नोबेल शांति पुरस्कार और बंगाल की ग़ुलाम डायना
“1675 ई., केप ऑफ़ गुड होप, दक्षिण अफ्रीका”
बंगाल के किसी गाँव से एक बालिका कब उठा कर चित्तगॉन्ग ले आई गई, ज्ञात नहीं…चित्तगांग से एक जहाज से उसे मछलीपट्टनम (आंध्र) ले जाया गया। मारिया की आंखों में बस जिज्ञासा थी, और उड़ने की ख़्वाहिश…मछलीपट्टनम से दक्खिन की ओर जहाज़ चली- बताविया (जकार्ता, इंडोनेशिया)।
जहाज के लंबे सफ़र के साथ उस बालिका की उम्र भी बढ़ रही थी। अब जहाज के नाविकों और अधिकारियों की भी उस पर नज़र थी। वो कभी जहाज़ की डेक पर बाँहें फैलाए समंदर देखती, और कभी पीछे छूटी ज़मीन को निहारती…वहाँ से जहाज़ पूर्व की ओर रवाना हुआ …जहाज़ डोल रहा था, और वो भी डर कर जहाज़ में नीचे दुबक कर बैठ गयी थी।
आखिर जहाज़ अफ़्रीका के दक्षिणी बिंदु पर पहुँचा। केप ऑफ़ गुड होप। यहीं से उस बालिका का भविष्य जुड़ा है।
जहाज़ से उतार कर उसे कई और हमउम्र लड़कियों के साथ खड़ा कर दिया गया। वहीं खरीद-फरोख़्त हुई। एक हट्टे-कट्टे सुंदर गोरे को वो पसंद आ गई।
हान्स त्रौस्त एक फौजी थे, और कुछ वर्ष पूर्व ही अफ्रीका आए थे। वो उसे घर ले आए, और कुछ दिनों बाद चर्च ले जाकर उसको एक सुंदर नाम दिया- मरिया।
अब यही उसका नाम था। मरिया दस वर्ष तक त्रॉस्त की गुलाम रही। उन्होनें उसे जर्मन सिखा दिया था, और अब वह बंगाली भूल चुकी थी।
मरिया अब एक अश्वेत जर्मन महिला था। त्रॉस्त मरिया से इतने खुश हुए कि आखिर उसे मुक्त कर दिया। मरिया अब तक गुलाम थी, यह भी शायद वह नहीं जानती थी। उसके लिए यह सब एक स्वप्न ही था। मुक्त होने के बाद मरिया का क्या हुआ? यह राज़ ही रह गया”
(कुली लाइन्स, वाणी प्रकाशन, पृष्ठ 226-227)[1]
जिस तरह अटलांटिक महासागर के माध्यम से ग़ुलामों के व्यापार की चर्चा हुई, हिंद महासागर की नहीं हुई।
गुलामी का इतिहास अफ़्रीका केंद्रित रहा, जिसकी माकूल वजह भी थी। लेकिन, दुनिया के सबसे प्राचीन गुलाम व्यापार हिंद महासागर में हुए, उनका दस्तावेज़ीकरण बहुत कम हुआ। इसके कुछ कारण जो नज़र आते हैं-
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विभाजित प्रशासन– डच प्रशासन, जो ग़ुलामी का केंद्र थे, वे बहुत विभाजित थे। डच ईस्ट इंडिया कंपनी की रिकॉर्ड रखने की प्रवृत्ति बिखरी हुई थी। उनका केंद्र बताविया (आज के जकार्ता, इंडोनेशिया) में था, लेकिन भारत में उनकी कंपनी बस्तियाँ अपना-अलग हिसाब रखती। इसी तरह अफ़्रीका में भी अलग रिकॉर्ड रखे जाते।[2]
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भाषा समस्या– डच दस्तावेज़ अभी तक पूरी तरह अनूदित नहीं हुए। इस कारण उनकी पहुँच अंतरराष्ट्रीय तौर पर कम हुई, और शोधार्थी भी उसे कम तवज्जो देते रहे। हालाँकि अब उनके कई दस्तावेज़ ऑनलाइन भी हैं, और सुविधा से मिल जाते हैं, लेकिन अब काफ़ी वक़्त गुज़र चुका है।
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बेतरतीब मॉडल– डच ग़ुलाम व्यापार एक भ्रष्ट मॉडल था, जो प्राचीन रोमन गुलाम मॉडल की तरह बाज़ारू खरीद-फरोख़्त, अपहरण, बल और प्रलोभन से ग़ुलाम बनाने पर आधारित था। जहाँ अफ़्रीका से अमरीका में दो ही बिंदु थे, इनमें एक ग़ुलाम पूर्वी एशिया से उठा कर दक्षिण भारत, दक्षिण भारत से इंडोनेशिया, इंडोनेशिया से अफ़्रीका, और वहाँ से यूरोप ले जाया जाता। इसकी पूरी ट्रैकिंग कठिन थी।
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अफ़्रीका-केंद्रित नैरेटिव से बाहर होना– ग़ुलाम चर्चा अश्वेत अफ्रीकियों पर अधिक केंद्रित रही। इसे रंगभेद विमर्श से जोड़ कर देना सहज रहा। मलय, चीनी, बंगाल या दक्षिण भारत मूल के लोग इस नैरेटिव में फिट नहीं बैठे। ऐसे भी कयास लग सकते हैं कि जहाँ अफ़्रीका ने अपनी ग़ुलामी को ‘अपार्थिड’ विरोध की नींव बनायी, अन्य देश इस बात को जान-बूझ कर दबा गए।
मसलन भारतीय अभिजात्य वर्ग स्वयं को ‘ग़ुलाम’ या ‘कुली’ से जोड़ने में सहज नहीं, जबकि अफ़्रीकी इस विरासत को खुल कर सामने रखते रहे।
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गिरमिटिया विमर्श में ग़ुलामों पर काम ध्यान – भारतीय विमर्श गिरमिटिया यानी indentured labour पर अधिक केन्द्रित होता गया, और उस से पूर्व के ग़ुलामों पर चर्चा काम हुई।[3]
दक्षिण अफ़्रीका के पूर्व राष्ट्रपति एफ़ डबल्यू डी क्लर्क ने अपनी जीवनी में लिखा कि बंगाल की डायना नामक स्त्री उनकी पूर्वज रही।[4]
लेकिन, बंगाल से डायना का सफ़र अगर ढूँढना हो तो हमें एक ऐसे काले इतिहास से गुजरना होगा, जिसकी जड़ें न जाने कहाँ कहाँ से गुजरेगी। क्लर्क ने लिखा है कि 1667 में ऑगस्टिन बोक्कार्ट नामक व्यक्ति को बंगाल की डायना बेची गयी। उनकी नातिन ऐंजेला ने 1737 में उनके पूर्वज बरेंड डि क्लर्क से विवाह किया है।
वह लिखते हैं,
“यह हमारी वंशावली का वह पहलू है, जिसकी चर्चा कम होती थी। बचपन में तो यह बात मुझे पता भी नहीं थी”
1993 में नेल्सन मंडेला को रिहा कर दक्षिण अफ़्रीका से रंगभेद की औपचारिक समाप्ति लाने के लिए उन्हें मंडेला के साथ संयुक्त नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता, कि इसके पीछे उनका जीवन का यह व्यक्तिगत पहलू भी शामिल हो, जिसकी जड़ें भारतीय ग़ुलाम व्यापार में थी।
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प्रवीण झा के इस कॉलम के अन्य लेख
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प्रश्न: भारत का कौन सा स्थान डच ग़ुलाम व्यापार का केंद्र कहा जाता है?
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स्रोत संदर्भ
[1] Hoge, J. 1946. Personalia of the Germans at the Cape, 1652-1806. Pretoria: Govt. Printer. में मूल वर्णित
[2] S. Arasaratnam, “Slave Trade in the Indian Ocean in the Seventeenth Century,” in K. S. Mathew ed., Mariners, Merchants and Oceans: Studies in Maritime History (New Delhi, 1995), p. 195.
[3] इस विषय पर विस्तृत चर्चा के लिए देखें – झा, प्रवीण कुमार, कुली लाइन्स, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, 2019 और D.Northrup, Indentured Labor in the Age of Imperialism (New York, 1995).
[4] क्लर्क, एफ़ डबल्यू डी, द लास्ट ट्रेक – न्यू बीगिनिंग, मक्मिलन, लंदन, 1998
पेशे से डॉक्टर। नार्वे में निवास। मन इतिहास और संगीत में रमता है। चर्चित किताब ‘कुली लाइंस’ के अलावा प्रिन्ट और किन्डल में कई किताबें