा थी कि उन्हें दफनाया नहीं जाए, बल्कि जलाया जाए।
भले ही वह कपूरथल्ला की महारानी थीं, पर उन्होंने कभी भी स्वयं को एक महारानी के तरह ज़ाहिर नहीं किया। उनके व्यक्तित्च का तेज था जो उन्हें मृदुल और रोबदार बना देता था। टाइम मैगज़ीन ने पिछले सौ सालों में दुनिया की सबसे प्रभावशाली और ताकतवर 100 महिलाओं के नाम इसमें शामिल किए गए तब लगातार 72 सालों तक वह इस लिस्ट में रहीं। 1999 में उन्हें टाइम मैंगज़ीन ने उन्हें ‘पर्सन ऑफ़ द ईयर’ के टाइटल से नवाजा।
राजकुमारी अमृत कौर वह महिला हैं जिनको जानते-समझते हुए इस बात का एहसास होता है कि आज़ाद भारत में भारत स्वस्थ बने इसकी भरपूर प्रयास उन्होंने किया ।
उनकी दो पुस्तकें टू वुमेन और चैलेंज टू वुमेन उनकी विचारधारा का परिचय देती है।
संदर्भ
डॉ श्वेता, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और महिलाएं, वाणी प्रकाशन
नोट: राजकुमारी अमृतकौर के बारे में जानकारी सुशीला नायर के स्स्मंरण से जुटाया गयी है।
जे एन यू से मीडिया एंड जेंडर पर पीएचडी। दो बार लाडली मीडिया अवार्ड। स्वतंत्र लेखन।
संपादक- द क्रेडिबल हिस्ट्री